हिंदी माध्यम नोट्स
द्वितीय विश्व युद्ध के कारण एवं परिणाम बताइए , causes of second world war in hindi results effects
causes of second world war in hindi results effects द्वितीय विश्व युद्ध के कारण एवं परिणाम बताइए ?
प्रश्न: द्वितीय विश्व युद्ध के कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर: (1) जर्मनी का उग्र राष्ट्रवाद रू हिटलर ने फ्यूहरर (थ्नीतमत) की उपाधि ली। उसने प्रारंभ से ही जर्मनवाद अपनाया।
(2) इटली और जापान में उग्र राष्ट्रवाद व सैनिकवाद रू इटली एक शक्ति बने, उसका सम्मान हो तथा उसका भय होना चाहिये ऐसा मुसोलिनी का मानना था। शांति की बात करना मूर्खता है। पुरुष के लिए युद्ध उतना ही अनिवार्य है जितना स्त्री के लिए मातृत्व। मुसोलिनी ने इल ड्यूचे (प्प् क्नबम) की उपाधि धारण की। जापान में भी उग्र राष्ट्रवाद का उदय हुआ। जापान विश्व की एक महान सैनिक शक्ति के रूप में उभरा।
(3) अल्पसंख्यकों में असंतोष रू पौलण्ड, चेकोस्लोवाकिया, आस्ट्रिया, हंगरी, बल्गेरिया, तुर्की, लिथुआनिया, रोमानिया आदि देशों में स्थायी रूप से निवास करने वाली अल्पसंख्यक जातियों की भाषा, धर्म, संस्कृति, शिक्षा आदि की समस्या की रक्षा राष्ट्रसंघ को सौंपी गई पर समस्या का समाधान नहीं हो सका।
(4) विश्व का दो सैनिक शिविरों में विभाजन रू धुरी राष्ट्र (Axis Fower) जर्मनी, इटली व जापान तथा मिस्त्र राष्ट्र (Allied) इंग्लैण्ड, फ्रांस व रूस में विश्व पुनः दो सैनिक गुटों में विभाजित हो गया।
(5) आर्थिक मंदी रू आर्थिक मंदी ने अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की नीति को पीछे धकेल कर आर्थिक राष्ट्रवाद को जन्म दिया। जिसमें अपने उद्योग-धंधों को संरक्षण, आयात कम निर्यात पर अधिक बल, आर्थिक सहायता, तटकर, चुंगी आदि विभिन्न उपाय अपनाएं। आर्थिक मंदी से राष्ट्रसंघ को आघात, लोकतंत्रीय श अधिनायकवाद का उत्कर्ष, राजकीय नियंत्रण में वृद्धि, शस्त्रीकरण की दौड़, साम्यवाद का प्रसार, इटली में फांसीवाद का विकास, जापान में सैन्यवाद का उदय, इटली का एबीसीनिया पर आक्रमण, जर्मनी में नाजीवाद का उदय, अन्तर्राष्ट्रीय अराजकता उत्पन्न हो गयी, इन सभी का परिणाम द्वितीय विश्व युद्ध था।
(6) वर्साय की संधि में असमानता रू 1020 ई में द्वितीय विश्वयद्ध के लिए वर्साय की संधि प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार थी। यह बिल्कुल स्वभाविक था कि भविष्य में जर्मनी फिर यद्ध द्वारा अपने अपमान को धोने का प्रयास करे। 1919 में जर्मनी असहाय था सो चपचाप संधि स्वीकार कर ली। जैसे-जैसे समय व्यतीत होता गया और शक्ति संचित करता गया वैसे ही संधि की शर्तों का उल्लंघन करने लगा। इसी कठोरता एवं अपमान जनक वातावरण में हिटलर का उदय हुआ। उसने 1932 में निःशस्त्रीकरण और क्षतिपूर्ति की व्यवस्थाओं को तोड़ा। जर्मन भू-भागों को पुनः लेने लगा। चोकोस्लोवाकिया को निगल गया। जब पोलिस गलियारे और डेन्जिंग बन्दरगाह को लेने का प्रयास करने लगा तो द्वितीय विश्व युद्ध प्रारम्भ हो गया। कुल मिलाकर, वर्साय संधि की अन्यायपूर्ण व्यस्थाओं को तोड़ने के लिए हिटलर ने घटनाओं की वह शृंखला प्रारम्भ की जिनके कारण द्वितीय विश्व युद्ध का विस्फोट हुआ।
(7) राष्ट्र संघ की विफलता रू राष्ट्रसंघ का उद्देश्य शान्ति व स्थिरता स्थापित करना था। परन्तु आर्थिक संकट के कारण अन्तर्राष्ट्रीय सोहार्द में कमी आई।
(8) स्पेन का गृहयुद्ध : 1937 में स्पेन में गृहयुद्ध हुआ। जर्मनी व इटली ने जनरल फ्रेंको को समर्थन दिया। इसके परिणामस्वरूप फ्रेन्को के नेतृत्व में स्पेन में तानाशाही सरकार स्थापित हुई। जिससे विश्व में अधिनायकवाद को बढ़ावा मिला।
(9) हथियारों की होड़ रू आर्थिक मंदी के कारण विश्व में असुरक्षा का वातावरण बना। सभी देशों ने स्वयं की सुरक्षा के लिए व आर्थिक संकट से बचने के लिए अधिक से अधिक हथियार निर्माण पर बल दिया।
(10) युद्ध की तैयारियां रू फ्रांस ने अपने उत्तर पूर्व में भूमिगत किलेबंदी की। इसे मैजीनो लाइन (Magino Line) कहते हैं। दूसरी ओर जर्मनी ने अपनी फ्रांस की ओर भूमिगत किलेबंदी को जिसे सिगफ्रिड लाइन (Siegfried Line) कहते हैं। इससे युद्ध स्पष्ट दिखाई देने लगा।
(11) तात्कालिक कारण रू अप्रैल, 1939 में जर्मनी ने पौलैण्ड से डेन्जिग (Dazing) की मांग की और पोलैण्ड के गलियारे में रेल व सड़क यातायात की मांग की। पोलैण्ड ने जर्मनी के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। 1 सितम्बर, 1939 को जर्मनी ने पोलैण्ड पर आक्रमण कर दिया।
इंग्लैण्ड व फ्रांस ने जर्मनी को पौलैण्ड से सेना हुआने का – अल्टीमेटन भेजा। अल्टीमेटम का समय 3 सितम्बर, 1939 को समाप्त हो गया। इंग्लैण्ड में जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। कुछ समय पश्चात् फ्रांस भी सम्मिलित हुआ। इसके बाद इटली, जापान, रूस आदि राष्ट्र भी सम्मिलित हुए।.
प्रश्न: द्वितीय विश्व युद्ध के आर्थिक एवं राजनीतिक परिणाम ही नहीं निकलें वरन् इसके वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक परिणाम भी महत्वपूर्ण थे। विवेचना कीजिए।
उत्तर: (1) जनहानि व आर्थिक हानि : 50 मिलियन लोग मारे गये। इनमें से 22 मिलियन सैनिक तथा 21 मिलियन नागरिक थे। इस युद्ध में 1384,9 करोड़ डॉलर खर्च हुए।
(2) सामाजिक व आर्थिक परिवर्तन : विश्व दो खेमों में विभाजित हो गया। एक पूंजीवादी राष्ट्र जिसका नेतृत्व अमरीका ने किया। दूसरा साम्यवादी राष्ट्र जिसका नेतृत्व रूस ने किया।
(3) साम्राज्यों का अंत : ब्रिटिश साम्राज्य से भारत, पाकिस्तान, बर्मा, मलाया, मिस्र आदि राष्ट्र स्वतन्त्र हुए। फ्रांसीसी साम्राज्य से इन्डोचीन स्वतंत्र होकर, लाओस, कम्बोडिया व वियतनाम नाम तीन राष्ट्र बने। हालैण्ड से जावा, सुमात्रा, बोर्नियो, बाली आदि द्वीप स्वतंत्र हुए। इण्डोनेशिया के नाम से स्वतंत्र राज्य स्थापित हुआ। जर्मनी, इटली, जापान का अपने उपनिवेशों से आधिपत्य समाप्त हो गया।
(4) इटली में प्रजातांत्रिक सरकार का गठन : युद्ध समाप्त होने के पश्चात् इटली में साम्यवादियों व राष्ट्रवादियों के बीच संघर्ष प्रारम्भ हुआ। मित्र राष्ट्रों के सहयोग से इटली में प्रजातांत्रिक सरकार का गठन हुआ।
(5) जर्मनी का विभाजन : प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् जर्मनी का पूर्वी व पश्चिमी जर्मनी के रूप में विभाजित कर दिया गया। पूर्वी जर्मनी रूस (साम्यवाद) के प्रभाव में रहा। पश्चिमी जर्मनी मित्र राष्ट्रों (पूँजीवाद) के प्रभाव में रहा।
(6) जापान में राजतंत्र का अंत : अमेरिका ने जापान में राजतंत्र को समाप्त किया। अमेरिका के सहयोग से जापान में एक प्रजातांत्रिक सरकार का गठन हुआ।
(7) रूस का एक महाशक्ति के रूप उभरना : एस्तोनिया, लैटेविया, लिथुआनिया, फिनलैण्ड आदि प्राप्त हुए। इनके कृ अतिरिक्त, यूगोस्लाविया, बल्गेरिया, रूमनिया, अल्बानिया व हंगरी आदि में साम्यवादी सरकारें स्थापित हुई।
(8) अमेरिका का एक महाशक्ति के रूप में उदय : अमेरिका प्रथम विश्वयुद्ध में युद्ध विजेता (War Victor) था। द्वितीय में भी रहा। अमेरिका में 50% औद्योगिक विकास हुआ तथा 36% कृषि उत्पादन बढ़ा।
(9) चीन में साम्यवादी सरकार की स्थापना : चीन में च्यांगकाई शेक की KMT पार्टी तथा माओत्से तुंग की CCP के बीच संघर्ष हुआ। माओं ने चीन कम्यूनिस्ट पार्टी की स्थापना की।
(10) संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) की स्थापना : 24 अक्टूबर, 1945 यू.एन.ओ. गठित हुआ। अंतरर्राष्ट्रीय शांति व स्थिरता स्थापित करना इसका मुख्य उद्देश्य था।
राष्ट्रीयता की भावना क्षीण होने लगी तथा उसके स्थान पर समाज का आर्थिक संगठन महत्वपूर्ण हो गया।
संक्षेप में द्वितीय विश्व के परिणाम थे
i. परमाणु युग का सूत्रपात।
ii. शीतयुद्ध का प्रारम्भ।
iii. दो विचारधाराओं साम्यवादी-पूँजीवादी में विभाजित विश्व समाज।
iv. राष्ट्रीय भावना की निर्बलता-विचारधाराओं की प्रबलता।
v. यूरोपीय प्रभुत्व का अन्त – यूएसए व यू.एसएसआर का उदय। शक्ति संतुलन यू.के. से यू.एस.ए, के पास चला गया।
vi. गुट निरपेक्षत आंदोलन का उदय – (भारत, मिस्र, युगोस्लाविया – नेहरू, नासिर, टीटों द्वारा आंदोलन की शुरुआत)
vii. NATO, SEATO ? वारसा पैन्ट (पूँजीवादी), बगदार पैक्ट (साम्यवादी) जैसे – प्रादेशिक सैन्य संगठनों का उदय एवं विकास।
viii. एशिया व अफ्रीका में जागरण एवं नये स्वतंत्र राज्यों का उदय। (विउपनेवेशीकरण)
ix. साम्राज्यवाद के स्वरूप में परिवर्तन – विचारधाराओं पर आश्रित प्रभाव क्षेत्रों की स्थापना।
द्वितीय विश्व युद्ध का विज्ञान पर प्रभाव
1. द्वितीय विश्व के दौरान सामरिक प्राथमिकताओं ने वैज्ञानिक व तकनीकी शोध को तीव्रतर बनाया। रडार, जेटविमान, रेडियो, टेलीविजन
जैसे साधनों पर बड़े पैमाने पर पूँजी निवेश की गयी। यह बात परमाणु विज्ञान में भी लागू होती है। मित्र और धुरी राष्ट्रों को इस बात का अच्छी तरह से आभास था कि जो खेमा वैज्ञानिक एवं तकनीकी अविष्कारों के दौर में पिछड़ेगा वही पराजित होगा। इतना ही नहीं युद्ध मोर्चे की व्यापक जरूरतों के लिए औद्योगिक उत्पादन की वैज्ञानिक प्रणालियां खोजी गयी।
2. युद्धकालीन प्रचार, तंगी एवं राशनिंग वाली अर्थव्यवस्था ने युद्धोत्तर काल में वैज्ञानिक व तकनीकी विकास को अन्य समस्त आर्थिक क्रियाकलापों के साथ केंद्रित और नियोजित करना सहज बनाया।
3. युद्ध के दबाव में रबड़, खनिज, आदि कच्चे मालों को थोड़े या अधिक समय के लिए अनुपलब्ध बनाकर कृत्रिम विकल्पों का अविष्कार किया। प्लास्टिक, रेयान, हल्की मिश्र धातु, चमत्कारिक औषधियां आदि बहुत बड़ी सीमा तक द्वितीय विश्व युद्ध की देन हैं।
1. सामारिक जरूरतों के अनुसार जर्मनी के वैज्ञानिकों ने ट-2 प्रक्षेपास्त्रों का अविष्कार किया। ये इन राकेटों के पूर्वज थे जो आज हमें अंतरिक्ष में विजय दिला रहे हैं।
द्वितीय विश्व युद्ध का सांस्कृतिक प्रभाव
द्वितीय विश्व युद्ध ने जिस सांस्कृतिक ज्वार को उभारा उसके दूरगामी सामाजिक एवं राजनीतिक परिणाम हुए। महायुद्ध के बाद के वर्ष निराशा, हताशा एवं विश्वव्यापी कुण्ठा का युग था। किर्केगार्ड जैसे दार्शनिक का अस्तित्ववादी चिंतन यूरोप तथा अमेरिका में लोकप्रिय बना। ब्रह्माण्ड में मनुष्य के अस्तित्व की नगण्यता और अर्थहीनता की अनुभूति ने धार्मिक व नैतिक मूल्यों में तेजी से हास किया और सामाजिक उच्छ शृंखलता को बढ़ावा दिया। उसने जहां एक ओर पश्चिमी पूंजीवादी समाज में बीटनिकों और हप्पियों को प्रतिष्ठा दिलवाई तो दूसरी ओर साहित्य और कला के क्षेत्र में अमूर्तनों, स्वांतः सखाय तथा निरंकुश उद्गारों की अभिव्यक्ति वाली कलाकृतियों के सृजन को प्रोत्साहन दिया। पोप आर्ट, रॉक म्यूजिक आदि इसी के उदाहरण हैं।
कलाओं में पिकासो की प्रसिद्ध कलाकृति श्गोयरनिकाश् एवं श्लोरकाश् की कविताएं स्पेनी गृहयुद्ध से प्रेरित थी। काम का उपन्यास प्लेग, भी इसी कोटि में आते हैं। युद्ध की विभीषिकी महानगरीय संत्रास, अलगाव आदि की अनुभूति जो आधुनिक साहित्य कला जगत का अभिन्न अंग बन चुकी हैं, द्वितीय विश्वयुद्ध की देन, हैं।
प्रश्न: ष्किसी अन्य घटना ने विश्व राजनीति को इतना प्रभावित नहीं किया, जितना कि द्वितीय विश्व युद्ध ने।ष् कथन के संदर्भ में द्वितीय विश्व युद्ध के राजनीतिक परिणामों की समीक्षा करें।
उत्तरः प्रथम विश्वयुद्ध का तुल प्रथम विश्वयद्धं की तुलना में द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणाम अपने विस्तार एवं तीव्रता में अधिक व्यापक स्वरूप लिए
हुए थे। जनधन की हानि तो सभी युद्धों में होती है किन्तु द्वितीय विश्वयुद्ध में एटमी हथियारों के प्रयोग ने मानव के अस्तित्व को ही संकट में डाल दिया। इस युद्ध के पश्चात् विश्व राजनीति के रंगमंच से यूरोप का पटाक्षेप हो गया और उसकी जगह अमेरिका रंगमंच पर मुख्य नायक के तौर पर अवतरित हुआ। इतना ही नहीं युद्धोपरांत विश्व दो गुटों में स्पष्टतः विभाजित हो गया,
फलतः शीतयुद्ध की पृष्ठभूमि का निर्माण हुआ। इस गुटबंदी से बचने के लिए नवस्वतंत्र तृतीय विश्व के देशों ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन को जन्म दिया। अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बनाए रखने हेत राष्ट्रसंघ की अपेक्षा कहीं अधिक व्यापक अधिकार वाली संयुक्त राष्ट्रसंघ जैसी संस्था का निर्माण हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध के राजनीतिक परिणाम निम्नलिखित थे
1. यूरोप का पतन : द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद राजनैतिक, आर्थिक दृष्टि से यूरोप का महत्व कम हो गया। वस्ततयुद्ध के पूर्व तक विश्व इतिहास ं कभी इंग्लैण्ड तो कभी फ्रांस तो कभी आस्ट्रिया तो कभी जर्मनी, इटली प्रभुत्व कायम था किन्तु युद्ध के पश्चात इस सभी यूरोपीय राष्ट्रों की स्थिति कमजोर हो गई और उनका – अमेरिका ने ले लिया। इंग्लैण्ड की स्थिति दर्बल हो गई उसके तमाम उपनिवेश स्वाधीनता आंदोलन के माध्यम स्वतंत्र हुए। इसी प्रकार इटली से भी उसके सभी. अफ्रीकी उपनिवेश छीन लिए गए और सैन्यशक्ति पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इसी तरह जर्मनी का विभाजन हो गया और वह पंगु हो गया।
2. यूरोप के राजनीतिक मानचित्र में परिवर्तन : द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् जर्मनी का विभाजन कर उसे पड़ी।पश्चिमी जर्मनी में बांट दिया गया। वस्तुतः जर्मनी में नाजी शासन को निष्क्रिय करने तथा जनतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना करने हेतु उसे चार भागों में विभक्त कर अमेरिका, फ्रांस, इंग्लैण्ड और रूस के अधीन कर दिया गया। आगे सितम्बर, 1949 में अमेरिका, इंग्लैण्ड व फ्रांस ने अपने-अपने अधीन जर्मनी क्षेत्रों को पश्चिमी जर्मनी के नाम से एक पृथक् राष्ट्र की स्थापना और वहां श्जर्मन संघीय गणराज्यश् की स्थापना की। अक्टूबर, 1949 में सोवियत संघ ने अपने अधीनस्थ जर्मनी के पूर्वी क्षेत्र को मिलाकर पूर्वी जर्मनी नामक एक अलग देश बना दिया और उसे जर्मन जनतांत्रिक संघ नाम दिया।
3. दो महाशक्तियों का उदय : युद्ध के पश्चात् अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच पर अमेरिका और रूस नामक दो महाशक्तियों का उदय हुआ। वस्तुतः
युद्धकाल में अमेरिकी औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि हुई थी और उसने विश्व के तमाम देशों को कर्ज दिया था। उन्नत आर्थिक स्थिति के कारण उसकी सैन्य शक्ति में भी वृद्धि हुई थी और इसी क्रम में उसने परमाणु शस्त्र का भी विकास किया तथा विश्व के अनेक भागों में सुदृढ़ नौसैनिक अड्डे स्थापित किए।
ऽ इसी प्रकार सोवियत संघ भी विश्व की महाशक्ति के रूप में सामने आया। सोवियत संघ ने भी स्टालिन के काल में आर्थिक एवं सैन्य सुदृढ़ता प्राप्त की थी तथा जर्मनी को पराजित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और 1949 में परमाणु बम का विकास करके अपनी सुदृढ़ स्थिति का प्रमाण दिया साथ ही यूरोप के विभिन्न क्षेत्रों में साम्यवादी सरकार की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस तरह सोवियत संघ भी महाशक्ति के रूप में विश्व के सामने उदित हुआ।
4. शीतयुद्ध का आरंभ : युद्ध के बाद अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच पर अमेरिका और रूस के रूप में जो दो महाशक्तियां उदित हुई थी, ये दोनों अलग-अलग विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करती थी। अमेरिका जहां पूंजीवादी विचारों का पोषक था वहीं सोवियत संघ साम्यवादी विचारों का। दोनों देशों के बीच विभिन्न समस्याओं के संबंध में तीव्र मतभेद उत्पन्न हो गए। इन मतभेदों ने इतना तनाव और वैमनस्य उत्पन्न कर दिया कि सशस्त्र संघर्ष न होते हुए भी दोनों के बीच आरोपों प्रत्यारोपों और परस्पर विरोधी राजनीतिक प्रचार का युद्ध आरंभ हो गया जिसे शीतयुद्ध के नाम से जाना जाता हैं।
ऽ सोवियत संघ के नेतृत्व में साम्यवाद के प्रसार को लेकर पूर्वी जर्मनी, हंगरी, रूमानिया, लिथुआनिया, लाटविया आदि देशों का एक अलग गुट बन गया। इस तरह समाजवादी प्रभाव में पूर्वी यूरोप एक गुट बना जबकि पूंजीवादी व्यवस्था के समर्थक देशों के रूप में पश्चिमी यूरोप का गुट बना। इस तरह यूरोप दो गुटों में विभाजित हो गया और ये दोना गुट रूस और अमेरिका जैसी महाशक्तियों से संचालित होने लगे।
5. उपनिवेशवाद का पतन व तृतीय विश्व का उद्भव : विश्व युद्ध में साम्राज्यवादी एवं उपनिवेशवादी शक्तिया कमजोर पड़ गई, फलस्वरूप उनके उपनिवेशों में स्वतंत्रता आंदोलन ने जोर पकड लिया। विश्वयुद्ध के खच १ तबाही ने साम्राज्यवादी शक्तियों को खोखला कर दिया था जिससे उपनिवेशों की जागृत राष्ट्रीय चेतना का दा उनके लिए असंभव था। परिस्थितियों से विवश होकर महायुद्ध के बाद ब्रिटिश सरकार ने अपनी नीति में पारा किया जिससे भारत, बर्मा, श्रीलंका, मलाया, मिस्र आदि देश आधिपत्य से मुक्त हो गए। इस तरह ससार । बड़े साम्राज्यवादी ताकत का सूर्य अस्त हो गया। फ्रेंच हिंदचीन में फ्रांसीसी आधिपत्य के अनेक देशों को भी स्वतः प्राप्त हुई कंबोडिया, लाओस आदि स्वतंत्र हुए। हॉलैण्ड के उपनिवेश जावा. समात्रा. बोर्नियों ने भी स्वतंत्रता की। इस तरह यरोप के औपनिवेशिक साम्राज्य का अंत हो गया, सचमुच यह एक अभतपूर्व घटना थी। इस पर यह कहना ठीक ही है कि श्एशिया के पुनरोत्थान की यह घटना परमाणु बम से भी अधिक विस्फोटक थी।श्
ऽ इन नवस्वतंत्र देशों के रूप में तृतीय विश्व का उद्भव हुआ जिसे आगे चलकर वैश्विक राजनीति को अपने तर से प्रभावित किया और शीतयुद्ध को वास्तविक युद्ध में तब्दील होने से रोका।
6. गुटनिरपेक्ष आंदोलन का उद्भव : युद्धोपरांत नवस्वतंत्र राष्ट्रों ने शीतयुद्ध की खींचतान से स्वयं को अलग रखने हेतु गुटनिरपेक्षता की आवाज बुलंद की। इस संदर्भ में भारत ने मार्गदर्शक की भूमिका निभाई। तृतीय विश्व के देशो नें गुटनिरपेक्ष आंदोलन के माध्यम से राजनैतिक-आर्थिक विकास का प्रयास किया और विश्व को तीसरे महायुद्ध से दूर रखने का प्रयत्न किया, इस प्रयत्न में वह आज तक सफल है।
7. संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना : द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् शांति स्थापना के क्रम में 1945 ई. में सैन फ्रांसिस्को सम्मेलन में मित्र राष्ट्रों ने संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना की। यह संस्था अपने छह अधिकरणों के माध्यम से विश्व शांति और मानव के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक अधिकारों की स्वतंत्रता और विकास के लिए कार्य करती है। संयुक्त राष्ट्रसंघ के मानवाधिकारों की घोषणा से मानवाधिकार के युग की शुरूआत होती है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने अंतर्राष्ट्रीय सहयोग व शांति के लिए राष्ट्रसंघ की तुलना में अधिकतर सफलतापूर्वक कार्य किया है।
8. प्रादेशिक संगठनों का विकास : शीतयुद्ध की वजह से संयुक्तराष्ट्र भी महाशक्तियों के टकराव का अखाड़ा बन गया। फलतः दोनों पक्ष अपनी भावी सुरक्षा के लिए प्रादेशिक निर्माण की ओर अग्रसर हुए। साम्यवाद को रोकने के लिए पश्चिमी राष्ट्रों ने अमेरिका के नेतृत्व में नाटो (NATO), सेंटो (CENTO) सिएटो (SEATO), बगदाद पैक्ट जैसे-सुरक्षा संगठनों की स्थापना की। दूसरी तरफ साम्यवादी सरकारों की स्थापना करके उनकी सुरक्षा हेतु सोवियत संघ ने श्वारसा पैक्टश् नामक सरक्षा संगठन की स्थापना की। इन प्रादेशिक संगठनों के निर्माण ने सैन्यवाद और शस्त्राकरण को तो बढ़ावा दिया ही साथ ही तनाव एवं भय का माहौल भी बनाया।
9. शक्ति संतुलन के स्थान पर आतंक संतुलन की स्थापना : एटम बम के प्रयोग ने विश्व राजनीति को बुनियादी तौर पर बदल दिया। सबसे पहली बात बड़ी ताकतों की पुरानी परिभाषा अब व्यर्थ हो गई। एटमी हथियार से संपन्न शक्ति अब वास्तव में इन पारंपरिक बड़ी ताकतों से अधिक समर्थ महाशक्ति बन बैठी बहुत जल्द खुद एटमी हथियारों को हासिल कर सोवियत संघ भी इस श्रेणी में आ गया। इस तरह 19वीं शताब्दी से चला आ रहा शक्ति संतुलन अब आतंक के संतुलन में बदल गया। क्योंकि किसी भी परमाणु शक्तिधारी आक्रमणकारी के विरुद्ध शक्ति बाहुल्य (Preponderous of Power) स्थापित नहीं किया जा सकता था। इस आतंक के संतुलन (Balance of terror) से शांति स्थापित हो गई क्योंकि अब राष्ट्र झगड़ों को निपटाने के लिए युद्ध का सहारा लेने से डरने लगे इसे भारत-पाक संघर्ष के सदंर्भ में समझा जा सकता है। परंतु यह आतंक-संतुलन बडा भयानक और जोखिम भरा बना क्योंकि एक छोटी सी गलतफहमी या गलत निर्णय पूर्ण विनाश का कारण बन सकता है।
10. भारत पर प्रभाव : द्वितीय युद्ध के दौरान जापानी सेनाओं ने दक्षिण-पूर्व एशिया में अंग्रेजी फौज के जिन हिन्दुस्तानी सिपाहियों को युद्धबन्दी बनाया था उन्हें प्रेरित एवं उत्साहित कर बोस ने आजाद हिन्द फौज का गठन किया। श्दिल्ली चल्लोश् और श्जय हिंदश् का नारा बुलंद कर फौज ने हिन्दुस्तान की तरफ कूच किया और अंग्रेजों के लिए समस्या पैदा की।
ऽ द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटेन द्वारा भारत को जबरन शामिल किए जाने के विरोध में 1939 कांग्रेस की सरकारों ने त्यागपत्र दे दिया और आगे चलकर भारत छोड़ों आंदोलन प्रारम्भ हुआ। आगे चलकर भारत को स्वतंत्रता हासिल हुई। इस तरह यह स्पष्ट हो गया कि साम्राज्यवाद और संसार की सबसे बड़ी साम्राज्यवादी ताकत का सूर्य अस्त हो चुका है।
11. द्वितीय विश्वयुद्ध ने चीन में राष्ट्रवादियों और कम्युनिस्टों के संघर्ष को तेज कर दिया जैसे ही जापान ने आत्मसमर्पण किया कम्युनिस्टों ने उत्तरी व पूर्वी प्रांतों पर कब्जा कर लिया जापानियों द्वारा छोड़े गए सैनिक साजो सामान की सहायता से साम्यवादियों ने राष्ट्रवादी कुओमितांग दल का सामना किया और उन्हें एक के बाद एक प्रांत छोड़ने के लिए बाध्य किया। अंत में 1949 में च्यांग काई शेक को फारमोसा में शरण लेनी पड़ी और पूरे चीन में साम्यवादी सरकार की स्थापना हो गई।
12. पश्चिम एशिया पर प्रभाव : पश्चिम एशिया में इजराइल का निर्माण द्वितीय विश्वयुद्ध का महत्वपूर्ण परिणाम था।
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद यहूदियों ने फिलिस्तीन में बसना शुरू किया। इसे लेकर अरबों एवं यहूदियों के बीच निरंतर दंगे होते रहे। ब्रिटेन और अमेरिका के प्रोत्साहन से 1940 में इजरायल नाम से फिलिस्तीन में यहूदियों का राज्य कायम हो गया। इस समय से इजरायल और अरबों के बीच तनाव और युद्धों का सिलसिला शुरू हुआ जो अभी तक कायम है।
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…