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black thursday in hindi ब्लैक थर्सडे क्या है , तारीख कब हुआ था और कारण प्रभाव बताइए

जानिये black thursday in hindi ब्लैक थर्सडे क्या है , तारीख कब हुआ था और कारण प्रभाव बताइए ?

प्रश्नः ब्लैक थर्सडे (black Thursday) से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर: महान आर्थिक मन्दी 24 अक्टूबर, 1929 से प्रारम्भ हुई। इस तिथि को ‘Black Thursday’ कहा जाता है। इस दिन अमेरिका के शेयर बाजार में अचानक गिरावट आई और देखते ही देखते विश्व के बैंक दिवालिया होते गए।

प्रश्न: आर्थिक मंदी का जर्मनी, ब्रिटेन तथा अमेरिका पर क्या प्रभाव पड़े ? इसका विश्व इतिहास पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर: इस आर्थिक मंदी का पहला शिकार आस्ट्रिया का सबसे बड़ा बैंक क्रेडिटोन स्टॉट (Kreditan stalt) बना तथा यह दिवालिया हो गया। 11 मई, 1931 में ऑस्ट्रिया की सरकार ने एक आदेश जारी कर विदेशी देशों के आर्थिक हितों की रक्षा करने का दायित्व अपने हाथों में लिया परंतु इसका निवेशकों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। इस घटना के पश्चात् मध्य यूरोपीय देशों की बैंकिग व्यवस्था की साख मिट गई।
i. जर्मनी पर प्रभाव
इस संकट का अत्यधिक विनाशकारी प्रभाव जर्मनी पर पड़ा। जर्मनी में जर्मन राइख बैंक (German Reich Bank) से 3 सप्ताह में विदेशी निवेशकों ने 5 करोड़ पाउण्ड मूल्य का सोना निकाल लिया। जुलाई, 1931 में जर्मन बैंक डर्मस्डस्ट उंद नेशनल बैंक दिवालिया हो गया। 1931 में जर्मनी में 4ध् मिलियन लोग तथा 1933 में 6 मिलियन (60 लाख) लोग बेरोजगार हो गये। इससे जर्मनी ने भविष्य में क्षतिपूर्ति, ऋण, ब्याज आदि की न अदायगी की धमकी दी और लागू भी की। जर्मनी का आयात-निर्यात लगभग समाप्त हो गया। रूर घाटी में कल-कारखानों के शोर की बजाय फ्रांसीसी सैनिकों के बूटों की आवाज आती थी। बेरोजगारी ने भयंकर रूप ले लिया। परिणामस्वरूप जिसने कई सामाजिक समस्याओं को जन्म दिया। इसने वाइमर गणतंत्र को संकट में डाला जिसका लाभ हिटलर ने उठाया और उसे बहुमत प्राप्त हो गया। इसी मन्दी के कारण जर्मनी में नाजीवाद की नींव रखी। प्रजातंत्र प्रणाली का ह्रास हो गया।
ii. ब्रिटेन पर प्रभाव
1929 के बाद ब्रिटिश उत्पादन निर्यात, रोजगार तथा लोगों के निर्वाह स्तर में तेजी से गिरावट आने लगी। उसने अपना औद्योगिक नेतृत्व खो दिया साथ ही निर्यात बाजार भी। जुलाई, 1931 में बैंक ऑफ इंग्लैण्ड की भी साख गिरने लगी। इस बैंक के पास लोगों को पैसा अदा करने के लिए धन नहीं था। बैंक आफ इंग्लैण्ड ने अपनी साख को बचाने के लिए अगस्त 1931 से अमेरिका व फ्रांस से 5 करोड़ पाउण्ड का ऋण लिया। परंतु इसका इंग्लैण्ड पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। संकट के कारण मजदूर दल सरकार के प्रधानमंत्री रेम्जे मैक्डोनॉल्ड (Ramsay Medonals) ने स्वयं त्यागपत्र देकर राष्टीय सरकार का निर्माण किया। नई सरकार ने व्यापार की सुरक्षित नीति को अपनाया, स्वर्णमान का परित्याग एवं पौण्ड-स्टलिंग का अवमूल्यन किया, संरक्षण एवं साम्राज्यवादी अभियान की नीति अपनायी तथा सस्ती मौद्रिक नीति का सहारा लेना पड़ा। इंग्लैण्ड में 18 सितम्बर, 1931 को केवल एक ही दिन में 180 लाख पाउण्ड राशि बैंक ऑफ इंग्लैण्ड से ग्राहकों ने निकाल ली। इससे इंग्लैण्ड की अर्थव्यवस्था चरमरा गई।
iii. अमेरिका पर प्रभाव
प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व अमेरिका एक कर्जदार देश का किन्तु युद्ध के दौरान बड़े पैमाने पर खाद्य पदार्थ एवं अन्य सामग्री मित्रराष्ट्रों को बेचने से अमेरिका एक निर्यातक देश बन गया और वह यूरोप का ऋणदाता हो गया। 1929 के ग्रीष्मकाल तक तो अमरीकी यह सोच रहे थे कि उन्होंने शाश्वत समृद्धि का रास्ता ढूँढ लिया है। किन्तु अक्टूबर, 1929 में ये सारे सपने चकनाचूर हो गये। वाल स्ट्रीट की घटना के पश्चात् अमेरिका की अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो गई। 1930-32 के बीच अमेरिका में छोटे-बड़े 5000 बैंक दिवालिया हुए तथा बंद हो गये। परिणामस्वरूप 13 मिलियन अमरीकी श्रमिक बेरोजगार हुए। इससे यूरोपीय आर्थिक स्त्रोत सख गये। इस कारण से यरोपीय देशों में पुनः निर्माण कार्य ठप्प हो गया। दूसरी ओर यूरोपीय देशों को क्षतिपूर्ति एवं युद्ध का ऋण भुगतान सोने के रूप में करना पड़ रहा था। पुननिर्माण कार्य के BIi हो जाने के पश्चात् यूरोपीय देशो की अर्थ व्यवस्था चरमरा गई। सभी यूरोपीय देशों के बजट असंतुलित हो गये। 1929-33 के चार वर्षों में अमरीकी अर्थव्यवस्था जैसे रसातल में चली गयी। नागरिक रोजगार में 20ः की गिरावट, टिकाऊ वस्तुओं का उत्पादन 80ः गिर गया। तत्कालीन सरकार की सभी नीतियां असफल होकर रह गयी। 1933 में राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने श्न्यू डीलश् के अन्तर्गत पुनरूत्थान, सुधार तथा सन्तुलन के कदम उठाकर राष्ट्र को मन्दी के दौर से उभारा।
इसी प्रकार आर्थिक मंदी का प्रभाव फ्रांस, इटली व सम्पूर्ण विश्व पर पड़ा। इससे केवल रूस ही बच पाया।

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