हिंदी माध्यम नोट्स
बौद्ध धर्म में तीर्थयात्रा (Buddhist Pilgrimage in hindi) जैन धर्म में तीर्थयात्रा (Jain Pilgrimage) सिक्ख इस्लाम
(Buddhist Pilgrimage in hindi) बौद्ध धर्म में तीर्थयात्रा जैन धर्म में तीर्थयात्रा (Jain Pilgrimage) सिक्ख इस्लाम कौनसे है कौन कौन से है नाम बताइए ?
बौद्ध धर्म में तीर्थयात्रा (Buddhist Pilgrimage)
बौद्ध तीर्थ इस वक्तव्य या कथन का एक ठोस उदाहरण है कि रहस्यवाद एक ‘‘आतंरिक तीर्थ‘‘ है, और तीर्थ एक ‘‘बाह्यकृत रहस्यवाद‘‘ है। आंतरिक तीर्थ या साधना के माध्यम से बौद्ध निर्वाण‘‘ के लक्ष्य के और निकट पहुँच जाता है। लेकिन बुद्ध की प्रतिमा की ओर मुख करना बुद्धत्व की राह में एक महत्वपूर्ण प्रारंभिक चरण है। बुद्ध को पृथ्वी पर उनकी मौजूदगी के चिह्नों या अवशेषों में प्रस्तुत किया जाता है। शारीरिक अवशेषों के अतिरिक्त बौद्धिक परंपरा में निम्न को भी मान्यता दी गई है:
प) परिभोगिकाधातु या वे अवशेष या वस्तुएँ जिनका बुद्ध ने उपयोग किया था (जैसे, उनका. भिक्षा पात्र) या पृथ्वी पर उनके छोड़े गए चिह्न या (जैसे पद् चिह्न या परछाई) और
पप) उद्देसिकाधातु या वे स्मारक वस्तुएँ जिनमें वास्तविक अवशेष नहीं होते (जैसे, प्रतिमाएँ और स्तूप)। पृथ्वी पर बुद्ध की मौजूदगी के इन संबंधित स्तूपों या चैत्यों को बौद्धों ने तीर्थस्थल बना दिया है।
दूसरी परंपरा के अनुसार बुद्ध ने बौद्धों के लिए तीर्थ के लक्ष्य स्वयं निर्धारित किए हैं वे स्थान है,
प) जहाँ बुद्ध का जन्म हुआ था (लुंबिनी, नेपाल),
पप) जहाँ उन्हें बोध की प्राप्ति हुई थी (बौद्ध गया, भारत),
पपप) जहाँ उन्होंने ‘‘विधान का चक्र घुमाया‘‘ अर्थात अपना पहला उपदेश दिया था (बनारस के निकट सारनाथ का डियर पार्क), और
पअ) जहाँ वह निर्वाण को प्राप्त हुए (कुशीनगर, उत्तर प्रदेश)।
इन स्थानों पर पिछली शताब्दियों की तुलना में अब चीनी अधिक संख्या में आ रहे हैं। इन पवित्र स्थलों पर बौद्ध राष्ट्रों से लगातार तीर्थयात्री आ रहे हैं और विभिन्न देशों के किन्न पंथों ने इन क्षेत्रों में बौद्ध मठ भी स्थापित कर दिए हैं। भारत सरकार ने तीर्थयात्रियों के लिए सांची (ग्वालियर) में एक विश्राम गृह का निर्माण किया है। यहाँ पर बुद्ध के मुख्य शिष्य सारीपुत और महामोगलान से संबंधित स्तूप हैं। भारत में बौद्ध तीर्थों की संख्या सीमित है। दक्षिण भारत में कोई बौद्ध तीर्थ नहीं है। भारत में बौद्ध धर्म के हास और उन्नीसवीं शताब्दी के बीच की लंबी अवधि में बौद्ध तीर्थ मुक्ष्य रूप से भारत के बाहर स्थित बौद्ध प्रदेशों तक सीमित था। श्रीलंका में स्थित तथाकथित सोलह महास्थलों और बारह वर्षीय चक्र से संबंधित उत्तरी थाइलैंड के बारह मंदिरों जैसे कुछ स्थलों का उभरता महत्व मुख्य रूप से विश्व के राजनीतिक और नैतिक समुदायों को एक पवित्र बौद्ध जगत से जोड़ने से संबंध रखता था। चीन के मुख्य प्रदेश में बौद्ध और ताओंवाद दोनों धर्मों से संबंधित अनेक तीर्थस्थल रहे हैं। लेकिन 1949 में कम्युनिस्ट शासन आने के साथ लगता है चीन में तीर्थस्थल समाप्त/ लुप्त हो रहे हैं।
जैन धर्म में तीर्थयात्रा (Jain Pilgrimage)
जैन धर्म के अनुयायी ‘‘अत्यधिक श्रेष्ठ तीर्थयात्री और हमेशा चलायमान रहते हैं‘‘ (मदान 1991: 18)। वास्तव में, जैन लोग श्रमण या घुमक्कड़ साधु को त्याग के सच्चे पथ का प्रमुख आदर्श मानते हैं। इन आदर्शों के पथ का अनुसरण करने का एक महत्वपूर्ण तरीका तीर्थ में मिलता है। डायना एल.ईक के अनुसार जैन धर्म में तीर्थ की अवधारणा का वेदों जैन उपनिषदों में पाए जाने वाले पारगमन के शब्दों, तीर्थ और तरेती, से निकट का संबंध है।
इन शब्दों का प्रयोग प्रारंभिक जैन साहित्य में गहन आध्यात्मिक संक्रमण को व्यक्त करने के लिए किया गया था। वैसे तो बिल्कुल प्रारंभ के जैन साहित्य में बोधि प्राप्त गुरु को ‘‘जिन‘‘ या विजेता कहा गया था, लेकिन फिर कुछ ही समय बाद उसे ‘‘तीर्थंकर कहा जाने लगा, अर्थात वह व्यक्ति जो धारा को पार कर के सुदूर तट पर पहुंच चुका है (इक 1981 रू 333)।
जैन अपने तीर्थों को दो वर्गों में रखते हैंः (1) सिद्ध क्षेत्र जहाँ साधुओं ने मोक्ष प्राप्त किया, और (2) अतिसावगकक्षेत्र जो भक्तों पर कृपा करने वाली मूर्तियों आदि अन्य कारणों से पवित्र हैं (सांगवे: 1980) । यह एक दिलचस्प तथ्य है कि अनेक लोग जैन लोगों की आर्थिक सफलता का कारण उनके साधुओं और पवित्र मूर्तियों की चामत्कारिक शक्ति को मानते हैं। जैनियों में पंथ की अनेक भिन्नताएँ हैं। लेकिन तीर्थ का विचार और पालन समी पंथों के जैनियों के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है। कुछ ऐसे तीर्थस्थल हैं जिनके स्वामित्व को लेकर विभिन्न जैन पंथों में विवाद होते हुए भी वहाँ सभी पंथों के अनुयायी तीर्थ के लिए जाते हैं। वहाँ जैन धर्म के संस्थापक आदर्श या तीर्थंकर का प्रतीक होता है जिसमें सभी आस्था रखते हैं (सिंधी, 1991ः 140)। पवित्र वार्षिकी मनाने के उद्देश्य से आयोजित सामूहिक तीर्थ इतने अधिक पंथों और उपपंथों में बंटे जैनियों के जीवन में समुदाय के यथार्थ को उजागर करते हैं। वस्तुतः प्रत्येक जैनी अपने जीवन में कभी न कभी इन अवसरों पर आयोजित तीर्थों में भाग लेता है। कुछ लोग रेलगाड़ियों, बसों में और पैदल भी दूरस्थ तीर्थस्थलों पर पहुँचते हैं। वे पश्चाताप के रूप में या पुण्य प्राप्त करने के उद्देश्य से अतिरिक्त कष्ट उठाते हैं। ऐसे स्थलों पर जैनियों की भारी संगत इकठी होती है।
सिक्ख धर्म में तीर्थयात्रा (Sikh Pilgrimage)
सिक्ख धर्म के संस्थापक ने कहा थाः ‘‘धर्म शमशानों या मजारों में भटकने या साधना की मुद्रा में बैठने में नहीं होता‘‘ (भारती द्वारा उद्धृत, 1963), देखिए मैकौलिफ, द सिक्ख रिलिजन (ऑक्सफोर्ड, 1909)। सिक्खों के दस गुरुओं में से एक गुरु श्री अमर दास जी ने सिक्खों को हरिद्वार, बनारस, इलाहाबाद आदि स्थानों पर जाने से रोकना भी चाहा। ‘‘लेकिन सिक्ख विशेष कर स्त्रियाँ – हिंदुओं के तीर्थस्थानों में जाते रहते हैं, विशेषकर हरिद्वार में जो पंजाब के निकट है (भारती, 1963: 143)। इस तरह, यह एक दिलचस्प बात है कि दस गुरुओं में विश्वास रखने वाले, श्री गुरु ग्रंथ साहिब और कुछ चिह्नों और पवित्र स्थलों के प्रति श्रद्धा रखने वाले, और प्रारंभ में तीर्थ का विरोध करने वाले सिक्खों ने किस तरह तीर्थ को ग्रहण कर लिया । भारती (वही) के अनुसार श्री गुरु नानक देव स्वयं अजोधन के शेख फरीद के मजार पर गए थे।
श्री गुरु नानक देव ने हरिद्वार, कुरुक्षेत्र, पुरी, रामेश्वरम, वाराणसी, कैलाश आदि हिंदू तीर्थों की भी यात्रा की। लेकिन उन्होंने ऐसा अर्थहीन संस्कारों और अंधविश्वासों पर प्रहार करने. के उद्देश्य से किया। गोपाल सिंह (1970) एम.ए. मैकौलिफ कृत सिक्ख रिलीजन से उद्धरण देते हैं जिसमें सिक्ख धर्म द्वारा मू पूजा और ‘‘पवित्र नदियों और सरोवरों की तीर्थ यात्राओं‘‘ का विरोध दर्ज है। लेकिन वही सिक्ख लेखक एक और जगह पर लिखता है कि इतिहास प्रसिद्ध गुरुद्वारों में अनेक प्रशिक्षित संगीतकारों को वेतन पर रखा जाता है। उनका काम होता है कि वे दिन या रात के किसी भी समय में इकट्ठा होने वाले तीर्थयात्रियों के लिए भक्ति संगीत बजाएँ। अमृतसर का गुरुद्वारा भी ऐसा ही एक स्थल है (सिंह 1970: 84)।
गुरुद्वारा या ‘‘गुरु का द्वार‘‘ शहर और देहात दोनों स्थानों के सिक्खों के जीवन में केंद्रीय भूमिका निभाता है। भारत में इस समय चार प्रसिद्ध गुरुद्वारे हैं – अमृतसर में, पटना (गुरु गोविंद सिंह का जन्म स्थान) में, नादेड़ (उनकी मृत्यु का स्थान) में, और आनंदपुर में। अमृतसर का स्वर्ण मंदिर इनमें सबसे पवित्र है और वहाँ पूरे वर्ष तीर्थयात्रियों का ताँता लगा रहता है। अमृतसर पहले गुरु का चाक या श्री गुरु राम दास के नाम पर रामदास पुर के नाम से जाना जाता था। सिक्ख धर्म में जोश फूंकने वाले श्री गुरु अर्जुन देव ने अमृतसर को अपना मुख्यालय बनाकर उसके महत्व को बढ़ा दिया। उन्होंने वहाँ सरोवर के निर्माण को पूरा किया और उसके बीच में हरमंदिर (परमात्मा का मंदिर) बनवाया। उन्होंने तरनतारन में भी एक मंदिर बनवाया और करतारपुर नगर को बसाया। ये दोनों ही महत्वपूर्ण तीर्थ बन गए । डेरा बाबा नानक का मंदिर पंजाब का एक और प्रसिद्ध तीर्थ है। दिल्ली में दो प्रसिद्ध स्थल हैं गुरुद्वारा शीशगंज (श्री गुरु तेग बहादुर साहिब की शहादत का स्थल) और गुरुद्वारा रकाबगंज (जहाँ उनका पार्थिव शरीर अग्नि को समर्पित किया गया)।
इस्लाम धर्म में तीर्थयात्रा (Pilgrimage in Islam)
मुस्लिम साल में एक बार पश्चिम मध्य अरब स्थित मक्का की तीर्थयात्रा पर जाते हैं। इसे हज कहते हैं। हज का निहितार्थ है किसी देव अथवा पवित्र पर्वत अथवा पावन स्थल की उपस्थिति में ‘‘खड़ा रहना‘‘, उसकी “परिक्रमा करना‘‘ या उसकी यात्रा करना । मुहम्मद साहब ने काबा की यात्रा के इस्लाम पूर्व अनुष्ठान को इस्लाम के पाँच विश्वास स्तंभों में शामिल कर लिया। शेष चार हैं अल्लाह और उसके पैगम्बर में विश्वास करना, एक दिन में पाँच वक्त की नामज पढ़ना, रमजान के महीने में रोजे (उपवास) रखना, और अनिवार्य रूप से जकात (दान या भिक्षा) देना। 1982 में मस्लिमों की संख्या 75 करोड के आसपास थी। उस वर्ष लगभग 30 लाख मुस्लिमों ने यह यात्रा की। हज का अनुभव इस्लामी संस्कृति में समानता और सामाजिक और धार्मिक एकता की एक महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति है। हज करने का कर्तव्य कुरान और पैगम्बर मुहम्मद की शिक्षा (सुन्ना) पर निर्भर है।
वैसे तो हज अल्लाह के प्रति प्रत्येक मुस्लिम महिला और पुरुष का कर्तव्य है, यह निर्णय अंतिम रूप से उस व्यक्ति का ही होता है कि वह ‘‘घर की (यह) यात्रा‘‘ करे या न करे, और यदि करे तो कब करे, इस व्यक्तिगत निर्णय के कारण हज एक ऐच्छिक क्रिया हो जाती है। हज करने का अधिकार किसी भी वयस्क व्यक्ति को होता है।
कार्यकलाप 1
विभिन्न धर्मों में तीर्थयात्राओं पर आधारित अनुभाग 30.3 से लेकर 30.3.8 तक का अध्ययन कीजिए। उनमें आप को जो विभिन्नताएँ और समानताएँ देखने को मिलें उन पर दो पृष्ठों की एक टिप्पणी लिखिए। इसे अध्ययन केंद्र के अन्य विद्यार्थियों की टिप्पणी से मिला कर देखें।
खास हज या महातीर्थ धू-अल-हिज्जा की आठवीं तारीख को शुरू होता है। मक्का के पूर्व में तेरह मील की दूरी पर स्थित अराफात के लिए रवाना होने का दिन होता है। अराफात में दया के पर्वत पर ‘‘खड़े होने‘‘ या वूकूफ की रस्म, भाइचारे और पश्चाताप के विषय दोपहर बाद के प्रवचनों में प्रमुख स्थान लेते हैं। सूर्यास्त के समय ‘‘इफादा‘‘ (उड़ेलना) या ‘‘नफारा (भगदड़) या मुजदलीफा की ओर भागने की रस्म होती है। मुजदलिफा में रात भर रूकने के दौरान तीर्थयात्री छोटे-छोटे पत्थर जमा करते हैं। इन पत्थरों को अगले दिन मीना में शैतान पर पथराव के लिए इस्तेमाल किया जाता है। धू-अल-हिज्जा की दसवीं तारीख हज के मौसम का औपचारिक रूप से अंतिम दिन होता है। इस दिन की अधिकांश रस्में मीना में अदा की जाती हैं, जहाँ (प) इब्राहीम से अल्लाह की आज्ञा न मानने के लिए कहने वाले शैतान पर पथराव के प्रतीक के रूप में अकाबा के स्तभ पर सात छोटे-छोटे पत्थर फेंके जाते है, (पप) महान बलिदान का भोज या ईद अल अदा का आयोजन होता है, (पपप) एहराम की स्थिति से अशुद्धि की रस्म, और (पअ) तवाफ के लिए मक्का जाना, जिसे अल-इफदा कहते हैं (पी.डी. 1966)।
हज पूरा कर लेने वाले व्यक्ति को अपने नाम के आगे हाजी या हाजिया (स्त्रियों के लिए) लगाने का अधिकार मिल जाता है। इस मानद उपाधि से व्यक्ति का समाज में रुतबा बढ़ जाता है। साथ के लोग यह मानने लगते हैं कि उस व्यक्ति ने एक पवित्र कर्तव्य का पालन किया है । इस्लाम में यह सार्वभौमिक आध्यात्मिक प्राप्ति की बात भले ही न हो। लेकिन यह सार्वभौमिक महत्व और आध्यात्मिक पुण्य का मामला तो होता ही है।
ईसाई धर्म में तीर्थयात्रा (Christian Pilgrimage)
तीर्थयात्रियों की ईसाई कलीसिया के धार्मिक जीवन में, विशेषकर मध्य युग में, अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका रही है, और फिलिस्तीन जैसी जगहों के ईसाइयों में अभी भी यह प्रचलित है। श्रद्धालु ईसाई लोग तीर्थयात्रा को सात्विक रिवाज मानते है जिसमें कुछ समय की परेशानियों और खतरों के माध्यम से उन्हें मुक्ति या मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। यह दैवीय सत्ता के संपर्क में आने और तीर्थस्थल से संबद्ध दैवीय शक्ति का आशीर्वाद या कृपा पाने का भी एक साधन होता है। मांगी हुई आशीष मिल जाने पर उसके लिए धन्यवाद ज्ञापन करने के उद्देश्य से भी तीर्थयात्रा की जाती है। भारत में ईसाई पवित्र स्थलों की तीर्थयात्रा की दो उल्लेखनीय विशेषताएँ हैं। पहला, सबसे अधिक लोकप्रिय पवित्र स्थलों में पूरे वर्ष केवल ईसाई धर्म को मानने वाले नहीं बल्कि ‘‘दूसरे धर्मों के लोग भी‘‘ जाते हैं (मूर 1964: 47)। ‘‘यहाँ तक कि मुस्लिमों को भी मूर्ति पूजा के विरुद्ध होने के बावजूद मरियम की प्रतिमा पर प्रार्थना करते देखा गया है‘‘। दूसरा, इन ईसाई तीर्थस्थलों में से अधिकांश से संबद्ध मान्यताओं में उन पर हिंदुत्व का महत्वपूर्ण प्रभाव देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए, शरीर के किसी भी अंग की व्याधि से ग्रस्त तीर्थयात्री बांद्रा में स्थित संत मेरी को उस अंग का मोम में ढला नमूना चढ़ाते हैं। यह तिरुपति में हिंदू भक्तों द्वारा व्याधिग्रस्त अंग के चाँदी का अन्य धातु में बने नमूने को चढ़ाने की प्रथा से मिलता-जुलता है। ईसाई लोग हावड़ा से बंदेल तक ष्अवर लेडी ऑफ हैप्पी वॉयेजः तक रेलगाड़ी से न जाकर या कष्ट उठाते हुए पैदल जाते हैं उससे हिंदुओं द्वारा तारकेश्वर (पश्चिमी बंगाल) या वैधनाथ धाम (बिहार) जैसे अनेक पवित्र स्थलों की उसी प्रकार की तीर्थयात्रा की याद हो आती है। हिंदू किसी पवित्र नदी से जल लेकर इन स्थलों तक पैदल जाते हैं। उत्तर बिहार के रामपुर गाँव और बेतियों में कुंआरी मरियम के पवित्र स्थानों आदि की यात्रा करने वाले ईसाइयों में तीर्थयात्रा के लिए भिक्षा से पैसे इकट्ठा करना और मकउती (किसी मनोकामना पूर्ति के लिए पावन प्रतिज्ञा) की प्रथा भी हिंदुओं की देन है (सहाय 1985: 144)। सहाय ने छठे दशक के प्रारंभ में दो ईसाइयों द्वारा केदारनाथ और गंगोत्री की तीर्थयात्रा का उल्लेख भारत में ईसाई धर्म के स्वदेशीकरण के एक उदाहरण के रूप में और ईसाई धर्म को हिंदू मुहावरों की मदद से समझने के प्रयास के रूप में किया है।
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…