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कपास क्या है , कपास का वानस्पतिक नाम , कुल , कपास की विभिन्न प्रजातियाँ , पादप की बाह्य आकारिकी , उपयोग
cotton in hindi कपास
वानस्पतिक नाम : Gossypium (विभिन्न प्रजातियाँ)
अन्य नाम : रुई
सामान्य नाम : कपास
उपयोगी भाग : (i) बाह्य चोल (बीज का) – सतही रेशे प्राप्त करने हेतु
(ii) बीज (बिनौला) – तेल प्राप्त करने हेतु।
कुल : Maluaceac (मालवेशी)
कपास की विभिन्न प्रजातियाँ : सम्पूर्ण विश्व में कपास की कई प्रजातियों का वर्णन है परन्तु व्यावसायिक स्तर पर उगाई जाने वाली कुछ प्रजातियां निम्न है –
1. Gossupium hirsutum :
- इसकी उत्पत्ति नवीन विश्व अर्थात अमेरिका में हुई है।
- इसे उपरी भुमिक कपास के नाम से भी जाना जाता है।
- इस प्रकार की कपास से लम्बे , बारीक , सफ़ेद रेशे प्राप्त किये जाते है तथा इस कपास की खेती सम्पूर्ण विश्व में सर्वाधिक मात्रा में की जाती है।
- इस कपास की उत्पत्ति सामान्यतया प्राचीन विश्व के अफ्रीका से हुई है।
- इस प्रजाति को मुख्यतः चीन , रूस , भारत , थाइमन आदि में उगाया जाता है।
- इस प्रजाति के रेशे मध्यम गुणवत्ता वाले होते है तथा इस प्रजाति को उप्पम कपास के नाम से भी जाना जाता है।
- इसे देशी कपास के नाम से भी जाना जाता है , इसकी उत्पत्ति सामान्यतया भारत तथा चीन में हुई है अत: इसे Indo-china उत्पत्ति के नाम से भी जाना जाता है।
- इसे प्रमुखत: एशिया के कुछ देश जैसे – भारत , मलेशिया , म्यामार , ताइवान आदि में उगाया जाता है। कपास की इस प्रजाति का रेशा मोटा होता है पंरतु लम्बाई कम पायी जाती है।
Gessypium barbidense
- इस प्रकार की प्रजाति की उत्पत्ति ब्राज़ील (दक्षिणी अमेरिका) में हुई है।
- इसे Equptian cotton या मिश्र कपास के नाम से जाना जाता है।
- गुणवत्ता की दृष्टि से इस कपास के रेशे श्रेष्ठ माने जाते है अत: इसके रेशे मुख्यत: बनियान , मुलायम वस्तु , तोलिया , होजरी का सामान आदि निर्मित करने हेतु उपयोग किया जाता है।
नोट :
- कपास की खेती मुख्यतः भारत , अमेरिका , रूस , ब्राजील , मिश्र , पाकिस्तान , सूडान , टर्की , मेक्सिको आदि में उगाई जाती है।
- भारत में प्रमुखतः महाराष्ट्र , गुजरात , कर्नाटक , मध्यप्रदेश , पंजाब , राजस्थान , उत्तर प्रदेश तथा तमिलनाडु में उगाई जाती है।
- भारत में कपास की खेती प्राचीन समय से संपन्न की जा रही है तथा इस सन्दर्भ में भारत की एक प्रमुख कपास becca muslin इत्यादि प्रचलित है।
पादप की बाह्य आकारिकी
- कपास की अधिकतर प्रजातियों के पादप एकवर्षीय होते है।
- कपास की बुवाई मुख्यतः अप्रेल से जुलाई तक की जाती है वही कपास की चुनाई अक्टूबर से मार्च तक की जाती है।
- कपास के पादप की ऊंचाई मुख्यतः 2 से 6 फिट होती है।
- कपास का स्तम्भ सीधा , अशाखित , काष्ठीय तथा भूरे रंग का होता है।
- कपास की पत्तियां हस्ताकार प्रकार की होती है।
- कपास के पुष्प सहपत्तीत , सवृन्ति तथा बढ़े दलपुंज युक्त होते है। इनका रंग सामान्यतया पिला होता है। दलपुंज का दलविन्यास व्यावर्धित प्रकार का होता है। पुंकेसर की संख्या असंख्य तथा एक पालित होते है। कपास के पुष्पों में सहपत्र की संख्या तीन होती है।
कपास का फल
- कपास का फल विदारक सम्पुटिका प्रकार का होता है।
- कपास के नवीन निर्मित फल को डोडी या ball के नाम से जाना जता है।
- कपास का बिज सामान्यतया अण्डाकार भरे रंग का तथा बीज के बाह्य चोल पर सफ़ेद लम्बे रेशे पाए जाते है। जिन्हें व्यापारिक भाषा में Lint या staple के नाम से जाना जता है। बाह्य चोल पर इन लम्बे रेशो के साथ कुछ छोटे आकार के रेशे भी पाए जाते है जिन्हें व्यापारिक भाषा में fuzz के नाम से जाना जाता है।
- Lint नामक रेशे का रासायनिक संघटन निम्न प्रकार है – इसमें मुख्यत: 94% सेल्युलोज पाया जाता है वही प्रोटीन की मात्रा 1.3% होती है।
- भारत सरकार के द्वारा स्थापित कपास उद्योगिक अनुसन्धान प्रयोगशाला (मान्टुगा) तथा केन्द्रीय कपास अनुसन्धान केंद्र नागपुर के द्वारा कपास की कुछ उन्नत किस्मो का विकास किया गया है जिनमे से कुछ मुख्य निम्न प्रकार से है –
कपास का आर्थिक महत्व
- कपास मुख्यतः सेल्युलोज का एक प्रमुख स्रोत होता है अत: इसे सेल्युलोज उपयोग में कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाता है।
- कपास के रेशो से सूती वस्त्र , अमिश्रित वस्त्र तथा होजरी के सामान का निर्माण किया जाता है।
- कपास के रेशों से कम्बल रस्से , दरिया , फर्श तथा टायर के निर्माण में उपयोग किया जाता है।
- कपास के रेशे भराव रेशे के रूप में भी उपयोग किये जाते है अर्थात रजाई के रूप में भी उपयोग किये जाते है अर्थात रजाई , गद्दे , तकिया आदि को भरने के लिए उपयोग किया जाता है।
- कपास के रेशे अवशोषक रुई निर्मित करने हेतु तथा पट्टियों के निर्माण के लिए भी उपयोग किये जाते है।
- कपास के बीज से अर्द्धशुष्क प्रकार का तेल प्राप्त किया जाता है जिसे खाद्य तेल के रूप में उपयोग किया जाता है।
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