colorimetry in hindi | वर्णमिती किसे कहते है , वर्णमापक का उपयोग वर्णमापक का उपयोग करता है

use of colorimetry in hindi ? वर्णमिती किसे कहते है , वर्णमापक का उपयोग वर्णमापक का उपयोग करता है ?

वर्णमिती (Colorimetry)
इस उपकरण द्वारा बायोकेमिकल यौगिकों (compounds) की सान्द्रता अथवा जीवाणु समाष्ट (bacterial population) की सघनता का, टर्बिडिटी के आधार पर आकलन किया जाता है। इसमें अगर पदार्थ की प्रकाशीय सघनता (optical density) अथवा टर्बिडिटी अधिक होगी तो उसमें उपस्थित कण अधिक होंगे जो प्रकाश का अवशोषण (absorb) कर लेंगे तथा उसके प्रकीर्णन (scattering) को रोकेंगें। उदाहरण स्वरूप ब्रॉथ में जब जीवाणु वृद्धि करते हैं तब उनकी कोशिकाओं की संख्या बढ़ने के सात ही साथ जो ब्रॉथ जो साफ (clear) या धुंधला (turbid) होने लगता है। यह जीवाण सघनता की पहचान होती है जिसका आंकलन हम स्पेक्ट्रोफोटोमीटर की सहायता से कर सकते हैं।
कलरीमीटरध्स्पेक्ट्रोफोटोमीटर में मुख्यतः तीन भाग होते हैं।
(1) प्रकाश स्त्रोत
(2) वांछित तरंगदैर्घ्य की प्रकाश तरंग प्रदान करने के लिए उपयुक्त चयनकर्ता इकाई। कलरीमा में यह इकाई विभिन्न रंग के फिल्टर के रूप में होते हैं जबकि स्पेक्ट्रोफोटोमीटर में यह मोनोक्रोमेटिक होता है जिससे प्रकाश की वांछित तरंगदैर्घ्य प्राप्त की जा सकती है। कलरीमीटरी की तरंगदैर्घ्य की रंेज अधिक होती है तथा स्पेक्ट्रोफोटोमीटर में निश्चित तरंगदैर्ध्य कम रेंज की होती है।
(3) सेम्पल द्रव में से गुजरने वाले प्रकाश को मापने के लिए उपकरण में द्रव को उपयुक्त स्थान पर रखने के लिए कांच से बने क्यूवेट (cuvette) होते हैं।
सिद्धान्त (Principle) जब प्रकाश स्त्रोत से मोनोक्रोमेटर या फिल्टर के माध्यम से प्रकाश (IO तीवता) पारदशी पात्र में रखे विलयन में से गुजरता है तब कछ प्रकाश विलयन द्वारा अवशोषित हा जाता है या इसमें उपस्थित कणों द्वारा विसरित हो जाता है अतः विलयन से बाहर आने वाले प्रकाश की तीव्रता कम हो जाती है।
प्रयोगों में यौगिकों अथवा मिश्रणों (compounds mixture) का मात्रात्मक (quantitative) आंकलन करना होता है। जब प्रकाश की किरण किसी माध्यम में प्रवाहित करते हैं तो उसका कुछ भाग अवशोषित हो जाता है। यह अवशोषण की मात्रा, विलयन की सान्द्रता, माध्यम की मोटाई, विकिरण की तरंगदैर्घ्य (wavelength) पर निर्भर करती है। विकिरण की तीव्रता को मापकर गुणात्मक रूप से तथा मात्रात्मक (Qualitative and Quantitative) रूप से विलयन में उपस्थित सूक्ष्मजीवों एवं कणों की सान्द्रता द्वारा ज्ञात कर सकते हैं।
5. थर्मामीटर (Thermometer)
संवर्धन कक्ष का तापक्रम नियमित तौर पर जांचने हेतु थर्मामीटर का प्रयोग किया जाता है।
6. प्रकाशमापी (Luxmeter)
संवर्धन कक्ष में प्रकाश की तीव्रता को सदैव नियंत्रित अवस्था में रखा जाता है इस कार्य के लिए प्रकाशमापी की आवश्यकता होती है जो प्रकाश को 100 से 2500 लक्स तक नियंत्रित रखता है।
7. आर्द्रतामापी (Hygrometer)
संवर्धन कक्ष की सापेक्षित आर्द्रता को 60 प्रतिशत तक नियंत्रित करने के लिए हेयर हायग्रोमीटर का उपयोग किया जाता है। निर्जीकरण की अवधारणा (Concept of Sterlçation)
सूक्ष्मजीवाणू सर्वव्यापी होते हैं यह संक्रमण करके भोज्य पदार्थों को नष्ट कर देते हैं अतरू किसी भी भोज्य पदार्थ को जीवाणु रहित करना अत्यन्त आवश्यक हो जाता है। भोज्य पदार्थों अथवा औषशाल में काम आने वाले औजार व अनुसंधान संस्थानों में हॉस्पिटल, लैब व उद्योगों में आवश्यक वस्तुएँ जीवा रहित करना ही निर्जमीकरण (sterlçation) का प्रमुख उद्देश्य है।
वह प्रक्रिया जिसके द्वारा कोई भी पदार्थ, उपकरण सतह (surface) अथवा माध्यम (medium कीटाणुरहित किया जाता है निर्जमीकरण (sterlçation) कहलाती है। इस प्रक्रिया में सभी सूक्ष्मजीवों को उनके बीजाणु (spore) सहित नष्ट किया जाता है। किसी भी प्रकार के सभी बीमारी पैदा करने वाले जी को नष्ट करना (desinfection) कहलाता है।
निर्जमीकरण (sterlçation) निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है
(।) भौतिक एजेन्ट (Physical agents)
;1) सूर्य प्रकाश (Sun light)
(2) शुष्कीकरण (äying)
(3) शुष्कताप (dry heat)
(4) गर्म हवा (Hot air)
(5) नम ताप, पाश्चरीकरण, सामान्य दाब पर पानी से उत्पन्न भाप द्वारा (Boiling steam under normal pressure)
(6) निस्पंदन (Filtration) रू एस्बेस्टस पैड, झिल्ल्यिाँ (membranes)
(7) रेडियोधर्मिता (Radiation)
(8) अल्ट्रासोनिक तथा सोनिक वाइब्रेशन (Ultrasonic and sonic vibrations)
(ठ) रसायन (Chemical)
(1) एल्कोहॉल (Alcohols) रू इथाइल आइसोप्रोपाइल, ट्राइक्लोरोब्यूटेन
(2) एल्डिहाइड (Aldehyde)रू फार्मेल्डिहाइड
(3) रंजित पदार्थ (Dyes)
(4) हेलोजन (Halogens)
(5) फीनोल (Phenols)
(6) सतह सक्रिय कारक (Surface active agents)
(7) मिटैलिक लवण (Metallic salts)
(8) गैस (Gases) रू इथाइलीन ऑक्साइड (Ethylene oxide),
1. सूर्य प्रकाश (Sunlight)
सूर्य का प्रकाश जीवाणुओं की वृद्धि रोकने में सहायक होता है और बैक्टीरियानाशक है। अतः प्राकृतिक परिस्थितियों में यह निर्जमीकरण (sterlçation) करने में प्रमुख भूमिका निभाता है। इसमें पराबैंगनी किरणें व ओजोन प्रमुख हैं।
ऊष्णकटिबन्धीय राष्ट्रों (tropical countries) में पराबैंगनी किरणें व सीधी गर्म किरणें मिलकर रोगनाश में सहायक होती हैं। 2. शुष्कीकरण (äying) .
जीवाणुओं की वृद्धि के लिये नमी अत्यन्त आवश्यक कारक है अतः वायु में शुष्कीकरण द्वारा कुछ कीटाणु समाप्त हो जाते हैं परन्तु यह प्रभावकारी नहीं सिद्ध हुआ है क्योंकि बैक्टीरिया स्पोर (spores) शुष्कीकरण में नष्ट नहीं हो पाते हैं।
3. ताप (Heat)
जीवाणु के निर्जीकरण (sterlçation) में ताप सबसे विश्वसनीय विधि है। ऐसे पदार्थ जो अधिक ताप पर नष्ट हो सकते हैं उन्हें निम्न ताप पर अधिक दिन तक रख कर सुरक्षित रखा जाता है। इस प्रक्रिया में निम्नलिखित कारक प्रमुख हैं जो प्रभावित करते हैं-
(1) शुष्क अथवा नम ताप अर्थात् ताप की प्रकृति
(2) ताप जिस अवधि के लिए दिया गया हो
(3) जीवाणुओं की मात्रा
(4) जीवाणुओं की प्रकृति
(5) वह पदार्थ जो निर्जमीकृत (sterlçe) किया जाना हो
तापमान निम्न प्रकार का दिया जा सकता है
(प) गर्म हवा अवन (Hot air oven)
(पप) शुष्क ताप (äy heat)
(पपप) इन्सरनेशन (Incineration)
(प) गर्म हवा अवन (hot air oven) रू कांच के उपकरण जैसे पैट्रीप्लेट्स, बीकर, फ्लास्क व औजार सामान्यतया अवन की शुष्क ऊष्मा द्वारा निर्जमीकृत किये जाते हैं। इसके लिए 100°C से 300°C तक के तापमान पर 1 घंटा रखने पर यह निर्जमीकृत हो जाते हैं। शुष्क ताप द्वारा जीवाणुओं का प्रोटीन नष्ट हो जाता है।
(पप) शुष्क ताप (äy heat)रू इस विधि में जीवाणु संरोपण (innoculum) के दौरान प्रयोग किये जाने वाले सामान जैसे चिमटी, संरोपण सूचिका अथवा लूप (innoculation needle or loop) को निर्जमीकृत करने हेतु स्पिरिट में भिगो कर जलती अग्नि की लौ में लाल होने तक (रक्ताभ) होने तक रखा जाता है। यह प्रक्रिया दो-तीन बार पुनः दोहराई जाती है। तत्पश्चात् इन औजारों को संरोपण के लिए प्रयोग करते हैं। संवर्धन नलिका (culture tube) का प्लग हटाते समय उसके मुंह को लौ के पास रखकर गर्म कर लिया जाता है जिससे संवर्धन कीटाणुरहित हो।
(पपप) इन्सरनेशन (Incineration) रू इस विधि द्वारा ड्रेसिंग, प्लास्टिक जैसे च्टब्. पॉलीथीन इत्यादि निर्जमीकृत किये जाते हैं।
4. नम ताप (Moist Heat)
(प) पाश्चराइजेशन (Pasteurçation) रू इस विधि में खाद्य पदार्थों को ऊष्म विधियों से निर्जमीकत करने के बजाय नम ताप पर निम्न ऊष्मा द्वारा उनके कीटाणु नष्ट किये जाते हैं। इस विधि में 63°C तापमान पर आधा घंटा तक अथवा 72°C तापमान पर 20 मिनट तक रखकर एकदम से 13°C पर ठंडा कर लिया जाता है। इस प्रक्रिया में बीजाणु रहित कीटाणु मायक्रोबेक्टीरिया, सालमोनेला, ब्रूसली इत्यादि नष्ट हो जाते हैं।