JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

सिनेमा की परिभाषा क्या हैं , हिंदी सिनेमा किसे कहते हैं , इतिहास , विशेषता , अर्थ , उद्देश्य cinema definition in hindi

cinema definition in hindi सिनेमा की परिभाषा क्या हैं , हिंदी सिनेमा किसे कहते हैं , इतिहास , विशेषता , अर्थ , उद्देश्य ?
सिनेमा
नृत्य एवं नाटक, ने विगत् वर्षों में एक अभिजात्य गुणवत्ता एवं भावना को हासिल किया। सिनेमा गरीब एवं आम लोगों के मनोरंजन का साधन इसकी सुगम पहुंच एवं सस्ता होने के कारण बना। उल्लेखनीय रूप से, भारत विश्व में सर्वाधिक संख्या में फिल्में बनाने वाला देश है।
हिंदी सिनेमा
ल्युमि, ब्रदर्स ने जब 19 शताब्दी के आखिरी दशक में सिनेमा का आविष्कार किया तब कौन जागता था कि यह आविष्कार आने वाले वर्षों में करोड़ों लोगों के मनोरंजन का अकेला और सस्ता साधन बनने वाला है। फ्रांस में पहले फिल्म प्रदर्शन के लगभग सात महीने बाद बंबई में 7 जुलाई, 1896 को पहली बार ल्युमिए ब्रदर्स की फिल्मों का प्रदर्शन हुआ था। 1899 में एच.एस. भाटवेडकर ने ही पहली न्यूज रील बनाई। पहली फीचर फिल्म बनाने का श्रेय दादा साहब (घुंडीराज गोविंद) फाल्के को जाता है जिन्होंने 1913 में पहली मूक फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ का निर्माण किया था। मूक फिल्मों का निर्माण लगभग दो दशक तक होता रहा। 1934 तक लगभग 1300 मूक फिल्मों का निर्माण हुआ था, 1931 में जब पहली बोलती फिल्म का निर्माण हुआ था, वह वर्ष मूक फिल्मों के चरमोत्कर्ष का भी था। इस वर्ष कुल 200 मूक फिल्मों का निर्माण हुआ था, लेकिन 1932 में यह संख्या घटकर सिर्फ 64 रह गई थी और मूक फिल्मों के निर्माण के आखिरी वर्ष 1934 में सिर्फ 7 ऐसी फिल्में बनीं।
1916 में आर. नटराज मुदलियार ने कीचक वधम नाम की फिल्म दक्षिण में बनाई थी। उसके अगले वर्ष जे.एफ. मदन ने कलकत्ता में सत्यवादी हरिश्चंद्र नामक फिल्म बनाई। 1920 में बंबई, कलकत्ता और मद्रास में फिल्म सेंसर बोर्ड स्थापित किए गए। इसी वर्ष फिल्मी पत्रिका ‘बिजली’ बंगला भाषा में कलकत्ता से प्रकाशित होने लगी। 1920 में ही इटली के सहयोग से नल दमयंती नामक फिल्म का निर्माण हुआ जो किसी अन्य देश के सहयोग से बनने वाली प्रथम भारतीय फिल्म थी। मूक फिल्मों की कथावस्तु अधिकांशतः पौराणिक-धार्मिक या कभी-कभी सामाजिक होती थी। 1925 में बाबूराम पेंटर ने सावकारी पाश नाम से मूल फिल्म बनाई जिसे कई फिल्म समीक्षक पहली भारतीय कला फिल्म मानते हैं। वी. शांताराम ने इनमें विज्ञान की भूमिका निभाई थी जिसकी जमीन एक लालची साहूकार द्वारा छीन ली जाती है और उसे मजबूरन शहर आकर मिल में मजदूरी करनी पड़ती है। सावकारी पाश को पहली यथार्थवादी फिल्म भी कहा जा सकता है।
1931 में प्रथम बोलती फिल्म बनने से पूर्व भारत में विदेशी सवाक् फिल्मों का प्रदर्शन शुरू हो चुका था। इन्हीं से प्रेरित होकर आर्देशिर एमण् ईरानी ने 1931 में पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ का प्रदर्शन किया। तमिल भाषा में बनी पहली फिल्म कालिदास का निर्माण भी 1931 ई. में हुआ था जिसका निर्देशन एच.एमण् रेड्डी ने किया था। सवाक् फिल्मों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ने लगी। 1932 में यह संख्या 84 हो गई। 1947 तक लगभग 15 भाषाओं में फिल्में बनने लगी थीं और अकेले 1947 में कुल 280 फिल्मों का प्रदर्शन हुआ था।
तीसरे-चैथे दशक में फिल्में अपनी निर्माण कंपनियों के नाम से पहचानी जाती थीं। बोम्बे टाॅकीज प्रभात फिल्म्स, न्यू थियेटर्स, फिल्मिस्तान आदि कुछ प्रसिद्ध फिल्म कंपनियां थीं। दक्षिण में भी ए.वी. मेयप्पन (ए.वी.एमण्) जैमिनी आदि कंपनियां स्थापित हुईं।
स्वतंत्रता से पूर्व के दौर में फिल्मों को सेंसर के डर से सीधे तौर पर आजादी की लड़ाई का वाहक बनाना तो संभव नहीं हुआ, परंतु पौराणिक-ऐतिहासिक कथाओं के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम की अंतर्वस्तु को अभिव्यक्ति बराबर दी जाती रही। इसके कारण कई बार ऐसी फिल्मों को प्रतिबंध का भी सामना करना पड़ा। फिल्मों के इस दौर में दूसरा महत्वपूर्ण काम समाज सुधार के कार्य में योग देना रहा। 1936 में बनी ‘अछूत कन्या’ ने सामाजिक न्याय के प्रश्न को केंद्र में रखा तो इसी वर्ष मराठी में बनी संत तुकाराम को सिनेमा के इतिहास में क्लासिक का दर्जा प्राप्त है। 1936 का वर्ष भारत में वामपंथी आंदोलन के उदय का दौर था और इसका असर फिल्मों पर भी दिखाई दिया। इस दृष्टि से दुनिया ना माने (1937, हिंदी), पुकार (1939, हिंदी), त्यागभूमि (1939, तमिल), रामशास्त्री (1944, मराठी/हिंदी), रोटी (1942, हिंदी), नीचा नगर (1946, हिंदी) अन्य उल्लेखनीय फिल्में हैं। इन सभी फिल्मों में यथार्थवादी शैली में सामाजिक अंतर्विरोधों को चित्रित करने का सफल और कलात्मक प्रयत्न किया गया था। इस दौर के प्रमुख फिल्मकारों में वी शांताराम, नितिन बोस, पी.सी. बरुआ, धीरेन गांगुली, हिमांशु राय, सोहराब मोदी, चेतन आनंद, मेहबूब खान, के. सुब्रह्मण्यम, वी. दामले, एस. फùोलाल. ख्वाजा अहमद अब्बास आदि के नाम गिनाए जा सकते है।
अंग्रेजी शासन के दौरान स्थापित सेंसर बोर्ड बाद में भी बने रहे परंतु राजनीतिक- सामाजिक सिनेमा बनाने में फिल्मकारों को अधिक स्वतंत्रता प्राप्त हुई। तकनीकी दृष्टि से भी अब विश्व सिनेमा काफी आगे जा चुका था जिसका असर भारतीय सिनेमा पर भी स्पष्ट देखा जा सकता था। इस काल में जो फिल्मकार फिल्म निर्माण के क्षेत्र में सक्रिय हुए उन्हें विश्व सिनेमा में होने वाले बदलावों की अधिक पुख्ता जागकारी और गहरी समझ थी। इस दौर की कई फिल्मों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। पाथेर पांचाली (1955), चारुलता (1964), चेम्मीन (1965), जागते रहो (1956), दो बीघा जमीन (1953) इस दृष्टि से उल्लेखनीय फिल्में थीं। दक्षिण में इसी दौर में एन. टी. रामाराम (तेलुगु), शिवाजी गणेशन और एमण्जी रामचंद्रन (तमिल), प्रेम गजीर (मलयालम) और राजकुमार (कन्नउद्ध के नायकत्व वाली फिल्मों ने विराट लोकप्रियता प्राप्त की और ये अभिनेता क्षेत्रीय नायकों के रूप में लोगों के दिलों पर शासन करने लगे।
1947 के बाद और 1970 के पूर्व तक भारतीय समाज में आशा और आस्था का वर्चस्व कायम था। लोगों को विश्वास था कि नये परिवर्तनों से समाज में ऐसे बदलाव आयेंगे जो आम आदमी के जीवन में खुशहाली लाएंगे।
1970 के आसपास बिगड़ते हालात ने जनता को सामूहिक प्रतिरोध के लिए प्रेरित किया, जिसका नतीजा वामपंथी एवं जनवादी आंदोलन के रूप में दिखाई दिया।
इस नये बदलाव का असर सिनेमा पर दिखाई दिया। इस नये सिनेमा को नया सिनेमा या समांतर सिनेमा नाम दिया गया। यह यथार्थवाद की परंपरा का ही विकास था परंतु इसने नये प्रयोगों के लिए भी जमीन तैयार की। यह नया सिनेमा दो तरह का था। एक मणि कौल, कुमार शहानी आदि का प्रयोगशील सिनेमा था तो दूसरी ओर श्याम बेनेगल, गौतम घोष, गोविंद निहलानी, सईद अख्तर मिर्जा, जब्बार पटेल का प्रतिबद्ध सिनेमा।
हिन्दी में ‘नए सिनेमा’ की उल्लेखनीय फिल्में रहीं ‘सारा आकाश’ (बासु चटर्जी), ‘दस्तक’ (रजिन्दर सिंह बेदी), ‘उसकी रोटी’, ‘दुविधा’ (मणि कौल), ‘27 डाउन’ (अवतार कौल), ‘माया दर्पण’ (कुमार साहनी), ‘अनुभव’ (बासु भट्टाचार्य), ‘गरम हवा’ (एमण्एस. सथ्यू) इत्यादि। सत्तर के दशक का अंत आते-आते ऐसे निर्देशक भी सामने आए जिन्होंने उच्च कोटि की कला फिल्में तो बनाईं ही, जिन्हें दर्शकों ने भी भरपूर सराहा। इनमें थीं गोविंद निहलानी की ‘अर्धसत्य’, ‘आक्रोश’, सईद मिर्जा की ‘मोहन जोशी हाजिर हों,’ ‘अलबर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है’, सई परांजपे की ‘स्पर्श’, मुजफ्फर अली की ‘गमन’, केतन मेहता की ‘होली’, बिप्लव राय चैधरी की ‘शोध’।
नया सिनेमा का यह दौर ज्यादा लंबे समय तक जीवित नहीं रह सका। नब्बे के दशक में फिर एक बार लोकप्रिय सिनेमा का ही बोलबाला हो गया। यद्यपि इस सिनेमा में रूमानियत और आदर्शवाद का स्थान अब हिंसा और सैक्स ने लिया।
नब्बे के दशक की शुरुआत में कई अच्छी फिल्में सामने आईं ‘दृष्टि’ (गोविन्द निहलानी), ‘मरुपक्कम’ (सेतुमाधवन), ‘अंजली’ (मणिरत्नम), ‘एक डाॅक्टर की मौत’ (तपन सिन्हा), ‘वास्तुहार’ (अरविंदन की आखिरी फिल्म), ‘आगंतुक’ (सत्यजीत राय की आखिरी फिल्म)।
आखिरी दशक में महिला निर्देशकों ने भी काफी सफल व अच्छी फिल्में दीं। सई परांजपे के अलावा अपर्णा सेन (36 चैरंगी लेन, परोमा), विजया मेहता (पेस्टन जी), मीरा नायर (सलाम बाॅम्बे) ने अपने किस्म की अच्छी फिल्म बनाई हैं।
कला फिल्मों को छोड़ दें तो ‘मुख्यधारा’ की फिल्मों में हिंसा और अश्लील दृश्यों की भरमार होती गई। हास्य फिल्में भी आईं, लेकिन मुख्य रूप से मारधाड़, उत्तेजक नृत्य और कामुक गीतों वाली फिल्मों की प्रचुरता रही। फिर एक नई प्रवृत्ति देखने को मिली। नायक अपने उदात्त रूप से ऊबने लगा। ‘डर’ और ‘खलनायक’ जैसी फिल्मों ने एंटी-हीरो की छवि पेश की। फिर, नायक अपनी कला की विविधता दर्शाने के लिए घाघरा-चोली से लेकर साड़ी पहन एक अलग ही भूमिका में गजर आए। ‘चाची 420’ में कमल हसन ने महिला के रूप में लम्बी भूमिका निभाई, जिसे कई कारणों से सराहा भी गया। इन सबके बीच सूरज बड़जात्या की सामाजिक फिल्मों ने काफी धूम मचाई। ‘नदिया के पार’, ‘मैंने प्यार किया’, ‘हम आपके हैं कौन’ जैसी साफ-सुथरी फिल्मों ने दर्शकों को मारधाड़ व अश्लीलता के बीच स्वस्थ मनोरंजन प्रदान किया। दूसरी तरफ दीपा मेहता ने ‘फायर’ फिल्म बनाकर सांस्कृतिक विवाद खड़ा किया। भारतीय संस्कृति के बेबाक चित्रण के नाम पर कई वर्गें की नाराजगी उन्हें झेलने पड़ी।
भारतीय सिनेमा, जिसे अब उद्योग का दर्जा मिल चुका है, ने 1994 में अपने सौ वर्ष पूरे किए। इस धूमधाम के बीच टेलीविजन चैनलों, वीडियो इत्यादि की वजह से फिल्मों का व्यावसायिक चक्र प्रभावित हुआ है। अब भारतीय सिनेमा का भविष्य कैसा होगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि क्या कम बजट की, कम मारधाड़ व चकाचैंध वाली, सामाजिक समस्याओं पर बनी यथार्थवादी फिल्में फिर से अपना स्थान बना,ंगी या गिजी चैेनलों की बढ़ती लोकप्रियता के सामने प्रभावहीन हो जाएंगी।
1990 के दशक में, रोमांस भरी, मारधाड़ वाली एवं हास्य फिल्मों का निर्माण किया गया। ऐसे दर्शक भी मौजूद थे जो पुरानी कथाओं एवं थीम्स को बेइंतहा पसंद करते थे। नए उभरते सिनेमा ने वैश्वीकरण एवं समय तथा तकनीक के साथ कदमताल किया। उन्नत विशेष प्रभाव, डिजिटल ध्वनि, अंतरराष्ट्रीय अपील, बेहतर पटकथा एवं निगम क्षेत्रों से निवेश सिनेमा के प्रमुख थे। शाहरुख खान, आमिर खान एवं सलमान खान नए सुपर स्टार्स के तौर पर उदित हुए।
नवीन शताब्दी में, बेहद नाटकीय बदलाव आए। नए तरीके एवं शैलियां सामने आयीं और बड़ी संख्या में अभिनेता एवं अभिनेत्रियां इस क्षेत्र में आए लेकिन उतनी ही जल्दी गयब भी हो गए। नए भूमिकाओं, तकनीकों, विषयों एवं तरीकों के अनुप्रयोग पर बल दिया जागे लगा। तारे जमीं पर, फिर मिलेंगे, दिक्शा, एवं पीपली लाइव जैसी फिल्मों ने लोगों को शिक्षित करने का प्रयास किया। सरकार, राजनीति, पेज 3, एवं फैशन उन फिल्मों में से थी जिन्होंने समकालीन समाज एवं राजनीतिक परिदृश्य को प्रतिबिम्बित किया।

Sbistudy

Recent Posts

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

4 weeks ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

4 weeks ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

4 weeks ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

4 weeks ago

चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi

chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…

1 month ago

भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi

first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…

1 month ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now