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छऊ नृत्य की विशेषताएं लिखिए , छऊ नृत्य कहा का है हिंदी में Chhau dance in hindi (छौ नृत्य क्या है)
Chhau dance in hindi (छौ नृत्य क्या है) छऊ नृत्य की विशेषताएं लिखिए , छऊ नृत्य कहा का है हिंदी में ?
भारत के लोक नृत्य
भारत के विविध भागों में प्रचलित लोक-कथाओं, किंवदंतियों तथा मिथकों तथा स्थानीय गीत और नृत्य परम्पराओं के मेल से मिश्रित कला की समृद्ध परंपरा तैयार हुई हैं। लोक नृत्य विधाएं, सामान्यतः स्वतः प्रवर्तित, अनगढ़ होती हैं तथा उन्हें किसी औपचारिक प्रशिक्षण के बिना ही लोगों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। इस सरलता के कारण इस कला विधा को एक अन्तस्थ सौन्दर्य की प्राप्ति होती है। तथापि, ये कला विधाएं लोगों के एक विशेष वर्ग या किसी विशेष स्थान तक सीमित रह गयी हैं जिन्हें इसका ज्ञान पीढ़ी-दर-पीढ़ी स्थानांतरित होता रहा। भारत के कुछ प्रसिद्ध लोक नृत्य निम्नलिखित हैंः
छऊ या छौ नृत्य
छऊ शब्द छाया से निकला है जिसका अर्थ होता है- परछाई। यह मुखौटा नृत्य का एक प्रकार है, जिसमें पौराणिक कहानियों का वर्णन करने के लिए शक्तिशाली युद्ध संबंधी संचालनों का प्रयोग किया जाता है। कुछ कथाआंे में स्वाभाविक केन्द्रीय भावों, यथा-सर्प नृत्य या मयूर नृत्य का भी प्रयोग किया जाता है।
छऊ नृत्य की तीन मुख्य शैलियाँ होती हैं – झारखंड में सरायकेला छऊ, ओडिशा में मयूरभंज छऊ तथा पश्चिम बंगाल में पुरुलिया छऊ। इनमें, मयूरभंज छऊ के कलाकार मुखौटे नहीं पहनते। 2011 में, यूनेस्को ने मानवत अमूर्त सांस्कृतिक विरासतों की प्रतिनिधि सूची में छऊ का नाम सम्मिलित कर लिया।
गरबा
गरबा गुजरात का एक लोकप्रिय लोक नृत्य है, जिसे नवरात्र के अवसर पर किया जाता है। गरबा का वास्तव में अर्थ है ‘गर्भ दीप‘ – छिद्र युक्त मिट्टी का बर्तन जिसमें दीप प्रज्ज्वलित किया जाता है तथा जिसके चारों ओर महिलायें लयबद्ध तालियों के स्वर पर चक्राकार गति में नृत्य करती है।
डांडिया रास
रास एक ऊर्जायुक्त तथा रोचक नृत्य विधा है, जिसमें पॉलिश की हुई छड़ियों या डांडिया का प्रयोग किया जाता है। इसमें दुर्गा तथा महिषासुर के बीच छद्म युद्ध को दर्शाया जाता है।
तरंग मेल
यह गोवा का लोक नृत्य है, जिसमें क्षेत्र की युवा ऊर्जा का उत्सव मनाया जाता है। इसे दशहरा तथा होली के दौरान प्रस्तुत किया जाता है। इन्द्रधनुषी पोशाकों के साथ बहुरंगी झंडों तथा कागज के रिबनों के प्रयोग से एक दर्शनीय नजारे में परिवर्तित कर दिया जाता है।
घूमर या गंगोर
यह राजस्थान में भील जनजाति की महिलाओं द्वारा प्रस्तुत किया जाने वाला एक परम्परागत लोक नृत्य होता है। इस विशेषता महिलाओं का चक्कर खा-खा कर घूमना होता है, जिससे उड़ते हुए घाघरे की बहरंगी थर-थराहटें शानदार दीखती है।
कालबेलिया
राजस्थान के कालबेलिया ( सपेरा ) समुदाय की महिलाओं के द्वारा प्रस्तुत किया जाने वाला एक भावमय नृत्य है। इसमें पोशाकें तथा नृत्य की चाल सर्प के समान होती है। बीन सपेरों द्वारा बजाया जाने वाला स्वर वाद्य यंत्र (इस नृत्य विघा कस लोकप्रिय वाद्य यंत्र) है। 2011 में यूनेस्को ने कालबेलिया लोक गीतों तथा नृत्य को मानवता की अमूर्त क विरासत की प्रतिनिधि सूची में स्थान दिया।
चारबा
यह दशहरा के उत्सवों के दौरान प्रस्तुत किया जाने वाला हिमाचल प्रदेश का एक लोकप्रिय लोक नृत्य है।
भांगडा/गिद्दा
भांगड़ा पंजाब का एक अत्यंत ऊर्जायुक्त लोक नृत्य है। उत्साह संचार कर उत्तेजित करने वाले ढोल की थापों के साथ किया जाने वाला यह नृत्य उत्सवों के दौरान लोकप्रिय है। गिद्दा पुरुष भांगड़ा का नारी संस्करण है।
रासलीला
ब्रज रासलीला उत्तर प्रदेश क्षेत्र का एक लोकप्रिय लोक नृत्य है, जिसकी कहानी राधा और कृष्ण के किशोर प्रेम के इर्द-गिर्द घूमती है।
दादरा
यह उत्तर प्रदेश में लोकप्रिय नृत्य अर्द्ध शास्त्रीय रूप है, जिसकी जुगलबंदी उसी प्रकार के संगीत से होती है। यह लखनऊ क्षेत्र के दरबारी नर्तकों में अत्यधिक लोकप्रिय था।
जावरा
जावरा मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में लोकप्रिय एक फसल-कटाई नृत्य है। इस नृत्य में सर पर ज्वार से भरी हुई एक टोकरी को संतुलित रखना पड़ता है। इसमें वाद्य यंत्रों के धमाकेदार संगीत का प्रयोग किया जाता है।
मटकी
मटकी को मालवा क्षेत्र की महिलाओं के द्वारा विवाह तथा अन्य उत्सवों के दौरान प्रस्तुत किया जाता है। मुख्यतः, इसे एकल ही प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें सिर पर बहुत-से मिट्टी के बर्तनों को संतुलित किया जाता है। आड़ा तथा खाड़ा नाच मटकी नृत्य के लोकप्रिय रूपांतर हैं।
गौर मारिया
गौर मारिया छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में रहने वाली भैसों के सींग को धारण करके नृत्य करने वाली मारिया जनजाति का एक महत्वपूर्ण आनुष्ठानिक नृत्य है। इस नृत्य में भैसों की गतिविधियों का अनुसरण किया जाता है तथा इसे पुरुषों तथा महिलाओं दोनों के द्वारा समूह में प्रस्तुत किया जाता है।
अलकाप
अलकाप झारखंड की राजमहल पहाड़ियों तथा पश्चिम बंगाल के राजशाही, मुर्शिदाबाद तथा मालदा क्षेत्रों में प्रचलित एक ग्रामीण नृत्य-नाटिका प्रस्तुति है। इसे 10 से 12 नर्तकों के दल द्वारा गायेन के नाम से जाने जाने वाले 1 या 2 मुख्य गायकों के साथ प्रस्तुत किया जाता है। यह दल लोकप्रिय लोक कथाओं तथा पौराणिक कहानियों को प्रस्तुत करता है, जिसमे नृत्य को काप नाम से मशहूर हास्य नाटिकाओं के साथ मिला कर प्रदर्शित किया जाता है। यह नृत्य, सामान्यतः, शिव से संबंधित गजन पर्व से सम्बद्ध है।
बिरहा
अपने रूपांतर विदेशिया के साथ बिरहा नृत्य ग्रामीण बिहार में मनोरंजन का एक लोकप्रिय माध्यम है। इसमें उन महिलाओं की व्यथा का वर्णन होता है जिनके साथी घर से दूर होते हैं। यद्यपि नृत्य की इस विधा को पूरी तरह पुरुषों के द्वारा ही प्रस्तुत किया जाता है, जो महिला पात्रों की भूमिका भी निभाते हैं।
पैका
पैका बिहार के दक्षिणी भागों में प्रस्तुत किया जाने वाला एक युद्ध संबंधी लोक नृत्य है। पैका लम्बे भाले के एक प्रकार का नाम है। नर्तक लकड़ी के भालों तथा ढालों से लैस होते हैं तथा पैदल टुकड़ियों के व्यूह में अपने कौशल तथा स्फूर्ति का प्रदर्शन करते हैं।
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