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क्लोनिंग स्थल (Cloning rites) , जीन क्लोनिंग हेतु संवाहक (vector for gene cloning) , PCR (polymerase chain reaction)
3. क्लोनिंग स्थल (Cloning rites in hindi) : वाहक में प्रतिबंधन एंजाइम के लिए एक ही पहचान स्थल होना चाहिए अन्यथा वाहक कई स्थानों से कट सकता है।
PBR322 नामक प्लाज्मिड में टेट्रासाइक्लिन प्रतिरोधी (tet R) एवं एपिसिलिन प्रतिरोधी (amp R) जीन होते है।
इनमे से अगर टेट्रासाइक्लिन प्रतिरोधी (tet R) जीन के प्रतिबंधन स्थल पर कोई विजातीय DNA जोड़ा जाता है तो टेट्रासाइक्लिन के प्रति प्रतिरोध समाप्त हो जाता है।
ऐसे पुनर्योगज प्लाज्मिड युक्त रूपांतरजो (जीवाणुओं) को एंपीसिलिन युक्त माध्यम पर स्थानांतरित करने पर वर्धन प्रदर्शित करते है।
ये रूपान्तरज टेट्रासाइक्लीन युक्त माध्यम पर वृद्धि नहीं करते क्योंकि विजातीय डीएनए के निवेशन से टेट्रासाइक्लिन प्रतिरोधी जीन निष्क्रिय हो जाता है।
इस प्रकार रूपान्तरजो और पुनर्योगजो का चुनाव किया जा सकता है।
प्रतिजैविको के निष्क्रिय होने पर पुनर्योगजो का चयन नहीं हो पाटा।
अत: वैकल्पिक वरण योग्य चिन्हको का विकास हुआ।
ये चिन्हक क्रोमोजैनिक (वर्णोंकोत्पादकी) पदार्थ की उपस्थिति में रंग उत्पन्न करते है।
यदि B-गैलेक्टोसाइडेज जीन युक्त प्लाज्मिड जीवाणु कोशिका में होती है तो क्रोमो जेनिक पदार्थ की उपस्थिति में नीले रंग की कोलोनी बनती है।
पुनर्योगज प्लाज्मिड में B-गलेक्टोसाइडेज जीन वाले खंड को हटाकर जब वांछित खंड जोड़ा जाता है तो ऐसे पुनर्योगज प्लाज्मिड वाली जीवाणु कॉलोनी में कोई रंग उत्पन्न नहीं होता इन्हें पुनर्योगज कॉलोनी के रूप में पहचाना जा सकता है। पुनर्योगज प्लाज्मिड में B-गैलेक्टोसाइडेजएंजाइम पौधों एवं जन्तुओ में निष्क्रिय हो जाता है जिसे निवेशी निष्क्रियता कहते है।
4. जीन क्लोनिंग हेतु संवाहक (vector for gene cloning) : कुछ जीवाणुओं एवं विषाणुओं द्वारा यूकेरियोटिक कोशिकाओ में जीन स्थानान्तरण किया जाता है।
एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसिपन्स जीवाणु कई द्विबीजपत्री पादपो में रोग उत्पन्न करता है। यह डीएनए के एक खंड जिसे टी-डीएनए कहते है को सामान्य पादप कोशिका में स्थानांतरित कर उन्हें अर्बुद्ध (ट्यूमर) कोशिकाओ में रूपांतरित करता है। ये अर्बुद्ध कोशिकाएँ इस जीवाणु के लिए आवश्यक रसायन बनाती है।
ठीक इसी तरह –
पश्च विषाणु सामान्य जंतु कोशिकाओ को कैंसर कोशिकाओ में रूपान्तरित कर देते है।
इन रोगजनको का उपयोग वांछित जीन स्थानान्तरण के लिए वाहक के रूप में किया जाता है।
जैसे एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसियन्स की TI (ट्यूमर इन्क्लुडिंग) प्लाज्मिड को क्लोनिंग वाहक के रूप में रूपांतरित किया गया है। अब यह रूपान्तरित प्लाज्मिड पादपों में रोग उत्पन्न नहीं करती बल्कि वांछित जीनो को विभिन्न पादपो में स्थानान्तरण के लिए काम में लायी जाती है।
इसी प्रकार पश्च विषाणु को भी अहानिकारक बनाकर वाहक के रूप में काम में लाया जाता है।
5. सक्षम परपोषी जीव (पुर्नयोगज डीएनए के साथ रूपान्तरण हेतु ) : पुनयोगज DNA को जीवाणु कोशिका (परपोषी) में प्रवेश कराने से पहले जीवाणु कोशिका को द्विसंयोजन धनायन (डाइबैलेंट धनायन) जैसे Ca++ की विशिष्ट सांद्रता से संसाधित किया जाता है।
जीवाणु कोशिकाओ की कोशिका भित्ति में स्थित छिद्रों में डीएनए प्रवेश कर जाता है।
ऐसी जीवाणु कोशिकाओ को बर्फ पर रखकर इसमें पुनर्योगज डीएनए को बल पूर्वक प्रवेश कराते है।
इसके बाद कुछ समय के लिए इन्हें 42 डिग्री सेल्सियस पर रखकर पुनः बर्फ पर रखा जाता है। इससे पुनर्योगज डीएनए जीवाणु कोशिका में प्रवेश कर जाता है।
परपोषी कोशिका में पुनर्योगज डीएनए को प्रवेश कराने की कुछ अन्य विधियाँ –
(i) सूक्ष्म अन्त: क्षेपण (microinjection) : इस विधि में पुनर्योगज डीएनए को सीधे ही जंतु कोशिका के केन्द्रक में प्रवेश करा दिया जाता है।
(ii) जीनगन या बायोलिस्टिक (gene gun or biolistics) : इस विधि में डीएनए से आवृत सोने या टंगस्टन के सूक्ष्म कणों को पादप कोशिका में उच्च वेग के साथ प्रवेश कराया जाता है।
(iii) हानिरहित रोगजनक वाहक (harmless pathogen vector) : ये परपोषी कोशिका को रोगग्रस्त नहीं करते बल्कि पुनर्योगज डीएनए को परपोषी में स्थानांतरित करते है।
PBR322 नामक प्लाज्मिड में टेट्रासाइक्लिन प्रतिरोधी (tet R) एवं एपिसिलिन प्रतिरोधी (amp R) जीन होते है।
इनमे से अगर टेट्रासाइक्लिन प्रतिरोधी (tet R) जीन के प्रतिबंधन स्थल पर कोई विजातीय DNA जोड़ा जाता है तो टेट्रासाइक्लिन के प्रति प्रतिरोध समाप्त हो जाता है।
ऐसे पुनर्योगज प्लाज्मिड युक्त रूपांतरजो (जीवाणुओं) को एंपीसिलिन युक्त माध्यम पर स्थानांतरित करने पर वर्धन प्रदर्शित करते है।
ये रूपान्तरज टेट्रासाइक्लीन युक्त माध्यम पर वृद्धि नहीं करते क्योंकि विजातीय डीएनए के निवेशन से टेट्रासाइक्लिन प्रतिरोधी जीन निष्क्रिय हो जाता है।
इस प्रकार रूपान्तरजो और पुनर्योगजो का चुनाव किया जा सकता है।
प्रतिजैविको के निष्क्रिय होने पर पुनर्योगजो का चयन नहीं हो पाटा।
अत: वैकल्पिक वरण योग्य चिन्हको का विकास हुआ।
ये चिन्हक क्रोमोजैनिक (वर्णोंकोत्पादकी) पदार्थ की उपस्थिति में रंग उत्पन्न करते है।
यदि B-गैलेक्टोसाइडेज जीन युक्त प्लाज्मिड जीवाणु कोशिका में होती है तो क्रोमो जेनिक पदार्थ की उपस्थिति में नीले रंग की कोलोनी बनती है।
पुनर्योगज प्लाज्मिड में B-गलेक्टोसाइडेज जीन वाले खंड को हटाकर जब वांछित खंड जोड़ा जाता है तो ऐसे पुनर्योगज प्लाज्मिड वाली जीवाणु कॉलोनी में कोई रंग उत्पन्न नहीं होता इन्हें पुनर्योगज कॉलोनी के रूप में पहचाना जा सकता है। पुनर्योगज प्लाज्मिड में B-गैलेक्टोसाइडेजएंजाइम पौधों एवं जन्तुओ में निष्क्रिय हो जाता है जिसे निवेशी निष्क्रियता कहते है।
4. जीन क्लोनिंग हेतु संवाहक (vector for gene cloning) : कुछ जीवाणुओं एवं विषाणुओं द्वारा यूकेरियोटिक कोशिकाओ में जीन स्थानान्तरण किया जाता है।
एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसिपन्स जीवाणु कई द्विबीजपत्री पादपो में रोग उत्पन्न करता है। यह डीएनए के एक खंड जिसे टी-डीएनए कहते है को सामान्य पादप कोशिका में स्थानांतरित कर उन्हें अर्बुद्ध (ट्यूमर) कोशिकाओ में रूपांतरित करता है। ये अर्बुद्ध कोशिकाएँ इस जीवाणु के लिए आवश्यक रसायन बनाती है।
ठीक इसी तरह –
पश्च विषाणु सामान्य जंतु कोशिकाओ को कैंसर कोशिकाओ में रूपान्तरित कर देते है।
इन रोगजनको का उपयोग वांछित जीन स्थानान्तरण के लिए वाहक के रूप में किया जाता है।
जैसे एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसियन्स की TI (ट्यूमर इन्क्लुडिंग) प्लाज्मिड को क्लोनिंग वाहक के रूप में रूपांतरित किया गया है। अब यह रूपान्तरित प्लाज्मिड पादपों में रोग उत्पन्न नहीं करती बल्कि वांछित जीनो को विभिन्न पादपो में स्थानान्तरण के लिए काम में लायी जाती है।
इसी प्रकार पश्च विषाणु को भी अहानिकारक बनाकर वाहक के रूप में काम में लाया जाता है।
5. सक्षम परपोषी जीव (पुर्नयोगज डीएनए के साथ रूपान्तरण हेतु ) : पुनयोगज DNA को जीवाणु कोशिका (परपोषी) में प्रवेश कराने से पहले जीवाणु कोशिका को द्विसंयोजन धनायन (डाइबैलेंट धनायन) जैसे Ca++ की विशिष्ट सांद्रता से संसाधित किया जाता है।
जीवाणु कोशिकाओ की कोशिका भित्ति में स्थित छिद्रों में डीएनए प्रवेश कर जाता है।
ऐसी जीवाणु कोशिकाओ को बर्फ पर रखकर इसमें पुनर्योगज डीएनए को बल पूर्वक प्रवेश कराते है।
इसके बाद कुछ समय के लिए इन्हें 42 डिग्री सेल्सियस पर रखकर पुनः बर्फ पर रखा जाता है। इससे पुनर्योगज डीएनए जीवाणु कोशिका में प्रवेश कर जाता है।
परपोषी कोशिका में पुनर्योगज डीएनए को प्रवेश कराने की कुछ अन्य विधियाँ –
(i) सूक्ष्म अन्त: क्षेपण (microinjection) : इस विधि में पुनर्योगज डीएनए को सीधे ही जंतु कोशिका के केन्द्रक में प्रवेश करा दिया जाता है।
(ii) जीनगन या बायोलिस्टिक (gene gun or biolistics) : इस विधि में डीएनए से आवृत सोने या टंगस्टन के सूक्ष्म कणों को पादप कोशिका में उच्च वेग के साथ प्रवेश कराया जाता है।
(iii) हानिरहित रोगजनक वाहक (harmless pathogen vector) : ये परपोषी कोशिका को रोगग्रस्त नहीं करते बल्कि पुनर्योगज डीएनए को परपोषी में स्थानांतरित करते है।
पुनर्योगज DNA तकनीक के प्रक्रम (process of recombinant dna technology)
इसके प्रमुख चरण निम्नलिखित है –
(1) डीएनए का पृथक्करण : वांछित DNA वाली कोशिका का चयन कर उनका लयन (lysis) किया जाता है , इसके लिए कोशिका को लाइसोजाइम (जीवाणु) सेल्युलोज (पादप कोशिका) व काइटीनेज (कवक) एंजाइम में संसाधित किया जाता है।
डीएनए को हिस्टोन प्रोटीन व RNA से अलग करने के लिए प्रोटीएज व राइबो न्यूक्लिऐज से उपचारित किया जाता है।
शोधित डीएनए को अवक्षेपित करने के लिए द्रुतशीतित एथेनोल मिलाया जाता है।
(2) डीएनए को विशिष्ट स्थानों से काटना : प्रतिबंधन एंजाइम को प्राप्त शोधित डीएनए के साथ ईष्टतम परिस्थितियों में ओवन में रखा जाता है। एगारोज जेल इलेक्ट्रोफोरेसिस द्वारा प्रतिबंधन एंजाइम के पाचन का नियंत्रण किया जाता है। ऋण आवेशित डीएनए अणु धनावेशित इलेक्ट्रोड (एनोड) की ओर जाते है।
वाहक व विदेशी डीएनए को एक ही प्रतिबंधन एंजाइम द्वारा काटा जाता है।
वांछित डीएनए खंड को वाहक डीएनए के साथ लाइगेज एंजाइम द्वारा जोड़ दिया जाता है।
(3) PCR (polymerase chain reaction) का उपयोग करते हुए लाभकारी जीन का प्रवर्धन : पीसीआर अर्थात पोलीमरेज श्रृंखला अभिक्रिया द्वारा डीएनए के छोटे से टुकड़े से ही कुछ ही घंटो में कई प्रतियाँ बनायीं जा सकती है। इसमें सामान्य डीएनए पोलीमरेज के स्थान पर टेक DNA पोलीमरेज एंजाइम काम में लिया जाता है। यह एन्जाइम thermus aquaticus नामक जीवाणु से प्राप्त होता है। यह एंजाइम प्राइमर को बढाता है।
टेक डीएनए पोलीमरेज एन्जाइम व उपक्रमको (प्राइमर) के दो समुच्च द्वारा वांछित डीएनए खंड की अनेक प्रतिकृतियाँ बनाई जा सकती है।
यह प्रक्रिया बार बार दोहराकर लगभग एक अरब गुना प्रतिरूप बनाये जा सकते है।
(4) पुनर्योगज डीएनए का परपोषी कोशिका या जीव में स्थानान्तरण (निवेशन) : जब ग्राही कोशिका पुनर्योगज DNA को ग्रहण करने में सक्षम हो जाती है तो किसी भी उपर्युक्त विधि से डीएनए को ग्राही कोशिका में प्रवेश कराया जाता है।
यदि एम्पीसिलीन प्रतिरोधी जीन युक्त पुनर्योगज डीएनए को ई.कोलाई में प्रवेश कराया जाता है तो रूपांतरज कोशिकाएं तो एन्पिसिलिन युक्त माध्यम पर वृद्धि करती है जबकि अरूपांतरज कोशिकाओ की वृद्धि नहीं होती।
यहाँ एम्पिसिलिन का प्रतिरोधी जीन वरण योग्य चिन्हक कहलाता है।
(5) बाहरी जीन उत्पाद प्राप्त करना : वांछित जीन युक्त परपोषी कोशिकाओ को छोटे पैमाने पर प्रयोगशाला में संवर्धित किया जा सकता है।
इस संवर्धन से विभिन्न तकनीको द्वारा प्रोटीन का निष्कर्षण व शोधन किया जाता है।
यदि कोई प्रोटीन कूटलेखन (इनकोडिंग) जीन किसी विषमजात (हेटेरोलोगस) परपोषी में अभिव्यक्त होता है तो इसे पुनर्योगज प्रोटीन कहते है।
ताजा पोषक माध्यम में कोशिकाओ की सक्रियता व संख्या अधिकतम बनी रहती है जिससे वांछित प्रोटीन भी अधिक प्राप्त होता है।
बायोरिएक्टर द्वारा 100-1000 लीटर तक संवर्धन का संसोधन किया जा सकता है।
बायोरिएक्टर एक बड़े बर्तन के समान होता है जिसमें सूक्ष्मजीवो , पादप , जंतु या मानव कोशिकाओ की सहायता से कच्चे पदार्थ को जैविक रूप से विशिष्ट उत्पादों एवं व्यष्टि एंजाइमो आदि में परिवर्तन किया जा सकता है।
बायो रिएक्टर से वांछित उत्पाद प्राप्त करने के लिए अनुकूलतम परिस्थितयाँ जैसे ताप , pH , क्रियाधार , लवण , विटामिन व ऑक्सीजन आदि उपलब्ध करायी जाती है।
विलोडित हौज बायोरिएक्टर : यह बेलनाकार होता है जिसका आधार घुमावदार होने से अंतर्वस्तु के मिश्रण में सहायता मिलती है।
विलोडक मिश्रण को समरूप बनाता है व ऑक्सीजन को समान रूप से वितरित करता है।
थोड़े थोड़े समय बाद रिएक्टर में बुलबुलों के रूप में हवा प्रवेश करायी जाती है।
इस रिएक्टर में प्रक्षोभक यंत्र ऑक्सीजन प्रदाय यंत्र , झाग नियंत्रण तंत्र , pH नियंत्रण तंत्र एवं प्रतिचयन प्रद्वार लगा रहता है। प्रतिचयन प्रद्वार द्वारा संवर्धन की थोड़ी थोड़ी मात्रा समय समय पर निकाली जाती है।
चरघातांकी प्रावस्था : संवर्धन माध्यम की थोड़ी सी मात्रा निकालकर नया संवर्धन माध्यम की डाला जाता है जिससे कोशिकाएं लम्बे समय तक सक्रीय रहती है। वृद्धि की इस अवस्था को चरघातांकी प्रावस्था कहते है।
(6) अनुप्रवाह संसाधन (downstream processing) : संवर्धन द्वारा जैव संश्लेषण पूरा होने पर वांछित उत्पादों का पृथक्करण एवं शुद्धिकरण किया जाता है। इसे सामूहिक रूप से अनुप्रवाह संसाधन कहते है।
उत्पाद औषधीय महत्व का होने पर उसका चिकित्सकीय परिक्षण किया जाता है।
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