(Connective bond theory) (werner theory) वेर्नेर सिद्धांत संयोजकता बंध सिद्धांत उपसहसंयोजक यौगिकों में बंधन :उपसहसंयोजक यौगिकों में बंध की प्रकृति वह गुणों की व्याख्या करने के लिए निम्न सिद्धांत दिए गए |
- वेर्नेर सिद्धांत (werner theory): इस सिद्धांत के मुख्य बिंदु निम्न है
- उपसहसंयोजक यौगिकों में केंद्रीय धातु परमाणु की दो प्रकार की संयोजकता होती है , प्राथमिक संयोजकता तथा द्वितीयक संयोजकता
- प्राथमिक संयोजकता आयनिक होती है जबकि द्वितीयक संयोजकता अन आयनिक होती है
- प्राथमिक संयोजकता ऋण आयन द्वारा संतुष्ट होती है जबकि द्वितीय संयोजकता उदासीन अणु तथा ऋण आयन द्वारा संतुष्ट होती है
- प्रत्येक धातु परमाणु की द्वितीयक संयोजक निश्चित होती है इसे धातु की उप सह संयोजकता भी कहते हैं
- प्राथमिक संयोजकता से जुड़े परमाणु को डॉटेड लाइन (- – – – –) से व्यक्त करते हैं जबकि द्वितीय संयोजकता से जुड़े समूह को फुल लाइन से व्यक्त करते हैं
- धातु की द्वितीयक संयोजकता से जुड़े समूह एक विशेष ज्यामिति का निर्माण करते हैं
- संयोजकता बंध सिद्धांत (Connective bond theory) :
इस सिद्धांत के मुख्य बिंदु निम्न है
- सर्व प्रथम केंद्रीय धातु परमाणु अपने ऑक्सीकरण अवस्था की बराबर संख्या में इलेक्ट्रॉन त्यागकर धनायन बनाता है
- केंद्रीय धातु परमाणु अपनी उपसहसंयोजन संख्या के बराबर संख्या में लिगेंड के लिए खाली कक्षक उपलब्ध कराता है
- खाली कक्षक आपस में मिलकर खाली संकर कक्षक बनाते हैं जिनमें लिगेंड अपने लोन पेअर ऑफ़ इलेक्ट्रॉन्स देते हैं
- अष्ठफलकीय ज्यामिति मैं जब अंदर के d कक्षक संकरण में भाग लेते हैं तो d2sp3 संकरण होता है , तो बने संकुल को आंतरिक कक्षक संकुल या निम्न कक्षक संकुल या चक्रण युग्मित संकुल कहते हैं , जब संकरण मे बाह्य d कक्षक भाग लेते हैं तो sp3d2 संकरण होता है जिस से बने संकुल को बाह्य कक्षक संकुल या उच्च चक्रण संकुल या चक्रण मुक्त संकुल कहते हैं
- यदि सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित है तो प्रतिचुंबकीय परंतु अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होने पर अनुचुंबकीय संकुल कहते हैं
- चुंबकीय आघूर्ण का मान निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात करते हैं
n = अयुग्मित इलेक्ट्रॉन की संख्या
उपसहस्योजक सिद्धान्त के मूल points में
प्राथमिक सयोजक्तता -ve ion से सन्तुष्ट हो जाती हैं ।
ओर द्वितीयक सयोजक्तता -ve & उदासीन से…लेकिन +ve से क्यों ननही
Nice question
how to download notes