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वर्ण लेखिकी विधि , क्रोमेटोग्राफी प्रक्रिया क्या है , उदाहरण , किस धातु काशोधन या परिष्करण (chromatography in hindi)
(chromatography in hindi) वर्ण लेखिकी विधि , क्रोमेटोग्राफी प्रक्रिया क्या है , उदाहरण , किस धातु काशोधन या परिष्करण : यह विधि इस सिद्धांत पर आधारित होती है कि किसी मिश्रण में किसी विशेष अधिशोषक पर अलग अलग घटकों का अधिशोषण अलग अलग होता है।
अर्थात इस विधि में किसी शुद्ध धातु और अशुद्धियों के मिश्रण में से जब शुद्ध धातु को पृथक करना होता है तो उसमें एक उचित अधिशोषक रखते है , इस अधिशोषक पर अवयवों की अधिशोषण क्षमता के अनुसार अलग अलग अधिशोषण हो जाता है जिससे उसमें अलग अलग स्तर बन जाते है जो अलग अवयवों को प्रदर्शित करते है , इसमें से शुद्ध धातु के स्तर को अलग करके इस प्रकार शुद्ध धातु प्राप्त कर ली जाती है।
इस प्रक्रिया में पहले मिश्रण को द्रव अथवा गैसीय माध्यम में रखते है और इस मिश्रण को अधिशोषक से गिजारते है , जब इस मिश्रण में से किसी उपयुक्त अधिशोषक को गुजारा जाता है तो इस अधिशोषक पर अलग अलग घटक अलग अलग स्तरों पर अधिशोषित हो जाते है , इसके बाद अधिशोषित घटक को उपयुक्त विलायक या निक्षालक द्वारा निक्षालित कर लिए जाते है अर्थात इन घटकों को इनके स्तर के अनुसार अलग अलग प्राप्त कर लिए जाते है तो शुद्ध अवस्था में प्राप्त होते है।
यह प्रक्रिया तब काम में ली जाती है जब किसी मिश्रण में अवयव सूक्ष्म मात्रा में पाए जाते है और इन अवयवों के रासायनिक गुणों में अधिक अंतर नही पाया जाता है अर्थात अशुद्धियों और शुद्ध पदार्थ के रसायनिक गुण लगभग समान होते है और इनकी मात्रा बहुत कम होती है ऐसी स्थिति में जब शुद्ध पदार्थ को पृथक करना पड़े तो इसके लिए यह प्रक्रम काम में लिया जाता है।
गतिशील माध्यम की भौतिक अवस्था , अधिशोषक पदार्थ की प्रकृति और गतिशील माध्यम के गमन के प्रक्रम पर भी निर्भर करने के कारण इस विधि को वर्ण लेखिकी विधि कहते है।
उदाहरण के लिए एक विधि में कांच की नली लेते है और इसमें Al2O3 का एक स्तम्भ बना होता है तथा एक गतिशील माध्यम होता है जिसमें अवयवो का विलयन उपस्थित रहता है , यह स्तम्भ वर्णलेखिकी या कॉलम क्रोमेटोग्राफी का एक उदाहरण है।
वर्तमान में कई वर्ण लेखिकी प्रक्रम या तकनिकी प्रचलित है जैसे पेपर वर्णलेखिकी , स्तम्भ वर्णलेखिकी , गैस वर्णलेखिकी आदि।
यहाँ निचे चित्र में स्तम्भ वर्णलेखिकी का एक उदाहरण दर्शाया गया है जिससे हम इसे आसानी से समझ सकते है –
अर्थात इस विधि में किसी शुद्ध धातु और अशुद्धियों के मिश्रण में से जब शुद्ध धातु को पृथक करना होता है तो उसमें एक उचित अधिशोषक रखते है , इस अधिशोषक पर अवयवों की अधिशोषण क्षमता के अनुसार अलग अलग अधिशोषण हो जाता है जिससे उसमें अलग अलग स्तर बन जाते है जो अलग अवयवों को प्रदर्शित करते है , इसमें से शुद्ध धातु के स्तर को अलग करके इस प्रकार शुद्ध धातु प्राप्त कर ली जाती है।
इस प्रक्रिया में पहले मिश्रण को द्रव अथवा गैसीय माध्यम में रखते है और इस मिश्रण को अधिशोषक से गिजारते है , जब इस मिश्रण में से किसी उपयुक्त अधिशोषक को गुजारा जाता है तो इस अधिशोषक पर अलग अलग घटक अलग अलग स्तरों पर अधिशोषित हो जाते है , इसके बाद अधिशोषित घटक को उपयुक्त विलायक या निक्षालक द्वारा निक्षालित कर लिए जाते है अर्थात इन घटकों को इनके स्तर के अनुसार अलग अलग प्राप्त कर लिए जाते है तो शुद्ध अवस्था में प्राप्त होते है।
यह प्रक्रिया तब काम में ली जाती है जब किसी मिश्रण में अवयव सूक्ष्म मात्रा में पाए जाते है और इन अवयवों के रासायनिक गुणों में अधिक अंतर नही पाया जाता है अर्थात अशुद्धियों और शुद्ध पदार्थ के रसायनिक गुण लगभग समान होते है और इनकी मात्रा बहुत कम होती है ऐसी स्थिति में जब शुद्ध पदार्थ को पृथक करना पड़े तो इसके लिए यह प्रक्रम काम में लिया जाता है।
गतिशील माध्यम की भौतिक अवस्था , अधिशोषक पदार्थ की प्रकृति और गतिशील माध्यम के गमन के प्रक्रम पर भी निर्भर करने के कारण इस विधि को वर्ण लेखिकी विधि कहते है।
उदाहरण के लिए एक विधि में कांच की नली लेते है और इसमें Al2O3 का एक स्तम्भ बना होता है तथा एक गतिशील माध्यम होता है जिसमें अवयवो का विलयन उपस्थित रहता है , यह स्तम्भ वर्णलेखिकी या कॉलम क्रोमेटोग्राफी का एक उदाहरण है।
वर्तमान में कई वर्ण लेखिकी प्रक्रम या तकनिकी प्रचलित है जैसे पेपर वर्णलेखिकी , स्तम्भ वर्णलेखिकी , गैस वर्णलेखिकी आदि।
यहाँ निचे चित्र में स्तम्भ वर्णलेखिकी का एक उदाहरण दर्शाया गया है जिससे हम इसे आसानी से समझ सकते है –
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