JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: इतिहास

भरतनाट्यम किस राज्य का शास्त्रीय नृत्य है , प्रसिद्ध प्रवर्तक bharatnatyam origin state in hindi

bharatnatyam origin state in hindi भरतनाट्यम किस राज्य का शास्त्रीय नृत्य है , प्रसिद्ध प्रवर्तक कौन है ?

भरतनाट्यम
कुछ विद्वानों का मत है कि इस नृत्य शैली का नाम भरत के नाट्यशास्त्र से लिया गया है। कुछ कहते हैं कि भ र और त तीनों क्रमशः भाव, राग और ताल के लिए हैं। नाम में जो भी हो, तमिलनाडु में देवदासियों द्वारा विकसित व प्रसारित इस शैली को सबसे प्राचीन नृत्य माना जाता है। कुछ समय के लिए इस नृत्य को देवदासियों के कारण उचित सम्मान नहीं मिल पाया, किंतु बीसवीं सदी के प्रारंभ में ई. कृष्ण अय्यर और रुक्मिणी देवी अरुंदाले के अथक् प्रयासों से इसे पुनः स्थापित किया गया।
भारत नाट्यम की दो प्रसिद्ध शैलियां हैं पंडानलूर एवं तंजावुर शैलियां। मीनाक्षी सुंदरम पिल्लई भरतनाट्यम की प्रसिद्ध प्रवर्तक थीं। उनकी शैली को पंडानलूर स्कूल आॅफ भरतनाट्यम के तौर पर जागा जाता है। ऐसा माना जाता है कि आज के भरतनाट्यम को तंजावुर के चार शिक्षकों चिनैया, पोन्निया, शिवनंदम एवं वेडीवेलू द्वारा संहिताबद्ध किया गया।

नृत्य
आधुनिक विश्व में नृत्य को सर्वाधिक चित्राकर्षक व माधुर्यपूर्ण कला माना जाता है। प्राचीनतम कला के रूप में भी नृत्य कला स्वीकृत है। आदिम युग में मानव अपने हृदयावेग को सर्वदा अंग-प्रत्यंग की गति की सहायता से प्रकट करते थे। वही क्रमशः नृत्यकला के रूप में विकसित हुआ।
सिन्धु घाटी के उत्खनन से प्राप्त नृत्यशील पुरुष व नारी मूर्ति यह बात प्रमाणित करती है कि प्रागैतिहासिक काल से ही नृत्य का प्रचलन था। प्राचीन नृत्य के रूप से हमें वैदिक युग के नटराज शिव के नृत्य-गीत के विषय में ज्ञात होता है, जिसका उल्लेख अनेक पौराणिक ग्रंथों व गाथाओं में किया गया है। यद्यपि ताण्डव नृत्य के साथ शिव का संबंध जोड़ा जाता है, किंतु वास्तव में वे इसके उद्भावक नहीं थे। नाट्यशास्त्र में कहा गया है ‘तण्डुना मुनिना प्रोक्तम’, अर्थात् त.डु मुनि द्वारा उपदिष्ट, लेकिन यह नृत्य शिव द्वारा सम्पन्न किया गया था। कहा जाता है कि नटराज शिव के ताण्डव नृत्य की कल्पना से ही परवर्तीकाल में उनकी महाकाल-मूर्ति कल्पित हुई और नृत्य का विकास भी उसी से हुआ।
ऐसा भी कहा जाता है कि संसार में बढ़ते ईष्र्या, द्वैष, क्रोध और दुःख को देखते हुए ब्रह्मा जी ध्यानमग्न हुए और उन्होंने पांचवें वेद, ‘नाट्यवेद’ की रचना की। इसमें चारों वेदों का सार था। बौद्धिक पक्ष ऋग्वेद से, संगीत सामवेद से, अभिनय यजुर्वेद से और रस अथर्ववेद से लिया गया। इसी को आधार मान भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र लिखा। नृत्य की उत्पत्ति चाहे जो रही हो, इसे अपने आप में एक संपूर्ण कला माना जा सकता है, जिसमें ईश्वर और मनुष्य का आपसी प्रेम परिलक्षित होता है।
नृत्य के मूलभूत पहलू
भारतीय शास्त्रीय नृत्य के दो मूलभूत पक्ष हैं ताण्डव एवं लास्य। पौराणिक गाथाओं में शिव-पार्वती के नृत्य को ही ताण्डव व लास्य नृत्य कहा गया है। ऐसा भी कहा गया है कि दोनों नृत्यों के प्रथम अक्षरद्वय से ‘ताल’ शब्द की उत्पत्ति हुई है। किंतु महर्षि भरत ने नृत्य या नृत्त में से किसी को भी लास्य के लिए प्रयुक्त नहीं किया था। भरत ने पुरुष और स्त्री दोनों के लिए ताण्डव नृत्य उपयुक्त बताया है।
पंडित शारदातनय ने नृत्य व नृत्त को मधुर व उद्धत अर्थात् लास्य व ताण्डव दो श्रेणियों में विभाजित किया है। नृत्य पर अन्य रचनाएं हैं महेश्वर महापात्र की ‘अभिनय चंद्रिका’ और जदुनाथ सिंह का ‘अभिनय प्रकाश’।
यहां ताण्डव नृत्य को उद्धत व उग्र नृत्य के रूप में स्वयं शिव व तण्डु ने भरत आदि पुरुष के माध्यम से और लास्य नृत्य को सुकुमार व कोमल नृत्य के रूप में पार्वती ने स्त्री के माध्यम से प्रचारित किया, कहा गया है। कालांतर में क्रमशः मंदिर प्रांगणों में होने वाले भरतनाट्यम, ओडिशा के सबसे पुराने नृत्य ओडिसी, सहर्वाधिक हस्तमुद्रायुक्त कथकली, दक्षिण के सुललित नृत्य कुचिपुड़ी, राधाकृष्ण विषयक मणिपुरी, बादशाही दरबारों की कथक आदि विविध नृत्य धाराएं भारतीय शास्त्रीय नृत्य के रूप में उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त लोकसंगीत एवं लोक नृत्य के रूप में असंख्य प्रादेशिक नृत्यों का विकास हुआ है।
शिलालेखों के अंतग्रत ताण्डव नृत्ृत्य
ताण्डव या ताण्डव नृत्य एक दैवीय नृत्य है जिसे हिंदू देवता शिव द्वारा किया गया। शिव के ताण्डव नृत्य को एक शक्तिशाली नृत्य के तौर पर देखा जाता जाता है जो सृजन, संरक्षण एवं विनाश के चक्र का स्रोत है। ताण्डव नृत्य के सात रूप हैं (प) आनंद ताण्डव; (पप) संध्या ताण्डव; (पपप) कालिका ताण्डव; (पअ) त्रिपुरा ताण्डव; (अ) गौरी ताण्डव; (अप) संहार ताण्डव; और (अपप) उमा ताण्डव।
शिव दो अवस्थाओं में विश्वास करते थे समाधि और ताण्डव या लास्य नृत्य अवस्था। समाधि उनकी निर्गुण अवस्था है और ताण्डव या लास्य नृत्य मुद्रा उनकी सगुण अवस्था है। हर कोई शिव के नटराज रूप से वाकिफ है, विशेष तौर पर वे जो कला एवं साहित्य से जुड़े हैं। परम्परागत रूप में, यह माना जाता है कि नटराज नृत्य के उन्नायक हैं। नटराज के नृत्य को ईश्वर के पांच कार्यों को प्रस्तुत करने वाला माना जाता है, नामतः सृजन, जीवनाधार, विनाश, भ्रमों का समावेश एवं भ्रमों से उन्मुक्ति।
भारतीय धर्मशास्त्र में, भगवान श्वि को नृत्य का सर्वोच्च देवता माना जाता है। इस दैवीय कला रूप को भगवान शिव और उनकी पत्नी देवी पार्वती द्वारा किया जाता है। कुछ शोधार्थी लास्य को ताण्डव का नारी संस्करण मानते हैं। लास्य दो प्रकार का है (i) जरिता लास्य और (ii) यौवक लास्य।
इस कला रूप का समय के साथ-साथ निश्चित रूप से रूप परिवर्तन हुआ। प्राचीन समय में इस नृत्य रूप को अधिकतर महिला कलाकारों द्वारा किया जाता था, जिन्हें देवदासी कहा जाता था तथा जो मंदिरों में नृत्य करती थीं। ये देवदासियां संपूर्ण कलाकार थीं, जो गायन, नृत्य, एवं वाद्ययंत्र बजागे में निपुण थीं। वे संस्कृत एवं अन्य भाषाओं में पारंगत थीं जिससे वे उनके द्वारा किए जागे वाले प्रस्तुति की व्यवस्था कर पाती थीं। लेकिन इस परम्परा ने तब दम तोड़ दिया जब समाज में देवदासियों की स्थिति धूमिल हो गई। तब यह नृत्य कला राजदरबार में पहुंचा।
यहां राजा के राजाश्रय प्राप्त राजनर्तकी इस नृत्य को प्रस्तुत करती थीं। यहां तक कि यह भी देवदासियों की तरह संपूर्ण कलाकार थीं। 19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में यह नृत्य रूप पुनः शक्तिशाली हुआ और चार प्रतिभाशाली भाइयों (आज ये तंजौर युगल के रूप में जागे जाते हैं) चिन्नाह, शिवानंदम, पोन्निहा एवं वदिनेलू ने इसे नए तौर पर परिभाषित किया। 20वीं शताब्दी में इस कला रूप में उदयशंकर, रुक्मिणी देवी अरुण्डेल एवं बालासरस्वथी के योगदान को नहीं भुलाया जा सकता।
मंदिरों में नृत्ृत्य उत्कीर्ण रूप में
बुद्ध पूर्व नृत्य-सम्बद्ध मृणमूर्तियां, स्तूप,शैलकृत गुफाएं, बौद्ध चैत्य गृह,गांधार एवं मथुरा शैली के मंदिरों इत्यादि में नृत्य एवं ताण्डव नृत्य रूप कला की चित्रित छाप पाई जाती है। वास्तव में सर्वप्रथम ईंट के बिना निर्मित मंदिरों का निर्माण गुप्तकाल में हुआ। इनमें से प्रमुख रूप से भीतरगांव का विष्णु मंदिर, सिरपुर मंदिर समूह, अहिच्छन्न के ध्वस्त मंदिर एवं तेर के मंदिर उल्लेखनीय हैं। प्रचुर मात्रा में नृत्य चित्रांकन दक्षिण भारत के हिंदू मंदिरों में दृष्टिगोचर होता है जिसमें पूर्वी भारत में भुवनेश्वर मंदिर एवं मध्य भारत में खजुराहो मंदिर प्रमुख हैं। पश्चिम भारत में माउंट आबू के जैन मंदिर भी अपनी नृत्य चित्रांकन के लिए प्रसिद्ध हैं। मूर्ति शैली भिन्न है और स्थानीय संप्रदाय को आसानी से पहचाना जा सकता है, लेकिन भाव-भंगिमाओं एवं संचलन की मूल स्थिति मुख्यतः नाट्यशास्त्र की परम्परा में ही निहित है।
शिलालेखों में नृत्य अभिव्यंजना
नृत्य अलंकरण की दृष्टि से जो नाट्यशास्त्र से प्रत्यक्ष रूप से सम्बद्ध है, दक्षिण भारत के कुछ मध्यकालीन मंदिर परिसरों में ढूंढा जा सकता है। इनमें से सर्वाधिक प्रसिद्ध 9वीं शताब्दी का शिव मंदिर चिदंबरम है। इसमें नाट्यशास्त्र में उल्लिखित 108 कर्णों (शरीर का समग्र संतुलन एवं भंगिमा) में से 93 हैं।
दक्षिण भारतीय स्थापत्य के प्राचीनतम उदाहरण पल्लव वंश कालीन हैं। ये आंध्र वंश के उत्तराधिकारी थे एवं कांचीपुरम इनकी राजधानी थी। पल्लव शैली का भारतीय स्थापत्य के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। दक्षिण भारत का तंजौर का वृहदेश्वर मंदिर स्थापत्य ही नहीं प्रतिमा अलंकरण की दृष्टि से भी भगवान शिव का बेजोड़ मंदिर है। तंजावुर के भगवान शिव को चोल लोग ‘अडवल्लन’ कहते थे, जिसका अर्थ है ‘अच्छा नर्तक’। इसलिए यहां की समस्त मूर्तियां नृत्य मुद्राओं पर आधारित हैं। गंगइको.डाचोलपुरम् मंदिर में भगवान नटराज की प्रतिमा उत्कीर्ण है।
जैसाकि भारत में नृत्य कला सदैव मूर्तिकला, स्थापत्यकला, कर्मकाण्ड एवं सिद्धांतों के साथ गहरे रूप से गुंथी रही है। इसके लिए कर्णों (हाथ, पांव एवं समग्र शरीर का संतुलित संचलन) से बेहतर उदाहरण नहीं हो सकता। हम इन 108 नृत्य मुद्राओं का वर्णन न केवल नाट्यशास्त्र में पाते हैं अपितु दक्षिण भारत की विभिन्न महत्वपूर्ण जगहों पर अवस्थित मंदिरों के मूर्तिकला उदाहरण में भी देखते हैं। इसके लिए पांच मंदिर विश्व प्रसिद्ध हैं। तंजौर में राजराजेश्वर मंदिर, चिदम्बरम में नटराज मंदिर, कुंभकोणम में सारंगपानी मंदिर, तिरुणामल्लई में अरुणाचलेश्वर मंदिर और वृहादाचलम में बृहदेश्वर मंदिर।
चिदम्बरम में सभी चार गोपुरम से होकर गए रास्ते को सभी 108 कर्णों से सुसज्जित किया गया है। इसके पूर्वी और पश्चिमी गोपुरम के पैनल में नाट्यशास्त्र से सम्बद्ध छंद उत्कीर्ण हैं। यहां पर दो संगीताों के साथ एक महिला नर्तकी नृत्य प्रस्तुत करते दिखाई गई है। पूर्वी, पश्चिमी एवं दक्षिणी गोपुरम 12वीं और 13वीं शताब्दी के हैं, जबकि उत्तरी गोपुरम उसके बाद का है।
कुभकोणम में सारंगपानी मंदिर के पूर्वी गोपुरम में अधिकाधिक एक संपूर्ण शृंखला चित्रित की गई है जिसमें एक पुरुष नर्तक प्रस्तुति देते हुए दिखाया गया है। यहां पर अधिकतर पैनल ग्रंथ लिपि में शिलालेख उत्कीर्ण है। इस पर भरतमुनि के नाट्यशास्त्र के कर्ण दिखाई देते हैं। इन कर्णों के बीच हमें उध्र्व तांडव की मुद्रा में शिव एवं देवी काली भी नृत्य करते दिखाई देते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह दोनों के बीच नृत्य प्रतिस्पद्र्धा को प्रकट करता है।
दो और मंदिरों को नाट्य शास्त्र के कर्णों को प्रस्तुत करने वाला माना जाता है। ये मंदिर हैं वृहदाचलम एवं थिरुवन्नामलई। इन दोनों मंदिरों में गोपुरम माग्र में कर्ण दिखाई देते हैं। वृहदाचलम मंदिर में सभी चार गोपुरमों में कर्ण उत्कीर्ण हैं, लेकिन ये पूरे नहीं हैं। ये मात्र 101 हैं और आश्चर्यजनक रूप से क्रम में नहीं हैं। तिरुन्नामल्लई मंदिरों में सभी कर्ण पूर्वी गोपुरम माग्र में व्यवस्थित रूप से क्रमबद्ध हैं। 108 कर्णों के अतिरिक्त, संभवतः चिदम्बरम मंदिर से छायाकिंत, यहां पर और अधिक नृत्य मुद्राएं चित्रित हैं। 9 पैनल के साथ 20 प्लास्टर पर लम्बवत् रूप से क्रमबद्ध यह सब उत्कीर्ण है। इसमें नाट्यशास्त्र में परिभाषित सभी 108 कर्णों को शामिल किया गया है।
शास्त्रीय नृत्य शैलियां
शास्त्रीय नृत्य भारत में कई रूपों में आया। प्रत्येक क्षेत्र की अपनी एक अलग शैली उत्पन्न हुईए यद्यपि जड़ें एक समान हैं।

Sbistudy

Recent Posts

सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है

सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…

23 hours ago

मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the

marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…

23 hours ago

राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi

sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…

3 days ago

गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi

gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…

3 days ago

Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन

वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…

3 months ago

polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten

get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…

3 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now