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कम्बोडिया का इतिहास cambodia history in hindi कम्बोडिया देश कहा है राजधानी , हिन्दू जनसंख्या

(cambodia history in hindi) कम्बोडिया का इतिहास कंबोडिया देश कहा है राजधानी , हिन्दू जनसंख्या कितनी है ? कम्बोडिया का मंदिर धर्म |

कम्बोडिया
संरचना
उद्देश्य
भूमिका
प्रदेश तथा लोग
इतिहास
प्राचीन इतिहास
द्वितीय विश्वयुद्ध तथा आधुनिक इतिहास
स्वतंत्र कंपूचिया
स्वतंत्रता तथा नया राजनीतिक समीकरण
वियतनाम का गृह युद्ध तथा कंपूचिया
जनरल लोन नोल का शासन
कंपूचियन यूनाईटेड फ्रंट का उदय
कंपूनिया का समाज तथा राजनीति
हैंग सैमरीन के शासन का उदय
गृह युद्ध
आर्थिक विकास
पेरिस का शांति समझौता
चुनाव
भारत कंपूचिया संबंध
सारांश
मूल शब्द
कुछ उपयोगी पुस्तकें
बोध प्रश्नों के उत्तर

उद्देश्य
इस इकाई का मुख्य उद्देश्य कंपूचिया के राजनीतिक विकास का अध्ययन करना है। इस इकाई को पढ़ने के बाद आप निम्नलिखित विषयों का वर्णन कर सकते हैंः
ऽ कंपूचिया की भौगोलिक तथा जनसांख्यिकी विशेषताएं
ऽ कंपूचिया के राजनीतिक इतिहास की रूपरेखा
ऽ स्वतंत्रता के पश्चात् कंपूचिया का राजनीतिक विकास
ऽ कंपूचिया में गरीबी के कारण
ऽ कंपूचिया में शांति तथा स्थिरता स्थापित करने में संयुक्त राष्ट्र संघ की पहल और
ऽ भारत कंपूचिया संबंध

भूमिका
कंपूचिया दक्षिण-पूर्व एशिया के अति प्राचीन मुख्य देशों में से एक है। उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में फ्रांस की उपनिवेशवादी ताकतों द्वारा उसे एक अत्यन्त अपमानजनक संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य किया गया। संधि की शर्तों के अनुसार यह फ्रांस का एक संरक्षित राज्य बन कर रह गया। इस देश को 1950 के दशक के आरंभिक वर्षों में स्वतंत्रता मिली। कंपूचिया अपनी स्वतंत्रता को सुद्धढ़ करने में जुट गया। परन्तु 1970 के अमेरिका समर्थित सत्ता परिवर्तन से एक लम्बे गृह युद्ध का आरंभ हुआ जिससे कंपूचिया को

प्रदेश और लोग
कंपूचिया दक्षिण-पूर्व एशिया के हिन्द-चीन प्रायद्वीप पर बसा एक छोटा सा देश है। उसका क्षेत्रफल 181,040 वर्ग किलोमीटर है। उसके पश्चिम में थाईलैन्ड, उत्तर में लाओस तथा थाइलैण्ड, पूर्व तथा दक्षिण पूर्व में वियतनाम तथा दक्षिण में स्याम की खाड़ी है। वियतनाम तथा थाइलैन्ड के साथ सीमा का अधिकांश भाग कार्डमम (इलायची) तथा उससे जुड़े पहाड़ों ने इस देश को छोटे दक्षिणी समुद्र तट से अलग कर रखा है। उत्तर में दांग्रेक के नाम से जाने वाले पहाड़ है। कंपूचिया मुख्यतः मैदानी भूमि है जिसकी सिंचाई ‘‘टानले सैप’’ (महान झील) तथा मैकोंग और बासक नदियां करती है। मैकौंग कंपूचिया से बहती हुई वियतनाम होकर समुद्र में गिरती है। इस देश की जलवायु उष्ण कटिबंधीय मॉनसूनी है। इसमें जून से अक्टूबर तक वर्षा का तथा नवंबर से मई तक सूखे का मौसम रहता है।

1975 में कंपूचिया की अनुमानित जनसंख्या 71,00,000 थी। निरंतर चल रहे गृह युद्ध, आर्थिक कठिनाइयां तथा बड़े पैमाने पर लोगों के प्रव्रजन के कारण इस देश की जनसंख्या 1981 में घटकर 6,682,000 रह गई। परन्तु इसके निवासियों की संख्या 1986 में बढ़कर 7,500,000 हो गई। नॉम पेन्ह जो यहां की राजधानी है की जनसंख्या 1978 में घटकर 20,000 हो गई थी। 1986 में यह संख्या बढ़कर 2,00,000 हो गई। इससे यह स्पष्ट होता है की कंपूचिया 1970 के दशक में बड़े पैमाने पर हुई बरबादी से धीरे-धीरे बाहर निकल रहा है। कंपूचिया एक विरल आबादी का देश है।

यद्यपि इस देश में आबादी का एक बहुत बड़ा भाग खमेर है, यहां अन्य महत्वपूर्ण तथा प्रभावशाली जातीय समूह भी है। 85 प्रतिशत जनसंख्या खमेरों की है। इसके अतिरिक्त खासी, स्टींग, फोंग तथा अन्य जन-जातियां हैं। इसके अलावा करीब चार लाख वियतनामी, साढे चार लाख से अधिक चीनी, कुछ मलय, चाम तथा लाओटियन भी हैं। कुछ हजार भारतीय भी कंपूचिया में है। चीनी मुख्यतः व्यापार और व्यवसाय में लगे हैं। चीनी तथा खमेर जन जाति के बीच मधुर संबंध है। इसका कारण यह है कि चीन ने कभी कंपूचिया पर आक्रमण नहीं किया। वियतनामी और खमेर लोगों के बीच के सम्बन्ध उतने मधुर नहीं हैं, जितने कि चीनी और खमेर लोगों के बीच। उसका एक कारण यह हो सकता है कि अतीत में कंपूचिया पर कई वियतनामी आक्रमण हुए। इस कारण से इन दो समूहों के बीच कुछ जातीय तनाव है। अन्यथा कंपूचिया इस प्रकार के अन्य तनावों से मुक्त है, जबकि दक्षिण एशिया के बाकी देश ऐसे तनावों के शिकार रहे हैं। सरकारी काम-काज की भाषा खमेर है, जिसे 95 प्रतिशत लोग बोलते हैं। यहां के अधिकांश चीनी तथा वियतनामी लोग द्विभाषी है। वे बाजारों, न्यायालयों तथा कार्यालयों में खमेर भाषा बोलते हैं, जबकि अपने अपने समुदायों के बीच अपनी भाषा बोलते हैं। पढ़े-लिखे लोग अभी भी फ्रेंच बोलते हैं। इसके बावजूद यह देश किसी प्रकार के भाषायी तनाव से मुक्त है। सबसे महत्वपूर्ण धर्म येरावदा बुद्धिज्म है। अतीत में हालांकि इस देश में हिन्दु धर्म का स्पष्ट प्रभाव था। मध्य-युग में (12वीं सदी के पश्चात्) बौद्धधर्म प्रधान धर्म के रूप में उभरा। अब सम्पूर्ण जनसंख्या का 95 प्रतिशत बौद्धधर्म का अनुयायी है। इस्लाम का प्रवेश ईसा पूर्व 17वीं सदी में हुआ। हालांकि इस्लाम ज्यादा लोगों को आकर्षित नहीं कर सका। अब इस देश में करीब एक लाख मुस्लिम हैं। 17वीं सदी में ही कभी ईसाई धर्म ने प्रवेश किया। अभी तक यह धर्म भी हाशिये पर ही रहा है।

कंपूचिया कृषि संसाधनों, वनसंपदाओं जल विद्युत तथा खनिज संसाधनों में धनी है। यहां पर कृषि के लिए आवश्यक मिट्टी सिंचाई हेतु प्रचुर मीठा पानी तथा सामान्य वर्षा, सभी है। कृषि में विकास की प्रचुर संभावनाएं हैं। यदि उनका पूरा-पूरा उपयोग हो सके, तो कृषि उपज वर्तमान स्तर से काफी ऊपर जा सकता है। एक आंकलन के अनुसार यदि सिर्फ मैकोंग नदी के जल संसाधनों का पूरा उपभोग किया जाय तो, 375,000 हेक्टर और जमीनें खेती के लिए विकसित की जा सकती है तथा 3.600 मैगावाट बिजली भी पैदा की जा सकती है। घने वन, वन पर आधारित उद्योगों के लिए मजबूत आधार बन सकते हैं। इस देश के पास विशाल अन्तर्देशीय मत्स्य ग्रहण संसाधन भी है। इसके अतिरिक्त उद्यान उद्योग तथा खान और खनिज पर आधारित कारखानों के विकास की पर्याप्त गुंजाइश है।

बोध प्रश्न 1
टिप्पणियांः क) नीचे दिये गये स्थान को अपने उत्तर के लिए उपयोग करें।
ख) अपने उत्तर की तुलना इस इकाई के अन्त में दिये गये उत्तर से करें।
1) संक्षेप में कंपूचिया की जनसांख्यिकीय रूपरेखा प्रस्तुत कीजिए।
2) संक्षेप में कंपूचिया के आर्थिक संसाधनों का वर्णन करें।

इतिहास
 प्राचीन इतिहास
कंपूचिया दक्षिण पूर्व एशिया का एक प्राचीन देश है। इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि यहां के लोग ईसा पूर्व दूसरी सहस्त्राब्दि कृषि कार्य में लगे हुए थे। धीरे-धीरे छोट-पुट लोग इकट्ठा हुए तथा ईसा के आरंभिक वर्षों में फूनान राज्य की स्थापना की। फूनान मैंकोंग नदी के डैल्टा के दक्षिण पश्चिम में स्थित था। पांचवी सदी में चेनला नाम का दूसरा राज्य मैकोंग नदी के मध्य खण्ड में स्थापित हुआ। नवीं सदी में खमेर लोगों ने अंकोर साम्राज्य की स्थापना की। यह साम्राज्य संपूर्ण दक्षिण-पूर्व एशिया के काफी उन्नत तथा शक्तिशाली राज्यों में से एक था। इस काल में खमेर ने मैकोंग की निचली घाटियों को विकसित करने के लिए भीषण प्रयास किया। टोनले सेप झील तट पर इन लोगों ने अंकोर भीम तथा अंकोर वट नाम के दो विशाल मंदिरों का शहर बनाया। ये इस क्षेत्र में वास्तुशिल्पीय शान है। इस राज्य को कंबोजों के खमेर राज्य के रूप में भी जानते थे।

इस राज्य की सांस्कृतिक तथा राजनीतिक परंपराएँ भारतीय स्त्रोतों से ली गयी थीं। इस राज्य की स्थापना जयाबर्मन द्वितीय ने की थी। उसने 801 ई. से करीब पचास वर्ष तक शासन किया। जयाबर्मन द्वितीय द्वारा स्थापित वंश में इन्द्रबर्मन (877-89), सूर्यबर्मन द्वितीय (12वीं सदी) और जयाबर्मन आदि महत्वपूर्ण राजा हए। कंबोज शासकों ने सिंचाई की अच्छी व्यवस्था की तथा कृषि को बढ़ावा दिया।

1218 में जयाबर्मन की मृत्यु के पश्चात् कंबोजों का पतन आरंभ हो गया। 13वीं सदी के आरंभ से कंबोज राज्य पर स्यामियों (थाई) के लगातार आक्रमण हुए। इन लोगों ने कंपूचिया में भेरवद बुद्ध धर्म का आरंभ किया। स्यामियों ने कंपूचिया के राजा को स्वयं का मातहत बना दिया। 17वीं सदी के उतरार्द्ध में वियतनाम ने कंपूचिया पर आक्रमण किया तथा स्यामियों का अधिपात्य समाप्त हो गया। कंपूचिया के सीमावर्ती दोनों क्षेत्रों पर स्याम (थाईलैंड) तथा वियतनाम का अधिकार हो गया। इन दोनों पड़ोसियों ने इस क्षेत्र पर दोहरा स्वामित्व रखा जो बाद में फ्रांसिसियों के हाथ में चला गया।

19वीं शताब्दी के उतरार्द्ध में फ्रांसिसी साम्राज्यवादियों ने कंपूचिया पर कब्जा कर लिया। 186 ने फ्रांस से एक समझौता कर लिया। समझौते की शर्त के अनुसार कंपूचिया फ्रांस का संरक्षित राज्य बन गया तथा फ्रांस का आवासीय सेनापति कंपचिया में नियुक्त हुआ। दसरा समझौता 1884 में हआ जिसके फलस्वरूप कंपचिया पर फ्रांस का नियंत्रण बहत कठोर हो गया। 1887 में फ्रांस ने अपने हिन्दी-चीन के उपनिवेशों का एक संघ बनाया। फ्रांस का शासन करीब 80 वर्षों तक रहा। इस अवधि में कंपूचिया का साम्राज्यवादी शोषण हुआ। कंपूचिया का आर्थिक पतन हुआ, उद्योग-धन्धे नहीं लगाये गये। कृषि तथा बगीचों से आये अतिरिक्त धन का पुनर्निवेश कंपूचिया में न होकर फ्रांस ले जाया गया। फ्रांस के एकाधिकारियों ने रबड़, चावल तथा अन्य कच्चे कृर्षि पदार्थों का निर्यात करके बहुत मुनाफा कमाया। फ्रांस के शासन के विरोध तथा बगावत को कठोरता से दबा दिया गया। 1916 के बाद कंपूचिया में उपनिवेशवाद के विरोध में आंदोलन का प्रसार होने लगा। कभी-कभी यह आंदोलन बगावत का रूप ले लेता था और हिंसक हो जाता था।

 द्वितीय विश्व युद्ध तथा आधुनिक इतिहास
1939 में द्वितीय विश्व-युद्ध का आरंभ हुआ। 1941 में जापान ने कंपूचिया को हथिया लिया। आरंभ में जापान ने कंपूचिया में फ्रांस के प्रशासन को काम करने दिया। 1945 में फ्रांस की सरकार को बर्खास्त कर दिया तथा कंपूचिया के सम्राट नरोदम सिंहान्डुक को कंपूचिया की स्वतंत्रता की घोषण करने के लिए प्रेरित किया। इस युद्ध में धूरी राष्ट्र (जर्मनी, इटली तथा जापान) की हार हुई तथा जापान ने अगस्त 1945 में आत्मसमर्पण कर दिया। फ्रांस ने कंपूचिया सहित अन्य हिन्द-चीनी उपनिवेशों को पुनः अपने अधीन कर लिया। परन्तु युद्ध ने स्थिति को काफी बदल दिया। फ्रांस को राजनीतिक दाव-पंच के लिए बाध्य होना पड़ा। फ्रांस ने 1946 में एक समझौता किया जिससे कंपूचिया को सीमित आन्तरिक स्वायत्ता मिली। 1947 में एक संविधान लागू किया गया। एक संसद का निर्माण हुआ तथा सीमित राजनीतिक गतिविधियों की अनुमति दी गई। 1949 में दूसरी संधि पर हस्ताक्षर हुये। अब फ्रांस ने कंपूचिया को फ्रांस के संघ अन्तर्गत एक स्वतंत्र राज्य की मान्यता दे दी। यह मान्यता अर्थहीन थी क्योंकि व्यवहार में कंपूचिया फ्रांस का आश्रित राज्य बन गया। इस व्यवस्था को आन्तरिक स्वायत्तता के नाम पर औपनिवेशिक शासन की पूर्नस्थापना के प्रयत्न के रूप में देखा गया। इस बीच औपनिवेश विरोधी राष्ट्रवादी आन्दोलन का विकास हुआ। खमेर इसारक इस आन्दोलन का सशस्त्र अंग था। इसारक आन्दोलन का नेतृत्व उपनिवेश विरोधी मध्यम वर्गीय बुद्धिजीवियों के हाथ था तथा इसे किसान मजदूर तथा अन्य गरीब लोगों का समर्थन प्राप्त था। बहुत जल्द ही इस आन्दोलन ने गुरिल्ला युद्ध का रूप धारण कर लिया। खमेर इसारकों ने कुछ वर्षों के अन्दर विस्तृत क्षेत्र को आजाद करा लिया। सम्राट नरोदम सिंहनुक तथा खमेर कुलीन वर्ग के लोगों ने भी पूर्ण स्वतंत्रता के लिये आन्दोलन का आरंभ किया। स्वतंत्रता को पुनः प्राप्त करने के लिए जोर-शोर से एक कूटनीतिक लड़ाई का भी आरंभ हुआ। सम्राट की लड़ाई को कंपूचिया की स्वतंत्रता के लिए शाही धर्म युद्ध का नाम दिया गया। इसारक तथा शाही दोनों आन्दोलनों ने फ्रांस द्वारा कंपूचिया को पूर्ण स्वतंत्रता देने के लिए बाध्य किया। अक्टूबर 1953 में फ्रांस तथा कंपूचिया के शासकों के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए। इस समझौते के द्वारा इस देश में सर्वोच्च सत्ता का हस्तांतरण शाही शासक को हो गया। 9 नवंबर 1953 को अन्ततः फ्रांस का शासन खत्म हो गया तथा कंपूचिया ने अपनी आजादी मनायी। नवंबर 9 राष्ट्रीय स्वतंत्रता दिवस घोषित हुआ। हिन्द-चीन पर जुलाई 1954 की जैनेवा वार्ता द्वारा इस आजादी को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता मिल गई।

बोध प्रश्न 2
टिप्पणियांः क) नीचे दिये गये स्थान का अपने उत्तर के लिये प्रयोग करें।
ख) अपने उत्तर की तुलना इस इकाई के अन्त में दिये गये उत्तर से करें।
1) संक्षेप में कंपूचिया के राजनीतिक इतिहास की रूपरेखा प्रस्तुत करें।

 स्वतंत्र कंपूचिया
औपनिवेशिक काल में कंपूचिया पर देशी राजाओं का शासन था। परन्तु इनके उपर फ्रांस का नियंत्रण था। फ्रांस के अधिकारियों ने राजा की नियुक्ति अपने राजनीतिक उद्देश्यों के दृष्टि से की। नरोदम सिहांनुक 18 वर्ष की उम्र में 1941 में राजा नियुक्त किये गये। परन्तु सिहानुक औपनिवेशिक शासन का आज्ञाकारी अस्त्र न होकर एक राष्ट्रीय नेता के रूप में उभरा। स्वतंत्र कंपूचिया का वह शासक तथा एक निर्विवाद नेता हो गया।

स्वतंत्रता की प्राप्ति तथा जैनेवा समझौते द्वारा उसकी पुष्टि ने कंपूचिया में शांति तथा स्थायित्व की स्थापना की। गुरिल्ला युद्ध का अन्त हो गया, विदेशी सैनिकों को वापस बुला लिया गया तथा साम्यवादियों के नेतृत्व वाली खमेर इसारक ने सशस्त्र संघर्ष का मार्ग छोड़ दिया। जनवरी 1955 में कंपूचिया विधिवत रूप से फ्रांसिसी संघ को छोड़, अन्य हिन्द-चीनी राज्यों से अपने बंधन समाप्त कर पूर्णतः स्वतंत्र हो गया। सिंहानुक अभी भी राजा था। 1947 के संविधान ने सरकार का ढांचा बदल दिया तथा राजशाही की भूमिका को सीमित कर दिया। जैनेवा समझौते की शर्तों के अनुसार कंपूचिया ने एक स्वतंत्र तथा खुली हुई राजनीतिक प्रक्रिया का वचन दिया था। इसका प्रदर्शन 1947 के संविधान के तहत चुनावों द्वारा होना था। स्वतंत्रता से शांति तथा स्थायित्व की पुनर्स्थापना तो हुई परन्तु इससे देश में राजनीतिक ताकतों के समीकरण में भी परिवर्तन आया।

 स्वतंत्रता तथा नया राजनीतिक समीकरण
इस प्रसंग में यह कहा जा सकता है कि सिहांनुक राजा होते हुए भी यदि राजनीतिक रूप से निष्क्रिय रहते, तो असंतुष्ट तथा स्वार्थी राजनीतिक तत्वों ने सरकार पर कब्जा कर लिया होता। इसलिए राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए सिहांनुक ने राज सिंहासन अपने पिता नरोदम सुरामरीत को सौंप दिया। उन्होंने संगकम रीष्टर नियम या संगम (सोशिलिस्ट पीपल्स कम्यूनिटी ऑफ कंबोडिया) नामक अपने दल का निर्माण किया। यह एक विस्तृत राजनीतिक संगठन था। इसका दरवाजा उन सभी राष्ट्रीय ताकतों के लिए खुला हुआ था जो अन्याय, भ्रष्टचार, अभाव तथा दमन से लड़ रहे थे तथा जो खमेर लोग अपने देश के खिलाफ विश्वासघात के विरुद्ध लड़ने के लिए कृतसंकल्प थे। इस दल ने 1955, 1958 तथा 1962 राष्ट्रीय विधान सभा के लिए हुए चुनावों में अधिकांश सीटें जीती। सिहांनुक ने दूरगामी राजनीतिक तथा आर्थिक सुधारों को आरंभ किया। उन्होंने खमेर बुद्धवादी समाजवाद के वैचारिक तथा राजनीतिक सिद्धान्तों का प्रचार किया। यह गैर सर्वहारा समाजवाद तथा बुद्ध धर्म के नैतिक मूल्यों के विचार का संयोजन था। खमेर समाजवादी मत का मुख्य राजनीतिक सारांश उपनिवेशवाद तथा सामन्तवाद का विरोधी था। आर्थिक पिछड़ेपन पर काबू पाने तथा स्वावलंबन की प्राप्ति के लिए नई आर्थिक नीतियां बनाई गई। इस नीति के अन्तर्गत जहां सरकारी क्षेत्र पर ज्यादा जोर दिया गया, वहीं विदेशी पूंजी निवेश तथा निजी क्षेत्र को हतोत्साहित नहीं किया गया। बहुत जल्दी कंपूचिया ने विस्तृत पैमाने पर मूल ढांचे का विस्तार किया, उद्योग धन्धे विकसित किये। लगभग 3,500 छोटे औद्योगिक इकाई तथा कारखाने 1955 से 1967 तक बनाये गये। 20 अपेक्षाकृत बड़ी फैक्टरियों की स्थापना की। धीरे-धीरे कंपूचिया में धातु कार्य, तेल शोधन, भवन निर्माण सामग्री तथा अन्य कई उद्योग विकसित हुए जो कि वहां पहले नहीं थे। सरकारी क्षेत्र काफी मजबूत हो गया। सिहांनुक ने असंलग्नता तथा निष्पक्षता की विदेश नीति अपनाई। उसने इस नीति की घोषणा 1955 में की तथा दक्षिण पूर्व एशिया सैनिक संगठन (सीऐटो) में शामिल होने से इन्कार कर दिया। 1957 में इस देश ने एक कानून बनाकर असंलग्नता का अर्थ सैन्य सन्धि तथा वैचारिक खेमों से अलग रहना बताया। कंपूचिया की असम्बद्धता की नीति तथा साम्यवादी देशों के साथ निकटता का सम्बन्ध अमेरीका तथा उसके दक्षिण पूर्व एशिया के मित्र राष्ट्रों को पसंद नहीं थे।

वियतनाम का गृह युद्ध तथा कंपूचिया
1968 के दशक के मध्य से बढ़ते हुये वियतनाम के गृह युद्ध ने कंपूचिया सहित हिन्द-चीन के दूसरे राज्यों को काफी गहराई से प्रभावित किया। सिहांनुक विदेश नीति के प्रमंग में अत्यधिक प्रगतिशील था, परन्तु वह साम्यवाद विरोधी, अधिकारवादी तथा पूरातन पंथी था। 1960 के दशक तक उसके शासन का प्रतिरोध कमजोर था, परन्तु 1960 के दशक के मध्य तक उसके शासन को तीव्र आलोचना का सामना करना पड़ रहा था। उभरता हुआ शिक्षित मध्यम वर्ग उसके शासन के ढंग तथा विपक्ष के प्रति उसकी असहिष्णुता के खिलाफ थे। उसने वामपंथी गर्मविधियों को दबाने की कोशिश की। 1960 के दशक के अन्त तक कंपूचिया की संसद और सेना सहित सरकारी तंत्र में एक मजबूत विपक्ष उभरा जिसमें दक्षिणी पंथ भी शामिल थे। ये तत्व अर्थव्यवस्था में सरकारी क्षेत्र को सीमित करना चाहते थे तथा तटस्थता की विदेश नीति के पुनरावलोकन की मांग कर रहे थे। सैनिक अफसर अमरीका उन्मुख नीति का समर्थन इस विचार से कर रहे थे कि इससे विदेशी सहायता का फायदा मिलेगा। इन आन्तरिक दक्षिण-पंथी ताकतों ने 1970 में सत्ता पलट सिंहानूक को सत्ता से पदच्यूत कर सरकार पर कब्जा कर लिया। सेना के जनरल लोन नोल एक तानाशाह की तरह उभरे। शायद इस सत्ता पलट में अमरीका का भी हाथ था क्योंकि लोन नोल की सरकार को अभरीका से हर संभव समर्थन तथा सहयोग मिला। लोन नोल के काल में कंपूचिया के कुल घरेलू उत्पाद के कुल आधे के बराबर सहायता मिलती थी।

 जनरल लोन नोल का शासन
जनरल लोन नोल के नये शासन ने अमरीका को वियतनाम पर आक्रमण के लिए कंपूचिय की भूमि को आधार के रूप में प्रयोग करने की अनुमति दे दी। लोन नोल ने कंपूचिया को खमेर गणतंत्र बना दिया। उसकी अभिलाषा संसदीय प्रजातंत्र की स्थापना करनी थी, परन्तु वह बहुत ही दमनकारी हो गया।

कंपूचियाई साम्यवादी कम्यूनिस्ट पार्टी या खमेर राज स्वतंत्रता के समय से ही अव्यवस्थित लगे। 1962 के बाद यह पुनर्जीवित होने लगे। 1960 के दशक के अन्त तक खमेर राज्य को किसानों तथा ग्रामीण गरीबों के बीच बहुत समर्थन मिला तथा यह काफी मजबूत हो गया। अमरीका समर्थित सैनिक शासन की स्थापना के पश्चात् खमेर राज ने अप्रजातांत्रिक सरकार को गिराने के लिए सशस्त्र संघर्ष का आरंभ किया। अब नरोदम सिंहानुक ने खमेर राज के साथ संधि कर ली और मई 1970 में नेशनल यूनाइटेड फ्रंट नामक दल की स्थापना हुई। नरोदम सिंहानुक को इसका अध्यक्ष चुना गया। अपने राजनीतिक कार्यक्रम में इस मोर्चे ने इम बात पर जोर दिया कि इसका मुख्य उद्देश्य सभी कंपूचियाई देशभक्तों को बिना किसी राजनीतिक दृष्टिकोण या धार्मिक विश्वासों के भेदभाव के कंचिया की वर्तमान सीमा के भीतर राष्ट्रीय स्वतंत्रता की संरक्षा, शांति, तटस्थता तथा क्षेत्रीय अखण्डता तथा देश में लोकप्रिय स्वतंत्र तथा प्रजातंत्रिक सत्ता की स्थापना के लिए साथ किया जाय। इस मोर्चे ने लोन नोल की शक्ति का लगातार प्रतिरोध किया तथा कई सफल लड़ाइयां लड़ी। 1973 के आरंभ तक इस मोर्चे का कंपूचिया के 60 प्रतिशत क्षेत्र तथा 25 प्रतिशत लोगों पर नियंत्रण था। लोन नोल अधिकांशतः अमरीकी समर्थन पर निर्भर था। 1973 में कई महीनों तक अमरीकी ताकतों ने मोर्चा नियंत्रित क्षेत्रों पर भारी बमबारी कर लोन नोल के शासन को संभालने का प्रयास किया। अमरीकी कांग्रेस ने 1973 में बमबारी रोकने का आदेश दिया। लोन नोल की सरकार का बचना कठिन हो गया। 1975 के आरंभ तक मोर्चा देहाती इलाकों पर नियंत्रण कर नोम पेन्ह की ओर बढ़ रहा था। अप्रैल 1975 में नोम पेन्ह से लोन नोल की सरकार अन्तिम रूप से बर्खास्त कर दी गई।

आरंभ में लोन नोल शासन को शहरी मध्यम वर्ग का विस्तृत समर्थन प्राप्त था। फैलती हुई सेना में बहुत लोग शामिल हुए परन्तु किसानों ने इस शासन का समर्थन नहीं किया। यह शासन आरंभ से हो अन्तर्निहित कमजोरियों से ग्रस्त था। शिखर का नेतृत्व हमेशा ही विभाजित रहा। आपसी मतभेद, सरकार समर्थक ताकतों को राष्ट्रीय लड़ाकू सेना में बदलने की समस्या तथा सेना और असैनिक प्रशासन में फैले अनियंत्रित भ्रष्टाचार ने आरंभिक काल में बहुत ही प्रखर उत्साही शहरी समर्थन को समाप्त कर दिया। इस शासन ने नया सरकारी रू तंत्र विकसित करने के उद्देश्य से 1972 में नये संविधान की घोषणा की। अपनी प्रजातांत्रिकता के प्रमाण के रूप में चुनाव कराये। परन्तु अपने दमनकारी स्वरूप तथा अमरीका पर अत्यधिक निर्भरता के कारण सामान्य जनता के बीच बने रहने के लिए जरूरी समर्थन का भी आधार नहीं बना पाई।

कंपूचियन यूनाइटेड फ्रंट का उदय
अप्रैल 1975 में कंपूचियन यूनाइटेड फ्रंट ने सत्ता हथिया ली। राजकुमार सिंहानुक को पुनः राज्याध्यक्ष बनाया गया। 1975 के अन्त में एक राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ। इस अधिवेशन में गणतंत्रात्मक प्रणाली की सरकार स्थापित करने वाले एक संविधान को लागू किया। पुनः इस देश का नाम ‘‘प्रजातांत्रिक कंपूचिया‘‘ पड़ा। मार्च 1976 में 250 सदस्यीय जन प्रतिनिधि सभा के लिए चुनाव हुए। इस नई संसद ने खीउ संफन को राज्याध्यक्ष चुना तथा पोल पोट के प्रधानमंत्रित्व में एक मंत्रिपरिषद नियुक्त की। पोल-पोट जो कि पहले सलोथ सार के रूप में जाना जाता था, फ्रेंच पढ़ा हुआ शिक्षक था। उसने 1962 में कंपूचिया की कम्युनिस्ट पार्टी की सेन्ट्रल कमिटी के सचिव का पद हथिया लिया था। नये संविधान ने कंपूचिया को तटस्थ तथा असंलग्न देश घोषित किया। परन्तु बहुत जल्द यह स्पष्ट हो गया कि कंपूचिया चीन के जनवादी गणतंत्र के साथ बहुत हद तक संलग्न था। वियतनाम के साथ भी इसके संबंद्ध शत्रुतापूर्ण थे जिसने सीमा पर कई भिड़तों का रूप लिया। इन भिड़न्तों ने 1977 में कंपूचिया तथा वियतनाम

 कंपूचिया का समाज तथा राजनीति
अमरीका समर्थक लोन नोल की हार के पश्चात् कंपूचिया एक सामान्यतः शांतिपूर्ण नया समाज बना चुका होता। परन्तु यहां के लोगों के लिए घटनाक्रम ने अनर्थकारी मोड़ ले लिया। खमेर रुज के (पोल-पोट हेंग सेरी गुट) के नये नेता ने जितना जल्द संभव हो सकता था, उतना कंपूचिया की गतिहीन तथा अर्द्ध सामन्तवादी समाज को बहुत ही आधुनिक साम्यवादी समाज में बदलने के लिए कठोर कदम उठाये। नोम पेन्ह पर कब्जा करने के तुरन्त बाद वहां के निवासियों को इस अपव्ययी खर्चीले शहरं को छोड़कर ग्रामीण क्षेत्रों की ओर लौटकर किसानों के साथ काम करने को कहा गया। निःसंदेह यह एक तर्कसंगत नीति थी, का कार्यान्वयन बहुत ही असंगत तथा हिंसक था। इसका अंजाम बहत ही अनर्थकारी हआ। कंपूचिया के बहुत सारे लोगों की जानें गई। जनसंख्यिक प्रभाव इतना भयानक था कि राजधानी की जनसंख्या मात्र 20,000 रह गई। इस शासन की राजनीतिक नीति भी बहुत ही जोखिम भरी साबित हुयी। कंपूचिया के लोगों के निर्विवाद नेता राजकुमार नरोदम सिंहानुक को राज्याध्यक्ष का पद छोड़ना पड़ा तथा महीनों नजरबंद रहना पड़ा। बाद में वे बीजिंग प्रवास में चले गये। नये शासन ने इससे पहले वाले शासन के अवशेष को भी समाप्त करना आरंभ किया। इसने बड़े पैमाने पर किसानों, पुराने नेताओं तथा बुद्धिजीवियों की जाने लेना शुरू किया। यह शासन विरोध के प्रति पूर्णतया असहिष्णु था। कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर भी भीतरी प्रजातंत्र का दम घोंट दिया गया। जाने माने कम्यूनिस्ट नेताओं को दल से निकाल दिया गया तथा उनकी हत्या कर दी गई। “इस शासन ने चीन के सांस्कृतिक क्रांति की नकल करने के प्रयास में देश के नागरिकों से बदला लिया। पोल पोट का शासन बुद्धिजीवियों, छात्रों, कार्यालय के कर्मचारियों तथा बौद्ध पूजारियों को मताने में बहुत निष्ठर था। इनमें से बहुतों को मौत के घाट उतार दिया गया। इस शासन ने कंपूचिया के नागरिकों के खिलाफ बहुत बड़े पैमाने पर जाति संहार की नीति को कार्यान्वित किया। करीब-करीब सब धार्मिक तथा जातीय समूहों को मिटाया जा रहा था। 1975-79 के बीच इस शासन काल में एक करोड़ कंपूचियन मार दिये गये। सिंहानुक के पांच बेटे तथा पंद्रह पोते मारे गये। पूरी जनसंख्या को समाज को बदलने में लगा दिया गया। निजी सम्पत्ति को समाप्त कर दिया गया। पैसे के उपयोग पर पाबंदी लगा दी गई। जनता को सामूदायिक जीवन जीने के लिए बाध्य किया गया। पुनर्गठन की नीति के आर्थिक परिणाम भी बहुत अनर्थकारी हुए। राष्ट्रीय बैंक बरबादी की स्थिति में था। अनाज का औसत उत्पादन पहले के उत्पादन स्तर का 60-70 प्रतिशत मात्र रह गया। इस नीति ने कंपूचिया के सांस्कृतिक विकास को भी रोक दिया। राष्ट्रीय पुस्तकालय को गोदाम में बदल दिया गया।

बहुत से पुराने देशभक्त तथा कम्युनिस्ट जान बचाने के उद्देश्य से वियतनाम भाग गये। वियतनाम की सरकार के भरपूर समर्थन से इन लोगों ने 1978 के दिसंबर में राष्ट्रीय रक्षा के लिए कंपूचियन युनाइटेड फ्रंट बनाया। इस मोर्चे ने कंपूचिया के लोगों को पोल पोट की दमनकारी सरकार के खिलाफ संघर्ष करने की आवाज दी। इस मोर्चे ने वियतनाम की नियमित सेना के समर्थन से पोल पोट की सरकार के खिलाफ सशस्त्र लड़ाई शुरू की। बहुत जल्द इसे सफलता मिली तथा राजधानी नोम पेन्ह पर इसने जनवरी 7, 1979 को कब्जा कर लिया इस मोर्चे ने कंपूचिया को जनवरी 11 को ‘पीपल्स रिपब्लिक ऑफ कंपचिया‘ घोषित किया।

बोध प्रश्न 3
टिप्पणियांः क) नीचे दिये गये स्थान का अपने उत्तर के लिए प्रयोग करें।
ख) अपने उत्तर की तुलना इस इकाई के अन्त में दिये गये उत्तर से करें।
1) 1953 में कंपूचिया की स्वतंत्रता के पश्चात् उसके राजनीतिक विकास की रूपरेखा प्रस्तुत करें।

 गृह युद्ध
प्रजातांत्रिक कंपूचिया की खमेर रूज सरकार को नोम पेन्ह से तो निकाल दिया गया परन्तु थाई सीमा के निकट कुछ क्षेत्रों पर उसका नियंत्रण बना रहा। पोल पोट की जगह पर खीय सेम्फन को सेना प्रधान नियुक्त किया गया। खमेर रूज ने अपनी मौलिक नीतियों को संशोधित किया। खमेर रूज नियंत्रित क्षेत्रों में बौद्ध धर्म को पुनर्जीवित किया गया तथा निजी कृषि कार्य को प्रोत्साहित किया गया। इसने अपने राजनीतिक खंड का नया नाम पार्टी ऑफ डैमोक्रेटिक कंपचिया रखा। पहले इस दल का नाम कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ कंपचिया था। थाइलैंड की सीमा पर अपने आधारों से खमेर रूज ने वियतनाम समर्थित हेंग सैमरिन सरकार से अपना प्रतिरोध जारी रखा। इससे कंपूचिया में एक लम्बे चले गृह युद्ध का आंरभ हुआ। खमेर रूज और भी मजबूत हुआ। सिंहानुक तथा दूसरी नोम पेन्ह विरोधी गैर-साम्यवादी ताकतें हैंग सैमरिन सरकार को हटाने के लिए साथ हो गई। अमरीका समर्थित अंतर्राष्ट्रीय शक्तियां, चीन तथा दक्षिण पूर्व एशिया के राष्ट्रों के समूह ने वियतनाम तथा हैंग सैमरिन विरोधी तीन गुटों, खमेर रूज कंपूचियन पीपल्स लिब्रेशन फ्रंट (लोन नोल कम्युनिस्ट समर्थकों का एक विरोधी संगठन) तथा सिंहानुक के शाही समर्थक दल को साथ लाया तथा उनके बीच जून 1982 में एक समझौता कराया। इन शक्तियों ने हैंग सैमरिन विरोधी गठबंधन बनाया तथा प्रवास में सरकार बनायी जिसके अध्यक्ष राजकुमार सिंहानुक, उपाध्यक्ष खीयू फ्रंट के सोन सान प्रधानमंत्री बने। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसे प्रवास में सरकार की मान्यता दी। संयुक्त राष्ट्र संघ ने नोम पेन्ह की सरकार को मान्यता नहीं दी। नोम पेन्ह की सरकार को चुनाव से वैधता मिल चुकी थी, कंपूचिया के बड़े क्षेत्र पर इसका प्रभाव तथा फिर भी इसको अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से बहुत कम समर्थन तथा मान्यता मिली। कई वर्षों तक यह देश गृह युद्ध से ग्रस्त रहा। यहां सुरक्षा, जीवन तथा संपत्ति तीनों में से कुछ भी नहीं थे। बहुत से कंपूचियाई अपना घर छोड़ कर कंपूचिया थाइलैंड सीमा पर शरणार्थी की तरह रहने को बाध्य थे। देश की अर्थ व्यवस्था चरमरा गयी थी। कंपूचिया जो कभी जरूरत से अधिक चावल उत्पादन करने वाला देश था अब अकाल तथा भूखमरी से ग्रस्त हो गया।

राजकुमार सिंहानुक खमेर रूज से अपनी दोस्ती बहुत दिन तक बनाये नहीं रख सके। अब वे खमेर रूज के विरोधी है। राष्ट्रीय सामंजस्य के लिए अन्तरिम सरकार बनाने के हाल के प्रयासों में वे खमेर रूज को साथ करने के पक्ष में नहीं हैं। जून 1993 में एक बैठक में उन्होंने कहा “हम उन पर (खमेर लोगों) शत प्रतिशत विश्वास नहीं कर सकते।

बोध प्रश्न 4
टिप्पणियांः क) नीचे दिये गये स्थान का अपने उत्तर के लिए प्रयोग करें।
ख) अपने उत्तर की तुलना इस इकाई के अन्त में दिये गये उत्तर से करें।
1) कंपूचिया के गृह युद्ध पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।

आर्थिक विकास
कंपूचिया एक कृषि प्रधान देश है। इसका औद्योगिक क्षेत्र बहुत ही छोटा है। चावल यहां की मुख्य फसल है। 1970 में करीब 2.4 करोड़ हैक्टेयर जमीन में चावल उपजाया जाता था। मैकौंग नदी तथा टानले सैप (महान झील) द्वारा लायी जाने वाली मौसमी बाढ़ के कारण देश की मिट्टी भीगे चावल की खेती के लिए उपयुक्त है। जल की मछलियाँ तथा ताजी सब्जियां उपलब्ध हैं। फलस्वरूप ग्रामीण लोगों को संतुलित मात्रा में ठोस आहार मिल जाता है। 1970 में कंपूचिया की प्रति व्यक्ति औसत आय 130 डालर प्रति वर्ष थी। औपनिवेशिक शासकों ने आर्थिक विकास पर अधिक ध्यान नहीं दिया। आजादी के समय कंपूचिया को विरासत में बहुत संकीर्ण औद्योगिक आधार मिला। कुछ उद्यान आधारित उद्योग थे तथा कुछ कृषि और जंगल उत्पादों को संसाधित करने के कारखाने थे। अपने घरेलु बाजार की बढ़ती हुई मांग को पूरा करने, विदेशी मुद्रा बचाने तथा आयात कम करने के लिए आजादी के पश्चात् कई उद्योग लगाये गये। 1970 के दशक के आरंभ में कंपूचिया 150 किलो वॉट प्रति घंटे बिजली पैदा करता था। चीन के जनवादी गणतंत्र ने कंपूचिया को उद्योग विकसित करने में मदद की। चीन ने 22.4 करोड़ डालर कीमत का साज सामान की सहायता देना मंजूर किया। चीन ने कपड़ों के कारखाने बनाने में भी मदद की। बहुत सारे दुसरे भूतपूर्व समाजवादी देशों ने भी ट्रैक्टर के पुर्जे जोड़ने, टायर बनाने तथा चीनी परिष्करण के लिए संयत्रों को लगाने में सहायता दी। सिंहानुक के काल (1955 से 1970) में कंपूचिया को मूल ढांचे तथा सामाजिक उपकरण के विकास में बहुत सफलता मिली। कंपूचिया अतल समुद्र में अपने निकास के लिए वियतनाम पर आश्रित था। सरकार ने फ्रांस की सहायता से स्याम की खाड़ी में एक बंदरगाह विकसित की, जिसे व्यापार के लिए 1960 में खोल दिया गया। 1960 के दशक में नयी सड़कें बनायी गयी तथा रेलवे लाइनें भी। सिंहानुक की सरकार को कई देशों से काफी मात्रा में विदेशी सहायता मिली। आर्थिक विकास के खर्च को पूरा करने के लिए सरकार ने आन्तरिक साधन भी जुटाए।

1960 के दशक के मध्य में सरकार ने कई महत्वपूर्ण फैसले किये। 1963 के अन्त में कंपूचिया ने अमरीकी सहायता लेना छोड़ देने का फैसला किया। उसी वर्ष आयात निर्यात का राष्ट्रीयकरण किया गया। बैंकों का भी राष्ट्रीयकरण किया। विदेशी सहायता की समाप्ति से आर्थिक संकट उत्पन्न हुआ, जिससे शहरी मध्यम वर्ग जीवन स्तर प्रभावित हुआ। ये लोग सरकारी नीतियों के खिलाफ बहुत मुखर हुए तथा सिंहानुक के विरुद्ध आंदोलन का आधार बने। इस आंदोलन ने दक्षिण पक्ष के सैनिक अधिकारियों को सत्ता पलट में सहायता की, जिससे 1970 में सिंहानुक से शासन छीना गया। इस सत्ता पलट ने कंपूचिया को एक गृह युद्ध में झोंक दिया, जिससे देश की अर्थव्यवस्था विघटित हो गई। युद्ध से औद्योगिक तथा कृषि, दोनों क्षेत्रों में उत्पादन कम हो गया। कंपूचिया की अर्थव्यवस्था पूर्णतः छिन्न-भिन्न हो गई। सरकारी राजस्व प्रायः शून्य हो गया जबकि सैन्य खचे बहुत बढ़ गया। देश पूर्णतः अमरीकी सहायता पर निर्भर हो गया।

खमेर रुज ने 1975 में सत्ता पर कब्जा जमा लिया। नये शासन की जोखिम भरी नीतियां अर्थव्यवस्था को 1970 से पहले की स्थिति में लाने में असफल रही। हैंग सैमरिन की सरकार द्वारा सत्ता सम्हालने के पश्चात् आर्थिक पुनः लाभ होने लगा। सरकार गम्भीर सीमाओं के अन्दर कार्य कर रही थी। उसे अधिक विदेशी सहायता नहीं मिल रही थी। इसे एक लम्बा खींचा गृह युद्ध लड़ना पर रहा था। इस सबके ऊपर प्रकृति भी निष्ठुर हो जाती थी कभी-कभी। तब भी आर्थिक क्षेत्र में कार्य पूर्व शासकों से बहुत अच्छा था।

चावल का उत्पादन 1982 के 1.7 मैट्रिक टन से बढ़कर 2.0 मैट्रिक टन हो गया। दूसरी फसल जैसे मकई, मीठा आलू तथा शकरकंद की उपज 1970 के पहले वाले स्तर पर पहुँच गई। चीनी तथा दूसरे बगीचे के उत्पादन जोकि प्रायः खत्म हो गये थे काफी बढ़े। मछली का उत्पादन 1980 से 85 तक तिगुना हो गया। वन उत्पाद भी बढ़े। 1970 के दशक में उद्योग धन्धे पूर्णतः विच्छिन्न हो गये थे। 1983 तक 60 कारखानों में उत्पादन पुनः आरंभ हो गया। देश का निर्यात, जिसमें कृषि उत्पादन तथा औद्योगिक उत्पादन, जैसे कि रबर शामिल हैं, बहुत बढ़ गया। 1970 के दशक में कई बार देश में अकाल पड़ा, परन्तु 1980 के दशक में अकाल का भय प्रायः खत्म हो गया।

हैंग सैमरिन की सरकार ने मिश्रित अर्थव्यवस्था के प्रतिमान का अनुसरण किया। सरकार ने सरकारी तथा निजी दोनों क्षेत्रों को प्रोत्साहित किया तथा साथ-साथ मुक्त व्यापार की भी अनुमति दी। यद्यपि इस नीति ने एक धनी शहरी मध्यम वर्ग का सृजन किया, फिर भी सरकार ने उदारीकरण की नीति को प्रोत्साहित किया,क्योंकि इससे आर्थिक विकास हुआ है। अब तक प्राप्त सफलता से देश की अर्थव्यवस्था संकट से बाहर नहीं निकली है। देश की अर्थव्यवस्था का समग्र समुत्थान अभी भी 1970 के पहले के स्तर पर नहीं पहुंचा है। कंपूचिया अभी भी इस क्षेत्र का सबसे गरीब तथा विश्व के सबसे गरीब देशों में से एक है।

बोध प्रश्न 5
टिप्पणियांः क) नीचे दिये स्थान का अपने उत्तर के लिए प्रयोग करें।
ख) अपने उत्तर की तुलना इस इकाई के अन्त में दिये उत्तर से करें।
1) 1980 के दशक में कंपूचिया के आर्थिक पुनठत्थान पर टिप्पणी लिखें।

पैरिस का शांति समझौता
अक्टूबर 23, 1991 को एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर हुए। यह समझौता 13 वर्ष पुराने गृह युद्ध को समाप्त करने के लिए हुआ। वर्षों के कठिन विदेशी प्रयासों के बाद चारों गुट शांति के सामान्य आधार पर सहमत किये गये। राजकुमार सिंहानुक, चीन तथा वियतनाम द्वारा किये गये प्रयासों से ही समझौते पर हस्ताक्षर हो पाना संभव हुआ। चीन तथा वियतनाम अपने संबंधों को सामान्य करने के लिए आपसी शत्रुता से अब बाहर निकल रहे हैं। नोम पेन्ह के प्रधानमंत्री हून सेन की सरकार का वियतनाम प्रधान समर्थक रहा है।

चीन ने प्रमुख विरोधी गुट खमेर रुज तथा इसके दो नाम मात्र के सहयोगी गुटों को सैनिक सामान दिया। चीन तथा वियतनाम दोनों ने रास्ता बदल कर अपने आश्रितों को शांति के लिए मनाया। कंपूचिया में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन हए। वहां की कम्युनिस्ट पार्टी ने पैरीस समझौते के अवसर पर अपना नाम बदलकर कंबोडियन पीपल्स पार्टी रखा तथा मार्क्सवादी विचारधारा को छोड़कर बहुदलीय प्रजातंत्र तथा मुक्त बाजार की वकालत शुरू कर दी। हुन सेन सिंहानुक के प्रति अपने समर्थन की घोषणा की। सिंहानुक ने 1991 की तटस्थत घोषणा से पहले तक देश के भावी राष्ट्रपति के रूप में प्रतिरोध का नेतृत्व भी किया था।

फ्रांस तथा इंडोनेशिया की सह-अध्यक्षता में कंपूचिया पर पैरीस अंतर्राष्ट्रीय शांति सम्मेलन के तत्वधान में पैरीस समझौते पर 19 राष्ट्रों ने हस्ताक्षर किये। हस्ताक्षर होने से पहले संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों ने अगस्त 1990 में एक मसौदा तैयार किया था तथा संघर्षरत गुटों को उसमें बिना कुछ जोड़े या परिवर्तन किये उस पर हस्ताक्षर करने के लिए प्रेरित किया था। चारों गुटों के नेताओं ने भी पैरीस शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये। इस समझौते ने संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद तथा महासभा से कंपूचिया में परा-राष्ट्रीय सत्ता की स्थापना की मांग की। कंपूचिया में संयुक्त राष्ट्र की परा-राष्ट्रीय सत्ता को निम्नलिखित कार्य सौंपे गयेः
1) सहमति के अनुसार हर गुट अपनी सेना का 70 प्रतिशत विघटन कर शेष को वापस छावनी भेजेगा।
2) शस्त्रों को वापस लेकर उन्हें छावनी में जमा करना।
3) युद्ध विराम लागू करना तथा यह निश्चित करना कि अब चीन, वियतनाम, दक्षिण पूर्व एशिया सैनिक संगठन के देशों या अन्य विदेशी स्रोतों से सैनिक सहायता नहीं आये।
4) 1993 के चुनाव तक देश पर शासन करना।
5) देश की प्रतिरक्षा, विदेश विभाग, जनसुरक्षा, वित्त तथा सूचना मंत्रालय अपने हाथ में ले लेना।
6) यह निश्चित करना कि मानव अधिकारों का उल्लंघन न हो।

शांति समझौते की शर्तों के अनुसार संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपनी शांति बरकरार रखने की कार्यवाही 1991 के अन्त तक आरंभ कर दी। 22,000 से ज्यादा लोगों ने शांति प्रक्रिया के विभिन्न चरणों में भाग लिया। परन्तु पैरिस शांति समझौते के कई महत्वपूर्ण प्रावधान जिनके तहत शांति प्रक्रिया आरंभ हुई थी अपूर्ण ही रहे। इसमें संघर्षरत गुटों का निरसीकरण तथा विघटन शामिल हैं, इसके अतिरिक्त युद्ध से विध्वस्त देश में सयुक्त राष्ट्र संघ के शांति लाने के प्रयासों के बावजूद गुटों के बीच लड़ाई जारी रही है।

 चुनाव
पैरिस शांति समझौते के प्रावधानों के अनुसार संयुक्त राष्ट्र संघ की शांति स्थापित करने वाले शिष्ट मंडल ने 120 सदस्यों वाली संसद के लिए मई, 1993 में चुनाव कराये। खमेर रुज जिसने शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये हुये थे चुनाव का बहिष्कार किया। उसने नोम पेन्ह की सरकार पर स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनाव.न होने देने का आरोप लगाया। तीन मुख्य दलों ने चुनाव में भाग लिया। ये दल हैंः ‘‘रोमालिस्ट फनसीनपेक दल‘‘ जिसे 1.50 करोड़ अर्थात् 45.5 प्रतिशत मत मिले, कंबोडियन पीपल्स पार्टी को 1.25 करोड़ या 38.4 प्रतिशत तथा बौद्ध लिबरल पार्टी को 1,20,000 या 3.7 प्रतिशत मत मिले। फेकीनपेक को 56, सत्ताधारी दल को 49 तथा बुद्धिस्ट पार्टी को 6 सीटें मिली। सत्ताधारी दल ने चुनाव में अनियमितता का आरोप लगाया तथा देश के 21 में से 4 प्रान्तों में फिर से मतदान कराने की मांग की। इन चार प्रान्तों में फकीनफेक की जीत हुई। सत्ताधारी दल ने आरोप लगाया कि कुछ मत पेटियों के मुहर टूटे हुए थे तथा संयुक्त राष्ट्र संघ ने लोगों पर दबाब डाला था कि वे कैसे मतदान करें। सत्तारूढ़ दल ने चुनाव परिणाम का विरोध करने की धमकी दी। संयुक्त राष्ट्र संघ के स्थानीय अधिकारियों ने या जिन्होंने मतदान का सर्वेक्षण किया था, चुनाव को स्वतंत्र तथा निष्पक्ष प्रमाणित कर दिया। अन्त में सत्ताधारी दल ने भी परिणाम को स्वीकार कर लिया।

राजकुमार सिंहानुक ने नई व्यवस्थापिका की बैठक बुलाने तथा एक अन्तरिम सरकार बनाने के लिए जरूरी कदम उठाये। 120 सदस्यों की निर्वाचित सभा को तीन महीने के भीतर एक प्रजातांत्रिक संविधान लागू करना है और इसके बाद एक सरकार भी बनानी है।

इस नव निर्वाचित संविधान सभा की पहली बैठक नोम पेन्ह में 14 जून 1993 को हुई। इस बैठक ने सर्वसम्मति से राजकुमार नरोदम सिंहानुक को राज्याध्यक्ष चुना जिनके पास देश का नेतृत्व करने की सारी शक्तियां थीं। इसने अमरीका समर्थित 1970 के सत्तापलट, जिसने राजकुमार सिंहानुक को पदच्युत कर दिया था, को अवैध करार दिया। खमेर रूज अब तक सामान्य राजनीतिक दल के रूप में मुख्य धारा में लौटना चाहती है। परन्तु सिंहानुक ने कहा है कि खमेर रूज के सामान्य राजनीतिक दल के रूप में नोम पेन्ह लौटने के प्रस्ताव पर यकीन नहीं किया जा सकता।

बोध प्रश्न 6
टिप्पणीः क) नीचे दिये गये स्थान को अपने उत्तर के लिए प्रयोग करें।
ख) अपने उत्तर की इस इकाई के अन्त में दिये गये उत्तर से तुलना करें।
1) संयुक्त राष्ट्र संघ के कंपूचियों में शांति प्रयासों का वर्णन करें।
2) कंपूचिया के 1993 के चुनाव पर एक छोटी टिप्पणी लिखें।

भारत कंपूचिया संबंध
भारत तथा कंपूचिया के बीच ऐतिहासिक सम्बन्ध तथा सांस्कृतिक घनिष्टता अति प्राचीन काल से है। कंपूचिया के सबसे पुराने राज्य फूनान, चेन ला आदि भारतीयकृत राज्य थे। भारत का सांस्कृतिक प्रभाव अंगकार काल में और भी गहरा हुआ। ईसा युग के आरंभ में कंपूचिया में हिन्दू धर्म का प्रसार हुआ। मध्य युग में बुद्ध धर्म ने हिन्दू धर्म की जगह ले ली थी। दोनों देशों के बीच सांस्कतिक सम्पर्क बने हए है। 1950 के दशक के मध्य से बहुआयामीय सम्बंध विकसित होने लगा। कंपचिया के राष्ट्राध्यक्ष राजकुमार नरोदम सिंहानुक ने मार्च 1955 में भारत की प्रथम यात्रा की। सिंहानुक के सम्मान में दिये गये 18 मार्च को नई दिल्ली में एक प्रीति भोज में जवाहरलाल नेहरू ने कहा ‘‘आज कंबोज के देश को भारत ने जो महानतम उपहार दिये उनमें बुद्ध का शांति तथा मित्रता का संदेश है। शायद उस संदेश की जरूरत हमारे देशों में तथा दूसरे देशों में अभी से अधिक कभी भी नहीं थी।‘‘ भारत तथा कंपूचिया ने इस अवसर पर एशिया के नव स्वतंत्र देशों की विभिन्न समस्याओं पर विचार विमर्श किया। कंपूचिया के नेता की यात्रा का परिणाम बहुत सफल रहा। भारत तथा कंपूचिया शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों का पालन करने के लिए सहमत हुए। भारतीय नेताओं के साथ अपनी बातचीत का निचोड़ बताते हुए सिंहानुक ने कहा कि मुझे इस बात की बहुत प्रसन्नता है कि मैंने भारत के लोगों में कंपूचिया के साथ ठोस आधार पर संबंध स्थापित करने की मधुरतम इच्छा को महसूस किया है। हम बराबर मित्र राष्ट्र रहे हैं और आज अपने देशवासियों के लिए इसका प्रतिफल ले जाने में हमें प्रसन्नता है। प्रथम भारत हमें वह सारी सहायता देने के लिए तैयार है जिसकी हमें जरूरत है। द्वितीय, भारत ने हमारी आजादी तथा अखंडता को सुरक्षित रखने के लिए भी मदद का वचन दिया है। शिष्ट मंडल का आदान-प्रदान होगा। बाद में राजकुमार सिंहानुक ने कहा कि कंपूचिया पर भारत की विदेश नीति का प्रभाव स्पष्ट है। भारत ने कंपूचिया के स्वतंत्र अस्तित्व का बराबर समर्थन किया। 1970 में सिंहानुक के सत्ता से हटाये जाने पर भारत ने तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। भारत के विदेश विभाग के मंत्री ने कहा कि ‘‘कंपूचियां की स्वतंत्रता तथा वहां शांति बनाये रखने के लिए भारत राजकुमार सिंहानुक की भूमिका को स्वीकार करता है।‘‘ भारत ने 1975 में कंपूचिया के लोगों की विजय का स्वागत किया। भारत ने खमेर रूज की दमनकारी नीतियों का भी विरोध किया। भारत ने कंपूचिया में संयुक्त राष्ट्र संघ के शांति स्थापित करने के प्रयासों का स्वागत किया।

बोध प्रश्न 7
टिप्पणियांः क) नीचे दिये गये स्थान का अपने उत्तर के लिए प्रयोग करें।
ख) अपने उत्तर की जांच इस इकाई के अन्त में दिये गये उत्तर से करें।
1) भारत कंपूचिया संबंध पर एक संक्षिप्त निबंध लिखें।

बोध प्रश्नों के उत्तर
बोध प्रश्न 1
1) अ) छिटपुट आबादी
ब) 85 प्रतिशत खमेर, दूसरे जातीय समूह भी हैं।
स) लम्बे गृह युद्ध के कारण 1970 के दशक में जनसंख्या बहुत घट गई।
द) 1980 के दशक में जनसंख्या बढ़ने लगी।
2) अ) इस देश में महान कृषीय सम्भावनाएं हैं।
ब) जल विद्युत स्त्रोत
स) विशाल वन
द) खदान तथा खनिज स्त्रोत भी उपलब्ध है।
इ) देश के पास विशाल अन्तर्देशीय मत्स्य ग्रहण स्त्रोत हैं।

बोध प्रश्न 2
1) अ) राजनीतिक इतिहास इस युग के आरंभ में शुरू होता है।
ब) खमेर अंगकोर वंश ने 500 वर्ष तक शासन किया — कंपूचिया का स्वर्ण युग।
स) स्यामियों तथा वियतनामियों के हस्तक्षेप ने स्वतंत्रता को सीमित किया, परन्तु फ्रांसीसियों के. शासन में यह पूर्णतः खो गई।
द) 1953 में प्राप्त स्वतंत्रता के लिए भीषण संघर्ष हुआ था।

बोध प्रश्न 3
1) अ) स्वतंत्रता को मजबूत बनाने के लिए सिंहानुक के प्रयास।
ब) 1970 के अमरीका समर्थित सत्ता पलट जिसने सिंहानुक को सत्ता से हटा दिया और गृह युद्ध को जन्म दिया।
स) 1975 में नव उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन की जीत हुई, परंतु यह पोल-पोट के शासन के दमनकारी जाति संहार में विकृत हो गयी।
द) वियतनाम समिर्थित हेंग सैमरिन शासन ने पोल-पोट को बर्खास्त कर दिया।
इ) गृह युद्ध पुनः प्रारंभ हो गय जो अभी भी जारी है।

बोध प्रश्न 4
1) गृह युद्ध सबसे पहले अमरीका समर्थित लोन नोल के काल में हुआ तथा पोल-पोट के हटाये जाने के परिणामस्वरूप पुनः आरंभ हुआ।
बोध प्रश्न 5
1) 1950 तथा 1960 के दशक में कंपूचिया ने साम्राज्यवादियों द्वारा विध्वस्त अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण का प्रयास किया। परन्तु 1970 का सैनिक सत्ता-पलट तथा 1975-79 तक पोल-पोट के शासन ने अर्थव्यवस्था को नष्ट कर दिया। वियतनाम समर्थित हेंग सैमरिन सरकार ने देश को विकसित करने के कदम उठाये। परन्तु देश को 1970 के पहले स्तर पर लौटाया नहीं जा सका। हैंग सैमरिन सरकार बहुत हद तक पुनरूत्थान कर सकी।
बोध प्रश्न 6
1) 1980 के दशक के आरंभ में गृह युद्ध की शुरुआत होने के समय से ही संयुक्त राष्ट्र संघ शांति तथा सथायित्व की पुनःस्थापना के लिए प्रयत्न करता रहा है। 1991 में संयुक्त राष्ट्र संघ के उपक्रम के अधीन एक शांति समझौते पर पैरिस में हस्ताक्षर हुये। शांति की स्थापना तो अभी भी नहीं हुई है, परन्तु शांति के आसार उज्जवल हो चुके हैं।
2) पैरिस समझौते के प्रावधानों के अनुसार कराये गये तथा मुख्य राजनीतिक गुट चुनाव परिणामों को मानने के लिए सहमत हो गये हैं।
बोध प्रश्न 7
1) भारत कंपूचिया संबंध अति प्राचीन काल से है। अतीत में भारत ने कंपूचिया को बुद्ध का संदेश दिया तथा वर्तमान में कंपूचिया की स्वतंत्रता को मजबूत करने में मदद कर रहा है।

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