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कॉर्पोरेट शासन किसे कहते हैं | corporate governance in hindi meaning definition कॉर्पोरेट गवर्नेंस मीनिंग इन हिंदी

कॉर्पोरेट गवर्नेंस मीनिंग इन हिंदी पीडीऍफ़ कॉर्पोरेट शासन किसे कहते हैं | corporate governance in hindi meaning definition ?

कारपोरेट (कंपनी) शासन के व्यापक विचार
परिभाषा
कारपोरेट शासन क्या है? कारपोरेट शासन की कई परिभाषाएँ हैं, कुछ काफी व्यापक हैं तो कुछ संकीर्ण भी हैं। हम पहले व्यापक परिभाषा पर विचार करेंगे। इस दृष्टिकोण का आधार यह विश्वास है कि फर्म सामाजिक अस्तित्व है तथा इनके कतिपय सामाजिक उत्तरदायित्व हैं।

आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं में, उत्पादन कार्यकलाप अधिकांशतया फर्मों में चलाए जाते हैं। इसके प्रचालन की प्रक्रिया में, एक फर्म को व्यक्तियों के विभिन्न समूहों- स्वामियों, प्रबन्धकों, कर्मकारों, आपूर्तिकर्ताओं, ऋणदाताओं, ग्राहकों, प्रतिस्पर्धियों, सरकार और यहाँ तक कि समाज के साथ समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता पड़ती है। व्यक्तियों के इस समूह को कभी-कभी ‘‘स्टेकहोल्डर‘‘ कहा जाता है क्योंकि फर्म के प्रचालन में उनका विभिन्न प्रकार से दाँव लगा होता है। स्वामियों, प्रबन्धकों, कर्मकारों और आपूर्तिकर्ताओं के दाँव को हम आसानी से देख सकते हैं। स्वामियों को लाभ का हिस्सा मिलता है, प्रबन्धकों को वेतन मिलता है तथा कर्मकारों को मजदूरी मिलती है और आपूर्तिकर्ताओं को फर्म के आदान की पूर्ति का भुगतान मिलता है। किन्तु ग्राहक भी ‘‘स्टेकहोल्डर‘‘ है क्योंकि वह उचित दाम पर अच्छी गुणवत्ता की वस्तु लेना चाहता है, ऋणदाता भी ‘‘स्टेकहोल्डर‘‘ है क्योंकि फर्म की आर्थिक स्थिति ही यह बात तय करती है कि क्या ऋण का पुनर्भुगतान होगा; प्रतिस्पर्धी इसलिए ‘‘स्टेकहोल्डर‘‘ है कि वह बाजार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा चाहता है। सरकार भी ‘‘स्टेकहोल्डर‘‘ है क्योंकि वह चाहती है कि फर्म अपने आय का सच्चा विवरण प्रस्तुत करे तथा उपयुक्त करों की अदायगी करे।

व्यापक दृष्टि में कारपोरेट शासन से उन नियमों का अभिप्राय है जो कभी स्पष्ट और कभी गूढ़ होते हैं तथा व्यक्तियों के इन सभी समूहों अर्थात् स्टेकहोल्डरों के बीच संबंधों को शासित करते हैं। एक फर्म के कुछ उद्देश्य होते हैं। एक अच्छा कारपोरेट शासन वह होता है जिसमें इन उद्देश्यों का अनुसरण करने के साथ-साथ विभिन्न ‘‘स्टेकहोल्डरों‘‘ के हितों की भी पर्याप्त रूप से रक्षा की जाती है। कभी-कभी फर्म के किसी कार्य से कुछ ‘‘स्टेकहोल्डरों‘‘ को लाभ होता है तो अन्य को हानि होती है। लाभ और हानि के बीच समुचित संतुलन स्थापित करने की आवश्यकता होती है। अर्थात् कुशल कारपोरेट शासन में यह आवश्यक है कि एक फर्म (क) अपने उद्देश्यों का अनुसरण दक्षतापूर्वक करे तथा (ख) साथ ही साथ कुछ ‘‘स्टेकहोल्डरों‘‘ को स्वयं द्वारा पहुँचने वाली हानियों का भी ध्यान रखे तथा यह सुनिश्चित करने का प्रयास करे कि उनकी क्षतिपूर्ति पर्याप्त रूप से कर दी जाए।

उदाहरण
सकता है जिसे निपटाने के लिए निकटवर्ती नदी में फेंकना पड़ेगा और इस प्रकार नदी के किनारे बसने वाले लोगों का जीवन प्रभावित करता है। यह लोग न तो फर्म की नौकरी करते हैं और न तो फर्म के उत्पादों को ही खरीदते हैं। फिर भी वे चाहे-अनचाहे इसके प्रचालनों से प्रभावित होते हैं और इसलिए वे भी ‘‘स्टेकहोल्डर‘‘ बन जाते हैं। एक अच्छे कारपोरेट शासन से अपेक्षा होती है कि फर्म अपने कार्यों से प्रभावित होने वाली जनता का ध्यान रखे। संभवतया नदी में कचरा फेंकने से पूर्व उसका उपचार (शोधन) करके, निकलने वाले कचरे पर कर का भुगतान करके जिसका उपयोग इसके प्रचालन से उत्पन्न स्वास्थ्य खतरों को समाप्त करने के लिए किया जा सकता है, ऐसा किया जा सकता है।

उदाहरण 2. अब शेयरों के परोक्ष लेन-देन (इन्साइडर ट्रेडिंग) पर विचार कीजिए। यह महत्त्वपूर्ण है कि कंपनी के अंदर के लोगों (इन्साइडर), जिन्हें बाहरी लोगों की अपेक्षा कंपनी के बारे में महत्त्वपूर्ण सूचनाओं की जानकारी होती है, को शेयर बाजार में बाहरी निवेशकों, जो ऐसी जानकारी से वंचित हैं, की तुलना में अनुचित लाभ उठाने के लिए इस जानकारी का उपयोग नहीं करना चाहिए। मान लीजिए कोई फर्म किसी अन्य फर्म के साथ समझौता करने जा रही है। ऐसी आशा की जाती है कि इस संबंध में घोषणा किए जाने से स्टॉक मूल्यों में वृद्धि हो सकती है। यदि कंपनी के अंदर के लोग समझौता होने से पूर्व इस जानकारी का उपयोग शेयर खरीदने में करते हैं, तो वे शेयर बाजार में अन्य निवेशकों की अपेक्षा अनुचित लाभ ले रहे हैं ये निवेशक इस समय कंपनी के शेयरधारक नहीं हैं किंतु वे भविष्य में कंपनी के शेयरों के संभावित खरीदार हैं और इसलिए वे भी ‘‘स्टेकहोल्डर‘‘ हैं। उनके हितों का भी संरक्षण किया जाता चाहिए। इसलिए, अनेक देशों में शेयरों का परोक्ष लेन-देन प्रतिबन्धित है।

कारपोरेट (कंपनी) शासन का संकीर्ण विचार
कभी-कभी कारपोरेट शासन की चर्चा में, अन्य सभी पक्षों को छोड़ते हुए सिर्फ कुछ ‘‘स्टेकहोल्डरों‘‘ पर ध्यान केन्द्रित करके संकीर्ण रूप से देखा जाता है। आम तौर पर, वर्तमान शेयर धारकों और फर्म के प्रबन्धकों के बीच संबंध पर ही ध्यान दिया जाता है। शेयर धारकों और प्रबन्धकों के बीच विरोध का कारण समझने के लिए हमें फर्म के विभिन्न कानूनी स्वरूपों पर विचार करना होगा।

 कानूनी स्वरूप
जैसा कि आपने इस खंड की इकाई 14 और 15 में पढ़ा है कि व्यापारिक फर्म का स्वरूप सामान्यतया अग्रलिखित तीन कानूनी स्वरूपों में से कोई एक होता है, स्वामित्व, साझेदारी अथवा सीमित दायित्व निगम। स्वामित्व में सिर्फ एक स्वामि या मालिक होता है। समीपवर्ती भेल-पूरी स्टॉल का स्वामी इसका एक उदाहरण है। यदि आय कर विभाग उसे आयकर विवरणी प्रस्तुत करने के लिए कहती है तो उसका व्यापार ‘‘स्वामित्व‘‘ वाली फर्म के रूप में सूचीबद्ध किया जाएगा। दूसरी ओर साझेदारी में दो या अधिक व्यक्ति एक साथ मिलकर कोई व्यापार करने का निर्णय लेते हैं। लेखा-परीक्षा फर्म इसका एक अच्छा उदाहरण है।

तीसरे प्रकार का संगठन सीमित दायित्व निगम है जिसमें स्वामित्व में हिस्सेदारी शेयरों के रूप में बेचा जाता है। कई निगमों में प्रायः लाखों शेयरधारक होते हैं जिसमें से प्रत्येक के पास इस विशेष कंपनी के केवल कुछ शेयर होते हैं।

व्यापारिक स्वामित्व के अन्य दो स्वरूपों की तुलना में निगम का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसमें शेयर धारकों का दायित्व सीमित होता है। यदि फर्म दिवालिया हो जाती है तो शेयरधारक को अपने शेयर के अंकित मूल्य के बराबर ही हानि होती है। इसके अलावा वह कंपनी के ऋणों के लिए देनदार नहीं है। जबकि स्वामित्व अथवा साझेदारी फर्मों में फर्म के ऋणों के लिए स्वामि ही पूरी तरह से उत्तरदायी होता है। मान लीजिए अयान और आबिर ने एक फर्म में साझीदार के रूप में 50,000-50,000 रु. निवेश किया है, जो दिवालिया हो जाती है और उस पर बकायेदारों का 1,50,000 रु. ऋण बकाया रहता है तो, अयान और आबिर को बकाया चुकाने के लिए अन्य परिसंपत्तियाँ (फ्लैट, कार, स्टीरियो सिस्टम इत्यादि) भी बेचनी पड़ेंगी। किंतु यदि दोनों ने किसी सीमित दायित्व निगम में 50,000-50,000 रु. मूल्य का शेयर खरीदा होता, तो उन्हें सिर्फ 50,000-50,000 रु. का नुकसान ही उठाना पड़ता।

 स्वामित्व और नियंत्रण
बर्ले और मीन्स ने 1932 में बताया था कि सीमित दायित्व निगमों की वृद्धि का अभिप्राय इन उपक्रमों में नियंत्रण से स्वामित्व को बढ़ती हुई पृथकता है। आधुनिक सीमित दायित्व निगम में, शेयर धारक निदेशक मंडल (ठवंतक व िक्पतमबजवत) का चुनाव करते हैं जो पुनः प्रबन्धकों को नियुक्त करते हैं। शेयर धारकों की अपेक्षा उच्चस्तरीय प्रबन्धकों का फर्म पर नियंत्रण होता है और वे ही फर्म के दैनिक कार्य संचालन की देख-रेख करते हैं, और उनका उद्देश्य शेयर धारकों की आकांक्षाओं से बिल्कुल भिन्न हो सकता है।
शेयरधारकों को चूँकि अपने शेयरों पर लाभांश प्राप्त होता है और यह लाभांश लाभ से आता है, इसलिए यह माना जा सकता है कि शेयर धारकों की रुचि लाभ को अधिकतम करने में रहती है। तथापि, प्रबन्धकों का उद्देश्य दूसरा हो सकता है जैसे लाभ की कीमत पर फर्म के आकार का विस्तार, क्योंकि इससे उनके अधिकार और सम्मान में वृद्धि होती है। यदि निदेशक मंडल का शेयर धारकों के उद्देश्यों के साथ पूरी तरह सामंजस्य है तब भी इसके लिए फर्म के दैनिक कार्यकलापों पर निगरानी रखना संभव नहीं होता है। प्रबन्धक अपने उद्देश्यों और शेयरधारकों अर्थात् स्वामियों, सफर के हितों को साधने के लिए फर्म का कार्य संचालन करता है।

तब संकीर्ण अर्थ में कारपोरेट शासन का अभिप्राय प्रबन्धकों को उनके अपने उद्देश्य साधने की अपेक्षा शेयरधारकों के हित में लाभ को अधिकतम करने के लिए प्रेरित करने की समस्या से संबंधित है। यह महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यदि यह संभव नहीं है तो जनता शेयर बाजार में निवेश करने से हिचकेगी और निवेशक जिनके पास कोई अच्छी व्यवहार्य परियोजना है निधियों के लिए शेयर बाजार से धन नहीं उगाह सकेंगे।

ऊपर दी गई परिभाषा का थोड़ा विस्तार किया जा सकता है। एक फर्म में निवेश, चाहे यह शेयर धारिता के रूप में हो अथवा ऋण के रूप में, का मतलब भविष्य में अनिश्चित प्रतिलाभ की संभावना के बदले आज नकद भुगतान है। शेयरधारकों को लाभांश भविष्य में ही मिलेगा। ऋणदाताओं को निश्चित दर पर ब्याज और निश्चित तिथि पर मूलधन वायदा किया जाता है। किंतु फर्म दिवालिया हो सकती है और ऋणदाताओं का ऋण डूब सकता है, इस प्रकार ऋणदाताओं का प्रतिलाभ भी अनिश्चित रहता है। इसलिए निवेशकों के हितों को ध्यान में रखते हुए कारपोरेट शासन उन सभी कारकों पर ध्यान देगा जो किए लाभ के वायदे की प्रत्याशा में निगमों में निवेशक करने की इच्छा को प्रभावित करता है। इन कारकों को (क) फर्म के कुशल प्रचालन की व्यवस्था करनी चाहिए ताकि सृजित प्रतिलाभ सिद्धान्तरूप में निवेशकों (शेयर धारक और ऋणदाता दोनों) को किए गए वायदे को पूरा करने के लिए पर्याप्त हो और (ख) यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रतिलाभ/राजस्व का दुर्विनियोजन नहीं हो अपितु इनका दिए गए वचनों को पूरा करने के लिए उपयोग किया जाए।

वे विभिन्न तरीके क्या हैं जिनके माध्यम से प्रबन्धक और नियंत्रक शेयरधारक (जिन्हें बहुधा ‘‘इनसाइडर‘‘ भी कहा जाता है) अन्य निवेशकों (जिन्हें ‘‘आउटसाइडर‘‘ कहा जाता है) को हानि पहुँचा सकता है। कभी-कभी ‘‘इनसाइडर‘‘ लाभ को सीधे-सीधे चुरा लेते हैं। अन्य मामलों मे, वे अपने नियंत्रण वाले किंतु बाहरी निवेशकों द्वारा वित्तपोषित फर्म की निर्गत अथवा परिसम्पत्तियाँ अपने स्वामित्व वाले अन्य फर्म को बाजार मूल्य से कम पर बेच देते हैं। इसे परिसंपत्ति बेचना कहा जाता है। वे संभवतया परिवार के अयोग्य सदस्यों को प्रबन्धन में उच्च पदों पर रख सकते हैं अथवा अधिक वेतन दे सकते हैं।

बोध प्रश्न 1
1) एक फर्म के प्रचालन में निम्निलिखित के क्या दाँव (Stake) हैं?
स्वामि, आपूर्तिकर्ता, प्रतिस्पर्धी सरकार।
2) व्यापक अर्थ में अच्छे कारपोरेट शासन का अभिप्राय क्या है?
3) संगठन का सीमित दायित्व स्वरूप अन्य कानूनी स्वरूपों से कैसे भिन्न है?
4) संकीर्ण अर्थ में अच्छे कारपोरेट शासन का अभिप्राय क्या है? यह व्यापक अर्थ में कारपोरेट
शासन की अवधारणा से कैसे भिन्न है?

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