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चिदंबरम मंदिर किसने बनवाया था , chidambaram temple was built by in hindi history
जाने चिदंबरम मंदिर किसने बनवाया था , chidambaram temple was built by in hindi history ?
चिदाम्बरम (11.4° उत्तर, 79.7° पूर्व)
चिदाम्बरम, तमिलनाडु में चेन्नई से लगभग 240 किमी. दूर कुड्डालोर जिले में स्थित है। चिदाम्बरम में नटराज (शिव) का एक भव्य एवं अत्यंत सुंदर मंदिर है, जहां भगवान शिव को लौकिक नर्तक के रूप में दर्शाया गया है। इस मंदिर का निर्माण पल्लवों ने प्रारंभ करवाया था तथा इसे चोलों ने पूरा करवाया। यह उन गिने-चुने मंदिरों में से एक है, जहां भगवान शिव एवं विष्णु को एक साथ दर्शाया गया है। मंदिर की दीवारों पर की गई सुंदर नक्काशी एवं कलात्मक कार्य मंत्रमुग्ध कर देते हैं। यह मंदिर इस दृष्टि से भी विलक्षण है कि यह न केवल भरतनाट्यम की कला के प्रति समर्पित है बल्कि इसमें शिव को मूर्ति रूप में दर्शाया गया है न कि परम्परागत शिव लिंग रूप में। चिदाम्बरम मंदिर की एक अन्य महत्वपूर्ण विशेषता इसके प्रभावशाली गोपुरम है, जो सात मंजिलों तक ऊंचे हैं। शिवगंगा जलाशय एवं हजार खंभों वाला मंडप इस मंदिर की एक अन्य विशेषता है। चिदाम्बरम मंदिर में एक विशाल नृत्य हाल भी है, जहां प्रति वर्ष महाशिवरात्रि के अवसर पर वार्षिक नृत्यांजली महोत्सव का आयोजन किया जाता है। मंदिर के दक्षिणी हिस्से में देश का सबसे बड़ा गणेश मंदिर स्थित है।
प्रसिद्ध पर्यटक स्थल पिछावरम, जहां पर अप्रवाही जल तथा मैंन्ग्रोव हैं, चिदाम्बरम से मात्र 16 किमी. दूर स्थित है।
चम्पा (25°15‘ उत्तर, 87°0‘ पूर्व)
चम्पा, वर्तमान समय का चंपानगर है, जो बिहार के भागलपुर जिले में स्थित है। चम्पा, अंग महाजनपद की राजधानी था तथा बौद्ध साहित्यों में इसका उल्लेख 6 प्रमुख महानगरों में से एक के रूप में किया गया है। बौद्ध काल में यह व्यापारिक एवं वाणिज्यिक गतिविधियों का एक प्रमुख केंद्र था। खुदाई से प्राप्त वस्तुएं दर्शाती हैं कि यहां पर छठी शताब्दी ई.पू. बस्ती हुआ करती थी तथा इसका दुर्गीकरण किया गया था जो कि खंदक से घिरा था। वहां से एनबीपी के ठीकरे, जौहरी के सैलखड़ी के सांचे, पत्थर के मनके तथा उस युग के हाथी दांत की बनी महिलाओं की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं।
महाभारत के समय कर्ण, पांडवों के छठे भाई, ने अंग पर राज्य किया और उसकी राजधानी चम्पा थी। कर्ण के महल चम्पा तथा जाहनुगिरि (आधुनिक सुल्तानगंज) में थे। आज चम्पानगर, कर्ण के महल का स्थल, कर्णगढ़ के नाम से प्रसिद्ध है। पुराणों में इसका एक नाम मालिनी भी प्राप्त होता है। जातक ग्रंथों से ज्ञात होता है कि यह एक समृद्धशाली नगर था, जहां अनेक व्यापारी निवास करते थे। रेशमी वस्त्रों के उत्पादन का यह एक प्रमुख केंद्र था तथा दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में यहां के बुने हुए रेशमी वस्त्र अत्यधिक लोकप्रिय थे। जैन ग्रंथ विविधतीतार्थकल्प में चम्पा को एक तीर्थ बताया गया है, जहां जैन तीर्थंकर वासुपूज्य का जन्म हुआ था। महावीर ने भी इस नगर में वास किया था।
चम्पा के व्यापारियों ने हिन्द-चीन में जाकर एक उपनिवेश स्थापित किया था। बुद्धकाल में यहां ब्रह्मदत्त नाम का शासक शासन करता था। बाद में मगध के शासक बिम्बिसार ने चम्पा को जीत लिया था। चीनी यात्री ह्वेनसांग के विवरणों में भी चम्पा का उल्लेख प्राप्त होता है।
चम्पा से शुंग-कुषाण काल के ईंटों से निर्मित आवास, मनके एवं आहत सिक्के प्राप्त किए गए हैं। टेराकोटा की कुछ वस्तुएं एवं कांसे के सामान से गुप्त एवं पाल शासकों के संबंध में भी जानकारी प्राप्त होती है किंतु समग्र रूप से चम्पा की आर्थिक स्थिति में पराभव आया था। ह्वेनसांग ने भी अपने विवरण में चम्पा की गिरती हुई आर्थिक स्थिति का उल्लेख किया है। वह यह भी बताता है कि सातवीं शताब्दी में यहां के कई बौद्ध मठों को नष्ट कर दिया गया था।
चम्पानेर (22.48° उत्तर, 73.53° पूर्व)
चम्पानेर, गुजरात में बड़ोदरा शहर से मात्र 21 मील की दूरी पर स्थित है। वर्तमान समय में यह शहर पावागढ़ नाम से जाना जाता है। मध्य काल में इसका नाम चम्पानेर था।
यह व्यापार का एक प्रमुख केंद्र था तथा रेशम बुनाई के लिए प्रसिद्ध था। इसकी समृद्धि ने मुगल शासक हुमायूं को आकर्षित किया तथा 1535 में हुमायूं ने चम्पानेर पर आक्रमण कर यहां से भारी धन लूटा। इस समय यह गुजरात के शासक के अधीन था। कालान्तर में, सुल्तान बहादुर शाह की मृत्यु के पश्चात् दरबार एवं राजधानी को चम्पानेर से अहमदाबाद स्थानांतरित कर दिया गया।
चम्पानेर में ही मालवा एवं गुजरात के शासकों ने चित्तौड़ के राणा कुंभा के विरुद्ध संयुक्त मोर्चा बनाने संबंधी प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए थे।
अंततोगत्वा 1573 में अकबर ने चम्पानेर पर अधिकार कर लिया तथा इसे मुगल साम्राज्य का एक हिस्सा बना लिया।
चम्पानेर में कई ऐतिहासिक इमारतें हैं। इनमें गुजरात के शासक महमूद शाह बेगड़ा द्वारा निर्मित मस्जिद सबसे प्रमुख है।
चंदेरी (24.72° उत्तर, 78.13° पूर्व)
मध्यकाल में चंदेरी, मालवा एवं बुंदेलखंड के मध्य में स्थित था। वर्तमान में यह मध्य प्रदेश के गुना जिले में है।
मालवा के मांडू शासकों के अधीन चंदेरी एक महत्वपूर्ण नगर था, जिन्होंने इसे एक महत्वपूर्ण व्यापारिक एवं वाणिज्यिक केंद्र के रूप में विकसित किया। इसकी पृष्टि खंडित महलों, बाजारों, मकबरों तथा दसवीं शताब्दी के एक जैन मंदिर द्वारा होती है। इससे शीघ्र ही चंदेरी भारत की महत्वपूर्ण व्यावसायिक गतिविधियों का एक केंद्र बन गया।
1251 में चंदेरी पर बलबन ने अधिकार कर लिया तथा यह दिल्ली सल्तनत का हिस्सा बन गया। 15वीं शताब्दी में यह मालवा के खिलजी शासकों के अधीन आ गया और फिर 1520 में राणा सांगा ने इस पर अधिकार कर लिया। चंदेरी के शासक मेदिनी राय ने राणा सांगा की अधीनता स्वीकार कर ली तथा 1527 में खानवा का युद्ध लड़ा। 1529 में चंदेरी के युद्ध में बाबर ने मेदिनी राय को पराजित किया तथा मार डाला। इसके उपरांत चंदेरी मुगल साम्राज्य का हिस्सा बन गया।
16वीं शताब्दी के अंत तक चंदेरी, बुंदेल नरेश छत्रसाल के अधिकार में चला गया तथा इसके बाद उस पर मराठों ने अधिकार कर लिया। 19वीं शताब्दी में चंदेरी पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया तथा कुछ समय बाद इसे सिंधिया को सौंप दिया।
चंदेरी स्थित शहजादी का रौजा, सात मंजिला कुशक महल तथा सादत महल आदि कुछ महत्वपूर्ण इमारतें हैं, जो इण्डो-इस्लामी वास्तुकला की झलक देती हैं।
चंद्रगिरि (13.58° उत्तर, 79.31° पूर्व)
मध्यकालीन नगर चंद्रगिरि, मंदिरों के शहर तिरुपति के समीप स्थित है। वर्तमान में यह आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में है। विजयनगर साम्राज्य के आरविडु वंश के मुख्य एवं अंतिम शासक वेंकट द्वितीय ने सर्वप्रथम चंद्रगिरि को अपना मुख्यालय बनाया था। 1565 में तालीकोटा के युद्ध के उपरांत बहमनी साम्राज्य के मुस्लिम शासकों ने विजयनगर को तहस-नहस कर दिया। इसके उपरांत विजय नगर के शासकों ने पहले अपनी राजधानी पेन्कोंडा एवं अंत में चन्द्रगिरि में स्थानांतरित कर दी। विजयनगर साम्राज्य के प्रतिनिधि के रूप में चंद्रगिरि के राजा ने ही अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी के फ्रांसिस डे को 1640 में मद्रास पट्टे पर दिया था। फ्रांसिस डे ने मद्रास में एक दुर्गीकृत कारखाना स्थापित किया, जो फोर्ट सेंट जार्ज कहलाया।
चन्द्रगिरि, चन्द्रगिरि किले के लिए भी प्रसिद्ध है, जिसे विजयनगर के शासकों ने 17वीं शताब्दी में बनवाया था। यह किला हिन्दू एवं मुस्लिम शैली के सम्मिश्रण का एक अच्छा उदाहरण है।
चन्द्रकेतुगढ़ (22°41‘ उत्तर, 88°41‘ पूर्व)
वर्तमान समय में चन्द्रकेतुगढ़, प. बंगाल के 24 परगना जिले में स्थित है। इस स्थान के विकास का संबंध, मौर्यों के अधीन पूर्व की ओर लौह आधारित संस्कृति के प्रसार से है। यहां के उत्खनन से एनबीपीडब्ल्यू गोलाकार कुएं, पूर्व मौर्यकाल के टाइलयुक्त छतों वाले घर टेराकोटा के मनके एवं चांदी के आहत सिक्के प्राप्त हुए यहां से प्राप्त कुछ आहत सिक्कों में जहाज का चित्र अंकित है। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि यह स्थान संभवतः एक बंदरगाह नगर रहा होगा।
पकी ईंटों के बने गोलाकार कुओं एवं घरों से, जो शुंग-कुषाण से संबंधित हैं, यह सूचना मिलती है कि इस नगर की आर्थिक दशा उन्नत अवस्था में थी। यहां से गुप्तकालीन एक मंदिर के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं। किंतु इतिहासकारों का मत है कि यह नगर धीरे-धीरे अपनी महत्ता खोता जा रहा था।
यहां के उत्खनन से यह भी ज्ञात होता है कि यहां उत्तरकालीन गुप्त काल में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार हुआ था, क्योंकि यहां दो स्तूपों के प्रमाण भी पाए गए हैं।
चन्हुदड़ो (26°10‘ उत्तर, 68°19‘ पूर्व)
चन्हुदड़ो, मोहनजोदड़ो से 130 कि.मी. दक्षिण में सिंधु नदी (सिंध, पाकिस्तान) के बाएं तट पर स्थित, हड़प्पा समय का एक प्रमुख औद्योगिक नगर था। यह सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों के लिए मनका निर्माण, सीपी पर शिल्प, मुहर निर्माण तथा हड्डियों के औजार निर्माण का प्रमुख केंद्र था। चन्हुदड़ो में कारीगरों की दुकानों की श्रृंखला मिली है, जो कि स्पष्टतः सिद्ध करती है कि यह औद्योगिक नगर था।
इस नगर की विशेषता है कि यह नगर परिपक्व हड़प्पा सभ्यता के विलुप्त होने के बाद भी विकसित होता रहा तथा इसका साक्ष्य है झुकर तथा झांगर सभ्यताएं जो कि हड़प्पा सभ्यता से भिन्न हैं। यहां पर मृदभांड कम पके हुए तथा मोटे हैं, जैसे कि यहां की मुहरें, जो कि सैलखड़ी से निर्मित हैं तथा उस पर चमकते सूरज का सामान्य रूपांकन की तरह प्रयोग हड़प्पा की मुहरों में नहीं देखा जाता।
परिपक्व हड़प्पा चरण की एक प्रमुख खोजों में, एक मुहर, जो कि पंचतंत्र की चतुर लोमड़ी की कहानी दर्शाती है, एक पीतल का रथ, जो हड़प्पा से मिले रथ से बहुत मिलता-जुलता है, एक मूर्ति में एक कुत्ता बिल्ली का पीछे करते हुए है तथा एक दवात शामिल है। तीन छोटे मिट्टी के टीले भी एनजी मजूमदार तथा मैके द्वारा खुदाई कर निकाले गए हैं।
चैल (18.54° उत्तर, 72.92° पूर्व)
वर्तमान समय में चैल, महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में स्थित है। चैल, भारत के पश्चिमी तट का एक बंदरगाह था तथा 1505 ई. में यहां पुर्तगालियों के आगमन के उपरांत इसका महत्व बढ़ गया। पुर्तगालियों ने इसे एक प्रमुख वाणिज्यिक केंद्र एवं प्रमुख बंदरगाह के रूप में विकसित किया। इस पर आधिपत्य को लेकर बीजापुर के शासकों का पुर्तगालियों से संघर्ष भी हुआ। यद्यपि इस संघर्ष में पुर्तगालियों की ही विजय हुई तथा उन्होंने 1516 में यहां एक फैक्टरी की स्थापना की।
कालांतर में चैल पर मुगलों फिर मराठों एवं अंत में अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया।
चैल की प्रमुख इमारतें हैं-कोरलाई का किला एवं पुर्तगालियों द्वारा निर्मित पालम गार्डन किला।
चैसा (25.56° उत्तर, 83.97° पूर्व)
चैसा बक्सर के समीप बिहार में है। चैसा में ही सन् 1539 ई. में शेरशाह सूरी, एक अफगान जनरल, ने हुमायूं को पराजित किया था। हुमायूं बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचाकर भागा था। चैसा के युद्ध में विजयोपरांत शेरशाह ने स्वयं को भारत का सम्राट घोषित कर दिया था। इसके उपरांत शेरशाह ने राजकीय उपाधि धारण की, अपने नाम के सिक्के चलवाए तथा अपने नाम का खुतबा पढ़वाया। 1540 में हुमायूं ने अपना भारतीय साम्राज्य खोने से पहले शेरशाह से कन्नौज का युद्ध भी किया किंतु इस युद्ध में भी हुमायूं की पराजय हुई। यद्यपि शेरशाह की यह विजय औपचारिकता मात्र थी, क्योंकि वह चैसा के युद्ध में ही निर्णायक विजय प्राप्त कर चुका था। इस प्रकार यह चैसा ही था, जहां के युद्ध में विजय प्राप्त कर शेरशाह ने भारत में द्वितीय अफगान साम्राज्य (प्रथम अफगान साम्राज्य की नींव लोदी द्वारा रखी गई थी) की नींव रखी।
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