हिंदी माध्यम नोट्स
संविधान सभा क्या है | भारतीय संविधान सभा किसे कहते है , की प्रथम बैठक विशेषताएँ constituent assembly of india in hindi
constituent assembly of india in hindi संविधान सभा क्या है | भारतीय संविधान सभा किसे कहते है , की प्रथम बैठक विशेषताएँ भारत देश की संविधान सभा की मुस्लिम महिला सदस्य सदस्यों की संख्या कितनी थी ?
प्रस्तावना
आधुनिक लोकतंत्र संवैधानिक सरकार की संकल्पना पर आधारित है। भारतीय संविधान ने एक गणतंत्रीय लोकतन्त्र की स्थापना की। इसकी सत्ता जनसामान्य से व्युत्पन्न है और यह इस देश का सर्वोच्च कानून है।
संवैधानिक सरकार का अर्थ
लोकतंत्र की दुनिया में मुख्यतरू दो प्रकार के संविधान होते हैंः
अ) वे संविधान जो रीति-रिवाज, प्रथाओं, विधायी व्यवस्थापन और अदालती फैसलों के माध्यम से दशकों-शतकों में धीरे-धीरे विकसित हुए – जैसे कि ब्रिटिश साम्राज्य और कनाडा, ऑस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैण्ड जैसे ब्रिटिश अधिराज्यों में।
ब) वे संविधान जो प्रतिनिधि सभाओं द्वारा रचे गए – सामान्यतः क्रांतियों के बाद – ताकि एक नई शासन-प्रणाली एक नए सिरे से आरंभ कर सकें। इन प्रतिनिधि सभाओं को विभिन्न नाम दिए गए हैं- जैसे राष्ट्रीय सभाएँ, संवैधानिक समितियाँ और संविधान सभाएँ।
इन दोनों ही प्रकार के देशों में, हालाँकि, संविधान का मतलब है ऐसे आधारभूत कानूनों का एक संकाय, जो आसानी से बदले नहीं जा सकते और जिनका आदर सरकारों और सभी नागरिकों को करना होगा।
भारतीय संविधान सभा के मूलाधार
किसी देश के लिए एक संविधान की रचना करने के लिए एक संविधान सभा का यह विचार ब्रिटिश साम्राज्य की प्रथा के अनुरूप था। उसकी माँग सबसे पहले 1934 में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस द्वारा की गई। मुस्लिम लीग इसके विरुद्ध थी क्योंकि उसको शंका थी कि व्यस्क मताधिकार द्वारा चुनी गई संविधान सभा पर काँग्रेस का प्रभुत्व होगा जिसको कि लीग एक हिन्दू पार्टी मानती थी।
कैबिनेट मिशन की योजना
जनवरी 1946 में प्रान्तीय विधानमण्डलों के लिए चुनाव हुए। उसी वर्ष मार्च में सर पैथिक लॉरेन्स के नेतृत्व में ‘कैबिनेट मिशन‘ के नाम से एक ब्रिटिश कैबिनेट की समिति ने भारत का दौरा किया ताकि वह भारतीय राजनीतिक स्थिति का मूल्यांकन कर सके और भारत के लिए एक संविधान की रचना हेतु कार्य-योजना बना सके। कैबिनेट मिशन ने प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच एक समझ पैदा करने के लिए शिमला में एक सम्मेलन आयोजित किया लेकिन यह लक्ष्य प्राप्ति में असफल रहा। अतरू मिशन ने अपनी ही योजना निकाली ।
संविधान सभा
कैबिनेट मिशन द्वारा बनायी गई योजना ने एक संविधान सभा का सुझाव दिया जिसमें सभी प्रमुख समूहों के प्रतिनिधि शामिल हों। कैबिनेट मिशन ने सोचा यह था कि व्यस्क मताधिकार के आधार पर चुनाव के माध्यम से इसे बनाना ही एक आदर्श तरीका होगा, लेकिन उसके लिए वक्त ही नहीं था। उससे पूर्व उस वर्ष अन्तिम विधानमण्डलों का चुनाव एक सीमित मताधिकार और सामुदायिक निर्वाचन क्षेत्रों के आधार पर किया गया था। कैबिनेट मिशन का प्रस्ताव था कि संविधान सभा उन्हीं अन्तिम सभाओं द्वारा चुनी जाए।
बोध प्रश्न 1
नोट: क) अपने उत्तर के लिए नीचे दिए गए रिक्त स्थान का प्रयोग करें।
ख) अपने उत्तरों की जाँच इकाई के अन्त में दिए गए आदर्श उत्तरों से करें।
1) किसी संविधान सभा से आप क्या समझते हैं?
2) श्कैबिनेट मिशनश् क्या था और इसकी योजना क्या थी?
2 संघीय सूत्र
कैबिनेट मिशन की धारणा थी कि, चूँकि मुस्लिम एक एकात्मक, हिन्दू-बहुल राज्य के प्रति आशंकित थे, संवैधानिक संरचना संघीय होनी चाहिए। प्रान्तों के पास अधिक-से-अधिक स्वायत्तता हो और केन्द्रीय सरकार कम-से-कम अधिकार रखे – जैसे कि विदेशी मामलों, रक्षा और संचार पर। यह संघ इस प्रकार के विषयों के कार्यान्वयन हेतु वांछित आवश्यक वित्तीय संसाधन जुटा सकता था। इस संघ में न सिर्फ ब्रिटिश भारतीय प्रान्त ही शामिल हों बल्कि वे राजसी राज्य भी हों जो अभी ब्रिटिश गवर्नमेंट की परम सत्ता के तहत ही थे। शेष सभी अधिकार – जो कि इस संघ को नहीं दिए गए थे – प्रान्तों और राज्यों के पास रहें।
इस संघ में एक कार्यपालिका और एक. विधायिका हो जिनमें इन प्रान्तों और राज्यों के प्रतिनिधि शामिल हों। विधायिका में किसी बड़े साम्प्रदायिक मुद्दे को उठाते प्रश्न पर निर्णय लेने के लिए उपस्थित प्रतिनिधियों के बहुमत और दो प्रमुख सम्प्रदायों, यानि हिन्दू और मुस्लिम, में से प्रत्येक के मत की आवश्यकता होगी।
त्रि-पंक्ति संघ
कैबिनेट मिशन ने एक असाधारण प्रस्ताव रखा: ‘प्रान्त कार्यपालिका और विधायिका के साथ गुटबन्दी के लिए स्वतन्त्र हों, और प्रत्येक गुट सामान्यतरू लिए जाने वाले. प्रान्तीय विषयों को निर्धारित कर सके।‘ इसे संघ और प्रान्तों के बीच सरकार की एक तीसरी पंक्ति की रचना करनी थी जो कि अब तक संघीय व्यवस्था के लिए अनजानी थी।
एक अनोखी प्रक्रिया
और तो और, कैबिनेट मिशन ने स्वयं ही संविधान सभा के लिए एक प्रक्रिया निर्धारित कर दी जिससे गुटों का बनना आवश्यक रूप से साम्प्रदायिक तरीके से ही होना था। उस प्रक्रिया के अनुसार प्रान्तों को मिशन द्वारा निर्धारित तीन वर्गों में बैठना था। इन वर्गों में से दो मुस्लिम-बहुल होते और तीसरा वर्ग हिन्दू-बहुल होता। हिन्दू-बहुल वर्ग – वर्ग ‘अ‘- में होते मद्रास, बम्बई, यूनाइटिड प्रोविन्सिज (अब उत्तर प्रदेश: यू.पी.), बिहार, सेंट्रल प्रोविन्स (अब मध्य प्रदेश: एम.पी.) और उड़ीसा के प्रांत । वर्ग ‘ब‘ में होते पंजाब, बलूचिस्तान, उत्तर-पश्चिम सीमान्त प्रान्त और सिन्ध । वर्ग ‘स‘ बनता असम और बंगाल से । असम स्वयं कोई मस्लिम-बहल प्रान्त नहीं था। लेकिन बंगाल और असम एक साथ एक मुस्लिम बहुल वर्ग (वर्ग ‘स‘) होते।
तीसरी असाधारण घटना थी – साम्प्रदायिक निषेधाधिकार का आंशिक प्रयोग। दो प्रमुख सम्प्रदायों (सामान्य एवं मुस्लिम) के सदस्यों के बहुमत की सहमति के बगैर संविधान सभा में किसी खास साम्प्रदायिक मुद्दे पर फैसला नहीं लिया जा सकता था। यह सिद्धान्त, हालांकि, उन वर्गों पर लागू नहीं होता जहाँ एक साधारण बहुमत ही किसी निर्णय को लेने के लिए पर्याप्त था।
गुट से निष्क्रमण निषिद्ध
चैथी असाधारण घटना थी वह फार्मूला जिसके तहत किसी वर्ग द्वारा एक गुट-संविधान बनाये जाने के बाद कोई भी प्रान्त उस गुट से, जिसमें वह है, बाहर जाने को स्वतन्त्र नहीं होता। कोई प्रान्त किसी गुट को केवल उस स्थिति में छोड़ सकता था जबकि पहला आम चुनाव उस गुट के संविधान के तहत हो चुका हो। ।
‘गुटीय‘ विवाद
परिणामतः, ये गुट सरकार के सबसे महत्त्वपूर्ण स्तर होते। यह गुट-संविधान प्रभावी रूप से प्रान्तीय के साथ-साथ संघीय संविधान का भी महत्त्वपूर्ण स्थान ले लेता। ये वर्ग संघीय संविधान बनाने के लिए एक साथ बैठने से पूर्व प्रान्तीय संविधान और अपने निजी संविधान रचते। इस प्रकार प्रान्तीय ‘‘स्वतन्त्रता‘‘ एक ढोंग थी । ये प्रान्त केवल कैबिनेट मिशन द्वारा पूर्व-निर्धारित गुटों में शामिल होने के लिए ही स्वतन्त्र थे। वे गुट को छोड़ने के लिए तभी स्वतन्त्र थे यदि गुट-संविधान ने इसके लिए गुंजाइश छोड़ी हो।
काँग्रेस पार्टी को भय था कि ये गुट निर्वाचन नियम इस प्रकार बनाएँगे कि, चुनावों के बाद, प्रान्तीय विधानमण्डल ऐसे गठित किए जायें ताकि इस प्रकार की निकासी असंभव हो। इससे मुस्लिम लीग की पाकिस्तान की माँग पूरी होती और यह उन प्रान्तों के लिए न्यायसंगत नहीं होता जहाँ काँग्रेस का प्रभुत्व था, जैसे असम और उत्तर-पश्चिम सीमान्त प्रान्त।
प्रस्तावित संविधान सभा का संयोजन
राज्यपालों (ळवअमतदवते) के प्रान्तों को उनकी जनसंख्या-बल के अनुसार 292 संविधान-सभा सीटें आबंटित की गईं। मुख्य आयुक्तों (Chief Commissioners) के प्रान्तों का प्रतिनिधित्व चार सदस्यों द्वारा होना था। 566 राजसी राज्यों को 93 सीटें आबंटित हुई। बाद में संविधान सभा की मोल-तोल समितियों और राजाओं के बीच यह समझौता हुआ कि राजसी राज्यों का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्यों में से आधे निर्वाचित होंगे और शेष राजाओं द्वारा नामांकित ।
अंतरिम सरकार
कैबिनेट मिशन ने प्रस्ताव रखा कि, जबकि संविधान निर्माण कार्य चलता रहे, मुख्य दलों के प्रतिनिधियों की मदद से सरकार गवर्नर-जनरल द्वारा चलाई जानी चाहिए। अंतरिम सरकार के गठन को लेकर काँग्रेस और मुस्लिम लीग में कुछ मतभेद थे। लेकिन वे दूर कर दिए गए। पहले अधिकतर काँग्रेस सदस्यों को लेकर एक नई कार्यकारी परिषद् गठित हुई फिर इसमें मुस्लिम-लीगियों को भी शामिल कर लिया गया।
संविधान सभा और ‘विभाजन‘
संविधान सभा के लिए गुटीय योजना पर मतभेद, बहरहाल, दूर नहीं हो सका । काँग्रेस इन वर्गों में बैठने को राजी थी लेकिन उसने उन गुटों में शामिल होने से इंकार कर दिया जिन्हें ये वर्ग तय करते । मुस्लिम लीग संविधान सभा में शामिल नहीं होती जब तक कि कैबिनेट मिशन प्लान द्वारा दी गई गुटीय व्यवस्था से काँग्रेस सहमत नहीं होती। आखिरकार, जब 9 दिसम्बर 1946 को गवर्नर-जनरल, लार्ड माउण्टबेटन द्वारा संविधान सभा संयोजित की गई, मुस्लिम लीग के सदस्य अनुपस्थित थे। वे संविधान सभा में तब तक शामिल नहीं हुए जब तक कि ब्रिटिश भारत के विभाजन का निर्णय नहीं ले लिया गया। 14 जुलाई 1947 को जब यह हुआ, भारतीय संविधान-सभा में मात्र 23 मुस्लिम-लीगी पहुँचे। अन्य पाकिस्तानी संविधान-सभा में चले गए।
बोध प्रश्न 2
नोट: क) अपने उत्तर के लिए नीचे दिए रिक्त स्थान का प्रयोग करें।
ख) अपने उत्तरों की जाँच इकाई के अंत में दिए आदर्श उत्तरों से करें।
1) अंतरिम सरकार पर कैबिनेट मिशन प्लानश् का क्या प्रस्ताव था?
2) मुस्लिम लीग का संविधान सभा से क्या संबंध था?
संविधान सभा में दल
विभाजन ने, वास्तव में, भारतीय संविधान सभा की शक्ति को लगभग एक-तिहाई घटा दिया। सभी दलों ने अपने सदस्य गँवाए यद्यपि काँग्रेस बल आनुपातिक रूप से बढ़ा। पाकिस्तान से शरणार्थियों के आगमन के बाद फिर कुछ और सदस्य जुड़ गए। राजसी राज्यों के प्रतिनिधियों में से अधिकतर भारतीय संविधान-सभा में शामिल हो गए।
काँग्रेस का प्रभुत्व
इस संविधान सभा में काँग्रेस का भारी बहुमत था। लेकिन काँग्रेस पार्टी ने अनेक सदस्यों का नामांकन पार्टी की तह के बाहर से किया था। उनमें से कई विधि-विशेषज्ञ और पूर्ववर्ती ब्रिटिश भारतीय विधायिकाओं में अग्रणी विधिकर्ता थे। सर बी.एन. राव के नेतृत्व में ब्रिटिश भारतीय सरकार के अनेक प्रतिभाशाली पदाधिकारी संविधान सभा के कार्य हेतु प्रस्तावित किए गए। बाहर के विशेषज्ञों से निरन्तर सलाह-मिशविरा किया जाता था। विदेशी संविधानों के उदाहरणों का ध्यानपूर्वक अध्ययन किया गया।
संविधान सभा का नेतृत्व
संविधान सभा में नेतृत्व के दो मुख्य प्रकार थे: (1) राजनीतिक और (2) तकनीकी । काँग्रेस पार्टी के पूर्व-प्रभाव के कारण राजनीतिक नेतृत्व स्वाभाविक रूप से उसी के नेताओं में निहित था। इस नेतृत्व के शीर्ष पर थे – पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद। ग्रैनविले ऑस्टिन ने नेहरू-पटेल-आजाद-प्रसाद की टोली को ‘अल्पतंत्र‘ कहा है।
इस स्तर से नीचे थे – केन्द्र में कैबिनेट मंत्रिगण, प्रान्तीय प्रधान मंत्रिगण, पट्टाभि सीतारमैया जैसे पूर्व काँग्रेस अध्यक्ष तथा के.एम. मुंशी, ठाकुरदास भार्गव, ए.वी. ठक्कर और श्री प्रकाश जैसे महत्त्वपूर्ण काँग्रेस नेतागण।
इस पार्टी के अंकुश से बाहर थे – उस समय के विधि पंडितगण और उदारवादी परम्परा के राजनेता जैसे -अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर, एम. गोपालस्वामी अयंगर, भीमराव अम्बेडकर, के.एम. पणिकर, पंडित हृदयनाथ कुंजरु (जो इस संविधान सभा के सदस्य नहीं थे) और, आरंभ के दिनों में, बी.एल. मित्र । इन नेताओं में से के.एम. मुंशी ने काँग्रेस में रहकर और भीमराव अम्बेडकर ने बाहर से अपनी व्यवहार-कुशल राजनीतिज्ञता को तकनीकी प्रतिभा के साथ सम्मिश्रित किया जैसा कि के. संतानम और टी.टी. कृष्णमाचारी जैसे कुछ काँग्रेसीजनों ने किया जो अधिक समय तक इस पार्टी से सम्बद्ध नहीं रहे। वास्तव में, कृष्णमाचारी जो प्रारूप-संविधान के कुछ पहलुओं के आलोचक थे. को 1948 के अंत में प्रारूप समिति में शामिल कर लिया गया था।
संविधान सभा में प्रतिपक्ष
इस सभा में विपक्ष का आकार, बहरहाल, अस्थिर था। कैबिनेट मिशन ने भारतीयों को तीन समदायों में बाँट दिया था – सामान्य, मुस्लिम और सिख । ‘सामान्य‘ वर्ग में काँग्रेस पार्टी का भारी प्राबल्य था और उसका सिख अकाल पंथ के साथ समझौता भी हो गया था। इसने कुछेक राष्ट्रवादी मुस्लिमों को भी नामांकित किया था, जैसे अबुल कलाम आजाद और रफी अहमद किदवई।
विभाजन के बाद मुस्लिम लीग की शक्ति प्रभावी रूप से क्षीण हो गई। इसकी क्षतिपूर्ति करने के लिए. गाँधी जी की शहादत के बाद, भारत में मुस्लिम लीग ने खुद का विलय कर लिया और इसके अधिकतर सदस्य काँग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। उनमें से सर मौहम्मद सादुल्ला को संविधान सभा की प्रारूपण समिति में शामिल कर लिया गया। मुस्लिम लीग की केवल मद्रास इकाई ने अपनी पहचान बनाए रखने का निर्णय किया और एक सुसंगत परन्तु नगण्य प्रतिपक्ष के रूप में कार्य किया।
संविधान-सभा के एकमात्र कम्यूनिस्ट सदस्य, सोमनाथ लाहिरी, ने बंगाल विभाजन के बाद अपनी सदस्यता गँवा दी। ऐसा ही अनुसूचित जाति संघ के नेता, भीमराव अम्बेडकर के साथ हुआ, जो पहले बंगाल से संविधान-सभा के लिए निर्वाचित हुए थे। उनको फिर काँग्रेस द्वारा बम्बई से उदारवादी हिन्दू महासभावादी, एम.आर. जयकर के त्यागपत्र से खाली हुए स्थान पर नामांकित किया गया। वह बाद में प्रारूपण समिति के अध्यक्ष हो गए।
बाड़-आसन्न जन
काँग्रेस ने न सिर्फ हिन्दू महासभा के दो नेताओं – एम.आर. जयकर और श्यामाप्रसाद मुखर्जी – को ही नामांकित किया बल्कि दो समाजवादियों और फॉर्वर्ड ब्लॉक सदस्यों को भी किया। 1948 के प्रारम्भ में, समाजवादियों और फॉर्वर्ड ब्लॉक ने काँग्रेस से अपने संबंद्ध विच्छेद कर लिए और अपने सदस्यों को संविधान सभा से त्यागपत्र देने का निर्देश दिया। इन सदस्यों ने इसे अस्वीकार कर दिया और संविधान-सभा में बने रहे।
अनेक काँग्रेसीजनों जैसे कई लोग संविधान के अनेक पहलुओं के आलोचक थे, लेकिन उन्हें सुसंगत ‘विपक्षी‘ नहीं कहा जा सकता। संविधान-सभा की कार्य-समाप्ति पर उनमें से अधिकतर ने संतोष जताया। कुछ मुस्लिम-लीगी और अकाली सदस्य, सरदार हुकुम सिंह, बहरहाल, इस संविधान के प्रबल आलोचक ही रहे कि इसमें मुस्लिमों और सिखों के लिए अल्पसंख्यकों के राजनीतिक महत्त्व को नकारा गया है।
संविधान सभा का कार्य
संविधान-सभा ने प्रक्रियात्मक और यथार्थपरक विषयों पर एक बड़ी संख्या में समितियाँ गठित की। इन समितियों में से कुछ, मुद्दों पर समग्र रूप से विचार-विमर्श करने के अलावा बाहर के लोगों से भी मशविरा करती थीं। प्राथमिक कार्यों की समाप्ति और समितियों की रिपोर्टों पर संविधान-सभा में विचार-विमर्श हो चुकने के बाद, वे ‘प्रारूप संविधान‘ में इन सिफारिशों के समावेशन हेतु प्रारूपण समिति को अम्र-चालित कर दी जाती थीं। प्रारूप संविधान संविधान-सभा में प्रस्तुत किया जाता था।
सभी विधानों की तर्ज पर इस प्रारूप संविधान के तीन पाठन होते थे। कुछ प्रारूप प्रस्तावों पर बार-बार विचार-विमर्श होता था। यह बहस समग्र और गहन होती थी। लगभग तीन वर्षों के परिश्रम के बाद भारतीय संविधान सभा ने विश्व के वृहदतम लिखित संविधान को जन्म दिया। यह 2 नवम्बर 1949 को संविधान-सभा अध्यक्ष, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा अधिप्रमाणित किया गया और 26 जनवरी 1950 को प्रभाव में आया। इसी बीच, 554 राजसी राज्यों का एक गणतन्त्र भारत में विलय हो गया।
संविधान सभा का महत्त्व
संविधान सभा के अध्यक्ष द्वारा संविधान का अधिप्रमाणन एक महान् विधिसम्मत उपादेयता रखता था। संविधान सभा कोई संप्रभु संकाय के रूप में नहीं गठित की गई थी। संविधान का प्रारूप ब्रिटिश सरकार के द्वारा विधिकरण के लिए तैयार किए जाने की आशा थी। श्विभाजनश् अंग्रेजों द्वारा संविधान सभा को एक संप्रभु संकाय के रूप में माने जाने से इंकार करने का परिणाम था। भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम, 1947 ने भारत के गवर्नर-जनरल को उक्त संविधान को सम्मति दिए जाने के लिए प्राधिकृत किया। संविधान सभा ने वह भी नहीं किया और उक्त संविधान को अपने स्वयं के अध्यक्ष द्वारा अधिप्रमाणित कराया। यह संविधान सभा के संप्रभुता प्राधिकार का अभिकथन था।
बोध प्रश्न 3
नोट: क) अपने उत्तर के लिए नीचे दिए रिक्त स्थान का प्रयोग करें।
ख) अपने उत्तरों की जाँच इकाई के अंत में दिए आदर्श उत्तरों से करें।
1) संविधान सभा में कितने प्रकार के नेतृत्व थे? चर्चा करें।
2) ‘कैबिनेट मिशन प्लान‘ द्वारा भारतीयों को कितने समुदायों में बाँटा गया?
सारांश
संविधान सभा लोगों का एक संकाय है जो किसी देश के आधारभूत कानून बनाता है। भारतीय संविधान सभा का आगाज ब्रिटिश गवर्नर-जनरल द्वारा किया गया। संविधान-सभा की शक्तियों की मर्यादाएँ ब्रिटिश भारत के विभाजन द्वारा समाप्त हो गईं। अधिकतर राजसी राज्य भारतीय संविधान सभा में शामिल हो गए। संविधान-सभा पर वस्तुतरू नेहरू, पटेल, आजाद और राजेन्द्र प्रसाद के नेतृत्व वाली काँग्रेस पार्टी का प्रभुत्व था। लेकिन संविधान की मौलिक संरचना पर बहुधा मतैक्य था। इस संविधान सभा ने समितियों और सामान्य सत्रों के माध्यम से लगभग पूरे तीन साल कार्य किया। इसने विश्व के वृहदतम संविधान को जन्म दिया। यह संविधान संविधान-सभा के अध्यक्ष द्वारा अधिप्रमाणित किया गया।
कुछ उपयोगी पुस्तकें
आस्टिन, नविले, दि इंडियन कॉन्सटीट्यूशन: कॉर्नरस्टोन ऑव ए नेशन, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1966.
चैबे, शिबानी किंकर, कॉन्स्टीट्यएण्ट एसेम्बली ऑव इण्डिया: स्प्रिंगबोर्ड ऑव रेवलूशन, नई दिल्ली, मनोहर, 2000.
चैबे, शिबानी किंकर, कलोनीअलिज्म, फ्रीडम स्ट्रगल एण्ड नैशनलिज्म इन् इण्डिया, दिल्ली, बुक लैण्ड, 1996.
बोध प्रश्नों के उत्तर
बोध प्रश्न 1
1) संविधान सभा विद्वानों की उस समिति को कहते हैं जो किसी देश के संविधान को बनाती है।
2) यह ब्रिटिश मंत्रिमंडल की समिति थी। इसका उद्देश्य भारत में राजनीतिक स्थिति का मूल्यांकण करके उसके संविधान निर्माण के लिए परियोजना बनाना था।
बोध प्रश्न 2
1) इसने सुझाव दिया था कि जब संविधान निमार्ण की प्रक्रिया चल रही होगी, उस समय भारत में एक अंतरिम सरकार बनाई जाए इस अंतरिम सरकार में राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि होंगे तथा इसका मुखिया गवर्नर जनरल होगा।
2) मुस्लिम लीग ने संविधान सभा में हिस्सा नहीं लिया।
बोध प्रश्न 3
1) दो प्रकार के नेतृत्व: (1) राजनीतिक एवं (2) तकनीकी ।
2) तीन समुदायों से – सामान्य, मुस्लिम और सिख।
भारतीय संविधान की रचना
इकाई की रूपरेखा
उद्देश्य
प्रस्तावना
संवैधानिक सरकार का अर्थ
भारतीय संविधान सभा के मूलाधार
कैबिनेट मिशन की योजना
संविधान सभा
संघीय सूत्र
त्रि-पंक्ति संघ
एक अनोखी रीति
गुट से निष्क्रमण निषिद्ध
‘गुटीय‘ विवाद
प्रस्तावित संविधान सभा का संयोजन
अंतरिम सरकार
संविधान सभा और विभाजन
संविधान सभा में दल
काँग्रेस का प्रभुत्व
संविधान सभा का नेतृत्व
संविधान सभा में प्रतिपक्ष
बाड़-आसन्न जन
संविधान सभा का कार्य
संविधान सभा का महत्त्व
सारांश
कुछ उपयोगी पुस्तकें
बोध प्रश्नों के उत्तर
उद्देश्य
इस इकाई में हमारे संविधान की रचना से संबंधित प्रक्रियाओं, कारकों एवं लोगों का जिक्र है। इस इकाई के अध्ययन के बाद आप स्पष्ट कर सकेंगेः
ऽ एक संवैधानिक सरकार का अर्थ,
ऽ भारत ने कैसे और क्यों अपने संविधान की रचना का निश्चय किया,
ऽ इस संविधान की रचना किस जन-निकाय ने की, तथा
ऽ यह संविधान कैसे रचा गया।
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…