JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

भवाई नृत्य का वर्णन कीजिये भवाई किस राज्य का लोक नृत्य है bhavai dance in hindi which dance is famous in gujarat

which dance is famous in gujarat which state भवाई नृत्य का वर्णन कीजिये भवाई किस राज्य का लोक नृत्य है bhavai dance in hindi ?

भवाई
भवाई गुजरात तथा राजस्थान के कच्छ तथा काठियावाड क्षेत्रों में प्रचलित एक लोकप्रिय लोक नाट्यकला है।

इस विधा में वेश या स्वांग के नाम से विख्यात लघु-नाटकों की श्रृंखला की प्रत्येक नाटिका के कथानक का वर्णन करने के लिए नृत्य का व्यापक प्रयोग किया जाता है। इस नाटक का केन्द्रीय भाव, सामान्यतः, रूमानी होता है।
इस नाटक में भुन्गाला, झांझ तथा तबला जैसे वाद्य-यंत्रों का प्रयोग कर अनोखी लोक शैली में बजाए जाने वाले अर्द्धशास्त्रीय संगीत का समावेश होता है। भवाई नाट्यकला में सूत्रधार को ‘नायक‘ के नाम से जाना जाता है।

लोक नाट्यकला
भारत अपने विभिन्न भागों की लोक नाट्यकला की समृद्ध परम्परा पर गर्व करता है। परम्परागत लोक नाट्यक सामाजिक नियमों, मान्यताओं और रीतियों सहित स्थानीय जीवन शैली के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती है। जहां संस्कृत नाट्यकला अपने नाटकों के प्रबंध में अधिक नगराभिमुख तथा परिष्कृत थी, लोक नाट्यकला का जुड़ाव ग्रामीण जीवन शैली से था तथा यह देहाती ढंग की नाटकीय शैली में प्रदर्शित होता था।
अभी तक विद्यमान लोक नाट्यकलाओं में से अधिकतर, भक्तिमय विषय-वस्तुओं के साथ 15वीं तथा 16वीं शताब्दी के बीच की अवधि में उभरी। यद्यपि, समय के साथ-साथ इन्होंने प्रेम-गाथागीतों तथा स्थानीय नायकों की कथाओं को अपनाना आरम्भ कर दिया तथा उनकी प्रकृति पथ-निरपेक्ष होती चली गयी। स्वतन्त्रता के बाद की अवधि में लोक नाट्यकला केवल सामाजिक मनोरंजन से इतर, सामाजिक बुद्धिमत्ता के प्रसारण की अत्यधिक लोकप्रिय पद्धति बन गई।
भारतीय लोक नाट्यकला को व्यापक रूप से निम्नलिखित तीन वर्गों में बांटा जा सकता है:
अनुष्ठानिक नाट्यकला मनोरंजन नाट्यकला दक्षिण भारतीय नाट्यकला
अंकिया नट भवई यक्षगान
कला दसकठिया बुर्रा कथा
रामलीला गोरादास पगाती वेशालू
रासलीला जात्रा वयालता
भूम करियीला ताल-मदाले
म्ंाच थेयम
नौटंकी कृष्ण अट्टम
ओजा-पाली कुरुवांजी
पंडवानी
पोवाडा
स्वांग
तमाशा
विल्लू पटू

आनुष्ठानिक नाट्यकला
भक्ति आन्दोलन के दौरान, लोक नाट्यकला दर्शकों तथा प्रस्तुतकर्ताओं दोनों के लिए ईश्वर के प्रति अपने विश्वास को प्रकट करने का लोकप्रिय माध्यम बन गई। ऐसी नाट्यकला के कुछ लोकप्रिय उदाहरण निम्नलिखित हैं:

अंकिया नट
यह असम का एक परम्परागत एकांकी है। इसका आरम्भ प्रसिद्ध वैष्णव संत शंकरदेव तथा उनके शिष्य महादेेव के द्वारा 16वीं शताब्दी में किया गया था। इसे ओपेरा शैली में प्रस्तुत किया जाता है तथा इसमें कृष्ण की जीवन ली का चित्रण किया जाता है।
सूत्रधार या कथा वाचक के साथ गायन-बायन मंडली (Gayan Bayan Mandali) के नाम से जाने जाने वाले संगीतकारों की एक मंडली होती है जो ‘खोल‘ तथा ‘करताल‘ बजाती है। नाट्यकला की इस विधा की एक अनोखी विशेषता विशेष भावों की अभिव्यक्ति हेतु मुखौटों का प्रयोग है।

कला
कला वैष्णव परम्परा की एक प्राचीन नाट्यकला है। यह मुख्यतः, विष्णु के जीवन तथा अवतारों पर आधारित होती है। कला की कुछ लोकप्रिय शाखाओं में दशावतार कला, गोपाल कला तथा गौलन कला प्रसिद्ध हैं।

रामलीला
रामलीला उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में एक लोकप्रिय लोक नाट्यकला है। यह मुख्यतः, दशहरा के पूर्व की अवधि में गीतों, नृत्यों तथा संवादों पर आधारित रामायण का मंचन होता है। इसे, विशेषतः, पुरुष अभिनेताओं द्वारा प्रस्तुत किया जाता है जो सीता की भूमिका भी निभाते हैं।

रासलीला
रासलीला गुजरात क्षेत्र में लोकप्रिय कृष्ण और राधा के किशोर अवस्था की प्रेम कहानियों का नृत्य-नाट्य मंचन है।

भूत
भूत जिसका अर्थ प्रेत होता है, कर्नाटक के कन्नर जिले में प्रचलित मृत पूर्वजों की आराधना की एक परम्परागत प्रथा है।

मनोरंजन आधारित नाट्यकला
नाटयकला की यह विधा वर्णन तथा कथा वाचन में अधिक पंथ-निरपेक्ष थी। उनके केंद्र में, मुख्यतः, प्रेम, शौर्य तथा सामाजिक-सांस्कृतिक परम्पराओं पर आधारित कहानियां होती थीं तथा उनका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण जन का मनोरंजन था।

 

दसकठिया
दसकठिया ओडिशा क्षेत्र में लोकप्रिय लोक नाट्यकला की एक विधा है। इस विधा में, दो कथावाचक होते है – गायक, जो मुख्य गायक होता है, तथाय ‘पालिया‘, जो सह-कथा-वाचक होता है। कथा वर्णन के साथ-साथ नाटकीय संगीत की जुगलबंदी चलती है, जिसे कठिया नामक एक लकड़ी के बने वाद्य यंत्र की सहायता उत्पन्न किया जाता है।
इस विधा का एक सन्निकट रूपांतर है चैती घोघ जिसमें दो वाद्य यंत्रों – ढोल तथा मोहरी – तथा तीन कथावाचकों का प्रयोग किया जाता है।

गरोघ
यह गुजरात के ‘गरोघ‘ समुदाय की एक लोकप्रिय कला विधा है। इसमें रूमानियत तथा वीरता की कहानी का वर्णन करने के लिए रंगीन तस्वीरों का प्रयोग किया जाता है।

जात्रा
जात्रा पूर्वी भारत की एक लोकप्रिय लोक नाट्यकला है। यह एक मुक्ताकाश प्रस्तुति होती है जिसे वैष्णव संत श्री चैतन्य के द्वारा आरम्भ किया गया था। ग्रामीण बंगाल की अपनी यात्राओं के दौरान उन्होंने कृष्ण की शिक्षाओं का प्रसार करने के लिए जात्रा के माध्यम का प्रयोग किया। बाद में, इसके राम जात्रा, शिव जात्रा तथा चंडी जात्रा जैसे रूपांतर भी अस्तित्व में आये जिनमें पौराणिक आख्यानों से ली गयी कहानियां सुनाई जाती थीं।
आधुनिक समय में, जात्रा का उपयोग पंथ-निरपेक्ष, ऐतिहासिक तथा देशभक्तिपूर्ण केन्द्रीय भावों वाली कहानियों का वर्णन करने में किया जाता है। ओडिशा में, सही जात्रा नामक एक लोकप्रिय मुहल्ला नाट्यकला प्रचलित है।

कारीयिला
यह मुक्ताकाश नाट्यकला का एक अन्य रूप है, जो हिमाचल प्रदेश की तराइयों में लोकप्रिय है। सामान्यतः, ग्राम्य मेलों तथा त्योहारों के समय मंचित यह प्रस्तुति रात्रि में की जाती है तथा इसमें नाटिकाओं तथा प्रहसनों की एक श्रृंखला होती है।

माचा
माचा मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र की लोक नाट्यकला है। इसका अविर्भाव 17वीं शताब्दी के आस-पास उज्जैन में हुआ था तथा यह पौराणिक कथाओं पर आधारित थी। बाद में इसके रंगपटल में, रूमानी लोक कथाओं को सम्मिलित कर दिया गया। इस विधा की अनोखी विशेषता इसके सवाद होते हैं, जिन्हें रंगत दोहा नामक दोहों के रूप में कहा जाता है।

नौटंकी
स्वांग की एक शाखा, नौटंकी उत्तर भारत की सर्वाधिक लोकप्रिय नाट्यकला विधा है जिसकी चर्चा में की पुस्तक ‘आइन-ए-अकबरी‘ में मिलती है। ये नाटक ऐतिहासिक, सामाजिक तथा लोक कथाओं के जाते हैं, तथा इन्हें नृत्य और संगीत के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। संवादों को गीतिकाव्य शैली नामक ढोल की ताल पर प्रदान किया जाता है। बाद की अवधि में कानपुर तथा लखनऊ के आस-पास स्थित की दो शैलियों को प्रमुखता प्राप्त हुई।

ओजा-पाली
ओजा-पाली असम की एक अनोखी वर्णनात्मक नाट्यकला विधा है जो प्रारम्भिक रूप से मनसा देवी या नाग देवी पर्व से संबंधित है। इसका कथा वाचन एक लम्बी प्रक्रिया है, जिसके तीन भिन्न भाग होते हैं – बनिया खंड, भटियार खंड तथा देव खंड। ओजा मुख्य कथा वाचक तथा पाली सह-गान के सदस्य होते हैं।

पोवाडा
शिवाजी द्वारा अपने शत्रु अफजल खान को मार दिए जाने के बाद शिवाजी की वीरता की प्रशंसा में एक नाटक की रचना की गयी, जिसे बाद में पोवाडा कहा गया। ये स्वांगसश गीतिकाव्य हैं, जो शौर्य की कहानियां कहते हैं। इन्हें गोंधालिस तथा शाहिर के नाम से जाने जाने वाले लोक संगीतकारों के द्वारा गाया जाता है। यह मुख्यतः, महाराष्ट्र क्षेत्र में लोकप्रिय है।

स्वांग
स्वांग पंजाब तथा हरियाणा क्षेत्रों में मनोरंजन के एक अन्य लोकप्रिय स्रोत हैं। मुख्य रूप से, ये छंदों के माध्यम से गाये जाने वाले तथा एकतारा, हारमोनियम, सारंगी, ढोलक तथा खर्ता जैसे वाद्य-यंत्रों की सहायता से प्रस्तुत संगीतमय नाटक होते हैं।

Sbistudy

Recent Posts

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

4 weeks ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

4 weeks ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

4 weeks ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

4 weeks ago

चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi

chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…

1 month ago

भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi

first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…

1 month ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now