साइक्लोममैटा (class cyclostomata in hindi) , साइक्लो मेटा की परिभाषा क्या है , उदाहरण , लक्षण

वर्ग : साइक्लोममैटा (class cyclostomata in hindi) (साइक्लो मेटा)
सामान्य लक्षण 
  1. शरीर सर्पमीन समान लम्बा।
  2. मध्यवर्ती पंख उपास्थीय पंख “रश्मियों से युक्त” लेकिन युग्मित उपांग नहीं होते। पुच्छ द्विसमपालि।
  3. त्वचा कोमल , चिकनी , एककोशिक श्लेष्मा ग्रंथियों से युक्त , लेकिन शल्क नहीं होते।
  4. धड़ तथा पुच्छ की मांसपेशियां अन्तरापेशी पट्टो द्वारा पृथक आदिपेशीखंडो में खंडित।
  5. अन्त:कंकाल तंतुमय तथा उपास्थियुक्त। नोटोकॉर्ड जीवनपर्यन्त स्थायी। नोटोकॉर्ड के ऊपर अपूर्ण तंत्रिका चाप अथवा आदिचापिकाएं आद्य कशेरुकाओं को प्रदर्शित करती है।
  6. जबड़े अनुपस्थित। (समूह ऐग्नेथा)
  7. मुख अधरीय , चूषक तथा गोल , इसलिए वर्ग का नाम साइक्लोस्टोमेटा (cyklos = वृत्ताकार + stoma = मुख)
  8. पाचन तंत्र में आमाशय का अभाव। आंत्र टिफ्लोसोल नामक वलन से युक्त।
  9. फेरिंक्स के थैली समान कोष्ठों में 5 से 16 जोड़े क्लोम , इसलिए वर्ग का दूसरा नाम मारसीपोब्रैंकाई। गिल छिद्र 1 से 16 जोड़े।
  10. ह्रदय 1 आलिन्द तथा 1 निलय सहित द्विकक्षीय। क्लोम क्षेत्र में अनेक महाधमनी चाप। शंकुक तथा वृक्कीय निवाहिका तंत्र नहीं होते। रुधिर श्वेत रुधिराणुओ तथा केन्द्रक युक्त वृत्ताकार , लाल रुधिराणुओं सहित। शरीर ताप परिवर्तनशील अथवा असमतापी।
  11. वृक्क जननमूत्र पैपिला को वाहिनियो सहित 2 मध्यवृक्कीय वृक्क।
  12. विभेदित मस्तिष्क सहित पृष्ठ तंत्रिका रज्जु। कपाल तंत्रिकाओं 8 से 10 जोड़ी।
  13. मात्र एक मध्यवर्ती घ्राण कोष तथा एक मध्यवर्ती नासारंध्र। एक अथवा दो अर्द्धवृत्ताकार नलियों से युक्त श्रवण अंग।
  14. लिंग पृथक अथवा संयुक्त। बिना जनद वाहिनी के केवल एक बड़ा जनद।
  15. निषेचन बाह्य। परिवर्धन प्रत्यक्ष अथवा एक लम्बी डिम्भक अवस्था द्वारा।
वर्गीकरण 
जबड़ेहीन मछलियों की लगभग 50 जीवित जातियाँ मान्य है। ये दो प्रमुख पेट्रोमाइजोंशिफोर्मिज तथा मिक्सीनिफॉर्मीज में रखी जाती है जिनका उपवर्ग , गण अथवा कुल , विभिन्न प्रकार से नामकरण किया जाता है। क्योंकि उनमे एक गोल जबड़ेहीन मुख होता है , ये साइक्लोस्टोमेटा वर्ग में मिला दी गयी है। इन दोनों समूहों की समानता सम्भवतया अभिसारी विकास का परिणाम है। फिर भी वे महत्वपूर्ण तथा मौलिक आकारिकीय अंतर प्रदर्शित करते है जिन्हें उनके दीर्घकालीन जातिवृत्तीय पृथक्करण तथा भिन्न स्वभाव और आवास के कारण माना जा सकता है। उनके अन्तरो की गणना तालिका में की गयी है।
गण 1. पेट्रोमाइजोंशिफॉर्मीज (petromyzontiformes) :
petros = पत्थर , stone + myzon = चूसना।
  • मुख प्रतिपृष्ठ। अनेक श्रृंगीय दांतों से युक्त एक चूषक मुखकीप में स्थित।
  • नासारंध्र पृष्ठीय। नासा हाइपोफिसी कोश पीछे बंद , ग्रसनी से सम्बन्धित नहीं होता।
  • क्लोम कोष्ठ तथा क्लोम छिद्र , प्रत्येक 7 जोड़े , जो एक पृथक श्वसन ग्रसनी में खुलते है।
  • पृष्ठ पंख भली भाँती विकसित।
  • क्लोम कंडी पूर्ण।
  • रीढ़ तंत्रिकाओं की पृष्ठ तथा प्रतिपृष्ठ मूले पृथक होती है।
  • कर्ण 2 अर्द्धवृत्ताकार नलिकाओं सहित।
  • अंडे असंख्य , छोटे। लम्बी डिम्भक अवस्था सहित अप्रत्यक्ष परिवर्धन।
  • सागरीय तथा स्वच्छ जलीय , दोनों प्रकार के।
उदाहरण : लैम्प्रेज। 30 से अधिक जातियां। पेट्रोमाइजॉन , लैम्पेट्रा , एन्टोस्फ़ीरस , इक्थिओमाइजॉन।
गण 2. मिक्सीनिफॉर्मीज (myxiniformes) : myxa = अवपंक + oidea = प्रकार का।
  • चार जोड़े स्पर्शकों तथा कुछ दांतों सहित अन्तस्थ मुख। मुखकिप नहीं।
  • नासारंध्र अन्तस्थ। नासा हाइपोफिसी वाहिनी पीछे ग्रसनी में खुलती है।
  • क्लोम कोष्ठ 6 से 15 जोड़े। क्लोम छिद्र 1 से 15 जोड़े।
  • पृष्ठ पंख क्षीण अथवा अनुपस्थित।
  • क्लोम कंडी कम विकसित।
  • रीढ़ तंत्रिकाओं की पृष्ठ और प्रतिपृष्ठ मुलें संयुक्त।
  • कर्ण केवल एक अर्द्धवृत्ताकार नलिका सहित।
  • अंडे थोड़े , बड़े। परिवर्धन प्रत्यक्ष।
  • सब समुद्री।

उदाहरण : हैगमीन। 15 जातियाँ। मिक्साइन , एप्टाट्रीटस अथवा डेलोस्टोमा।