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भौतिक तथा रासायनिक विधियां कोलॉइड या सॉल बनाने के लिए Chemical method of preparation of colloids in hindi
Chemical method of preparation of colloids in hindi physical भौतिक तथा रासायनिक विधियां कोलॉइड या सॉल बनाने के लिए निर्माण कीजिये |
द्रवों में ठोस सॉल डी (SOLIDS IN LIQUIDS–SOLS)
कोलॉइडों में सबसे महत्वपूर्ण और सामान्यतया कोलॉइडी पदार्थों के रूप में ज्ञात ये द्रवों में ठोस कोलॉइड या सॉल ही होते हैं। इन कोलॉइडों को बनाने के लिए दो प्रकार की विधियों का प्रयोग किया जाता है जिनका संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है
1.संघनन विधियां (Condensation Methods) : ये विधियां इस सिद्धान्त पर आधारित हैं कि पदार्थ प्रारम्भ में छोटे-छोटे आयनों अथवा अणुओं के रूप में होते हैं जिन्हें प्रेरित करके एक-दूसरे के निकट लाया जा सकता है जिससे वे संयुक्त होकर ऐसे समूह बना सकें जिनका आकार कोलॉइडी कण जितना बड़ा हो उससे अधिक बड़ा न हो। इसके लिए विभिन्न भौतिक तथा रासायनिक विधियों का प्रयोग किया जाता है जिनका विवरण निम्न प्रकार है
(अ) रासायनिक विधियां (Chemical Methods) :
(1) कोलॉइडी सल्फर, सेलिनियम, आयोडीन, आदि को निम्न ऑक्सीकरण अभिक्रियाओं द्वारा प्राप्त किया जा सकता है
Br2 + H2S→2HBr+S
2H.Se + 02→ 2H2O + 2Se
5HI + HIO373H2O + 312
यदि मिश्रण में कोई ऑक्सीकारक ऋणायन उपस्थित हो तो द्वितीय समूह के विश्लेषण में HS गैस को प्रवाहित करने पर कोलॉइडी गन्धक बनने के कारण सफेद दूधिया या हल्के पीले रंग का धुंधला विलयन प्राप्त होता है।
(2) कुछ धातुओं के विलयशील लवण उपयुक्त अपचायक के साथ अपचयित होकर कोलॉइडी विलयन बनाते हैं। गोल्ड व सिल्वर के कोलॉइडी विलयन इसी विधि द्वारा बनाए जाते हैं जो कई प्रकार की औषधियों क निर्माण में प्रयुक्त होते हैं। ये विलयन चूंकि अस्थायी होते हैं अतः इनमें किसी स्थायीकारक को मिलाना आवश्यक होता है।
2HAuClu+3HO, – 2Au+ 8HCI+302,
2AuCl, +3HCHO +3H20 -2Au+ 3HCOOH + 6HCI
AgNO3, + NH4OH + tannin NH4NO3 +H2O + tannic acid + Ag
गोल्ड के कोलॉइडी विलयन में स्थायीकारक के रूप में थोड़ी-सी जिलैटिन की मात्रा डाल दी जाती है जबकि सिल्वर सॉल के स्थायीकरण के लिए अण्डे की जर्दी (egg yolk) के प्रोटीन को प्रयुक्त किया जाता है।
(3) फेरिक हाइड्रॉक्साइड के खूबसूरत लाल रंग के सॉल को बनाने के लिए उबलते हुए जल में फरिक क्लोराइड विलयन को हिलाते हुए डालते हैं और FeCl3 की अतिरिक्त मात्रा व बने हुए HCl को विद्युत् अपोहन (electrodialysis) द्वारा प्रथक कर दिया जाता है जिससे विलयन स्थायी रह सके।
FeCl3 + 3H20 Fe(OH)3 + 3HCI
(4) कुछ अविलेय लवणों के कोलॉइडी विलयन बनाने के लिए उनके विलयशील आयनों के तनु विलयनों को परस्पर मिलाया जाता है। उदाहरणार्थ,
AgNO3, + Nax→ Agx + NaNO3
(X=CI, Br, I)
As20, +3HS→ As2S3 + 3H2O
Hg(CN)2+HS→ Hgs + 2HCN
(ब) भौतिक विधियां (Physical Methods):
(1) विलायक विनिमय विधि (Solvent exchange method) : इस विधि में पदार्थ को किसी उपयुक्त विलायक में घोलकर उसका विलयन बना लेते हैं फिर उसे दूसरे ऐसे विलायक में डालते हैं जिसमें ठोस पदार्थ तो अविलेय हो किन्तु विलायक विलयशील हो। इस प्रकार जो विलयन प्राप्त होता है वह एक कोलॉइडी विलयन होता है। उदाहरणार्थ गन्धक, फॉस्फोरस, फिनॉल्पथेलीन, आदि के ऐल्कोहॉली विलयन को तेजी से हिलाते हुए यदि जल में मिलाया जाए तो इनके कोलॉइडी विलयन प्राप्त होते हैं। इसी प्रकार नमक जैसे विद्यत अपघट्य के जलीय विलयन में ऐल्कोहॉल मिलाया जाए तो ऐल्कोहॉल में नमक के कोलॉडडी विलयन बनने के कारण विलयन दधिया हो जाता है। इस विधि द्वारा बनाए गए सॉल अस्थायी होते हैं।
(2) जल व किसी कार्बनिक पदार्थ के विलयन को अतिशीतित करने पर कोलॉइडी बर्फ प्राप्त होती है।। आइसक्रीम, आदि का बनाना इसी सिद्धान्त पर आधारित है। कोलाइडी बर्फ के क्रिस्टलन को रोकने के लिए। तथा कोलॉइड बर्फयुक्त आइसक्रीम को स्थायी करने के लिए इसमें थोड़ा जिलेटिन मिला दिया जाता है। ।
(3) अतिशीतित वितरण माध्यम में किसी पदार्थ की वाष्प को प्रवाहित करने पर उसका कोलॉडी। विलयन प्राप्त किया जा सकता है। मर्करी व गन्धक की वाष्प को ठण्डे जल में प्रवाहित करने पर कोलॉइडी। मर्करी तथा कोलॉइडी गन्धक को प्राप्त किया जा सकता है।
- वितरण विधियां (Dispersion Methods) • इस प्रकार की विधियों में अविलेय पदार्थ के ढेर को उपयुक्त वितरण माध्यम में प्रकीर्णित करके वितरित किया जाता है। प्रकीर्णन तब तक जारी रहता है जब तक कि पदार्थ के कण कोलॉइडी आकार के न हो जाएं। अविलेय पदार्थ को वितरित करने के लिए कई प्रकार की विधियों का प्रयोग किया जाता है जिनमें से प्रमुख का विवरण निम्न प्रकार है
(1) यान्त्रिक वितरण (Mechanical dispersion) : इस विधि में जिस पदार्थ का सॉल बनाना हो उसका महीन चूर्ण बनाकर उपयुक्त विलायक के साथ मिलाकर एक निलम्बन तैयार करते हैं, फिर इस निलम्बन को एक विशेष प्रकार की कोलॉइडी मिल में डालते हैं जिसकी संरचना व कार्य प्रणाली को चित्र 6.1 में प्रदर्शित किया गया है। इस चक्की में दो धात्विक डिस्क (discs) होती हैं जो एक-दूसरे के साथ कुछ ही दूरी पर स्थित होती है और पट्टों के सहारे एक-दूसरे के विपरीत दिशा में घमती है। ऊपर से पदार्थ का निलम्बन डालते है जिसके मोटे कण इस निलम्बन चक्की में पिसकर महीन हो जाते है और कोलॉइडी आकार ग्रहण कर लेते हैं। धातु की डिस्क (discs) की दूरी को कणों के इच्छित घूमने वाला आकार के अनुसार नियन्त्रित किया जा सकता है। काली स्याही, रोगन, वार्निश, मरहम, रंजक पदार्थ व दांतों Lधातु की चकरी की क्रीम, आदि सॉल इसी विधि से बनाए जाते हैं।
(2) विद्युत् विघटन अथवा ब्रेडिग आर्क विधि (Electric सॉल साल disintegration or Bredig’s are method) : इस विधि से किसी धातु को कोलॉइडी अवस्था में प्राप्त किया जा सकता है। धातु की चकरी घूमने वाला जिस धातु का सॉल बनाना हो उसकी दो इलेक्ट्रोड बनाकर इच्छित विलायक में डालकर विधुत् आर्क उत्पन्न किया जाता है जैसा कि। चित्र 6.2 में दर्शाया गया है। विद्युत् आर्क के प्रभाव से उच्च ताप धात्विक कैथोड -धात्विक उत्पन्न होता है विद्युत आर्क/ एनोड जिससे धातु के कण वाष्पीकृत हो जाते हैं। लेकिन बाह्य विलायक पात्र में विद्यमान बर्फ से उत्पन्न शीतलन के कारण ये +क्षार वाष्प के कण तुरन्त ही संघनित हो जाते हैं और संघनित होने पर ये कोलॉइडी आकार के हो जाते हैं। सॉल को स्थायी करने के लिए विलायक में थोड़ा-सा KOH मिला दिया जाता है। कॉपर, सिल्वर, गोल्ड, लेड, आदि के कोलॉइडी विलयन खन इसी विधि से बनाए जा सकते हैं।
(3). पेप्टीकरण विधि (Peptisation method) — पेप्टीकरण की प्रक्रिया स्कंदन के विपरीत क्रिया है। अविलेय अवक्षेप को किसी समआयन वाले वैद्युत-अपघट्य की उपस्थिति में विलायक के साथ हिलाया जाता है, अवक्षेप का पेप्टीकरण हो जाता है और कोलॉइडी विलयन बनता है। उदाहरणार्थ, फेरिक हाइड्रॉक्साइड के ताजा बने हुए अवक्षेप को थोड़ी-सी मात्रा में फेरिक क्लोराइड के साथ हिलाने पर लाल भूरे रंग का कोलॉइडी विलयन बनता है। लेकिन यहां स्मरण रखने योग्य बात यह है कि उसी अवक्षेप का पेप्टीकरण हो सकता है, जो ताजा बना हुआ हो। किसी बने हुए अवक्षेप को बार-बार लगातार धोने से भी उसका पेप्टीकरण सम्भव है। उदाहरणार्थ, बेरियम सल्फेट (Baso4) के अवक्षेप को यदि बार-बार लगातार धोया जाए तो उस धोवन द्रव में Baso4 के कई कॉलाइडी कण आ जाते हैं और इस प्रकार BasO4 के अवक्षेप का पेप्टीकरण हो जाता है।
(4) ध्वनि की तरंगों के द्वारा वितरण (Dispersion by Ultrasonic Waves) : इस विधि में एक गोल क्वार्ट्स क्रिस्टल को दो इलेक्ट्रोडों के साथ जोड़ देते हैं। जब उसमें से विद्युत् प्रवाहित होती है तो वह क्रिस्टल तेजी से घूमने लगता है और द्रव में तरंगें उठने लगती हैं जिससे विलायक में पदार्थ के कण वितरित होकर। कोलॉइडी कण बना लेते हैं। मर्करी के सॉल तथा तेलों के इमल्शन इसी विधि द्वारा बनाए जाते हैं। कोलॉइडों का शुद्धिकरण (Purification of Colloids) कोलॉइडी विलयनों में किसी वैद्युत अपघट्य की अल्प मात्रा तो कई बार उसके स्थायित्व को बढ़ाने । वाली होती है लेकिन यदि उनकी मात्रा थोडी अधिक हो तो कोलॉइड स्कंदित होकर अवक्षेपित हो जाते हैं। अतः कोलॉइडी विलयनों से इन वैद्युत अपघट्यों को दूर करके उनका शुद्धिकरण आवश्यक है। इसके लिए। निम्न विधियों का उपयोग किया जाता है –
(i) डायलिसिस या अपोहन (Dialysis) —किसी वनस्पति अथवा जान्तव झिल्ली में से विसरण द्वारा क्रिस्टलाइड को कोलॉइड से पृथक् करने की क्रिया को डायलिसिस (dialysis) कहते है।
जान्तव झिल्ली अथवा पर्चमेण्ट पेपर की एक थैली में कोलॉइडी विलयन डालकर एक बीकर में लटका देते हैं। इसमें जल को लगातार प्रवाहित करते जाते जल हैं। इससे कोलॉइड में उपस्थित वैद्युत अपघटय विसरित होकर निकलते जाते हैं और सॉल शुद्ध होता जाता है। डायलिसिस की क्रिया अत्यन्त मन्द गति से सम्पन्न होती है लेकिन यदि इस क्रिया में गरम जल का उपयोग किया जाए तो क्रिया अधिक तीव्र हो जाती है। यदि प्रवाहित किए जाने वाले जल का ताप 338 से 363 K तक हो तो डायलिसिस aकी क्रिया लगभग तीन गुनी तीव्र हो जाती है। इस प्रक्रिया को गरम डायलिसिस या गरम अपोहन (Hot dialysis) कहत है।। _
विद्युत् डायलिसिस या विद्युत अपोहन (Electro dialysis) : विद्युत् के प्रभाव से डायलिसिस की क्रिया को और तीव्र करवाया जा सकता है। विद्युत् के प्रभाव से कोलॉइडी बिलयन में विद्यमान वैद्युत-अपघट्यों के आयन विपरीत आवेशित इलेक्ट्रोडों की ओर आकर्षित होते H हैं जिससे डायलिसिस की क्रिया शीघ्रता से पूर्ण होती
डायलिसिस क्रिया का उपयोग आजकल चिकित्सा विज्ञान में भी बहुत होने विलयन लगा है। हमारे शरीर में गुर्दे (kidney) का घनायन कार्य वस्तुतः डायलिसिस का ही है। हमारा रक्त एक कोलॉइडी विलयन है जिसमें शरीर में सम्पन्न हुई विभिन्न उपापचयी क्रियाओं द्वारा कुछ विलयशील हानिकारक लवण घुल जाते हैं। जब यह रक्त गुर्दे में जाता है तो विसरण की क्रिया द्वारा उसमें से जल तथा विलयशील अशुद्धियां निकल जाती हैं। रक्त शुद्ध हो जाता है और विलयशील अशुद्धियां जलसहित मूत्र के। रूप में हमारे शरीर से बाहर निकल जाती हैं। जिन व्यक्तियों के दोनों गुर्दे खराब हो जाते हैं उनमें यह प्राकृतिक डायलिसिस की क्रिया नहीं हो पाती, अतः उनमें कृत्रिम डायलिसिस करना पड़ता है, अन्यथा विलयशील अशुद्धियां शरीर में फैल जाती हैं, जिससे व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।
(ii) सक्ष्म फिल्टेशन (Ultra filtration) इस विधि में एक ऐसा छन्ना कागज (Filter Daner लिया। जाता है जिसमें से पदार्थ के सूक्ष्म कोलॉइडी कण भी निकल नहीं पाते। निर्वात पम्प की सहायता से कोलॉइडी विलयन को इस विशेष छन्ने कागज, अल्ट्रा फिल्टर्स से छानते हैं। इस प्रक्रिया में कोलॉइडी विलयन के शुद्धिकरण के साथ-साथ उसका सान्द्रण भी हो जाता है।
कोलॉइडों के गुण (Properties of colloids)
कोलॉइडों के कुछ महत्वपूर्ण गुण निम्नांकित हैं ।
(i)विषमांगता (Heterogeneity) कणों का आकार बड़ा होने के कारण ये दो प्रावस्थाओं के विषमांगी। मिश्रण बनाते हैं जिनमें वितरण माध्यम में वितरित प्रावस्था होती है।
( ii).अस्थिरता (Non-settling) सामान्यतया कालाइडी विलयन काफी स्थायी होते हैं। इनके कण। अनिश्चितकाल तक विलयन में निलम्बित रहते हैं और पेदे में स्थिर होकर एकत्रित नहीं होते। लेकिन उच्च गति वाली अल्ट्रा सेण्ट्रीफ्यूज मशीन में रखे गए गुरुत्व बल से ये पेदे में एकत्रित हो जाते हैं।।
(iii) परासरण दाब (Osmotic pressure) वास्तविक विलयनों की भांति कोलॉइडी विलयन भी समस्त अणसंख्यक गुणों को प्रदर्शित तो करते हैं, लेकिन मापन योग्य गुण केवल परासरण दाब होता है क्योंकि कणों का आकार बड़ा होने के कारण विलयन में कणों की संख्या अत्यन्त कम होती है अतः अणुसंख्यक गुणों का मान अत्यन्त कम होता है, इसलिए मापे नहीं जा सकते।
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