हिंदी माध्यम नोट्स
Fe के अयस्क से Fe धातु का निष्कर्षण , वात्या भट्टी (blast furnace in hindi) , कच्चा लोहा , ढलवा ,पिटवा लोहा
मुख्य अयस्क = हेमेटाइड (Fe2O3)
इसका धातुकर्म निम्न पदों में संपन्न होता है –
1. अयस्क का चुर्णिकरण : जौ क्रेशर की सहायता से।
2. चूर्णित अयस्क का सान्द्रण : चुम्बकीय पृथक्करण विधि।
3. सांद्रित अयस्क का धातु ऑक्साइड में परिवर्तन : लोहे के सांद्रित अयस्क का वायु की अनुपस्थिति में पहले निस्तापन करवाते है इससे नमी व कार्बोनेट की अशुद्धि दूर हो जाती है , अब इस अयस्क का वायु की उपस्थिति में परावर्तनी भट्टी में भर्जन करवाया जाता है। इस क्रिया में सांद्रित अयस्क से धातु ऑक्साइड अयस्क प्राप्त होता है।
4. धातु ऑक्साइड का अपचयन (प्रगलन) : प्रगलन क्रिया वात्या भट्टी में करवाई जाती है इस क्रिया में लोहे के धातु ऑक्साइड अयस्क के साथ कोक (C) व गालक पदार्थ (CaCO3) मिलाकर इसे वात्या भट्टी में ऊपर से गिराया जाता है। इस क्रिया में धातु ऑक्साइड धातु में अपचयित हो जाता है।
वात्या भट्टी स्टील की बनी होती है इसमें अग्नि सह ईंटो का अस्तर लगा होता है। इस भट्टी की ऊंचाई 30 मीटर होती है तथा इसका व्यास 6 से 8 मीटर तक होता है।
इस भट्टी में घान (charge) डालने के लिए ऊपर की ओर कप एवं कोन व्यवस्था होती है। इस व्यवस्था में गैसे बाहर नहीं निकलती है तथा व्यर्थ की गैसों को निकालने के लिए अलग से निकास मार्ग होता है।
इस भट्टी के नीचे के भाग में ट्वीयर लगे होते है , इनके द्वारा गर्म वायु के झोके प्रवाहित किये जाते है तथा भट्टी के तल में गलित धातु को धातु मल से पृथक करने की व्यवस्था होती है।
इस भट्टी में ऊपर से डाले जाने वाले घान का संघटन निम्न प्रकार है –
भर्जित एवं निस्थापित धातु ऑक्साइड (8 भाग) + कोक (4 भाग) + चुना पत्थर (1 भाग)
इस घान को भट्टी में डालने पर भट्टी के अलग अलग खण्डो में होने वाली अभिक्रिया निम्न प्रकार है –
(1) अपचयन खण्ड (673-973k) :
Fe2O3 + CO → 2FeO + CO2
इस भाग से प्राप्त लोहा ठोस व सरंध्रमय होता है। इसे स्पंजी लोहा कहते है।
(2) केन्द्रीय खण्ड / ऊष्मावशोषण खण्ड (1173-1473k) : इसे धातुमल खण्ड भी कहते है , इस खंड में गालक पदार्थ CaCO3 विघटित होकर CaO बनाता है। यह CaO लोहे में उपस्थित अगलनीय अशुद्धि (SiO2) से क्रिया करके धातुमल बना लेता है। तथा इस भाग में FeO भी Fe में अपचयित हो जाता है।
FeO + CO → Fe + CO2
(3) संगलन खण्ड (1373-1573k) : इस भाग में अपचयित लोहा गलित अवस्था में आ जाता है तथा इस भाग में कार्बन डाइ ऑक्साइड (CO2) , CO में अपचयित होती है।
CO2 + C → 2CO
4. दहन खण्ड (1773-2173k) : यह खंड भट्टी के सबसे नीचे का भाग है , इस भाग का तापमान सर्वाधिक होता है। इस भाग में ईंधन को जलाया जाता है।
FeO + C → Fe + CO
इस उपरोक्त प्रक्रियाओ में ऊपर से गलित धातु एवं धातुमल भट्टी के पैंदे में गिरते है। धातुमल हल्का होने के कारण ऊपर रहता है एवं गलित धातु नीचे रहती है।
इस गलित धातु को धातुमल से पृथक कर लेते है , इस प्रकार प्राप्त गलित धातु कच्चा लोहा कहलाती है।
Recent Posts
मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi
malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…
कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए
राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…
हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained
hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…
तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second
Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…
चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi
chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…
भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi
first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…