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carbon dioxide system phase diagram in hindi कार्बन डाई ऑक्साइड तंत्र का चित्र क्या है

कार्बन डाई ऑक्साइड तंत्र का चित्र क्या है carbon dioxide system phase diagram in hindi ?

कार्बन डाई ऑक्साइड तंत्र (Carbon dioxide system) –

कार्बन डाइऑक्साइड तन्त्र का प्रावस्था आरेंख चित्र 4.3 में दिखाया गया है। यह प्रावस्था आरेख जल तंत्र के प्रावस्था आरेख के समान ही है। अतः इसके प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं-

(i) वक्र-वक्र OA OB तथा OC एक चर तंत्र को प्रदर्शित करते हैं।

(i) वक्रों से घिरे क्षेत्र- इन वक़ों से घिरे क्षेत्र द्विचर तंत्र को प्रदर्शित करते हैं।

(ii) त्रिक बिन्दु- इसमें एक त्रिक बिन्दु 0 है ये वक्र त्रिक बिन्दु 0 पर मिलते हैं जो कि एक अचर तंत्र को प्रदर्शित करता है।

अब हम इन वक्रों, क्षेत्रों तथा त्रिक बिन्दु कि सार्थकता का अध्ययन करेंगे।

(i) वक्र 0A – इस वक्र पर ठोस तथा वाष्प CO, साम्यवस्था में है। अतः इसे ठोस CO, का ऊर्ध्वपातन वक्र (Sublimation curve) कहते हैं।

CO2(s)===>CO2 (8)

इस वक्र पर दो प्रावस्थाएँ विद्यमान है ( P = 2 ) चूंकि तंत्र में घटकों की संख्या एक है, (C = 1) | अतः ये मान प्रावस्था नियम में रखने पर

F = 1 – 2 + 2

अतः तन्त्र एक चर है। वक्र पर बिन्दु S एक वायुमण्डल पर CO2 (s) का ऊर्ध्वपातन ताप ( – 78°C) दर्शाता हैं इस कक्र की तुलना यदि जल तंत्र के इसी प्रकार के वक्र से की जाती है तो यह पाया जाता है कि निम्न ताप पर भी CO2(s) का वाष्प दाब बर्फ के वाष्प दाब से अधिक होता है।

वक्रOB – यह वक्र द्रव – वाष्प साम्य प्रदर्शित करता है, अतः

CO2 (I) ⇒ CO2 (g)

इसे द्रव CO2 का वाष्प दाब वक्र (Vapour pressure curve) कहते हैं। इस वक्र पर तन्त्र एक चर है क्योंकि दो प्रावस्थाएँ साम्यवस्था में है। जल तंत्र के समान ही B बिन्दु क्रान्तिक बिन्दु कहलाता है।

जिसका क्रान्तिक ताप 31.1°C तथा क्रान्तिक दाब 73 वायुमण्डल है।

वक्र OC – इस वक्र पर ठोस तथा द्रव CO2 साम्यवस्था में हैं

CO2 (s) ⇒ CO2(I)

अतः यह वक्र ठोस CO2 का गलन वक्र (Fusion Curve) कहलाता है। यह वक्र भी एक चर तंत्र प्रदर्शित करता है क्योंकि दो प्रावस्थाएँ साम्यवस्था में है। इस वक्र का झुकाव (inclination) जल तंत्र के विपरीत दांयी ओर है। ऐसा इसलिये होता है कि CO2 (/) का मोलर आयतन CO2 (s) के मोलर आयतन से अधिक है। अर्थात् जब CO2 (I), CO2 (s) में परिवर्तित होती है तो आयतन में कमी होती है। इस वक्र से यह स्पष्ट है कि CO2(s) का गलनांक दाब की वृद्धि से बढ़ता है।

(ii) वक्रों से घिरे क्षेत्र- वक्र OA, OB और OC सम्पूर्ण आरेख को तीन क्षेत्रों में विभाजित करते हैं। वक्र AOC के बायीं ओर का क्षेत्र इस क्षेत्र में केवल ठोस CO2 विद्यमान है। अतः P = 1, C= 1 इसलिये F = 2 होगा। इस क्षेत्र में प्रत्येक बिन्दु पर तंत्र द्विचर होगा।

वक्र AOB के नीचे का क्षेत्र- इस क्षेत्र में केवल CO2 गैस विद्यमान है। अतः इस क्षेत्र में भी तंत्र द्विचर है।

वक्र 0B तथा OC से घिरा क्षेत्र- इस क्षेत्र में केवल CO2 (1) द्रव अर्थात् एक प्रावस्था ही है। अतः अन्य क्षेत्रों की भांति इस क्षेत्र में भी तंत्र द्विचर होगा।

(iii) त्रिक बिन्दु वक्र OA, OB तथा OC बिन्दु 0 पर मिलते हैं। इस बिन्दु को त्रिक बिन्दु कहते है। इस बिन्दु पर तीन प्रावस्थाऐ साम्यावस्था में है।

CO2(s) ===> CO2 (I) ⇒ CO2 (g)

चूंकि P = 3. C = 1 है, अतः स्वातंत्र कोटि शून्य ( F = 0) होगी और इस बिन्दु पर तंत्र अचर होगा। इसका अर्थ है कि यह साम्य एक निश्चित ताप ( – 56.6°C) तथा एक निश्चित दाब (5.11 वायुमण्डल) पर अस्तित्व में रह सकता है।

एक वायुमण्डल दाब पर CO2 (s) का आचरण (Behaviour of CO2 (s) at one atmospheric pressure)- चित्र 4.3 से स्पष्ट है कि कार्बन डाइ ऑक्साइड तंत्र में त्रिक बिन्दु “O” एक वायुमण्डल दाब से ऊपर स्थित हैं अतः जब CO2 (s) को गर्म किया जाता है तो यह सीधे ही CO2(g) में परिवर्तित होती है। अतः एक वायुमण्डलीय दाब पर CO2 की द्रव अवस्था अस्तित्व में नही होती है। इसी कारण ठोस CO2 को शुष्क बर्फ (Dry ice) कहते हैं । यदि ठोस CO2 को द्रव CO2 में परिवर्तित करना हो तो दाब को 5.11 वायुमण्डल या अधिक रखना आवश्यक है।

CO2तन्त्र के प्रमुख लक्षण संक्षेप में सारणी 4.3 में दर्शाये गये हैं।

18 द्विघटक तंत्र (Two Component Systems)

चाँदी सीसा तंत्र, पोटेशियम आयोडाइड – जल तंत्र, ऐनिलीन हेक्सेन तंत्र आदि द्विघटक तंत्र है। द्विघटक तंत्र में C = 2 है। C का मान प्रावस्था नियम में रखने पर-

F = 2 – P + 2

F + P= 4

अर्थात् प्रावस्थाओं तथा स्वातन्त्र्य के कोटियों की संख्या का योग 4 के बराबर होता है। चूंकि किसी तंत्र में प्रावस्थाओं (P) की न्यूनतम संख्या 1 हो सकती है, अतः स्वातन्त्रय कोटियों की संख्या 3 होगी। अर्थात् तंत्र को पूर्ण रूप से अभिव्यक्त करने के लिये ताप, दाब व संघटन तीनों चरों की आवश्यकता होगी। इन तीन चरों को तीन लम्बवत् अक्षों पर दर्शाया जा सकता है। इस प्रकार एक त्रिविमीय प्रावस्था आरेख बन जायेगा। इस प्रकार के आरेख को कागज पर नहीं बनाया जा सकता। अतः द्विघटक तंत्रों के अध्ययन में किसी एक चर को स्थिर रखा जाता है ताकि शेष दो चरों को दो अक्षों पर व्यक्त करके द्विविमीय प्रावस्था आरेख प्राप्त किया जा सके।

स्वातन्त्र्य कोटि (F) की न्यूनतम संख्या शून्य हो सकती है। अतः साम्यवस्था में अधिकतम प्रावस्थाओं की संख्या 4 हो सकती है।

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