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क्लोनिका संवाहक या वाहन (vector) , प्लाज्मिड , क्लोनिंग संवाहक की विशेषता
क्लोनिका संवाहक या वाहन (vector):- वह DNA जिसमें – प्रतिकृति का गुण होता है तथा स्वयं की प्रतिकृति के साथ बाहय DNA की भी प्रतिकृति करा सके उसे क्लोनिंग वाहक कहते है।
उदाहरण:- प्लाज्यिड, काॅस्मिड, फाॅज/फेज (phase) (जीवाणु भोजी)
वायरस के सारे वाहक के रूप में प्रयोग किये जाते है
प्लाज्मिड:- जीवाणु में पाये जाने वाले अतिरिक्त गुणसूत्रीय पदार्थो को प्लाजियक कहते है।
प्लाज्मिड की विषेषता:-
1- जीवाणु में पाया जाता है।
2- अतिरिक्त गुणसूत्रीय पदार्थ पाये जाते है।
3- यह द्विसूत्रीय होता है।
4- यह वृताकार होता है।
5- इसमें प्रतिकृति का गुण होता है।
6- इसमें प्रतिजैविक, प्रतिरोधी जीन पायी जाती है
उदाहरण:- PBR 322
यहाँ P = प्लाज्मिड
B = बाॅलिवर खोज कर्ता
R = राड्रिगज
322 = प्रयोग पर आधारित संस्था
उत्तम वाहक के गुणवधर्म:-
क्लोनिंग संवाहक की विशेषता:-
चित्र
1 प्रतिकृल्पिन की उत्पत्ति ORI:-
विजातीय जीव स्थानान्तरित क्छ। की प्रतिकृति कर सकें। इसके लिए उसमें प्रतिकृति की उत्पत्ति का स्थान होना चाहिए। अतः ऐसा स्थान जहाँ से प्रतिकृति प्रारंभ होती है एवं संतति कोषिका में भी प्रतिकृति होती है उसे प्रतिकृतियन की उत्पत्ति या व्तप कहते है।
2 परणमोतम चिन्हक:-
उत्तम वाहक में पुनर्मोगज एवं अपुनर्योगज में अन्तर करने वाले कुछ लक्षण पाये जाते है जिन्हें वरण योग्य चिन्हक कहते है।
वरणयोग्य चिन्हकों के रूप में प्रतिजैविक प्रतिरोधी जीन पायी जाती है। ये प्रायः अेट्रासाइक्लिन, एम्पिसिलिन, केनामाइसिन, क्लोरोमफेनियाँ आदि प्रतिजैविकों के प्रतिरोधी चिन्हक पाये जाते है।
3 क्लोनिंग स्थल:- वाहक में वह स्थान जहाँ विजातीय क्छ। जुउता है। तथा उसकी प्रतिकृति होती है उसे क्लोनिंग स्थल कहते है।
प्रतिजैविक प्रतिरोधी दो स्थानों में से टेट्रासाइक्लिन प्रतिजैविक प्रतिरोध स्ािल पर यदि ब्राहय क्छ। की प्रतिकृति होता है तो टेट्रासाइक्लिन प्रतिरोध समाप्त हो जाता है अर्थात् पुनर्योगज बन जाता है । इसे अब टेट्रसाइक्लिन युक्त माध्यम में संवर्धन करें तो जीवाणुओं की वृद्धि रूक जायेगी।
वैकल्पिक विधि:- (वर्णोत्पादकी विधि):-
पुनयोग्ज एवं अपुनयोगज में अन्तर करने हेतु नवीन विधि के रूप में मध्यम में वणेत्पादक पदार्थो का प्रयोग करते है जैसे:- ठ.हंस लाइटोसाइडोन की उपस्थिति में नीला रंग उत्पन्न होता है।
विजातीय के निवेषन से वर्णेत्पादकी प्रभाव समाप्त हो जाता है जिसे निवेषी निष्क्रियता कहते है। यदि पुनर्योगज का निर्माण हो जाता है तो रंगहीन काॅलोनी बनती है यदि नीले रंग की काॅलोनी बनती है तो यह अपुनर्योगज होता है।
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