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भारतीय संविधान की रचना का इतिहास ? construction of indian constitution in hindi भारतीय संविधान की रचना के किन्हीं चार चरणों का उल्लेख करें
भारतीय संविधान की रचना के किन्हीं चार चरणों का उल्लेख करें भारतीय संविधान की रचना का इतिहास ? construction of indian constitution in hindi ?
संविधान की रचना
संविधान सभा ने सविधान रचना की समस्या के विभिन्न पहलुओ से निपटने के लिए अनेक समितिया नियुक्त की। इनमे संघीय संविधान समिति, सघीय शक्ति समिति, मूल अधिकारों और अल्पसख्यको आदि से सबधित समितियां शामिल थी। इनमें से कुछ समितियो के अध्यक्ष नेहरू या पटेल थे, जिन्हें संविधान सभा के अध्यक्ष ने संविधान के मूल आधार तैयार करने का श्रेय दिया था। इन समितियो ने बडे परिश्रम के साथ तथा सुनियोजित ढंग से कार्य किया और अनमोल रिपोर्ट पेश की। संविधान सभा ने तीसरे तथा छठे सत्रो के बीच, मूल अधिकारों, सघीय संविधान, सघीय शक्तियो, प्रातीय संविधान, अल्पसंख्यकों तथा अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जातियों से सबंधित समितियों की रिपोर्टों पर विचार किया । अन्य समितियो की सिफारिशो पर बाद मे प्रारूपण समिति द्वारा विचार किया गया।
भारत के सविधान का पहला प्रारूप संविधान सभा कार्यालय की मत्रणा-शाखा ने अक्तूबर, 1947 मे तैयार किया। इस प्रारूप की तैयारी से पहले, बहुत सारी आधार-सामग्री एकत्र की गई तथा संविधान सभा के सदस्यों को ‘सवैधानिक पूर्वदृष्टात‘ के नाम से तीन संकलनों के रूप में उपलब्ध की गई। इन संकलनों मे लगभग 60 देशो के सविधानो से मुख्य अंश उद्धृत किए गए थे। संविधान सभा ने संविधान सभा मे किए गए निर्णयो पर अमल करते हुए सवैधानिक सलाहकार द्वारा तैयार किए गए भारत के संविधान के मूल पाठ के प्रारूप की छानबीन करने के लिए 29 अगस्त, 1947 को डा भीमराव अबेडकर के सभापतित्व में प्रारूपण समिति नियुक्त की।
प्रारूपण समिति द्वारा तैयार किया गया भारत के संविधान का प्रारूप 21 फरवरी, 1948 को संविधान सभा के अध्यक्ष को पेश किया गया। संविधान के प्रारूप में संशोधन के लिए बहुत बड़ी संख्या में टिप्पणिया, आलोचनाएं और सुझाव प्राप्त हुए।प्रारूपण समिति ने इन सभी पर विचार किया। इन सभी पर प्रारूपण समिति की सिफारिशों के साथ विचार करने के लिए एक विशेष समिति का गठन किया गया। विशेष समिति द्वारा की गई सिफारिशो पर प्रारूपण समिति ने एक बार फिर विचार किया और कतिपय सशोधन समावेश के लिए छांट लिए गए। इस प्रकार के संशोधनों के निरीक्षण की सुविधा के लिए प्रारूपण समिति ने संविधान के प्रारूप को दोबारा छपवाकर जारी करने का निर्णय किया। यह 26 अक्तूबर, 1948 को संविधान सभा के अध्यक्ष को पेश किया गया।
4 नवंबर, 1948 को संविधान सभा में संविधान के प्रारूप को विचार के लिए पेश करते समय डा अंबेडकर ने प्रारूप की कुछ आम आलोचनाओ का, विशेष रूप से इस आलोचना का कि इसमें ऐसी सामग्री बहुत ही कम है जो मूल होने का दावा कर सकती हो, उत्तर दिया। उन्होंने कहा:
मैं पूछना चाहूंगा कि क्या विश्व के इतिहास में इस समय बनने वाले किसी संविधान मे कोई नयी बात कही जा सकती है। सैकडो साल बीत गए जब प्रथम लिखित सविधान का प्रारूप तैयार किया गया था। अनेक देशो ने इसका अनुसरण करके अपने संविधान को लिखित रूप में परिवर्तित कर लिया । संविधान का विषयक्षेत्र क्या होना चाहिए, इस प्रश्न का समाधान बहुत पहले हो चुका है। इसी प्रकार, संविधान के मूलाधार क्या हैं, इससे सारी दुनिया परिचित है। इन तथ्यो को देखते हुए, अनिवार्य है कि सभी संविधानो के मुख्य प्रावधान एक से दिखाई दे। इतना समय बीत जाने पर जो संविधान बनाया गया है उसमे यदि कोई नयी बात कही जा सकती है तो वह यह है कि इसमे त्रुटियो को दूर करने तथा इसे देश की जरूरतो के अनुरूप बनाने के लिए आवश्यक हेरफेर किए गए है। मुझे यकीन है कि अन्य देशो के संविधानों का अधानुकरण करने का जो आरोप लगाया गया है, वह संविधान का पर्याप्त अध्ययन न किए जाने के कारण लगाया गया है।
जहा तक इस आरोप का सबध है कि सविधान के प्रारूप में भारत शासन एक्ट, 1935 के अधिकाश प्रावधानों को ज्यो-का-न्यो शामिल कर लिया गया है, मै उसके बारे में कोई क्षमायाचना नहीं करता। किसी से उधार लेने मे कोई शर्म की बात नहीं है। इसमें कोई चोरी नहीं है। सविधान के मूल विचारो के बार में किसी का कोई पेटेट अधिकार नहीं है।
सविधान के प्रारूप पर खडवार विचार 15 नवबर, 1948 से 17 अक्तूबर, 1919 के दौरान पूरा किया गया। प्रस्तावना सबसे बाद मे स्वीकार की गई। तत्पश्चात, प्रारूपण समिति ने परिणामी या आवश्यक सशोधन किए, अंतिम प्रारूप तैयार किया और उसे संविधान सभा के सामने पेश किया।
संविधान का दूसरा वाचन 16 नवबर, 1919 को पूरा हुआ तथा उससे अगले दिन सविधान सभा ने डा अबेडकर के इस प्रस्ताव के साथ कि ‘विधान सभा द्वारा यथानिर्णीत संविधान पारित किया जाए‘, संविधान का तीसरा वाचन शुरू किया। प्रस्ताव 26 नवबर, 1949 को स्वीकृत हुआ तथा इस प्रकार, उस दिन सविधान सभा में भारत की जनता ने भारत के प्रभुत्व सपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य का संविधान स्वीकार किया, अधिनियमित किया और अपने आप को अर्पित किया। सविधान सभा ने संविधान बनाने का भारी काम तीन वर्ष से कम समय में पूरा किया।
किंतु संविधान की स्वीकृति के साथ ही यात्रा का अत नही हो गया। प्रारूपण समिति के सभापति, डा. अंबेडकर और संविधान सभा के अध्यक्ष, डा. राजेन्द्र प्रसाद ने 25 तथा 26 नवंबर, 1919 को भाषण करते हुए चेतावनी तथा सावधानी के शब्द कहे । डा. अंबेडकर ने कहा
मैं महसूस करता हूँ कि सविधान चाहे कितना भी अच्छा क्यो न हो, यदि वे लोग, जिन्हे संविधान को अमल में लाने का काम सोपा जाए, खराब निकले तो निश्चित रूप से संविधान भी खराब सिद्ध होगा। दूसरी ओर, सविधान चाहे कितना भी खराब क्यो न हो, यदि वे लोग, जिन्हे सविधान को अमल में लाने का काम सौपा जाए, अच्छे हो तो सविधान अच्छा सिद्ध होगा। सविधान पर अमल कंवल सविधान के स्वरूप पर निर्भर नहीं करता। संविधान केवल विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसे राज्य के अगो का प्रावधान कर सकता है। राज्य के उन अगो का सचालन लोगो पर तथा उनके द्वारा अपनी आकाक्षाओ तथा अपनी राजनीति की पूर्ति के लिए बनाए जाने वाले राजनीतिक दलो पर निर्भर करता है। कौन कह सकता है कि भारत के लोगो तथा उनके राजनीतिक दलो का व्यवहार कैसा होगा जातियो तथा सप्रदायों के रूप मे हमारे पुराने शत्रुओं के अलावा, विभिन्न तथा परस्परविरोधी विचारधारा रखने वाले राजनीतिक दल बन जाएगे। क्या भारतवासी देश को अपने पथ से ऊपर रखेंगे या पथ को देश से ऊपर रखेगे? मै नही जानता ! लेकिन यह बात निश्चित है कि यदि राजनीतिक दल अपने पथ को देश से ऊपर रखेगे तो हमारी स्वतत्रता एक बार फिर खतरे में पड़ जाएगी और सभवतया हमेशा के लिए खत्म हो जाए। हम सभी को इस सभाव्य घटना का दृढ निश्चय के साथ प्रतिकार करना चाहिए। हम अपनी आजादी की खून के आखिरी कतरे के साथ रक्षा करने का सकल्प करना चाहिए।
डा. राजेन्द्र प्रसाद ने अपने समापन भाषण मे विचार व्यक्त किया कि सविधान सभा सब मिलाकर एक अच्छा संविधान बनाने में सफल रही है और उन्हे विश्वास है कि यह देश की जरूरतों को अच्छी तरह से पूरा करेगा। कितु उन्होने इसके साथ यह भी कहाः
यदि लोग, जो चुनकर आएंगे, योग्य, चरित्रवान और ईमानदार हुए तो वे दोषपूर्ण संविधान को भी सर्वोत्तम बना देंगे। यदि उनमे इन गुणों का अभाव हुआ तो संविधान देश की कोई मदद नहीं कर सकता। आखिरकार, एक मशीन की तरह संविधान भी निर्जीव है। इसमे प्राणो का सचार उन व्यक्तियो के द्वारा होता है जो इस पर नियत्रण करते है तथा इसे चलाते है और भारत को इस समय ऐसे लोगो की जरूरत है जो ईमानदार हो तथा जो देश के हित को सर्वोपरि रखे। हमारे जीवन मे विभिन्न तत्वो के कारण विघटनकारी प्रवृत्ति उत्पन्न हो रही है। हममे साप्रदायिक अतर है, जातिगत अतर है, भाषागत अतर है, प्रातीय अतर है। इसके लिए दृढ़ चरित्र वाले लोगों की, दूरदर्शी लोगो की, ऐसे लोगों की जरूरत है जो छोटे छोटे समूहो तथा क्षेत्रों के लिए देश के व्यापक हितो का बलिदान न दें और उन पूर्वाग्रहो से ऊपर उठ सके जो इन अतरो के कारण उत्पन्न होते हैं। हम केवल यही आशा कर सकते है कि देश में ऐसे लोग प्रचुर सख्या में सामने आएगे।
संविधान पर संविधान सभा के सदस्यों द्वारा 24 जनवरी, 1950 को, संविधान सभा के अंतिम दिन अंतिम रूप से हस्ताक्षर किए गए।
हमारे संविधान निर्माताओं में कुछ जाने माने, विलक्षण बुद्धि वाले व्यक्ति, महान न्यायविद, देशभक्त और स्वतत्रता सेनानी सम्मिलित थे। यदि संविधान सभा का निर्वाचन लोगों द्वारा वयस्क मताधिकार के आधार पर भी किया जाता तो भी उस समय इससे बेहतर या अपेक्षाकृत अधिक प्रतिनिधिक परिणामो की कल्पना करना कठिन है।
हमने स्वतत्रता प्राप्ति के बाद जिन सस्थानों को जारी रखा तथा संविधान में समाविष्ट किया वे ऐसे सस्थान थे जो भारत की धरती पर ही फले-फूले थे। संविधान निर्माताओं ने पुराने सस्थानो के आधार पर जो पहले ही विकसित हो चुके थे और जिनके बारे में उन्हे जानकारी थी, जिनसे वे परिचित हो चुके थे और जिनके लिए उन्होने सभी प्रकार की परिसीमाओं, बंधनों के बावजूद उद्यम किया था, नये संस्थानों का निर्माण करना पसंद किया। संविधान के द्वारा ब्रिटिश शासन को ठुकरा दिया गया कितु उन संस्थानों को नही, जो ब्रिटिश शासनकाल में विकसित हुए थे। इस प्रकार, संविधान औपनिवेशिक अतीत से पूरी तरह से अलग नहीं हुआ।
क्योंकि सविधान-निर्माण तथा सस्थान-निर्माण एक जीवत, वर्तमान और सतत गतिशील प्रक्रिया है, इसलिए इस प्रक्रिया मे 26 नवबर, 1949 को विराम नहीं आया जब भारत के लोगो ने संविधान सभा में संविधान पारित, अधिनियमित तथा अपने आपको अर्पित किया। 26 जनवरी, 1950 को भारत के संविधान के श्रीगणेश के बाद भी, इसके वास्तविक अमल, न्यायिक निर्वचन और सवैधानिक सशोधनों के द्वारा इसके निर्माण की प्रक्रिया जारी रही। अच्छे के लिए हो या बुरे के लिए, संविधान का विकास जारी रहा। समय समय पर जिस जिस प्रकार और जैसे जैसे लोगों ने संविधान को चलाया, वैसे ही वैसे उसे नये नये अर्थ मिलते गए। यह सिलसिला अभी भी जारी है।
संविधान सभा ने और भी कई महत्वपूर्ण कार्य किए जैसे उसने संविधायी स्वरूप के कतिपय कानून पारित किए, राष्ट्रीय ध्वज को अंगीकार किया, राष्ट्रगान की घोषणा की, राष्ट्रमडल की सदस्यता से सबंधित निर्णय की पुष्टि की तथा गणराज्य के प्रथम राष्ट्रपति का चुनाव किया।
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