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Categories: Physicsphysics

bias stability of bjt in hindi बायस स्थायित्व क्या है परिभाषा लिखिए सूत्र किसे कहते हैं समझाइये

बायस स्थायित्व क्या है परिभाषा लिखिए सूत्र किसे कहते हैं समझाइये bias stability of bjt in hindi ?

 बायस स्थायित्व (BIAS STABILITY)

ट्रॉजिस्टर प्रवर्धक के सामान्य प्रचालन के लिए उचित बायस द्वारा ट्रॉजिस्टर के प्रचालन बिन्दु Q का निर्धारण करते हैं और उचित निष्पादन के लिए यह प्रचालन बिन्दु नियत एवं स्थायी होना चाहिए। परन्तु ट्रॉजिस्टर के प्रचालन ताप पर निर्भर करते हैं जिससे प्रचालन बिन्दु भी विस्थापित हो जाता है। अतः ट्रॉजिस्टर के Q के स्थायित्व के लि आवश्यक हो जाता है कि ताप के प्रभाव का परिपथ में यथासम्भव निराकरण किया जाये। 1. के अस्थापित ( instability) के तीन स्रोत होते हैं, उत्क्रमित संतृप्त धारा lco, आधार उत्सर्जक वोल्टता VBE तथा गुणांक B या hfe

Ic = f’ (Ico, VBE, B)

S, S’ व S” स्थायित्व गुणांक ( stability factor) कहलाते हैं। ट्रॉजिस्टर में ताप वृद्धि के कारण इसके सहसंयोजी आबन्ध (covalent bonds) टूटते हैं जिसके कारण आधार-उत्सर्जक परिपथ में क्षरण धारा (leakage current) प्रवाहित होती है। इस प्रकार संग्राहक धारा Ic में आधार धारा IB घटक के साथ-साथ क्षरण धारा Ico घटक भी होता है। संग्राहक के ताप वृद्धि से क्षरण धारा में बहुत अधिक वृद्धि होती है इससे ट्रॉजिस्टर के खराब होने की सम्भावना भी रहती है। इसको रोकने के लिए इस धारा को नियन्त्रित करना आवश्यक होता है। Ico का मान प्रत्येक 10°C ताप वृद्धि में लगभग दुगुना हो जाता है। ट्रॉजिस्टर के प्रचालन बिन्दु के स्थायित्व के लिये स्थायित्व गुणांक ( stability factor) S इस कारण सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है।

S का मान जितना कम होगा उतना ही संग्राहक धारा पर ताप का प्रभाव कम पड़ेगा इसलिए प्रचालन बिन्दु के स्थायित्व के लिए S का मान न्यूनतम होना चाहिए। ट्रॉजिस्टर के सक्रिय क्षेत्र में संग्राहक धारा

……………..(1)

यहाँ B संग्राहक-आधार धारा लब्धि (collector-base current gain) है।

समीकरण (1) को Ic के सापेक्ष अवकलन करने पर

 प्रवर्धक के बायसीकरण परिपथ पर निर्भर करता है इसलिए बायसीकरण के लिए उचित परिपथ लेकर S का मान कम किया जा सकता है।

(i) नियत बायसीकरण (Fixed-bias) – इस विधि में परिपथ में आधार धारा नियत रहती है अर्थात् संग्राहक धारा पर निर्भर नहीं करती है,

………………(3)

यदि किसी ट्रॉजिस्टर का B = 50 है तो परिपथ का स्थायित्व गुणांक 51 होगा। इसका अर्थ हुआ कि यदि तप वृद्धि से क्षरण धारा में वृद्धि होती है तो परिपथ के निर्गम में संग्राहक धारा में 51 गुना अधिक वृद्धि होगी। अतः यह परिपथ ताप के साथ बहुत अधिक संवेदनशील होता है इसलिए व्यावहारिक रूप से इस परिपथ का उपयोग नहीं किया जाता है।

(ii) स्वाभिनति या उत्सर्जक बायस (Self or emitter bias ) – इस व्यवस्था में निवेश परिपथ के लिये ।

VBB = IBRB + VBE + (IB + Ic) RE ……………..(4)

संग्राहक धारा के सापेक्ष अवकलन करने पर

स्वाभिनति व्यवस्था में स्पष्टतः स्थायित्व गुणांक S का समीकरण ( 6 ) से प्राप्त मान नियत बायस अवस्था में प्राप्त मान ( समीकरण 3) से कम होता है अर्थात् स्थायित्व अधिक उत्तम होता है।

 प्रवर्धकों की आवृति अनुक्रिया (FREQUENCY RESPONSE OF AMPLIFIER) 

विभिन्न विन्यासों में ट्रॉंजिस्टरों को प्रयुक्त कर प्रवर्धक के रूप में उनके व्यवहार व उपयोग का वर्णन पिछल खण्ड 4.12 में किया गया था। इस विवेचन में निविष्ट संकेत की आवृत्ति के प्रभावों पर विचार नहीं किया गया था। संकेत आवृत्ति का एकल चरण अथवा बहु-चरणी प्रवर्धकों में स्पष्ट एवम् प्रमुख प्रभाव होता है। आवृत्ति की निर्भरत से मुक्त विवरण केवल आवृत्ति की विशेष परास (मध्य आवृत्ति परास) के लिये यथार्थ होता है सम्पूर्ण परास के लिये नहीं। अल्प आवृत्तियों पर युग्मन (coupling) अथवा उपपथ (by pass) के लिये प्रयुक्त संधारित्रों को लघुपथित नहीं माना जा सकता और इनका प्रतिघात ( reactance) नगण्य नहीं होता तथा आवृत्ति पर निर्भर होता है। उच्च आवृत्तियों (सक्रिय युक्ति (ट्रॉजिस्टर) अथवा परिपथ जाल के सम्बद्ध अवाछित धारितायें (stray capacitances) निकाय की अनुक्रिया को प्रभावित करती है।

प्रवर्धकों में सर्वाधिक प्रभावशाली अवांछित धारिता निवेश व निर्गम टर्मिनलों के मध्य धारिता होती है। इस धारिता के कारण प्रवर्धित संकेत का पुनर्निवेश हो जाता है और यदि प्रवर्धक की लब्धि A अधिक है तो इस पुनर्निवेश के कारण प्रवर्धक की निवेश प्रतिबाधा व परिणामी लब्धि यथेष्ट रूप से प्रभावित होती है। यदि किसी प्रवर्धक के निवेश व निर्गम टर्मिनलों के मध्य पुनर्निवेश धारिता C है व मूल प्रवर्धक की लब्धि A है चित्र (4.17-1) तो यह धारा निवेश को पार्श्वपथित करती हुई धारिता

Ci = C ( 1 – A) व निर्गम को पार्श्वपथित करती हुई धारिता  के तुल्य होती है। इस प्रभाव को मिलर प्रभाव (Miller Effect) कहते हैं। यदि धारिता से प्रवाहित धारा io है तो

उदाहरणस्वरूप उभयनिष्ठ उत्सर्जक (CE) प्रवर्धक में ट्रॉजिस्टर की आंतरिक धारितायें आधार-संग्राहक धारिता Cbc व आधार-उत्सर्जक-धारिता Cbe होती है। इन धारिताओं के साथ तुल्य सरलीकृत परिपथ चित्र (4.17-2) की भांति होगा। मिलर प्रभाव के द्वारा धारिता Cbc के कारण निवेश में अतिरिक्त धारिता होगी-

तथा निर्गम पर धारिता

   (A>>1)

इस प्रकार निवेश पर Cbe व Ci धारितायें समांतर क्रम में होंगी जिन्हें परिणामी धारिता Cd से प्रतिस्थापित कर सकते हैं

इस प्रकार Cbc का प्रवर्धित मान निवेश पर प्रभावी हो जाता है। बहु-चरणी प्रवर्धकों में द्वितीय चरण के निवेश पर यह धारिता Cd प्रथम चरण के निर्गम पर लोड को पार्श्वपथित करती है जिससे उच्च आवृत्तियों पर प्रथम चरण की लोड प्रतिबाधा, आवृत्ति पर निर्भर हो जाती है और प्रवर्धक की लब्धि आवृत्ति बढ़ने के साथ घटती है।

संक्षेप में युग्मन तथा उपपथ प्रदान करने हेतु उच्च मान (UF कोटि की ) धारितायें प्रवर्धक की निम्न V, I B Coe Chc C hi =8aVw E चित्र (4.17-2) आवृत्ति लब्धि को प्रभावित करती है। मध्य आवृत्ति व उच्च आवृत्ति परास में इन धारिताओं को लघुपथित (short circuited) माना जा सकता है (Xc = 1 /C  = 0, जब व C का मान अधिक है।) निम्न आवृत्तियों पर आवृत्ति घटने के साथ इन धारिताओं की प्रतिघात बढ़ता है व लब्धि ( वोल्टता लाभ) भी घटती है। मध्य आवृत्ति परास में युग्मन व उपपथीय धारिताओं का प्रतिघात नगण्य होता है परन्तु अवांछित धारितायें जो निवेश या लोड को पार्श्वपथित करती हैं अत्यल्प (~102pF) होने के कारण उनका प्रतिघात अत्यधिक होता है व उन्हें खुले परिपथ के रूप में मान सकते हैं। इस प्रकार मध्य आवृत्ति परास में लब्धि A आवृत्ति पर निर्भर नहीं होती व लगभग नियत रहती है। उच्च आवृत्तियों पर युग्मन व उपपथीय धारितायें लघुपथित मानी जा सकती है परन्तु अवांछित धारितायें लोड को पार्श्वपथित कर लोड के प्रभावी मान को आवृत्ति बढ़ने के साथ घटाती है जिससे पुनः लब्धि के मान में ह्रास होता है। इस प्रकार लब्धि का आवृत्ति के साथ परिवर्तन चित्र (4.17 – 3) के अनुसार होता है। इस वक्र को प्रवर्धक आवृत्ति अनुक्रिया विक (frequency response curve) भी कहते हैं। आवृत्तियाँ f1 व fh जिन पर मध्य आवृत्ति परास में प्राप्त लब्धि A के सापेक्ष

लब्धि हो जाती है, अर्ध-शक्ति आवृत्तियां कहलाती हैं। निम्न आवृत्ति परास में प्राप्त अर्ध-शक्ति आवृत्ति f1 निम्न अर्ध-शक्ति आवृत्ति (lower half power frequency) कहलाती है व उच्च आवृत्ति परास में प्राप्त अर्ध-शक्ति आवृत्ति fhउच्च अर्ध-शक्ति आवृत्ति (higher half A power frequency) कहलाती है। डेसीबल (dB) में यह शक्ति में 3dB की कमी व्यक्त करता है। इस कारण इन आवृत्तियों को 3dB आवृत्तियाँ भी कहते हैं। fi व fh पर निर्गत संकेत शक्ति अधिकतम संकेत शक्ति की आधी होती है।fh व fi का अंतर अर्थात् (fh-fi) प्रवर्धक की बैंड – चौड़ाई (band width) कहलाती है।

Sbistudy

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