चालक , कुचालक तथा अर्धचालक की बैंड सिद्धांत व्याख्या Band theory in hindi

बैंड सिद्धांत के आधार पर चालक , कुचालक तथा अर्धचालक की व्याख्या : Band theory in hindi for conductor insulator and semiconductor

इस सिद्धान्त के अनुसार जितने परमाणु कक्षक आपस में मिलते है उतने ही अणु कक्षकों का निर्माण होता है।  जब बहुत सारे परमाणु कक्षक आपस में मिलते है तो उतने ही अधिक संख्या में अणु कक्षको का निर्माण होता है।  इस अणु कक्षको की ऊर्जाओं में अंतर बहुत कम होता है।

ये परस्पर मिलकर एक बैंड का निर्माण कर लेते है।  अतः इसे बैंड सिद्धांत कहते हैं।

इस सिद्धान्त द्वारा चालक , कुचालक व अर्द्धचालक की व्याख्या निम्न प्रकार से की जा सकती है।

(1) चालकचालक में सहसंयोजक बैंड या तो आंशिक भरा होता है या पूर्ण भरा बैंड व खाली बैंड परस्पर मिलकर आंशिक भरे बैंड का निर्माण कर लेते हैं।  आंशिक भरे बैंड में इलेक्ट्रॉन स्वतंत्रता पूर्वक गति करते हैं।

(2) कुचालक या विधुत रोधी : कुचालक में पूर्ण भरे बैंड व खाली बैंड के मध्य ऊर्जा का अंतर अधिक होता है।  यहाँ इलेक्ट्रॉन स्वतंत्रता पूर्वक गति नहीं करते अतः ये विधुत के कुचालक होते है।

(3) अर्धचालकइनमे पूर्ण भरे बैंड व खाली बैंड के मध्य ऊर्जा का अंतर कम होता है।  परम शून्य ताप पर ये विधुत के कुचालक होते है परन्तु ताप बढ़ाने पर पूर्ण भरे बैंड के इलेक्ट्रॉन खाली बैंड में चले जाते है अतः ताप बढ़ाने से अर्द्धचालक की चालकता बढ़ जाती हैं।

-Isolator-metal

Si तथा Ge शुद्ध अर्धचालक है इन्हे नैज अर्धचालक भी कहते है।  यदि इनमे कुछ अशुद्धियाँ मिली होती है तो इनकी चालकता बढ़ जाती है इस विधि को अपमिश्रण कहते है।

नोट : मिलाई जाने वाली अशुद्धि 13वें या 15वें वर्ग की होती है जिससे दो प्रकार के अर्धचालक बनते है।

1. इलेक्ट्रॉन धनी अशुद्धि मिलाकर या n प्रकार के अर्ध चालक :

जब Si में अल्प मात्रा में फॉस्फोरस की अशुद्धि मिली हो तो कुछ स्थान पर फॉस्फोरस के परमाणु आ जाते है।

Si की कक्षा में चार इलेक्ट्रॉन होते है। जिससे प्रत्येक Si चार बंध बना लेता है जबकि फॉस्फोरस (p) के आखिरी कक्षा में पांच इलेक्ट्रॉन होते है , फॉस्फोरस के 5 electron में से 4 इलेक्ट्रॉन तो सहसंयोजक बंध बना लेते है परन्तु एक इलेक्ट्रॉन स्वतंत्र रहता है यह electron विधुत धारा के प्रभाव से सारे क्रिस्टल पर विस्थानिकृत रहता है जिससे अर्धचालक की चालकता बढ़ जाती है।

चूँकि इलेक्ट्रॉन negative (ऋणात्मक) कण है इसलिए इसे n प्रकार का अर्धचालक कहते है।

2. इलेक्ट्रॉन न्यून अशुद्धियाँ मिलाकर या p प्रकार के अर्धचालक :

पिघले हुए Si में बोरोन(B) की अशुद्धि मिलाकर ठंडा कर लेते है जिससे Si की संरचना में कुछ स्थानों पर बोरोन(B) के परमाणु आ जाते है।  Si की कक्षा में 4 इलेक्ट्रॉन होते है।  जिससे प्रत्येक Si , 4 बंध बनाता हैं जबकि बोरोन (B) की आखिरी कक्षा में 3 electron होते है जिससे बोरोन(B) तीन बन्ध बना लेता है।  बोरोन(B) के पास एक इलेक्ट्रॉन की कमी होने के कारण एक धनात्मक छिद्र (positive hole ) बन जाता है।  यह धनात्मक छिद्र विधुत धारा के प्रभाव से सारे क्रिस्टल पर विस्थानिकृत रहता है अतः इसे P प्रकार का अर्धचालक कहते है।

अर्धचालको के उपयोग :

(1) n प्रकार के तथा P प्रकार के अर्धचालको को मिलाने से n-p संधि का निर्माण होता है जो प्रत्यावृति धारा को दिष्ट धारा में बदलती है।

(2) npn या pnp प्रकार के अर्धचालको को ट्रायोड कहते है।  ये रेडियो तथा श्रव्य तरंगो की पहचान व संवर्धन में काम आते है।

नोट : 12 वें वर्ग व 16 वें वर्ग के तत्वों को मिलाने से भी अनेक प्रकार के अर्धचालक बनाये जाते है।

जैसे : ZnS , CdS

नोट : 13 वें व 15 वें वर्ग के तत्वों को मिलाने पर भी अनेक प्रकार के अर्धचालक बनते है।

जैसे : Alp , GaAs .

प्रश्न 1 : निम्न निखित को n तथा p प्रकार के अर्धचालक में वर्गीकृत कीजिये।

१. In से डोपित Ge

उत्तर : p प्रकार का अर्धचालक (14 वे वर्ग में 13 वें वर्ग की अशुद्धि )

प्रश्न 2 : B से डोपित Si

उत्तर : p प्रकार का अर्धचालक।

पश्न 3 : P से डोपित Si

उत्तर : n प्रकार का अर्धचालक (14 वें वर्ग में 15 वें वर्ग की अशुद्धि मिलाई गयी )