JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: sociology

साम्प्रदायिक दंगे और उनका इलाज क्या है अर्थ किसे कहते है कारण बताइए communalism riots in india in hindi

communalism riots in india in hindi साम्प्रदायिक दंगे और उनका इलाज क्या है अर्थ किसे कहते है कारण बताइए ?

मूल अवधारणाएँ (Basic Concepts)
आइए सर्वप्रथम हम इकाई की बुनियादी/मूल अवधारणाओं पर प्रकाश डालें।

साम्प्रदायिकता (Communalism)
दूसरी ओर साम्प्रदायिकता का अर्थ है राजनीतिक उद्देश्यों से सामाजिक परंपराओं का सामुदायिक शोषण। इसका उद्देश्य है स्थापित समूहों के हितों को ठेस पहुँचाना। इस प्रकार साम्प्रदायिकता ऐसी विचारधारा है जिससे कोई समुदाय या सामाजिक समूह अपनी सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक अभिलाषाओं की पूर्ति करने का प्रयास करते हैं। इसका अस्तित्व विशिष्ट प्रस्तावों और कार्यक्रमों पर निर्भर है। सामाजिक परिवर्तन के दौरान यह सक्रिय बनता है। भारत में साम्प्रदायिकता औपनिवेशिक काल में उभरी। साम्प्रदायिक राजनीति धर्म और परंपरा के बल पर अपनी योजनाएँ बनाते हैं। राजनीतिक संघटन हेतु इतिहास की व्याख्या की जाती है। साम्प्रदायिक संगठनों में लोकतंत्र के लिए जगह नहीं है। इनका प्रजातिवादी दृष्टिकोण होता है और वे प्रजातिवाद का प्रचार करते हैं। वे समानतावाद को अनैसर्गिक समझते हैं, और पितृसत्ता का पारिवारिक और सामाजिक नियम के रूप में समर्थन करते हैं। साम्प्रदायिकता शब्द का प्रयोग दो तरह से किया जाता हैः

प) विश्वास-व्यवस्था और
पप) सामाजिक परिघटना।
पहले दृष्टिकोण के अनुसार साम्प्रदायिकता एक विचार-व्यवस्था का परिणाम है। इसके लिये घनिष्ठ सामुदायिक एकता आवश्यक हैं जो सही नहीं है। प्रायः देखा गया है कि समुदाय में आंतरिक मतभेद मौजूद हैं। ऐसे में इतिहास काम आता है। साम्प्रदायिकता के समर्थक समुदाय के समान दुःखों और लक्ष्यों की ओर ध्यान आकृष्ट करते हैं। दूसरे समुदायों की अपेक्षा उस समुदाय की अनन्यता पर जोर दिया जाता है जिससे अपने अधिकारों के लिए लड़ना अत्यंत सहज बनता है।

जैसा कि पहले बताया जा चुका है भारत में सांप्रदायिकता उपनिवेशवाद की देन है जिसमें ब्रिटिश शासक प्रमुखता देकर विभिन्न समुदायों में मौजूद धार्मिक विरोधाभासों का प्रयोग करते थे। आजादी के बाद भारत के आर्थिक आधुनिकीकरण से आर्थिक अवसरों में वृद्धि हुई है परंतु इससे प्रतिस्पर्धा कम नहीं हुई है। नौकरियों में कम अवसर मिलने के कारण विभिन्न समुदायों में ईर्ष्या है। 1947 में राजनीतिक आजादी के कारण देश के दो भागों में बँटवारे से भयंकर सांप्रदायिक रक्तपात हुआ।

भारत में सांप्रदायिकता (Communalism in India)
भारत में सांप्रदायिकता की विचारधारा पहले भी थी और अब भी है कि भारत में विभिन्न समुदाय पारस्परिक हित के प्रति सहअस्तित्व बनाए नहीं रख सकते जिससे कि अल्पसंख्यक, हिंदू अधीनता के शिकार हो जाएंगे और ऐतिहासिक रूप से उत्पन्न परिस्थिति और न ही संस्कृति उन्हें सहयोग प्रदान कर पाएगी।

राष्ट्रीय आंदोलन के बाद के चरण के दौरान सांप्रदायिकता की भारतीय राज्यतंत्र में जड़े मजबूत हुईं और इसे औपनिवेशिक शासकों से प्रोत्साहन मिला। यह प्रक्रिया धर्मनिरपेक्षता की कमजोरी और कमी को जारी रखे रही और उपनिवेश विरोधी संघर्ष के दौरान जिसकी अवधारणा बनी और उसका प्रचार हुआ।

सभी सिद्धांतों में यह धारणा विद्यमान रही है कि हिंदू-मुस्लिम तनाव की उत्पत्ति स्वाभाविक नहीं थी बल्कि यह भारतीय समाज में हो रहे परिवर्तनों का अपरिहार्य परिणाम है। विभाजन से संघर्ष हुआ जिससे बचा जा सकता था और बचना भी चाहिए था। इस प्रकार के तर्क से पता चलता है कि राष्ट्र निर्माण का स्पष्ट रूप से अर्थ है उन सांप्रदायिक ढाँचों का विनाश करना और सामान्य पहचान का सृजन करना जो धर्म, जाति अथवा भाषा पर आधारित विभिन्न समूहों के अस्तित्व की आलोचना करता है। इसलिए सांप्रदायिक शक्तियों को विभाजन और राजनीतिक अल्पविकास के संकेत के रूप में देखा जाता है। सांप्रदायिकता तब उत्पन्न होती है जब जातीय पहचान की एक या दो विशेषताएँ अर्थात धार्मिक विश्वासों को भावनात्मक रूप से हवा दी जाती है। सांप्रदायिक आंदोलन प्रायः छोटे और दो तरफा होते हैं जिनमें एक विरोधी शक्ति अथवा विचारधारा होती है। रूढ़िवाद की अपेक्षा सांप्रदायिकता केवल द्विपक्षीय रूप में विद्यमान रह सकती है।

हिंदू-मुस्लिम दंगों से हिंदुओं और मुसलमानों के धार्मिक भय और आर्थिक आकांक्षाओं का पता चला है। कभी-कभी ये दंगे छोर्टे-छोटे कारणों की वजह से होते हैं जैसे हिंदू और मुसलमान दुकानदारों के बीच झगड़े। (घोष, 1981ः 93-94)

महत्वपूर्ण बात यह है इनके ये कार्य विभिन्न सामाजिक-धार्मिक संगठनों द्वारा जानबूझकर किए गए षडयंत्रों के अंतर्गत किए जाते हैं, पीछे जो संघर्ष हुए उनका कारण था कि धार्मिक शोभा यात्राओं/जुलूसों को दूसरे समुदाय द्वारा रोकना और उनमें बाधा डालना। सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने और उनमें कटुता पैदा करने के लिए ऐसा किया गया । घोष (1981) के अनुसार अगस्त (1946) में कलकत्ता में सांप्रदायिक दंगा अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया जब मुस्लिम लीग ने “सीधा कार्रवाई दिवस‘‘ मनाया। बम्बई में भी अगले महीने यही किया गया। इस प्रकार हजारों इनसानों की लाशों पर स्वतंत्रता का निर्माण हुआ। महात्मा गांधी की हत्या के कारण दंगे शांत हुए और वह स्थिति मूल रूप से नेहरू जी ने बरकरार रखी। 1964 में नेहरू जी के देहांत के कारण और बिगड़ती हुए सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों ने सांप्रदायिक हिंसा को पुनर्जीवित कर दिया।

हाल ही में हुए सांप्रदायिक दंगे (Recent Communal Riots)
सातवें और आठवें दशक के दौरान अहमदाबाद, बड़ौदा, रांची, जमशेदपुर आदि में बड़े पैमाने पर दंगे हुए। रांची जैसे शहरों में सांप्रदायिक हिंसा भविष्य मजदूर एकता के पूर्वानुमानों और विश्वासों को धूमिल करती है। इसके बाद 1969 में भिवंडी में नरसंहार हुआ। यह वामपंथियों के लिए धक्का था । प्रतिबद्ध वामपंथियों द्वारा प्रोत्साहित हथकरघा कामगारों में निचले स्तर से आंदोलन सांप्रदायिक हिंसा की लहर को रोकने में असमर्थ रहा।

1969 में ही अहमदाबाद में सांप्रदायिक दंगा हुआ । पवित्र धर्मग्रंथों और गायों के प्रति अपमान इस दंगे के उत्तेजक कारक थे। हालांकि ऐसी आशंका की गई थी कि ये दंगे राजनीति से प्रेरित थे।

इन दंगों से यह स्पष्ट हो गया कि धर्म आधारित तनावों और संघर्षों के मूल कारणों के पीछे विभिन्न राजनीतिक कारक थे। आठवें दशक के मध्य आपातकाल और जनता पार्टी के शासन के कारण सांप्रदायिक दंगों में कुछ कमी आई।

आपातकाल में इन पर सख्त नियंत्रण और अनुशासन रचा गया और जनता पार्टी ने हिंदुओं और मुसलमानों में आशाएँ जगाईं। आठवें दशक के पहले छह वर्षों में एक बार फिर दंगे के आलेख में उर्ध्वगामी वृद्धि (न्चूंतक पदबसपदपदह) हुई।

पटेल (1990) का विचार है कि सांप्रदायिक हिंसा को धार्मिक तर्क और समर्थन मिला । जो इसका सहारा लेते हैं वे अनुभव करते हैं कि वे न तो सच्चे हिंदु हैं और न ही सच्चे मुसलमान। धर्म शत्रुता का प्रचार नहीं करता। हालांकि सांप्रदायिक हिंसा के प्रायः जो कारण दिए जाते हैं वे धार्मिक भावनाएँ नहीं होती। इसके स्पष्ट कारण हैं- मस्जिद के आगे संगीत बजाना, पैगंबर या पवित्र कुरान का अपमान करना । यह कुछ मुस्लिमों में हिंसा भड़काने के लिए पर्याप्त है। ऐसा ही धार्मिक यात्रा में मुसलमानों द्वारा बाधा डालना हिंदुओं के क्रोध को भड़काने के लिए पर्याप्त है (पटेल, 1990ः 41-42)।

सांप्रदायिक दंगों के पीछे कारण (Reasons for Communal Riots)
हाल ही में सांप्रदायिक दंगे विषय के संदर्भ में अब हम और इसके कारणों का उल्लेख करेंगे। घोष (1981) कहते हैं कि सांप्रदायिक दंगों के बने रहने के कई तर्क हैं। ये हैंः
प) दंगे किसी अल्पविकसित देश की प्रगति का एक हिस्सा होते हैं। वर्ग संघर्ष सांप्रदायिक संघर्ष में बदल जाता है जो सर्वहारा वर्ग की एकता को कमजोर करता है। इसके बाद मध्यम और पिछड़े वर्ग राजनीतिक और आर्थिक शक्ति और प्रभाव प्राप्त कर चुके हैं और ये प्रायः स्वयं को मजबूत करते हैं। आर्थिक संघर्षों से दंगे होते हैं जैसा कि बिहार शरीफ और भिवंडी में हुआ था।
पप) चुनावी राजनीति, सांप्रदायिक हिंसा के उद्देश्य और दिशा निर्धारित करती है जैसे दिल्ली, 1986।

ये व्याख्याएँ बाध्यकारी नहीं हैं- इन्हें आवश्यक और पर्याप्त भी नहीं ठहराया जा सकता। दंगे होने के बाद (उससे पहले नहीं) प्रायः आर्थिक कारण उभरकर सामने आते हैं। इसके अलावा एक विकासशील देश में जहाँ पर आर्थिक कारक प्रतिस्पर्धी होते हैं या एक दूसरे से पिछड़ जाते हैं, उसके कारण दंगे होते हैं। यही न्यूनकारी राजनीतिक कारणों पर भी लागू होता है। पर्दे के पीछे राजनीतिक हथकंडे के विचार वैध नहीं हो सकते।

आर्थिक और सामाजिक आयाम (Economic and Social Dimensions)
सांप्रदायिक दंगे भड़कने के बाद आर्थिक लाभ प्राप्त करने के संबंध में हम यह पाते हैं कि गोधरा में पाकिस्तान से आए हिंदू सिंधी शरणार्थियों ने हिंदू व्यापारियों के समक्ष प्रतिस्पर्धा खड़ी कर दी। लेकिन सिंधियों और मुसलमानों में दंगे बार-बार होते रहे हैं। पंजाब में रामगढ़िया और दूसरे सिक्ख, व्यापार में हिंदुओं से बहुत आगे निकल गए हैं पंरतु इसके कारण वहाँ दंगे नहीं हुए हैं।

पंजाब में आतंकवादियों की सक्रियता ने हिंदुओं के साथ वैमन्य उत्पन्न कर दिया है पंरतु आतंकवादी गतिविधियों को पूरे सिक्ख समुदाय का कार्य नहीं माना जा सकता। हाल ही में हिंदू-मुस्लिम दंगे मध्यम आकार के कस्बों और शहरों तक सीमित रहे हैं। इन क्षेत्रों में मेरठ, अलीगढ़, मुरादाबाद, पुणे आदि शामिल हैं ।

बोध प्रश्न 1
1) सांप्रदायिक दंगों के तीन कारण बताइए।
क) ……………………………………………………………………………………………………………………………………………………………..
ख) ……………………………………………………………………………………………………………………………………………………………..
ग) ……………………………………………………………………………………………………………………………………………………………..
पप) रिक्त स्थान भरिएः
हाल ही में ही हुए हिंदू और ………. दंगे………….के शहरों और कस्बों तक सीमित रहे हैं।

बोध प्रश्न 1 उत्तर
1) क) आर्थिक कारण
ख) राजनीतिक कारण
ग) समाजशास्त्रीय कारण
2) मुस्लिम, मध्य आकार के

दंगे में लोग एक भीड़ बना लेते हैं और संघर्ष बहुत हिंसक हो जाता है। ये लोग निर्दयी हो जाते हैं। 1969 में हिंदू उग्रवादियों ने पर्चा द्वारा धर्मयुद्ध का आह्वान किया था। हाल ही में छठे दशक से सामूहिक रुझान और सामूहिक निष्ठाओं की प्रवृत्ति रही है। इसके अतिरिक्त जाति और समुदाय की कार्यात्मक स्वतत्रंता विघटनकारी है और इसका स्थान प्रतिस्पर्धात्मक विन्यास ले लेते हैं। इससे लोगों में परस्पर संबंधों में तनाव बढ़ता है।

कार्यकलाप 1
सांप्रदायिकता और सांप्रदायिक दंगों के कारणों पर आधारित अनुभाग 32.4.2 और 32.4.3 को ध्यानपूर्वक पढ़िए। सांप्रदायिकता के मौजूद रहने के क्या कारण हैं? क्या आप विश्लेषण कर सकते हैं? विभिन्न समुदायों के लोगों से उनकी राय जानिए और लिखिए। इसके बाद लगभग 300 शब्दों में एक टिप्पणी लिखिए जिसमें सांप्रदायिकता की परिघटना को स्पष्ट किया गया हो। यदि संभव हो तो अपने अध्य्यन केंद्र के अन्य विद्यार्थियों के साथ इस संदर्भ में विचार-विमर्श कीजिए।

समुदायों के बीच पारस्परिक संबंध (Inter & Community Dynamics)
मध्यम आकार के कस्बेध्शहर सांप्रदायिक आधार पर विभाजित हो रहे हैं। हम यह पाते हैं कि मजदूरों में वर्ग चेतना नहीं है। शिक्षित मध्यवर्गीय व्यावसायिक हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एक सेतु का काम करते हैं। देश के विभाजन से पूर्व मुसलमान डाक्टर और वकील आदि थे जो हिंदू ग्राहकों को आकर्षित करते थे। इसी प्रकार हिंदू व्यावसायिक मुस्लिम ग्राहकों को आकर्षित करते थे। इससे
प) सामान्य संपर्क विकसित हुए, और
पप) इस व्यवस्था में सामान्य संबंध तंत्र और संरक्षण मौजूद था।

इसके अतिरिक्त मौजूदा मुस्लिम व्यावसायिकों, प्रशासकों आदि ने मुसलमानों को सकारात्मक रूप में चित्रित किया। परंतु स्वतंत्रता के बाद व्यापक प्रवसन के कारण मुसलमानों को यह लगने लगा कि वे नष्ट हो जायेंगे । भारत में अधिकतर व्यापार और आर्थिक गतिशीलता हिंदुओं के हाथों में रही है फिर भी कोई समस्या इसलिए सामने नहीं आई क्योंकि मुसलमान लोग इस प्रतियोगिता में शामिल ही नहीं थे। हिंदू नियोजक या मालिक, मुस्लिम कारीगरों पर आश्रित थे और कारीगर मालिकों पर निर्भर करते थे। परंतु मस्जिदों के नवीकरण के लिए अरबों से धन प्राप्त होने के बाद उन्हें अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इस धन के बल पर त्योहारों पर अत्यधिक खर्चा किया जाने लगा तथा त्योहार विशेष शान शौकत से मनाने के कारण धन और धर्म दोनों मिल गए जिससे समुदायों में आपसी तनाव पैदा हुआ और हिंसा का प्रादुर्भाव हुआ।

बॉक्स 32.02
बिहार-शरीफ एक मुस्लिम-फकीर की मजार (मकबरा) का नाम है। उत्तर प्रदेश में लखनऊ की तरह ही बिहार में भी इसे सांस्कृतिक विरासत के रूप में स्वीकार किया गया है। गड़बड़ी उस समय पैदा हुई सब मस्जिद के पास ‘‘मुगल कुआँ‘‘ नामक एक भूमि के टुकड़े पर विवाद खड़ा कर दिया गया। इस पर मुसलमानों का दावा था कि यह भूमि का टुकड़ा उनका अपना है। किंतु हिंदुओं ने उस भूमि पर एक तुलसी का पौधा लगा दिया, वहाँ पर एक मूर्ति स्थापित कर दी और कहने लगे कि भूमि उनकी है। यह विवाद सन 1979 में अपनी चरमसीमा में पहुँच गया और स्थिति अत्यधिक बिगड़ गई। इस झगड़े में एक अनुसूचित जाति के व्यक्ति की मुत्यु हो गई।

भारत में सांप्रदायिक अलगाव को नष्ट करने के लिए कौन से कारक उपयुक्त हो सकते हैं इस संबंध में कुछ सुझाव (वर्मा, 1990, 63-65) में दिए गए हैं जो इस प्रकार हैं। धर्म को धार्मिक और सामुदायिक निकायों से दूर रखा जाए और ऐसे निकायों पर प्रतिबंध लगाए जाएँ। इसके अलावा समाचार पत्रों को सांप्रदायिकता फैलाने की स्वतंत्रता नहीं दी जानी चाहिए। सांप्रदायिकता की राजनीतिक नेताओं और वरिष्ठ नागरिकों द्वारा निंदा की जानी चाहिए। अल्पसंख्यक समुदायों के विकास के लिए आर्थिक स्रोतों को बढ़ाने के उपाय किए जाने चाहिए। सभी लोगों में व्यापक रूप से सदभावना उत्पन्न की जाए जिससे समुदायों के बीच शांति स्थापित हो और साम्प्रदायिक हिंसा का अंत हो सके। सामुदायिक नेताओं को अपने समुदायों के समक्ष स्थिति की वास्तविकता को स्पष्ट करना चाहिए और तनाव को समाप्त करने में भरसक सहयोग देना चाहिए। आइए अब धर्मनिरपेक्षता के बारे में चर्चा करें।

अतः सांप्रदायिकता एक घृणित पहलू है जो राष्ट्रीय एकता के विरुद्ध है। हमें राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए धर्म को बलि का बकरा नहीं बनाना चाहिए।

Sbistudy

Recent Posts

सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है

सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…

23 hours ago

मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the

marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…

23 hours ago

राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi

sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…

3 days ago

गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi

gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…

3 days ago

Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन

वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…

3 months ago

polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten

get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…

3 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now