हिंदी माध्यम नोट्स
प्रतिवादी धर्म सुधार आंदोलन क्या है , counter reformation in hindi धर्म सुधार आंदोलन को रोकने तथा उसको समाप्त करने प्रतिक्रिया स्वरूप कौन सा आंदोलन हुआ
पढ़िए प्रतिवादी धर्म सुधार आंदोलन क्या है , counter reformation in hindi धर्म सुधार आंदोलन को रोकने तथा उसको समाप्त करने प्रतिक्रिया स्वरूप कौन सा आंदोलन हुआ ?
प्रश्न: प्रतिवादी धर्मसुधार आंदोलन से आप क्या समझते हैं ? क्या यह अपने उद्देश्यों में सफल रहा ? विवेचना कीजिए।
उत्तर: कैथोलिक धर्म के अंतर्गत प्राटेस्टेंट धर्म के विरुद्ध जो सधार किये गये उन्हें प्रति धर्मसुधार (काउन्टर रिफोर्मेशन) कहते हैं। इसे कैथोलिक धर्म सुधार भी कहते हैं। इसके अन्तर्गत कैथोलिकों ने अपने धर्म की रक्षार्थ निम्नलिखित कदम उठाए-
(1) चर्चे की नैतिकता पर बल: चर्च के सदाचारी व नैतिक मूल्यों पर बल दिया। इसी क्रम में कई पोप थे जिन्होंने सहयोग किया। इनमें पोप क्लेमेन्ट, पोप पॉल III , पोप पॉल-IV आदि प्रमुख थे। 1537 ई. को पोप पाल-III ने 9 कार्डिनल्स का एक आयोग स्थापित किया। जिसने चर्च में सुधारों के लिए 1539 ई. में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की। जिस ‘Report of the cordinals on the Reforms in the Chhurch’ कहते हैं।
(2) ट्रेन्ट की परिषद: इटली में ट्रेन्ट नामक स्थान पर सन् 1545-63 के बीच 18 वर्षों में लगभग 25 धर्म सभाओं का आयोजन किया गया। इसे ट्रेन्ट की परिषद (Council) कहते हैं। इसमें लगभग 200 धर्माधिकारियों ने भाग लिया। इस धर्म सभा में दो प्रकार के कार्य किये गये- एक सैद्धांतिक व दूसरा सुधारात्मक।
(I) सैद्धांतिक कार्यों में
(i) चर्च पर पोप की सर्वोच्चता कायम रहेगी।
(ii) धार्मिक विषयों पर पोप का निर्णय अंतिम होगा।
(iii) एक नई प्रमाणिक (Authatic) बाईबिल का लैटिन भाषा में लेखन किया जाएगा। इसे वल्गेट (Vulgate) संस्करण कहा गया।
(II) सुधारात्मक कार्यों में
(i) धर्माधिकारियों के लिए सदाचारी जीवन पर बल दिया गया।
(ii) चर्च के पदों को बेचने की परम्परा को समाप्त किया गया।
(iii) साइमनी प्रथा को समाप्त किया गया।
(iv) धर्माधिकारियों का शिक्षित होना अनिवार्य किया गया।
(v) धर्माधिकारियों को नियुक्ति के स्थान पर सेवाएँ देना अनिवार्य किया गया।
(vi) पोप-मोचन पत्रों की बिक्री प्रतिबंधित की गयी।
(vii) सभी कैथोलिक चर्च में सामान्य व साधारण प्रार्थनाएं व क्रियाएं की जाएंगी।
(viii) जहां आवश्यक हो, जनभाषा में धार्मिक उपदेश देना।
(4) इन्क्विजीशन (Inquisition) : यह एक धार्मिक न्यायालय था। 1542 ई. में पोप पॉल-III ने इसे स्थापित किया। इनमें 6 इन्क्विजीटर जनरल (न्यायधीश) नियुक्त किये गये। इस न्यायालय का उद्देश्य कैथोलिक धर्म विरोधियों के विरुद्ध मुकदमा चलाना व उन्हें दंडित करना था।
भाषा एवं साहित्य
संस्कृत
भारतीय सभ्यता की निरंतरता में संस्कृत का महत्वपूर्ण व उल्लेखनीय योगदान रहा है। अपने उत्कर्ष काल में यह भाषा दक्षिण भारत सहित भारत के सभी क्षेत्रों में बोली व लिखी जाती थी। यद्यपि तमिल ने कमोवेश अपनी स्वतंत्र साहित्यिक परंपरा बना, रखी, अन्य सभी भाषाओं ने संस्कृत के शब्द भंडार से भरपूर शब्द लिए और उनका साहित्य संस्कृत की विरासत से अभिभूत रहा। संभवतः विश्व की सबसे प्राचीन भाषा संस्कृत है। वैदिक काल से विकसित शास्त्रीय संस्कृत का समय 500 ई.पू. से लगभग 1000 ई. तक रहा। स्वतंत्र भारत में इसे आठवीं अनुसूची में स्थान दिया गया है, लेकिन किसी भी राज्य की यह राजभाषा नहीं है।
वस्तुतः ऋग्वेद के सूक्त ही संस्कृत साहित्य के आदि तत्व हैं। काफी समय तक मौखिक परंपरा के तहत् आगे चलने वाले इन सूक्तों ने न केवल धर्म का उद्देश्य पूरा किया, अपितु ये भारत में आर्य समूहों के लिए सामान्य साहित्यिक मानक भी बने। 1000 ई.पू. के बाद आनुष्ठानिक कार्यों के निष्पादनार्थ गद्यात्मक साहित्य ब्राह्मण; के रूप में विकसित हुआ किंतु इनमें भी संक्षिप्त और असंगत शैली में कथा-वाचन के उदाहरण मौजूद हैं। संस्कृत के इतिहास की एक अन्य महत्वपूर्ण उपलब्धि है पाणिनी का व्याकरण ‘अष्टाध्यायी’। संस्कृत के जिस रूप का वर्णन उन्होंने किया है, उसे सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया गया और वे सर्वदा के लिए नियत हो गए। संभवतः इसी समय जब पाणिनी संस्कृत भाषा को व्याकरण के नियमों में बांध रहे थे, लेखन की शुरुआत हुई।
कालजयी साहित्य के क्षेत्र में संस्कृत का महाकाव्य एक अन्य महत्वपूर्ण उपलब्धि था। महाभारत की कथा बरसों मौखिक रूप से सुनाई जाती रही। द्वैपायन या व्यास ने सबसे पहले इस युद्ध की गाथा गाकर सुनाई थी। वैशम्पायन ने इसे और विस्तृत किया; लोभहर्षन एवं उग्रश्रवा ने पूरा महाभारत गाया, जिसे विद्वानों ने इतिहास कहा। कुरुक्षेत्र के मैदान में कौरवों और पाण्डवों के बीच 18 दिनों तक चलने वाले इस युद्ध और सत्य की विजय की कहानी को 100 ईसा पूर्व के आसपास महाकाव्य रूप में लिपिबद्ध किया गया। रामायण, पारम्परिक रूप से जिसके रचयिता बाल्मिकी माने जाते हैं और उन्हें भवभूति और अन्य ‘आदि कवि’ कहते हैं, पहली सदी ईसा पूर्व के आसपास रचा गया। ऊपरी तौर पर यह मर्यादापुरुषोत्तम राम की कहानी है, किंतु इसमें मानवीय भावनाओं के अविस्मरणीय अंतद्र्वन्द्व की भी कहानी है।
अश्वघोष (पहली शताब्दी) के महाकाव्य सबसे प्राचीन और सम्पूर्ण महाकाव्य की श्रेणी में आते हैं। उनके बुद्धचरित और सौंदरनंदा में कविता के माध्यम से इस संसार की नश्वरता का बौद्ध दर्शन दर्शाया गया है। पांचवीं शताब्दी में कालिदास हुए, जिनके कुमारसंभव में शिव के पुत्र कार्तिकेय की उत्पत्ति की कथा है और रघुवंशम में राजा दिलीप से लेकर राम की पूरी वंशावली का वर्णन है। छठी शताब्दी में भारवी हुए। इनके महाकाव्य कीरातर्जुनीय में महाभारत के एक प्रसंग का विस्तारपूर्वक वर्णन है।
संस्कृत साहित्य में व्यापक विविधता है। नाट्य साहित्य की चर्चा नाटक वाले अध्याय में की जा चुकी है। कथा परंपरा का पंचतंत्र में निरूपण किया गया है, जो वाकाटकों के काल में चैथी शताब्दी में विष्णुशर्मन द्वारा लिखा गया। बाण की कादम्बरी (7वीं शताब्दी) एक युवक की बुजदिली और अवसर गंवाने पर लिखा गया एक उपन्यास है। 11वीं शताब्दी में रचित गोधाला का उदयसुंदरी एक रोमांटिक उपन्यास है। राजा भोज की शंृगार मंजरी प्रेम के विभिन्न प्रकारों पर लिखा गया एक मनोरंजक चित्रमय उपन्यास है। सोमदेव का कथासरितसागर कहानियों का विशाल संकलन है। क्षेमेन्द्र के उपन्यास भ्रष्ट मंत्रियों और धूर्तों पर व्यंगयात्मक प्रहार हैं। उनकी कृतियों में हैं कलाविलास, दर्पदलन, देशोपदेश।
वैज्ञानिक, तकनीकी और दार्शनिक उद्देश्यों हेतु संस्कृत गद्य का प्रयोग सबसे पहले पातंजलि के महाभाष्य में लक्षित होता है, जो पाणिनी के व्याकरण व कात्यायन की वर्तिका पर टिप्पणी है। इस अवधि के पश्चात् और ईस्वी की शुरुआती शताब्दियों में काफी तकनीकी और वैज्ञानिक साहित्य सामने आया। आर्यभट्ट और भास्कर ने गणित और खगोल विद्या पर लिखा, चरक और सुश्रुत ने चिकित्सा पर और कौटिल्य ने राजनीति और प्रशासन पर लिखा।
साहित्यिक आलोचना का एक अन्य ऐसा क्षेत्र है, जिसमें संस्कृत साहित्य काफी समृद्ध है। इसमें भरत का नाट्यशास्त्र सबसे पुराना है। भामा (5वीं सदी) प्राचीनतम आलोचक हैं, जिनकी कृतियां उपलब्ध हैं। इन्होंने नाटक, महाकाव्य, गीतिका,गद्यात्मक जीवन-चरित और उपन्यास पर लिखा है। दंडी (7वीं शताब्दी) ने गद्य और पद्य दोनों में रचनाएं कीं, जो बाद में काफी प्रसिद्ध हुईं। वामन, रुद्रट्ट, आनंदवर्धन, कुंतक, उद्भट्ट, लोल्लट और धनंजय कुछ ऐसे ही विख्यात आलोचक हैं, जिन्होंने साहित्यिक अवधारणाओं का विश्लेषण किया है और उन्हें समृद्ध बनाया है। भोज (11वीं सदी) महान भारतीय आलोचकों में से एक हैं। इन्होंने सर्वाधिक संदर्भों एवं उक्तियों का उल्लेख किया है। इससे इनके चयन और समालोचन में उनकी सुरुचि का पता चलता है।
संस्कृत की सत्ता को 1200 ई. के आसपास मुसलमान आक्रांताओं के आक्रमण के समय चुनौती मिली। तथापि, संस्कृत साहित्य की परंपरा उतने ही प्रभावी ढंग से कायम रही और इस दौरान अनेक संस्कृत रचनाएं सामने आईं। भाषा एवं साहित्य 391 392 भारतीय संस्कृति राजस्थान, ओडिशा और दक्षिण में संस्कृत साहित्य की परंपरा जारी रही। कुछ उल्लेखनीय नाम हैं अमरचंद्र, सोमेश्वर, बालचंद्र, वास्तुपाल, राजकुमारी गंगा, अहोवाला, डिंडिमा, गोपाल। केरल के राजा मानवेद ने कृष्णगीति नाटक लिखा। यह कथकली जैसा ही है, लेकिन इसके गीत संस्कृत में हैं। कुछ प्रहसन और हास्यरूपक भी लिखे गए, जिनमें नीलकंठ और वेंकटध्वरिन प्रसिद्ध हैं। अंग्रेजी शासन का संस्कृत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। अंग्रेजी की स्वीकार्यता और आधुनिक भारतीय भाषाओं के बढ़ते प्रयोग के बावजूद संस्कृत में रचनाएं हुईं और आज भी हो रही हैं। आज संस्कृत भाषा का आधुनिक भाषाओं के लिए शब्द स्रोत के रूप में प्रयोग हो रहा है। उनके लिए शब्द निर्माण की जितनी क्षमता संस्कृत में है, उतनी आधुनिक भाषाओं के अपने स्रोतों में नहीं है।
Recent Posts
मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi
malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…
कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए
राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…
हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained
hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…
तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second
Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…
चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi
chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…
भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi
first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…