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bragg method in hindi ब्रैग विधि क्रिस्टलों की संरचना का निर्धारण (DETERMINATION OF CRYSTAL STRUCTURE)

bragg method in hindi ब्रैग विधि की जानकारी ?

क्रिस्टलों की संरचना का निर्धारण (DETERMINATION OF CRYSTAL STRUCTURE) : x-किरण विवर्तन द्वारा किसी क्रिस्टल के अलग-अलग फलकों से इन सतहों के बीच की दूरी ज्ञात कर लेते हैं और इस प्रकार क्रिस्टल की पूर्ण संरचना के बारे में जानकारी मिल जाती है। इसके लिए कई प्रायोगिक विधियां हैं जिनमें से प्रमुख का वर्णन निम्न है

  1. ब्रैग विधि (Bragg method) : इस विधि में एक घूमने वाली टेबल होती है जिस पर गोलाई में स्केल बना रहता है। इस टेबल के केन्द्र में पदार्थ का एक बड़ा क्रिस्टल फिक्स किया जाता है। एक X-किरण नली से ज्ञात तरंग-दैर्घ्य वाली किरणें निकलती हैं जो स्लिट S से गुजरकर क्रिस्टल की किसी सतह पर टकराती हैं। यहां से किरणें परावर्तित होकर एक अन्य स्लिट से गुजरते हुए एक आयनीकरण कक्ष E में प्रवेश करती -x-किरण पुंज स्लिट ULA आयनीकरण कक्ष xि -किरण नली क्रिस्टल स्केल (चित्र 5.34) जो डिटेक्टर D से जुड़ा हुआ रहता है। इसमें क्रिस्टल से परावर्तित हुई x-किरणों की तीव्रता की जानकारी मिलती है। प्रारम्भ में क्रिस्टल के कम कोण पर x-किरणों को भेजा जाता है बाद में धीरे-धीरे । इस कोण का मान बढ़ाते जाते हैं और डिटेक्टर में x-किरणों की तीव्रता को देखते जाते हैं। जिस कोण पर x-किरणों की तीव्रता उच्चतम होती है वह ब्रैग समीकरण को सन्तुष्ट करता है। इस प्रकार ड्रग समीकरण से। d का मान ज्ञात कर लिया जाता है।
  2. घूर्णी क्रिस्टल विधि (Rotating crystal method) : इस विधि में एक छोटे क्रिस्टल को किसी क्रिस्टलीय अक्ष के समानान्तर घुमाया या घूर्णित किया जाता है। इस घूमते हुए क्रिस्टल पर लम्बवत् दिशा में x-किरणों को भेजा जाता है। घूमते हुए क्रिस्टल के विभिन्न तल (planes) x-किरणों के पथ में आकर उन्हें विवर्तित करते जाते हैं। विवर्तित X-किरणें एक फोटोग्राफिक प्लेट पर गिरती जाती हैं जिससे चित्र 5.35 जैसा फोटोग्राफ प्राप्त होता है जिसमें प्रत्येक विवर्तित x-किरण से चित्र 5.35. पूर्णित क्रिस्टल विधि से प्राप्त एक धब्बा बनता है। इस प्रकार के चित्र क्रिस्टल के तीनों अक्षों x-किरण फोटोग्राफ के लिए ले लिए जाते हैं। इन फोटोग्राफ्स की सहायता से क्रिस्टल जालक की दूरियां, एकांक सेल के आकार, आदि का परिकलन करके क्रिस्टल की आन्तरिक संरचना की जानकारी प्राप्त कर ली जाती है।
  3. पाउडर विधि (Powder method) — इस विधि को डेबाई व शेरर (Debye and Scherrer) ने विकसित किया था अतः इसे डेबाई-शेरर विधि भी कहते हैं। इस विधि में पदार्थ को चूर्ण अथवा पाउडर के रूप में लिया जाता है जिसमें छोटे-छोटे अव्यवस्थित ढंग से अभिविन्यसित असंख्य क्रिस्टल होते हैं। पदार्थ के नमूने (sample) को एक पतली कांच की नली में लेकर इस पर X-किरणों के एक बारीक किरण पुंज को डाला जाता है। नमूने में क्रिस्टल सभी सम्भावित अभिविन्यासों में उपस्थित होते हैं। क्रिस्टल के जालक तलों के प्रत्येक सेट के लिए एक कोण ए होता है जो बैग समीकरण की अनुपालना करता है। अतः असंख्य सूक्ष्म क्रिस्टलों में से कुछ क्रिस्टल ऐसे होते हैं जो इस कोण के अभिविन्यास पर होते हैं। विवर्तित किरण पंजों को एक बेलनाकार रूप में रखी हुई फोटोग्राफिक प्लेट पर गिरने दिया जाता है, ये एक शंक (Cone) के आकार में विवर्तित होकर फोटोग्राफिक प्लेट पर गिरते हैं (चित्र 5.37)। इस प्रकार पाउडर फोटोग्राफ प्राप्त होता है, जो फिल्म को खोलकर सीधा रखने पर निम्न प्रकार का स्वरूप दर्शाता है

फोटोग्राफ की प्रत्येक रेखा पर उस जालक तल के सेट का सूचकांक लगा दिया जाता है और फिर। इन्हें नापकर x के सही मान ज्ञात कर लिये जाते हैं। यदि फिल्म की त्रिज्या। हो तो 360° के प्रकीर्णन कोण (scattering angle) के संगत परिधि 2πr होगी अतः

x/2πr = 2Φ/3600

Φ = x 3600 /4πr                     …(5)

इस Φ के मान को ब्रैग समीकरण (4) में रखकर जालक तलों के अन्तराल d की गणना कर ली जाती है और इस प्रकार d के विभिन्न मानों से क्रिस्टल की संरचना के बारे में निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। इस विधि का यह लाभ है कि इसमें ब्रैग अथवा घी किस्टल विधि की भांति पदार्थ के एक बड़े क्रिस्टल की आवश्यकता नहीं पड़ती। पदार्थों के चूर्ण अर्थात् छोटे-छोटे क्रिस्टल से ही क्रिस्टल संरचना का अध्ययन सम्पन्न हो जाता है।

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