JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History

chemistry business studies biology accountancy political science

Class 12

Hindi physics physical education maths english economics

chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology

Home science Geography

English medium Notes

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Class 12

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Categories: sociology

मैलिनास्की के विचार क्या है |  मलिनॉस्की के पूर्ववर्ती विचारक के बारे में जानकारी bronislaw malinowski in hindi

bronislaw malinowski in hindi theory of functionalism  मैलिनास्की के विचार क्या है |  मलिनॉस्की के पूर्ववर्ती विचारक के बारे में जानकारी ?

मलिनॉस्की के पूर्ववर्ती विचारक
मलिनॉस्की का कार्य मुख्यतया अपने पूर्ववर्ती बौद्धिक विचारकों के चिंतन पर आधारित था। लीच (1957ः 137) ने मलिनॉस्की के बारे में अपने लेख में कहा, “मलिनॉस्की अपने पूर्ववर्ती विचारकों के जाल‘‘ में बंधा था। उसने प्रत्यक्षतः उनका गहरा विरोध किया परंतु मूलतः वह उनके विचारों से अपने को दूर नहीं कर सका। एक तरह से यह बात अपने समय की चिंतन-परंपरा को आगे बढ़ाने वाले किसी भी व्यक्ति के संबंध में कही जा सकती है। आइए, हम मलिनॉस्की की स्थिति का परीक्षण करें।

अठारहवीं शताब्दी में, ब्रिटेन में डेविड ह्यूम, एडम स्मिथ और एडम फर्गुसन तथा फ्रांस में मांटेस्क्यू और कोंडोसेंट जैसे विद्वानों की रुचि मानवीय संस्थाओं की उत्पति की खोज करने में थी (देखिए कोष्ठक 22.1)। उनका विचार था कि आदिम समाज का विश्लेषण करके वे अपनी समसामयिक सामाजिक संस्थाओं की उत्पत्ति के बारे में जान सकते हैं। किंतु उन्होंने आदिम समाजों के बारे में किसी प्रकार की सामग्री एकत्र किए बिना ही उनके बारे में सिद्धांतों की परिकल्पना कर ली। वास्तव में, उनके ये सिद्धांत अपने समय तथा संस्कृतियों में प्रचलित विचारों पर आधारित थे। किंतु महत्व की बात यह है कि इन विद्वानों ने मानव समाजों को अध्ययन का महत्वपूर्ण विषय माना। उनका विचार था कि प्राकृतिक विज्ञानों की भांति समाज के सार्वत्रिक नियमों को सामाजिक संस्थाओं के अध्ययन से खोजा जा सकता है। इसी कारण अठारहवीं सदी के इन विद्वानों को आधुनिक समाजशास्त्र का अग्रदूत माना जाता है। इन विद्वानों के बाद आने वाले उन्नीसवीं सदी के विद्वानों को विकासवादी विचारक कहा जाता था। विकासवादी माने जाने वाले इन विद्वानों की भी सामाजिक विकास तथा मानव संस्कृति की प्रगति के अध्ययन में रुचि थी। इन विद्वानों ने भी आदिम संस्कृतियों का अध्ययन करके सामाजिक विकास की कड़ी को समझने की कोशिश की।

कोष्ठक 22.1 मानवीय समाज के उद्भव में रुचि
यूरोप में अठारहवी शताब्दी के अनेक विद्वानों ने मानव समाज की उत्पत्ति को जानने में तीव्र लगन दिखाई। उनमें सर्वाधिक विख्यात हैं- स्कॉटलैंड के नैतिक दार्शनिक डेविड ह्यूम (1711-1776) तथा एडम स्मिथ (1723-1790)। दोनों यह मानते थे कि मानव समाज का उद्भव मानव प्रकृति में खोजा जा सकता है। हॉब्स के सामाजिक समझौते के विचार को अस्वीकार करते हुए उन्होंने प्राकृतिक धर्म, प्राकृतिक नियम तथा प्राकृतिक नैतिकता पर बल दिया। वे मानव प्रकृति के सामान्य सिद्धांतों का पता लगाने के पक्ष में थे। यह कार्य उन्होंने मानवीय समाज के विकास के चरणों के संदर्भ में किया। उनकी मान्यता थी कि सभी ज्ञात सामाजिक समूहों के विकास क्रम का पता लगा कर मानव इतिहास की पुनर्रचना की जा सकती है। इसी प्रकार, एडम स्मिथ ने 1767 में एक पुस्तक एन एस्से ऑन हिस्ट्री आफ सोसाइटी लिखी, जिसमें उसने भरण-पोषण विधि, जनसंख्या वृद्धि का सिद्धांत, सामाजिक विभाजन आदि विषयों का विवेचन किया। चूंकि इन विद्वानों की चिंता समाज के सामान्य सिद्धांतों का पता लगाने तक सीमित थी, इसलिए आज भी सब उनके विचारों के उद्धरण देते हैं, भले ही उनकी पुस्तकों को आद्योपान्त पढ़ते न हों।

एक वकील तथा राजनीति विज्ञान के विद्वान फ्रांस में मांटेस्क्यू (1689-1755), ने 1748 में सामाजिक-राजनीतिक दर्शन पर एक पुस्तक दि स्पिरिट ऑफ दि लॉज लिखी। इस पुस्तक में समाज के सभी पहलुओं के बीच अंतर्संबधों की पड़ताल की गई। उसका विचार था कि समाज के सारे कार्यकलाप प्रकार्यात्मक दृष्टि से परस्पर जुड़े हुए हैं। उदाहरण के लिए, हमें फौजदारी तथा दीवानी कानून को समझने के लिए न केवल एक-दूसरे के संदर्भ में बल्कि समाज की अर्थव्यवस्था, विश्वास, रीति-रिवाज आदि के संदर्भ में भी उनका अध्ययन करना होगा।

कोंडोसेंट (1743-1794) फ्रांस का एक दार्शनिक और राजनीति विज्ञान का विद्वान था। वह भी मानवीय समाजों की उत्पत्ति की खोज में लगा था।

प्रस्तावना
ई.एस.ओ.-13 पाठ्यक्रम के पहले पांच खंडों में हमने शास्त्रीय (बसंेेपबंस) समाजशास्त्र के विकास का अध्ययन किया। आइए, अब देखें कि बीसवीं सदी के प्रारंभ में क्या हुआ। इस समय समाजशास्त्र ने तीव्र विकास के दौर में प्रवेश किया। यह दौर प्रकार्यवाद सिद्धांत के उदय के साथ प्रारंभ हुआ। प्रकार्यवाद की अवधारणा को सरल भाषा में समझाना हो तो यह कहा जा सकता है कि कॉम्ट और स्पेंसर जैसे पूर्ववर्ती समाजशास्त्रियों ने भी राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक तथा नैतिक क्षेत्रों के प्रकार्यों में संबंध की चर्चा की थी। उनका मानना था कि इनमें से किसी भी क्षेत्र में परिवर्तन होने पर अन्य क्षेत्रों में भी समतुल्य (बवततमेचवदकपदह) परिवर्तन होते हैं। उनकी मान्यता थी कि विभिन्न सामाजिक गतिविधियों के बीच इन समतुल्यताओं या अंतः संबंधों की खोज करना ही समाजशास्त्र का लक्ष्य है। बाद में फ्रांस में दर्खाइम तथा अन्य लेखकों (विशेष रूप से उन्नीसवीं शताब्दी के इंग्लैण्ड के विक्टोरियन युग के नृशास्त्रियों) ने इस विषय पर अनेक पुस्तके लिखीं। इन पुस्तकों में सामाजिक संस्थाओं की उत्पत्ति तथा प्रकार्यों के नियमों की व्याख्या की गई। 1920 तथा 1930 के दौरान ब्रिटिश सामाजिक नृशास्त्रीय विकास के माध्यम से प्रकार्यवाद का विचार आधुनिक समाजशास्त्र में प्रयुक्त हुआ। पोलैंड के प्रतिभाशाली वैज्ञानिक ब्रोनिस्लॉ मलिनॉस्की (जो बाद में नृशास्त्री बन गए) ने ब्रिटेन में प्रकार्यवादी विचारधारा का विकास किया। यह समाजशास्त्र के इतिहास में एक क्रांतिकारी घटना सिद्ध हुई, क्योंकि मलिनॉस्की के नेतृत्व में प्रकार्यवाद ने काफी जोर पकड़ा। इस समय समाज और उसकी संस्थाओं के बारे में वैज्ञानिक ढंग से सामग्री एकत्र की गई। इस तरह के अध्ययन को अनुभवपरक वास्तविकता (मउचपतपबंस तमंसपजल) का अध्ययन भी कहा गया।

इस खंड में मुख्यतया यह बताया गया है कि बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में समाजशास्त्रियों ने सामाजिक जीवन का अर्थ समझने के लिए किस प्रकार प्रकार्य की अवधारणा का प्रयोग किया। इसकी पहली इकाई में ब्रोनिस्लॉ मलिनॉस्की के योगदान की चर्चा है, उसने आदिम समाजों का सामाजिक सांस्कृतिक इकाई के रूप में अध्ययन किया और संस्कृति के प्रत्येक पहलू की व्याख्या उसके प्रकार्यों के संदर्भ में की।

मलिनॉस्की के प्रकार्यवादी दृष्टिकोण की पृष्ठभूमि देने के लिए इस इकाई के आरंभ में मलिनॉस्की के पूर्ववर्ती विचारकों के बारे में बताया गया है। फिर यह दिखाया गया है कि कैसे समाज तथा उसकी संस्थाओं के संबंध में तथ्य एकत्र करने को अधिकाधिक महत्व दिया जाने लगा। उसके पश्चात्, मलिनॉस्की द्वारा विकसित संस्कृति तथा आवश्यकताओं की अवधारणाओं पर प्रकाश डाला गया है। अंत में प्रकार्यवाद की अवधारणा की चर्चा की गई है, जिससे उसे न्यू गिनी में क्षेत्रीय कार्यशोध के दौरान एकत्र किए गए तथ्यों का विश्लेषण करने में मदद मिली।

संस्कृति तथा प्रकार्य की अवधारणा – मलिनॉस्की
इकाई की रूपरेखा
उद्देश्य
प्रस्तावना
मलिनॉस्की के पूर्ववर्ती विचारक
विकासवादी विचारक
प्रसारवादी विचारक
तथ्य एकत्रीकरण में विशिष्ट अभिरुचि
संस्कृति – कार्यशील समग्रता के रूप में
मलिनॉस्की तथा टाइलर की संस्कृति की परिभाषाएं
संस्कृति के अध्ययन की विधियाँ
आवश्यकताओं का सिद्धांत
जैविक आवेग
आवश्यकताओं के प्रकार
मलिनॉस्की द्वारा विकसित प्रकार्य की अवधारणा
सारांश
शब्दावली
कुछ उपयोगी पुस्तकें
बोध प्रश्नों के उत्तर

उद्देश्य
इस इकाई को पढ़ने के बाद आपके लिए संभव होगा
ऽ मानवीय संस्थाओं के अध्ययन के विकासवादी तथा विस्तारवादी दृष्टिकोणों का विवेचन करना
ऽ समाज तथा उसकी संस्थाओं के संबंध में प्रत्यक्ष जानकारी एकत्र करने में बीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक काल के समाजशास्त्रियों के बारे में बताना
ऽ मलिनॉस्की की संस्कृति की अवधारणा तथा संस्कृति के अध्ययन की विविध विधियों की व्याख्या करना
ऽ मलिनॉस्की द्वारा प्रतिपादित आवश्यकता की अवधारणा तथा आवश्यकताओं के प्रकारों की जानकारी देना
ऽ मलिनॉस्की द्वारा ट्रोब्रिएण्ड द्वीप समूह में एकत्र किए गए तथ्यों का विश्लेषण करने के लिए प्रकार्य की अवधारणा के इस्तेमाल का विवेचन करना।

Sbistudy

Recent Posts

द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन क्या हैं differential equations of second order and special functions in hindi

अध्याय - द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन (Differential Equations of Second Order…

12 hours ago

four potential in hindi 4-potential electrodynamics चतुर्विम विभव किसे कहते हैं

चतुर्विम विभव (Four-Potential) हम जानते हैं कि एक निर्देश तंत्र में विद्युत क्षेत्र इसके सापेक्ष…

3 days ago

Relativistic Electrodynamics in hindi आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा

आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा Relativistic Electrodynamics in hindi ? अध्याय : आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी…

5 days ago

pair production in hindi formula definition युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए

युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए pair production in hindi formula…

1 week ago

THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा

देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi…

1 week ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now