JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: sociology

भक्ति किसे कहते हैं | भक्ति की परिभाषा क्या है हिन्दू धर्म में अर्थ या मतलब Bhakti in hindi meaning

Bhakti in hindi meaning and definition भक्ति किसे कहते हैं | भक्ति की परिभाषा क्या है हिन्दू धर्म में अर्थ या मतलब ?

भक्ति (Bhakti)
भक्ति आंदोन के अनेक पक्ष हैं। यहाँ हम प्रारंभ में उन महत्वपूर्ण पक्षों पर चर्चा करेंगे जिनकी शुरुआत गीता के संदेश से हुई।

प) भगवद् गीता (Bhagavad Gita): भगवद् गीता ने प्रत्येक आदर्श हिन्दू के जीवन के लक्ष्य अर्थात आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए वैदिक संस्कारों और उपनिषद के ज्ञान के दर्शन को उचित रास्ता बताया है। इस तरह “कर्म‘‘ और ‘‘ज्ञान‘‘ के पंथ के साथ गीता ने ‘‘भक्ति‘‘ का पंथ भी जोड़ दिया। इसके साथ ही हिन्दू धर्म में ईश्वरवादी तत्वों का फिर से उदय हो गया। ‘‘कर्म‘‘, ज्ञान और भक्ति के मार्गों का विवरण देने के बाद भगवद गीता भक्तों को इन तीनों मार्गों का त्याग कर परमेश्वर में शरण लेने का संदेश देती है ताकि मनुष्य तमाम नैतिक खामियों के बोझ से मुक्त हो जाए। पूर्ण समर्पण के प्रति यह आग्रह जितना भक्तिमय है, उतना ही बौद्धिक भी हैष्। (मदन, 1989ः127)

पप) आलवार (Alvars): दक्षिण भारत में भक्ति आंदोलन सबसे पहले आठवीं शताब्दी के अंत में गैर ब्राह्मण समूहों में पनपा। इन समूहों ने पूरे भारत में बौद्ध और जैन आंदोलन के फैलने के बाद ईश्वरवाद के प्रति असीम इच्छा व्यक्त की। इस आंदोलन के अनुयायी आलवार लोगों ने जाति और लिंग के धर्मों पर प्रश्न चिह्न लगाया। उन्होंने इस प्रकार के संबंध बनाने के लिए शिव और विष्णु जैसे देवताओं के प्रति व्यक्तिगत भक्ति को माध्यम बनाने का प्रयास किया ।

आलवारों ने परमेश्वर की निरंतर संगत पर बल दिया। वैसे, उन्होंने परमेश्वर से ‘‘विरह‘‘ पर अपना अधिक ध्यान लगाया । आलवारों में प्रमुख नामालवार हुआ जिसने विष्णु के साथ संबंध बनाने के लिए मनुष्य को ‘‘स्त्री‘‘ बनने की धारणा प्रस्तुत की (वही 128)। इस तरह, स्त्री का विष्णु के प्रति प्रेम भक्तों के सर्वोच्च सत्ता, परमेश्वर के प्रति प्रेम का प्रतीक है।

पपप) जयदेव, श्री चैतन्य और मीरा (Jayadeva, Srichaitanya and Mira): विष्णु के अवतार कृष्ण के अविवाहित जीवन में राधा के साथ प्रेम की कहानियाँ भक्ति आंदोलन का मूल विषय-वस्तु हैं। इसमें आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए पूर्ण भक्ति समर्पण पर बल दिया गया। इस आंदोलन में कृष्ण सर्वोच्च सत्ता (परमात्मा) के प्रतीक हैं। और राधा व्यक्तिगत (आत्मा) की। बारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में राधा-कृष्ण के प्रेम को विषय-वस्तु बनाकर लिखी गई जयदेव की ‘‘गीत गोविन्द‘‘ पूरे देश में प्रसिद्ध हो चुकी हैं। धीरे-धीरे यह आंदोलन पूरे भारत में फैल गया है। वैष्णवों के अनेक पंथ इसी आंदोलन की देन हैं। सोलहवीं शताब्दी में बंगाल में श्री चैतन्य, गुजरात में वल्लभ और राजस्थान में मीरा कृष्ण के प्रेम में लीन थे। भक्ति आंदोलन ने कृष्ण के प्रति पूर्ण समर्पण ने पंथ को गति दी।

पअ) सूरदास, तुलसीदास और कबीर (Surdas, Tulsidas and Kabir) : महत्वपूर्ण तथ्य है कि तीव्र धार्मिक भक्ति के भावों को मध्ययुगीन भक्ति आंदोलन के स्तंभों को सूरदास, तुलसीदास और कबीर के गीतों में भी अभिव्यक्ति मिली। सूरदास ने बृजभाषा मे कृष्ण पर पद लिखे और तुलसीदास ने अवधी भाषा में राम की भक्ति में काव्य की रचना की। ‘‘तुलसी की भक्ति अपने दैवीय स्वामी की सेवा को समर्पित एक दास की भक्ति थी। अपने ही दोषों में लिप्त और इसलिए ईश्वर की कृपा पर निर्भर भक्त के प्रति परमेश्वर का प्रेम तुलसी की उदान्त कविता की मूल विषयवस्तु है। कबीर की भक्ति मानव रूप के देव लेकिन एक अमूर्त और निराकार ब्रह्म की अवधारणा पर केंदित थी। उनका यह मानना था कि धार्मिक अनुभव किसी दैवीय सत्ता की अवधारणा से कहीं अधिक महत्वपूर्ण था (मदन 1989ः131) भक्ति आंदोलन के बारे में इस पाठ्यक्रम के खंड 6 की इकाई 28 में और अधिक जानकारी दी गई है।

 इस्लाम से टकराव (Encounter with Islam)
हिन्दू धर्म प्राचीनकाल से ही बाहरी धार्मिक प्रभावों का प्रत्युत्तर देता रहा है। इसने लगभग दस शताब्दियों तक इस्लामी प्रभाव और पाँच शताब्दियों तक पाश्चात्य धार्मिक दर्शन के प्रभाव को प्रत्युत्तर दिया है। इस प्रक्रिया में हिन्दू धर्म पर जबर्दस्त प्रभाव पड़ा है। इनमें से मुख्य हैं-हिन्दू रूढ़िवाद का मुखर होना, पारंपरिक हिन्दू आदर्शों का फिर से उदय होना और लोक स्तर पर नई और ग्रहणशील जीवनशैलियों में हिन्दू धर्म की रीतियों को अपनाना ।

हिन्दू धर्म पर इस्लाम के प्रभाव का आकलन करना कठिन है, क्योंकि इसके अनेक आयाम हैं। हिन्दू धर्म ने उत्तर पश्चिमी भारत में महमूद गजनवी (977-1030) के आक्रमणों से लेकर मुगल शासन के समय तक हिंसा की स्थितियों का सामना किया। इन आक्रमणों और शासन के परिणामस्वरूप ‘‘हिन्दू मूल्यों की रक्षा के तरीके के रूप में‘‘ क्षेत्रीय राज्य की हिन्दू विचारधारा का विकास हुआ। इस तरह, इस्लाम के खिलाफ हिन्दू परंपराओं की रक्षा की पहल राजस्थान के राजपूतों ने की, फिर दक्षिण भारत के विजय नगर राज्य के शासकों और उनके उत्तराधिकारियों (1333-18वीं शताब्दी) ने यह काम किया और महाराष्ट्र में मराठों ने सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध से 18वीं शताब्दी तक यह काम किया। मुसलमानों के शासन का तुरंत प्रभाव यह हुआ कि ‘‘रूढ़िवादी हिन्दू धर्म में कट्टरपंथी और अतिनैतिक प्रवृत्तियों ने जोर पकड़ा‘‘ और ऐसा विशेषकर स्त्रियों की पवित्रता और जाति के मामले में हुआ। फिर भी, ऐसे अनेक प्रमाण हैं जिनसे यह पता चलता है कि वर्षों की अवधि में अनेक मुस्लिम प्रसंग और विशेषताएं लोकप्रिय हिन्दू मिथकों और संस्कारों में शामिल हो गई हैं। यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि एक ओर तो हिन्दू धर्म का रूढ़िवादी लोकप्रिय और देशज रूप अपने आप में रहा और दूसरी ओर हिन्दू पंथीय परंपराएं इस्लाम के प्रभाव में अपनी संख्या बढ़ाती रहीं। इनमें उल्लेखनीय थे-बंगाल में चैतन्य का भक्ति संप्रदाय, और बनारस (उत्तर प्रदेश) से कबीर द्वारा चलाई जाने वाली दक्षिण भारत की संत परंपरा (1440-1518) तथा पंजाब में नानक (1469-1539) की चलाई संत परंपरा । कबीर और नानक ने एक परमेश्वर की भक्ति का प्रचार किया “जिसमें इस्लाम के सूफीवाद और हिन्दू भक्ति का सम्मिश्रण था। उन्होंने अपने उपदेशों में जाति प्रथा और मूर्ति पूजा दोनों को अस्वीकार किया । गुरु नानक ने सिक्ख धर्म की स्थापना की जिसमें इस्लाम और हिन्दू धर्म के दर्शनों का मिश्रण था।

सम्राट अकबर ने अपने ‘‘दीने इलाही‘‘ में इस्लाम और हिन्दू धर्म दोनों का मिश्रण रखा। अकबर ने सहिष्णुता का प्रचार किया। लेकिन उसके आगे के राजाओं ने उसके बताये रास्ते को छोड़कर प्रसारवादी नीतियाँ अपनाई। इन प्रसारवादी नीतियों का विजयनगर और राजपूत रजवाड़ों के वारिसों की ओर से विरोध किया गया। सिक्खों और मराठों ने भी इनका विरोध किया।

हिन्दू धर्म के राष्ट्रवादी दर्शन की जड़ें इन आंदोलनों में देखी जा सकती हैं। (हिल्टबीटल 1987ः 358)। इस विषय से संबंधित कुछ पहलुओं पर विचार हम इस खंड के अंतिम अनुभाग में करेंगे।

 पश्चिम से टकराव (Encounter with the West)
हिन्दु धर्म पर पश्चिम और ईसाई धर्म की रीतियों और विश्वासों का व्यापक प्रभाव पड़ा है। उन्नीसवीं शताब्दी में चलाए गए अनेक सुधार आंदोलन सीधे-सीधे ईसाई धर्म के प्रभाव का परिणाम थे। “ब्रह्म समाज‘‘ की स्थापना राजा राममोहन रॉय ने 1928 में की। ब्रह्म समाज ने एक परमेश्वर के सिद्धांत की हिमायत की और जाति व्यवस्था, मूर्ति पूजा, बलि चढ़ाना, पुनर्जन्म और कर्म के दर्शन को अस्वीकार किया।

कार्यकलाप 2
कुछ ज्ञानवान व्यक्तियों की सहायता से किन्हीं 10 धार्मिक संगठनों की सूची बनाइए । अपनी सूची में इन संगठनों के उद्देश्य और लक्ष्यों पर भी कुछ वाक्य लिखें और यह भी बताएँ कि ये संगदन एक-दूसरे से कैसे भिन्न हैं।

‘‘आर्य समाज‘‘ की स्थापना स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 1875 में की। इस आंदोलन ने पौराणिक हिन्दू धर्म को नकारा और वैदिक हिन्दू धर्म की वापसी का प्रयास किया। उनके अनुसार, मूर्ति पूजा में वेदों की स्वीकृति नहीं है। उन्होंने एक परमेश्वर के सिद्धांत का भी प्रचार किया। उन्होंने जाति और वर्ण के धार्मिक आधार को भी गलत बताया।

‘‘रामकृष्ण मिशन‘‘ की स्थापना 1886 में हुई। स्वामी विवेकानन्द ने पारंपरिक हिन्दू मूल्यों की दिशा में इस मिशन की गतिविधियों को आगे बढ़ाया। इस मिशन के अनुयायी भक्ति की सशक्त परंपरा, तांत्रिक विधियों और वेदान्त दर्शन को मानते हैं। रामकृष्ण को केवल हिन्दू देवी-देवताओं के नहीं, बल्कि यसु और अल्लाह के जो दर्शन हुए और उनके माध्यम से सभी धर्मों के एक होने का उन्हें जो अनुभव हुआ, उसे भी इस मिशन का ध्येय हिन्दू धर्म के आधुनिक और कर्मप्रधान रूप का प्रचार करना है। यह मिशन अनेक प्रकार की सांस्कृतिक, शैक्षणिक और समाज कल्याणकारी गतिविधियों में जुटा रहा है। इसकी शाखाएं विश्व भर के नगरों में हैं। रामकृष्ण मिशन भारत में उन्नीसवीं शताब्दी में सक्रिय यूरोपीय ईसाई मिशनों के नमूने पर बना है। लेकिन इसने स्वयं अनेक दूसरे हिन्दू संगठनों के लिए नमूना पेश किया है (श्रीनिवास, 192ः130)

हिन्दू धर्म में परंपरा से जो कुछ कुरीतियाँ और कुप्रथाएं चली आ रही थी, उन्हें समाप्त करने के उद्देश्य से भारत में अंग्रेजी राज के दौरान कई धार्मिक संगठन बने । इन संगठनों ने शिक्षा और समाज सुधार को बढ़ावा देने का भी बीड़ा उठाया। पश्चिमी जगत से लंबे अरसे के संपर्क के फलस्वरूप हिन्दू धर्म में अनेक महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं। इनमें से कुछ बदलावों को हम यहाँ दर्शा रहे हैं।

क) हिन्दू धर्म में कर्म प्रधान धारा की ओर अनेक लोगों का ध्यान गया है और भगवद गीता हिन्दुओं का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ हो गया है।
ख) अनेक हिन्दू धार्मिक संस्थाओं के अगुआ लोग अब विभिन्न सामाजिक सुधार के कार्य कर रहे हैं और स्कूल, कॉलेज और अस्पताल चलाने जैसी कल्याणकारी गतिविधियों में लगे हुए हैं।
ग) रोजाना के जीवन में व्याप्त रहने वाले शुद्धि-अशुद्धि के विचार, जीवनचक्रीय संस्कार और (विशेषकर ऊंची जातियों में) अंतरजातीय विवाह जैसे बंधन तेजी से कमजोर होते जा रहे हैं। शहरी इलाकों में यह प्रवृत्ति विशेष रूप से देखने को मिलती है। ऐसी संभावना है कि इन बदलावों के कारण भविष्य में एक जाति मुक्त हिन्दू समाज का उदय होगा। जाति मुक्त हिन्दू धर्म के आंदोलन को श्री साईं बाबा जैसे नये धर्म गुरुओं का समर्थन प्राप्त है और हिन्दू धर्म में होने वाले कुछ नये घटनाक्रम भी इसके पक्ष में हैं।
घ) एक और बदलाव हिन्दू धर्म के उग्र स्वरूपों के रूप में सामने आया है। इसका कारण आंशिक रूप से हरिजनों और आदिवासियों के बीच ईसाई धर्म का प्रचार करने वाले मिशनरियों की गतिविधियों और भारत में कुछ धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यकों में अलगाववादी प्रवृत्तियों का प्रकट होना है (श्रीनिवास 1992ः130)

हिन्दू धर्म ने भारत में अन्य धर्मों को प्रभावित किया है। जाति का विभाजन मुसलमानों, ईसाइयों, सिक्खों और जैन धर्म के मानने वालों में भी मौजूद हैं। सच में तो, किसी दूसरे धर्म को अपना लेने से जाति व्यवस्था अनिवार्य रूप से टूट नहीं जाती। व्यावसायिक विशेषज्ञता, जाति के अंदर विवाह और सामाजिक दूरी जैसी रीतियाँ धर्म बदलने के बाद भी बरकरार रहती हैं।

Sbistudy

Recent Posts

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

4 weeks ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

4 weeks ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

4 weeks ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

4 weeks ago

चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi

chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…

1 month ago

भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi

first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…

1 month ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now