ब्रोंस्टेड अम्ल क्या है
उदाहरण 3. हाइड्राइड तथा हाइड्रोक्सिल आयनों की प्रोटॉन बंधुकता (PA) के दिये गये मानों के आधार पर हाइड्राइडों के जल अपघटन से प्राप्त उत्पादों के बारे में बताइये ।
On the basis of the given proton affinity (PA) values for Hand OH ions, predict the hydrolysis products of hydrides
PA for H = 1674 kJ/mol and for OH- = 1635kJ/mol
उत्तर : माना हाइड्राइड आयन के जलअपघटन से प्राप्त उत्पाद A है तो अभिक्रिया को निम्न प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है-
H+HOH A+ OH
1635
PA (kJ/mol) 1674
चूँकि H- आयन की प्रोटॉन बंधुकता OH- की प्रोटॉन बंधुकता से अधिक है, H- आयन की प्रोटॉन ग्रहण करने की अधिक प्रवृत्ति होगी। अतः H’ तथा OH- आयनों के संयुक्त होने से प्राप्त उत्पाद H2 ही वांछित उत्पाद A होगा। फलतः समीकरण को निम्न प्रकार लिखा जा सकता है-
H+ HOH →H2 + OH®
प्रोटॉन बंधुकता तथा अम्ल सामर्थ्य : ऋणायनों के प्रोटॉन बंधुकता मानों का उपयोग उनसे प्राप्त अम्लों की सामर्थ्य के तुलनात्मक अध्ययन के लिए भी किया जा सकता है। उदाहरणार्थ, SH- तथा F आयनों की प्रोटॉन बंधुकता के मान क्रमशः 1471 तथा 1553kJ/mol है। हम जानते हैं कि ऋणायनों के संयुग्मी अम्लों की सामर्थ्य का क्रम सम्बद्ध संयुग्मी क्षारक की प्रोटॉन बंधुकता के क्रम के विपरीत होता है, यहाँ पर संयुग्मी अम्लों की सामर्थ्य का क्रम H2S > HF होना चाहिए क्योंकि इन अम्लों के अनुरूपी संयुग्मी क्षारकों की प्रोटॉन बंधुताओं का क्रम HS-HS आता है जो गैसीय अवस्था के परिणामों के एकदम विपरीत है। इसका कारण यह है कि जलीय माध्यम में आयनों का जलयोजन हो जाता है जो ऊष्माक्षेपी प्रक्रम है। अतः गैसीय अवस्था में अभिक्रिया होने पर तो केवल प्रोटॉन बंधुकता के आधार पर अम्ल सामर्थ्य निर्धारित कर सकते हैं लेकिन जलीय माध्यम में प्रोटॉन बंधुकता तथा जलयोजन ऊर्जा के योग द्वारा अम्लों की सामर्थ्य का निर्धारण किया जाना चाहिए। सम्भव है कि किसी आयन की प्रोटॉन बंधुकता तो कम हो लेकिन उसकी जलयोजन ऊर्जा अधि कहो जिससे दोनों ऊर्जाओं का योग भी अधिक हो जाये। गैसीय तथा जलीय माध्यमों से प्राप्त परिणामों में अन्तर अभिक्रिया के निम्न बोर्न – हॉबर चक्र के अध्ययन से प्राप्त किये जा सकते हैं जिसमें सामान्य विवेचन हेतु अम्ल को HA द्वारा प्रदर्शित किया गया है।
E1 = गैसीय अम्ल HA के जल योजन से मुक्त ऊर्जा। यह ऊर्जा Ell की तुलना में काफी कम होती
Ell = ऋणायन A की प्रोटॉन बंधुकता + एन्ट्रॉपी (यह राशि सभी अम्लों के लिए लगभग समान रहती
Elll = H+ तथा A- आयनों की जलयोजन ऊर्जाओं का योग। यह राशि ऋणायन A- के आकार तथा आवेश पर निर्भर करती हैं क्योंकि सभी अम्लों से प्राप्त Ht का आकार व आवेश समान होता है।
Elv = अम्ल HA के वियोजन की मुक्त ऊर्जा
उपर्युक्त चक्र से स्पष्ट है कि HA को वियोजन की मात्रा, जो अम्ल के सामर्थ्य को निर्धारित करती है, मुख्यतः A- की प्रोटॉन बंधुकता E] तथा कुल जलयोजन ऊर्जा, EIII पर निर्भर करती है।
H2S तथा HF के जलीय विलयन में F की जलयोजन ऊर्जा HS – आयन की जलयोजन ऊर्जा ‘तुलना ा में काफी अधिक होती है। क्योंकि F- आयन की H2O अणु से प्रबल हाइड्रोजन बन्ध बनाने की प्रवृत्ति होती है। तथा इसका आकार भी HS – आयन से काफी कम होता है। इसलिय यद्यपि F-की प्रोटॉन बन्धुकता HS – से अधिक होती है। F की जलयोजन की अत्यधिक ऊर्जा के कारण जलीय विलयन में H2 S की तुलना में HF का वियोजन अधिक होता है जिसके कारण इसके वियोजन नियतांक का मान अधिक तथा pk a का मान कम होता है अर्थात् H2S की तुलना में HF प्रबल अम्ल है।
अब हम गैसीय प्रावस्था में NH3 तथा जल की अभिक्रिया पर विचार करते हैं। जैसा कि नीचे बताया गया है OH की प्रोटॉन बंधुकता (1635kJ/mol) NH4+ की प्रोटॉन बघुता (858J/mol) की तुलना में बहु अधिक है जिससे OH- आयन NH+ आयन से प्रोटॉन ले लेगा तथा अभिक्रिया अग्रिम दिशा में नहीं चल पायेगी | जलीय माध्यम में NH4+ तथा OH- आयनों की जलयोजन ऊर्जाओं का योग NH3 की जलयोजन ऊर्जा से कहीं अधिक है।
NH3(g) + H2O(g) NH4(g) + OH– (g)
NH3(g) + H2 O → NH4+ (aq) + OH– (aq)
इसी प्रकार, HCI के जल में वियोजित होने पर जलयोजित H’ तथा CH- आयन प्राप्त होते हैं। प्रोटॉन तथा CI-आयन की जलयोजन मुक्त ऊर्जा (जो कि जलयोजन ऊर्जा एवं एन्ट्रॉपी का योग है) के मान HCI की जलयोजन की मुक्त ऊर्जा की तुलना में बहुत अधिक ऋणात्मक है। जिसके कारण अभिक्रिया आगे की दिशा में होती है।
उपर दिये गये विवेचन से स्पष्ट है कि प्रोटॉन बन्धुकता के मानों से यद्यपि गैस अवस्था में किसी क्षारक की क्षारकता का अनुमान लगाना सम्भव है परन्तु विलायक की उपस्थिति में किसी अम्ल अथवा क्षारक की अम्लता अथवा क्षारकता की सही माप उसके वियोजन नियतांक (k) द्वारा ही की जा सकती है जिसका वर्णन नीचे दिया गया है।
ब्रन्सटेद अम्ल-क्षारकों की प्रबलता (Stength)
ब्रन्सटेद-लोरी के सिद्धान्त के अनुसार किसी अम्ल की प्रबलता उसकी प्रोटॉन देने की क्षमता पर निर्भर करती है। जितनी अधिक मात्रा में कोई अम्ल प्रोटॉन देगा उसकी उतनी ही अधिक प्रबलता होगी। इसी प्रकार, किसी क्षारक में प्रोटॉन ग्रहण करने की जितनी अधिक प्रवृत्ति होगी वह उतना ही प्रबल क्षारक होगा। अम्ल तथा क्षारकों की प्रबलता का अनुमान उनके वियोजन स्थिरांको (Ka तथा Kb) के मानों से लगाया जा सकता है। हम जानते हैं कि प्रबल अम्ल तथा क्षारक बहुत अधिक सीमा तक आयनित हो जाते हैं जिसके कारण K a तथा Kb के मान भी उच्च होते हैं। प्रत्येक अम्ल तथा क्षारक के लिए वियोजन स्थिरांक का एक विशेष मान होता है। उदाहरण के लिए हम HCI के जलीय विलयन पर विचार करते हैं
HCl+H2O H3 O+ +Cl
वियोजन स्थिरांक, Ka [H3O+]|[CI]
[HCI]
प्रबल अम्लों के लिए अभिक्रिया अधिक सीमा तक आगे की ओर होगी जिससे संयुग्मी अम्ल (H3 O+) तथा क्षारक (CI) अधिक मात्रा में प्राप्त होंगे तथा अवियोजित अम्ल बहुत कम रहेगा। स्पष्ट है कि अंश (numerator) का मान उच्च तथा हर (denominator) का मान न्यून होने से Ka का मान भी उच्च होगा। जल में HCl के लिए Ka का प्रायोगिक मान 107 है जिससे पता चलता है कि जल में अधिकांश HCI अणु प्रोटॉन खो देते हैं। फलतः जल में HCI एक प्रबल अम्ल है जिससे साम्य मुख्यतः दायीं ओर होता है तथा विपरीत अभिक्रिया, जिसमें CI-आयन प्रोटॉन ग्रहण करता है, बहुत कम होती है। अतः CI- एक अति दुर्बल क्षारक है।
जलीय विलयन में क्षारकों के द्वारा प्रोटॉन ग्रहण करने की क्षमता भी एक साम्य स्थिरांक द्वारा प्रदर्शित की जा सकती है। उदाहरण के लिए
NH3 + H2O NH4+ + OH–
क्षारकता स्थिरांक, Kb = [NH4+ ][OH–]
[NH3]
यदि Kg का मान 1 से कम है (Kb < < 1 ) तो NH4+ तथा OH- आयनों की सान्द्रता का गुणनफल साम्य पर NH3 की सान्द्रता से कम होगा। ऐसी परिस्थिति में क्षारक एक दुर्बल प्रोटॉन ग्राही होगा तथा इसका संयुग्मी अम्ल विलयन में कम मात्रा में पाया जायेगा। जल में अमोनिया के लिए Kb का प्रायोगिक मान 1.8 × 10-5 है जो यह प्रदर्शित करता है कि सामान्य परिस्थितियों में NH3 का एक बहुत कम अंश जल द्वारा प्रोटोनित होता है ।
उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि जल एक उभयप्रॉटिक ( amphiprotic) पदार्थ है, अर्थात् यह एक ऐसा पदार्थ है जो परिस्थिति के अनुसार ब्रन्सटेद अम्ल या ब्रन्सटेद क्षारक का कार्य कर सकता हैं। चूंकि जल उभयप्रॉटिक है, अम्ल या क्षारक की अनुपस्थिति में भी प्रोटॉन स्थानान्तरण साम्य पाया जाता है। एक H2O अणु से दूसरे जल अणु के प्रोटॉन का स्थानान्तरण आत्मप्रोटॉनोपघटन (autoprotolysis) या आत्मआयनीकरण (autoionisation) कहलाता है। आत्मप्रोटॉनोपघटन की सीमा तथा साम्य पर विलयन के संघटन (composition ) के बारे में जानकारी जल के आत्मप्रोटॉनोपघटन स्थिरांक, Kद्वारा प्राप्त होती है :
2H2O =→ H3O+ + OH–
Kw = [H3O+] [OH]
Kw का प्रायोगिक मान 25°C पर 1.02 × 10-14 है जिससे यह पता चलता है कि शुद्ध जल में H2O अणुओं का बहुत छोटा सा भाग ही आयनों के रूप में वियोजित होता है। किसी विलायक के आत्मप्रोटॉनोपघटन स्थिरांक की मुख्य भूमिका यह है कि इसके माध्यम से हम किसी क्षारक की प्रबलता को इसके संयुग्मी अम्ल की प्रबलता के आधार पर समझा सकते हैं। उदाहरण के लिए NH3 क्षारक की प्रबलता समझाने के लिए हम इसके संयुग्मी अम्ल के निम्न साम्य पर विचार करते हैं:
NH4 + H2O = NH3 + H2O
इसके लिए, Ka = [NH3][H3O+]
[NH4+]
पिछले पृष्ठ पर NH3 के लिए जल में साम्य के लिए निकाले गये Kb से इसे गुणा करने पर
Ka× Kb = [NH3][H3O+] x [NH4+][OH–]
[NH4+] [NH3]
= [H3O+][OH ]
अर्थात् Ka × Kb = kw
उपर्युक्त समीकरण में किसी ताप पर Kw का मान स्थिर है। अतः किसी क्षारक के लिए वियोजन स्थिरांक Kb जितना अधिक होगा, उसके संयुग्मी अम्ल के लिए Ka का मान उतना ही कम होगा। दूसरे शब्दों में एक क्षारक जितना प्रबल होगा उसका संयुग्मी अम्ल उतना ही दुर्बल होगा।
प्रबल तथा दुर्बल अम्ल व क्षारक- कुछ सामान्य अम्लों तथा कुछ क्षारकों के संयुग्मी अम्लों के वियोजन स्थिरांक सारणी 6.2 में दिये गये हैं। किसी अम्ल के K मान को सुगमता के लिए -log Ka द्वारा प्रदर्शित करते हैं जिसे pH की भांति pka द्वारा लिखा जाता है। अर्थात्,
– log Ka = pka
किसी अम्ल के लिए ka का मान जितना अधिक होगा, pka का मान उतना ही कम होगा। इस प्रकार प्रबल अम्लों के लिए pka का मान कम तथा दुर्बल अम्लों के लिए अधिक होता है। सामान्यतः एक प्रबल अम्ल उस पदार्थ को कहते हैं जिसमें जल को प्रोटॉन देने की बहुत अधिक प्रवृत्ति पाई जाती है। इसे मात्रात्मक बनाने के लिए प्रबल अम्ल उन्हें माना जाता है जिनके लिए pka का मान 0 से कम होता है (pka < 0)। प्रबल अम्लों के लिए सामान्यतः ka >>>1 होता है। ऐसे अम्लों के लिए यह माना जा सकता है कि ये विलयनों में लगभग पूर्ण रूप से प्रोटॉन देते हुए वियोजित हो जाते हैं। उदाहरणार्थ, HCI के लिए ka =~ 107 है। अतः यह माना जाता है कि इसका जलीय विलयन H3O+ तथा Cl- का मिश्रण है जिसमें अवियोजित HCl की नगण्य मात्रा होती है।
विपरीतः यदि पदार्थ के लिए pka > 0 है, जो तभी सम्भव है जब ka < 1, तो इन्हें दुर्बल अम्ल कहा जाता है। ऐसी स्थिति में जल को इतना कम प्रोटॉन का स्थानान्तरण होता है कि अम्ल मुख्यतः अवियोजित रूप में पाया जाता है। उदाहरण के लिए, जल में HF एक दुर्बल अम्ल है (ka = 7.2 × 104) क्योंकि इसके जलीय वियलन में H3 O+ तथा F- अति न्यून मात्रा में व अवियोजित HF बहुत अधिक मात्रा में उपस्थित रहते हैं। इसी प्रकार, एक प्रबल क्षारक जल से लगभग पूर्णतः प्रोटॉन ग्रहण कर लेता है जबकि एक दुर्बल क्षारक आंशिक रूप से ही प्रोटॉनित हो पाता है। NH3 अणु एक दुर्बल क्षारक का उदाहरण है जो जल में लगभग पूर्णतः NH3 अणु के रूप में ही पाया जाता है तथा NH4 + आयन बहुत कम मात्रा में होते हैं। किसी प्रबल अम्ल का संयुग्मी क्षारक एक दुर्बल क्षारक होता है।
विलायक का अम्ल सामर्थ्य पर प्रभाव ( Influence of solvent on acid strength) :- ब्रन्सटेद तथा लोरी सिद्धान्त में जल को विलायक के रूप में लिया गया है तथा एक पदार्थ केवल जल की उपस्थिति में ही एक अम्ल या एक क्षारक के रूप में कार्य करता है। बहुत सी अभिक्रियाओं में जल को विलायक नहीं लिया जा सकता जिससे इसका क्षेत्र सीमित हो जाता है। लेकिन ऐसे बहुत से हाइड्रोजन वाले विलायक ज्ञात हैं जो जल की तरह विलेय पदार्थों से प्रोटॉनों का आदान-प्रदान करते हैं। अतः ब्रन्सटेद सिद्धान्त के उपर्युक्त विवेचन के आधार पर ऐसी अभिक्रियाओं को अम्ल-क्षारक अभिक्रियाओं की श्रेणी में तथा विलेय पदार्थों को अम्ल या क्षारक के रूप में मान्यता प्रदान की जानी चाहिए। द्रव अमोनिया, ग्लेसियल ऐसीटिक अम्ल, निर्जलीय सल्फ्यूरिक अम्ल इस प्रकार के विलायक हैं। अम्ल सामर्थ्य एक आपेक्षिक पद है जो वास्तव में, विलायक की क्षारकीय सामर्थ्य पर निर्भर करती है। इसे समझाने के लिए हम अम्ल-क्षारक आयनन की निम्न सामान्य अभिक्रिया पर विचार करते हैं :
अम्ल1 + क्षारक 2 – क्षारक1 + अम्ल 2
किसी अम्ल के आयनन की सीमा स्वयं की प्रकृति के अतिरिक्त विलायक की प्रोटॉन ग्राही क्षमता पर भी निर्भर करती है। यदि कोई पदार्थ जल में दुर्बल अम्ल है तो वही पदार्थ जल से प्रबल तर प्रोटॉनग्राही विलायक में अधिक प्रबल अम्ल होगा। इसके विपरीत, जल की अपेक्षा दुर्बल प्रोटॉनग्राही विलायक में वह दुर्बलतर अम्ल या क्षारकीय होगा। दूसरे शब्दों में, अम्लों की प्रबलता तथा आपेक्षिक सामर्थ्य विलायक परिवर्तित करने पर बदल जायेगी। इस बिन्दु को स्पष्ट करने के लिए हम ऐसीटिक अम्ल, जल तथा अमोनिया विलायकों पर विचार करते हैं जिनकी प्रोटॉन ग्राही सामर्थ्य अतः क्षारक सामर्थ्य निम्न क्रम में बढ़ती है-
CH3COOHHBr > H2O > HN3
(a) ऐसीटिक अम्ल विलायक के रूप में ऐसीटिक अम्ल में सामान्यतः प्रोटॉन देने की एक स्वाभाविक प्रवृत्ति पाई जाती है अतः यह एक अम्ल है। तथापि, अपने से प्रबलतर प्रोटॉन दाता उपस्थिति में यह क्षारक का कार्य करेगा। जब किसी प्रबल अम्ल (HX) को ऐसीटिक अम्ल में डाला जाता है तो उनके मध्य निम्न साम्य स्थापित हो जाता है।
HX+CH3COOH == CH3COOH2 + X
अम्ल क्षारक अम्ल क्षारक
लेकिन ऐसीटिक अम्ल की बहुत कम प्रोटॉन ग्रहण करने की प्रवृत्ति के कारण, HX का आयनन बहुत कम सीमा तक हो पाता है, अर्थात् साम्य दांयी ओर अधिक स्थापित नहीं होगा। इस प्रकार, ऐसीटिक अम्ल की तुलना में प्रबलतर प्रोटॉनग्राही विलायकों में जो पदार्थ प्रबल अम्लों की तरह आचरण करते है वे ऐसीटिक अम्ल विलायक में अपेक्षाकृत दुर्बल अम्ल होंगे। अतः विभिन्न अम्लों की प्रबलता में विमेद किया जा सकता है क्योंकि ऐसीटिक अम्ल में ये अम्ल भिन्न-भिन्न सीमाओं तक आयनित हो पायेंगे जिसे विद्युत चालकता के की प्रबलता का निम्न क्रम प्रयोगों द्वारा मापा जा सकता है। इन प्रयोगों की सहायता पाया गया है
HCIO4>HBr > H2SO4 > HCl > HNO3
इस प्रकार इन अम्लों के लिए ऐसीटिक अम्ल एक विषम आयनन विलायक (Differentiating जिसके कारण जलीय विलयन में ये सभी अम्ल लगभग समान रूप से प्रबल प्रतीत होते हैं तथा इनकी solvent) का कार्य करता है। दूसरी ओर, जल में ये सभी अम्ल लगभग पूर्ण रूप से आयनित होते है
प्रबलता में अन्तर करना कठिन हो जाता है जैसा कि आगे वर्णन किया गया है।
(b) जल विलायक के रूप में ऐसीटिक अम्ल की तुलना में जल एक प्रबलतर क्षारक है, अर्थात् इसमें प्रोटॉन ग्रहण करने की अधिक प्रवृत्ति पाई जाती है। जब प्रबल अम्लों को जल में घोला जाता है तो साम्य को निम्न प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है जिसमें दायीं ओर तीर (- ) की अधिक लम्बाई लगभग पूर्ण आयनन को प्रदर्शित करता है :
HX + H2O = H3O+ + X–
अम्ल क्षारक अम्ल क्षारक
चूंकि जल में सभी प्रबल अम्ल लगभग पूर्णरूप से आयनित हो जाते है, उनकी आपेक्षिक की तुलना नहीं की जा सकती। ऐसे विलायक जिनमें विभिन्न अम्ल समान स्तर की प्रबलता प्रदर्शित करते हैं, समआयनन विलायक (Levelling solvent) तथा विलायकों के इस प्रभाव को समआयनन प्रभाव (Levelling effect) कहते हैं।
(c) द्रव अमोनिया विलायक के रूप में- द्रव अमोनिया की प्रोटॉन बंधुकता अधिक होती है अतः ऐसीटिक अम्ल तथा जल की तुलना में यह एक प्रबलतर क्षारक है। अधिक प्रोटॉन बंधुकता के कारण जल में दुर्बल अम्ल अधिक सीमा तक आयनित होते हैं और इसलिए प्रबलतर अम्ल सामर्थ्य दर्शाते हैं । उदाहरण के लिए, ऐसीटिक अम्ल जलीय विलयन में एक दुर्बल अम्ल है लेकिन द्रव अमोनिया में साम्य मुख्यतः दायीं ओर विस्थापित रहता है जिसके कारण यह एक प्रबल अम्ल की भांति आचरण करता है :
CH3COOH + NH3 — NH4 + CH3COO–
अम्ल क्षारक अम्ल क्षारक
चालकत्व प्रयोगों से पता चलता है कि अमोनिया विलायक में ऐसीटिक अम्ल तथा इससे प्रबलतर सभी अम्ल एक सी ही प्रबलता दर्शाते हैं। इस प्रकार, इन अम्लों के लिए अमोनिया समआयनन विलायक है क्योंकि जिन अम्लों की प्रबलता का ऐसीटिक अम्ल तथा जलीय विलयन में विभेद किया जा सकता है, वे अमोनिया में समान रूप से प्रबल प्रतीत होते हैं।
क्षारक सामर्थ्य पर विलायक का प्रभाव – अम्लों की भांति क्षारकों की प्रबलता भी विलायकों की प्रकृति द्वारा प्रभावित होती है। जो क्षारक जल में दुर्बलता प्रदर्शित करते हैं, अपेक्षाकृत प्रबलतर प्रोटॉन दाता (जैसे ऐसीटिक अम्ल) की उपस्थिति में प्रबलतर क्षारक होंगे।.
यदि प्रोटॉन दाता जल की भांति दुर्बल है, तो विभिन्न क्षारक अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार भिन्न-भिन्न सीमाओं तक प्रोटॉन ग्रहण कर सकेंगे जिससे इन क्षारकों की प्रबलता की तुलना की जा सकेगी। लेकिन यदि विलायक ऐसीटिक अम्ल जैसा अपेक्षाकृत अधिक प्रबल प्रोटॉन दाता है तो अधिकांश क्षारक आसानी से लगभग पूर्ण रूप से प्रोटॉनित होंगे तथा समआयनन प्रभाव प्रदर्शित करेंगे जिससे उनकी प्रबलता की तुलना करना अत्यन्त कठिन होगा। उदाहरणार्थ, पिरिडीन, अमोनिया तथा NaOH जल में भिन्न-भिन्न प्रबलता प्रदर्शित करते हैं लेकिन ऐसीटिक अम्ल का विलायक के रूप में उपयोग करने पर सभी क्षारक समान रूप मे प्रबल प्रतीत होते हैं।
ब्रन्सटेद अम्ल-क्षारकों का विवेचन मुख्यतः जलीय माध्यम में किया गया है। जलीय माध्यम में जिन ब्रन्सटेद अम्लता का आवर्तीक्रमण (Periodic trends in Bronsted acidity)- पिछले पृष्ठों में अम्लों का अध्ययन किया गया है उनमें ऑक्सी-अम्ल मुख्य है। इन अम्लों के प्रोटॉन इनमें उपस्थित
OH समूह से प्राप्त होते हैं जो केन्द्रीय परमाणु से सीधे ही बंधित होते हैं। अम्ल अणु में उपस्थित हाइड्रोजन परमाणुओं से इन OH हाइड्रोजन का अन्तर स्पष्ट करने के लिए इन्हें अम्लीय प्रोटॉन कहते हैं। उदाहरण के लिए, CH3 COOH में OH हाइड्रोजन को अम्लीय प्रोटॉन तथा CH3 हाइड्रोजनों को अम्लहीन प्रोटॉन कहते हैं। इस प्रकार के अम्लों को तीन भागों में विभाजित किया जाता है :
(अ) जलीय अम्ल (Aqua acids) :- इस प्रकार के अम्लों में अम्लीय प्रोटॉन उस जल अणु से प्राप्त होता है जो केन्द्रीय परमाणु से संलग्न होता है। इस प्रकार के कुछ उदाहरण नीचे दिये गये. हैं :
[Fe(H2O)6]3++H2O → [Fe(H2O)5(OH)]2++H3O+
[Be(H2O)4]2++ H2O [Be(H2O)3 (OH)]+ +H3O+
[Al(H2O)5]3++H2O [Al(H2O)5(OH)]2++H3O+
इस प्रकार के अम्ल s तथा d खण्ड धातुओं तथा p-खण्ड में बांई ओर आने वाली धातुओं द्वारा बनाये जाते हैं। इन जलीय अम्लों की प्रबलता आयनिक आवेश तथा आयनिक त्रिज्या पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए, Fe(II), Fe(III) तथा AI (III) के हेक्साऐक्वा आयनों में Fe2+ आयन का आकार सबसे अधिक है तथा आवेश सबसे कम । त्रिसंयोजकीय आयनों में Al3+ आयन छोटा होने के कारण यह उपर्युक्त अम्लों में प्रबलतम हैं। फलतः इन ऐक्वा आयनों में प्रबलता निम्न क्रम में बढ़ती है।
[Fe(H2O)6]2+ < [Fe(H2O)6]3+ < [AI(H2O)6]3+
(ब) हाइड्रॉक्सो अम्ल (Hydroso acids):- ये वे अम्ल हैं जिनमें अम्लीय प्रोटॉन – OH समूह से प्राप्त होते हैं लेकिन पड़ौस में कोई ऑक्सो समूह (O) नहीं होता है। Si(OH)4 एक ऐसा अम्ल है।
(स) इन अम्लों में अम्लीय OH समूहों के पड़ौस में = O समूह भी उपस्थित होता है। ये सामान्यतः उच्च ऑक्सीकरण अवस्था में p-खण्ड की अधातुओं द्वारा निर्मित होते हैं सल्फ्यूरिक अम्ल तथा फॉस्फोरिक अम्ल इस श्रेणी के उदाहरण हैं।
(द) केंद्रीय अधातु, जिनसे O तथा OH जुड़े होते हैं, की ऑक्सीकरण संख्या बढ़ने पर अम्लों की प्रबलता बढ़ती है।
ब्रन्सटेद लोरी सिद्धान्त की कमियां (Limitations )
:– ब्रन्सटेद-लोरी की अम्ल-क्षारक परिभाषा, यद्यपि आर्रेनियस परिभाषा के कई दोषों से रहित हैं, लेकिन केवल प्रोटॉन वाली अभिक्रियाएँ ही इस परिभाषा के अन्तर्गत आती हैं। ऐसी बहुत सी अम्ल-क्षारक अभिक्रियाएँ हैं जिनमें प्रोटॉन बीच में आता ही नहीं है। ऐसी अभिक्रियाओं की व्याख्या इस सिद्धान्त द्वारा नहीं की जा सकती।
इस सिद्धान्त की एक कमी यह भी है कि किसी पदार्थ को अम्ल या क्षारक के रूप में विभाजित नहीं किया जा सकता क्योंकि उसका आचरण विलायक की प्रकृति पर निर्भर करता है। कोई पदार्थ किसी एक अभिक्रिया में अम्ल है तो अन्य अभिक्रिया में वह क्षारक हो सकता है। अतः उस पदार्थ को अम्ल या क्षारक बताने के लिए पूरी अभिक्रिया का ब्योरा देना पड़ता है। कुछ पदार्थों को अम्ल के रूप में पूर्ण मिली हुई है और इस कारण से ‘अम्ल’ उनके नाम का भी भाग है। इस सिद्धान्त के अनुसार ऐसे पदार्थ क्षारक भी हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, HCIO4 विलायक में सल्फ्यूरिक अम्ल एक क्षारक है :
HCIO4 +H2SO4 ===== H3SO4 + + CIO4