हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
हिम युग का आरंभ किस देश में हुआ ? किस युग में पृथ्वी बर्फ से ढकी थी हिम युग किस काल को कहा जाता है
concept of ice age was first put forward by in hindi हिम युग का आरंभ किस देश में हुआ ? किस युग में पृथ्वी बर्फ से ढकी थी हिम युग किस काल को कहा जाता है ?
यूरोपीय सम्प्रदाय :
उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोप में भूआकृति विज्ञान के निम्न क्षेत्रों में स्वतंत्र अवधारणाओं का प्रतिपादन किया गयाः
– प्लीस्टोसीन हिमकाल तथा हिमानी अपरदन,
– सागरीय अपरदन,
– सरिता अपरदन,
– कार्ट चक्र आदि। इस स्कूल के अन्तर्गत जोन फ्लेफेयर, चार्ल्स ल्येल, आगासीज, वेनेज एस्मार्क कार्पेण्टियर, पेन्क, ब्रूकनर, वाल्टर पेन्क, रैमसे, वेगनर, स्वीजिक आदि के कार्य उल्लेखनीय हैं। सम्प्रदाय द्वारा भू आकृति विज्ञान दर्शन निम्न प्रकार किया गया-
(1) हिम काल की संकल्पना (Concept of Ice Age) : संपूर्ण यूरोप में 19 वीं शताब्दी का एक प्रमख हिमयुग के साक्ष्यों की पहचान रहा है। इस हिमकाल में लगभग संपूर्ण उत्तरी यूरोप हिमावारित था। इस साक्ष्य का सर्वप्रथम पता लगाने का श्रेय प्रसिद्ध विद्वान लुईस आगासीज (1807-1873) को है। ये स्वीटजरलैण्ड के निवासी थे इनके अतिरिक्त स्वीटरजलैण्ड के कृषकों ने तत्कालीन हिमनदों की सीमा से नीचे प्राचीन हिम्मत देखे थे तथा यह माना कि प्राचीन काल में भी ये हिमनद आज कि तुलना में अधिक विस्तत रहे है सन् 1815 में जान प्लेफेयर ने जब जूरा पर्वत की यात्रा की तो वहाँ उपस्थित विस्तृत गोलाश्मों की पहचाना तथा बताया कि ये गोलाश्म पर्वतीय हिमनदों द्वारा प्रवाहित कर लाये गये हैं। इसी प्रकार सन् 1821 में स्वीम विद्वान वेनेज ने भी पर्वतीय हिमनदों के विस्तार में विश्वास जताया। सन् 1824 में नार्वे के इस्मार्क ने यह स्वीकार किया। सन् 1829 में पुनः वेनेत्ज बताया कि हिमनद पर्वतों तक सीमित न रहकर नीचे मैदानी भागों तक विस्तृत रहे हैं। यूरोप में हिमयुग के बारे में शोध एवं निरीक्षण कार्य जारी रहा तथा प्रसिद्ध जर्मन विद्वान बर्नहार्डी सन् 1832 में एक शोध पत्र प्रकाशित कर बताया कि हिमकाल के दौरान हिम की चादरें सम्पूर्ण उत्तरी यूरोप महाद्वीप पर फैली थी जिसे उन्होंने पूर्व के विद्वानों की तरह पर्वतीय हिम न कहकर महाद्वीपीय हिम चादर कहा है। सन् 1834 में वेनेत्ज के सहयोगी जीन डी कार्पेण्टिअर ने भी वेजेत्ज द्वारा वर्णित हिमचादर को वास्तविक बताया। इन्होंने महाद्वीपीय हिमानी का नामकरण किया। इसके कारण ही लुई आगासीज की हिमनदन में रुचि उत्पन्न हुई। सन् 1836 में आगासीज ने वेनेज तथा कार्पेण्टीअर के कार्यक्षेत्रों का दौरा किया तथा कार्पेण्टीअर के कार्यों से पूर्णतया सहमत हए। सन् 1837 में इन्होंने हेलवेटिक सोसायटी के समक्ष हिमकाल पर एक शोधपत्र पड़ा जिसका सारांश सन् 1840 में हिमनदों के अध्ययन श्ैजनकपमे ैनत स्मे ळसंबपमतेश् नामक शीर्षक से प्रकाशित हआ। स्काटिश भू वैज्ञानिक जेम्स गीकी तथा पेंक व बकनर ने भी हिमयुग शोध किया। गीकी ने सन 1894 में ‘महान हिमयग‘ नामक पस्तक में बताया कि प्रत्येक महाहिम काल मध्य एक गर्भ अन्तर्हिम काल भी आया था जिसमें हिम पिघल जाती है।
(2) सागरीय अपरदन की संकल्पना (Concept of Marine Erosion) : यूरोपीय विद्धानों ने सागरीय अपरदन के महत्व को स्पष्ट किया इनमें सर एण्ड्रम रेमजे (1814-1891), चाल्र्स लियेल तथा रिचथोफेन (1833-1905) के कार्य महत्वपूर्ण रहे हैं। सर एण्ड्रयू रमजे ने दक्षिणी पश्चिमी इंग्लैण्ड तथा वेल्स के उच्च भागों में सागरीय अपघर्षण द्वारा निर्मित मैदानों का विवरण प्रस्तत किया। रिचथोफेन ने चीन की भौगोलिक यात्राओं के दौरान सागरीय अपघर्षण के महत्व को स्वीकार किया था। चार्ल्स लियेल तो जीवन भी सागरीय अपरदन के महत्व को स्पष्ट करता रहा। उन्होंने बताया कि उथले सागर में तरंगे एव धाराव अधःस्थल की भू-आकृतियों का निर्माण कर सकती हैं। ब्रिटेन के वील्ड प्रदेश में इसी प्रकार की बनी हुई कगारस्थलाकृति तथा घाटियाँ देखी गई है यहाँ का अपवाह तब तथा उससे संबंद्ध स्थलाकृतियाँ और आन्तरिक निचले क्षेत्रों का विकास एक अधिनूतन युग के अपरदित मैदान द्वारा हुआ है। इसके तटों को अत्यन्त नूतन कालीन सागर द्वारा अपर्षित किया गया था।
(3) सरिता अपरदन की संकल्पना (Concept of Stream Erosion) – सरिता अपरदन के बारे में अध्ययन करते हुए प्रसिद्ध ब्रिटिश भू-वैज्ञानिक जॉर्ज ग्रीनवुड ने सन् 1857 में (नदी) मार्ग में अपरदन के ‘अस्थायी आधार तल‘ की संकल्पना को स्पष्ट किया। ग्रीनवुड ने बताया कि किसी नदी के प्रवाह मार्ग में उसके द्वारा घाटी के निम्नवर्ती भाग की ओर अपरदन करने की अन्तिम सीमा को शैली की कठोरता निर्धारित करती है। सन् 1862 में एक अन्य प्रमुख भू-वैज्ञानिक ज्यूकन ने नदी घाटी विकास के संबंध में एक शास्त्रीय शोध पत्र प्रकाशित किया। इसमें उन्होंने दक्षिणी आयरलैण्ड की नदियों पर अध्ययन कर दो प्रकार की मुख्य सरिताओं के अस्तित्व को पहचाना था, प्रथम अनुप्रस्थ सरितायें जो भूवैज्ञानिक संरचना के आर-पार प्रवाहित होती हैं, तथा द्वितीय अनुदैर्ध्य सरितायें, जो भूवैज्ञानिक संरचना के अनुरूपा उसके समानान्तर या संरचना की दिशा में मुलायम शैलों के स्तर में बहती है। ज्यूकन महोदय का विश्वास था कि पहले अनुप्रस्थ सरीता का उद्भव होता है तत्पश्चात् अनुदेओं सरितायें विकसित होती है। इस प्रकार उन्होंने अनुदैर्घ्य सरिताओं को सहायक सरितायें माना है।
उन्नसीवीं शताब्दी के तीसरे दशक तक पुस्तकों को भू-आकृति विज्ञान के विषय क्षेत्र में योगदान की दृष्टि से महत्व दिया जाने लगा। इस दृष्टि से सन् 1869 में पेशेल द्वारा प्रकाशित पुस्तक महत्वपूर्ण थी इसमें भू-आकृतियों के विकास के सिद्धांतों के द्वारा व्यवस्थित क्रम में उत्पत्ति को समझाया गया है। सन् 1986 में रिचथोफेन की पुस्तक ‘भू-आकृतिक विज्ञान‘ तीन खण्डों में बर्लिन से प्रकाशित हुई। इसमें नदी प्रणाली, हिमनदन तथा सागरीय अपघर्षण की विस्तृत विवेचना की गई है।
इस प्रकार यूरोप में उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त तक भूविज्ञान स्वतंत्र रूपा में भूआकृति विज्ञान के अध्ययन हेतु पर्याप्त ज्ञान प्राप्त हो चुका था उस समय इसे भूआकारिक भूविज्ञान (Phyisorgraphic Geology) कहा गया।
Recent Posts
द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन क्या हैं differential equations of second order and special functions in hindi
अध्याय - द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन (Differential Equations of Second Order…
नियत वेग से गतिशील बिन्दुवत आवेश का विद्युत क्षेत्र ELECTRIC FIELD OF A POINT CHARGE MOVING WITH CONSTANT VELOCITY in hindi
ELECTRIC FIELD OF A POINT CHARGE MOVING WITH CONSTANT VELOCITY in hindi नियत वेग से…
four potential in hindi 4-potential electrodynamics चतुर्विम विभव किसे कहते हैं
चतुर्विम विभव (Four-Potential) हम जानते हैं कि एक निर्देश तंत्र में विद्युत क्षेत्र इसके सापेक्ष…
Relativistic Electrodynamics in hindi आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा
आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा Relativistic Electrodynamics in hindi ? अध्याय : आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी…
pair production in hindi formula definition युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए
युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए pair production in hindi formula…
THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा
देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi…