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सारंगपुर का युद्ध कहां हुआ था | सारंगपुर का युद्ध कब हुआ था battle of sarangpur in hindi
battle of sarangpur in hindi सारंगपुर का युद्ध कहां हुआ था | सारंगपुर का युद्ध कब हुआ था ?
प्रश्न : सारंगपुर का युद्ध ?
उत्तर : सारंगपुर का युद्ध 1437 ईस्वी में मेवाड़ के महाराणा कुम्भा और मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी के मध्य हुआ , जिसमें कुंभा की विजय हुई। ये दोनों ही राज्य पड़ोसी थे तथा राज्य विस्तार के इच्छुक थे , मालवा के सुल्तान ने मेवाड़ के शत्रु महपा पंवार को आश्रय प्रदान किया। कुम्भलगढ़ प्रशस्ति के अनुसार सारंगपुर के युद्ध में मालवा का सुल्तान परास्त होकर बंदी बनाया गया। जिसे छ: महीने तक कैद में रखने के बाद कुम्भा ने पारितोषिक देकर स्वतंत्र कर दिया। अबुल फजल और नैणसी ने महमूद खिलजी को बंदी बनाकर मुक्त करने का उल्लेख किया है। इस विजय की स्मृति में राणा ने चित्तोडगढ में विजय स्तम्भ (कीर्तिस्तम्भ) का निर्माण (1440-1448 ईस्वी) करवाया। दूसरी तरफ महमूदशाह भी अपनी विजय की बात करता है। उसने भी इस विजय के उपलक्ष में मांडू में सात मंजिला मीनार बनवाई। कर्नल टॉड ने महाराणा द्वारा महमूद को छोड़ देना और उसके राज्य को लौटा देना राजनितिक अदूरदर्शिता बताई है।
प्रश्न : राजस्थान में पुरापाषाणकालीन संस्कृति के अवशेष सर्वप्रथम कहाँ से प्राप्त हुए और इनका खोजकर्ता कौन था ?
उत्तर : राजस्थान में पुरापाषाणकालीन संस्कृति की खोज आज से एक सदी पूर्व सर्वप्रथम सी.ए. हैकर द्वारा की गयी। जिन्होंने जयपुर और इन्द्रगढ से पुरापाषाणकालीन हैण्डएक्स खोज निकाले जो कलकत्ता संग्रहालय में है।
प्रश्न : राजस्थान में पुरापाषाण कालीन संस्कृति के प्रमुख स्थलों के बारे में बताइए ?
उत्तर : राजस्थान में पुरापाषाण कालीन संस्कृति के प्रमुख स्थल डीडवाना (सबसे प्राचीन स्थल) , जायल (नागौर) , विराटनगर (जयपुर) , भानगढ़ (अलवर) , इन्द्रगढ (कोटा) , दर (भरतपुर) आदि है।
प्रश्न : राजस्थान में पूर्व पुरापाषाण कालीन संस्कृति का उल्लेख कीजिये।
उत्तर : राजस्थान में पूर्व पुरापाषाण कालीन संस्कृति (10 लाख ईस्वी पूर्व से एक लाख ईस्वी पूर्व) के अवशेष डीडवाना से मिले है। यहाँ का मानव क्वार्ट्जाइट से हैण्डएक्स , क्लीवर और चापर चैपिंग बनाता था। वह आखेटक और खाद्य संग्राहक था।
प्रश्न : राजस्थान में मध्य पुरापाषाण कालीन संस्कृति का उल्लेख कीजिये।
उत्तर : राजस्थान में मध्य पुरापाषाण कालीन संस्कृति (1 लाख ईस्वी पूर्व से 36 हजार ईस्वी पूर्व) के अवशेष पोकरण , डीडवाना आदि से मिले है। यहाँ का मानव जैस्पर , चर्ट आदि से स्क्रेपर , बोरर , ब्यूरिन उपकरण बनाता था। वह प्रकृतिवादी , आखेटक और खाद्य संग्राहक जीवन जीता था।
प्रश्न : राजस्थान में उच्च / उत्तर पुरापाषाण कालीन संस्कृति का उल्लेख कीजिये।
उत्तर : राजस्थान में उत्तर पुरापाषाण कालीन संस्कृति (36 हजार ईस्वी पूर्व से 10 हजार ईस्वी पूर्व) के अवशेष बेडच नदी के किनारे मिले है। यहाँ का मानव चकमक , पत्थर , हड्डी आदि से शल्क , तक्षणी , खुरचनी आदि उपकरण बनाता था। वह आखेटक और खाद्य संग्राहक था।
प्रश्न : राजस्थान में मध्यपाषाण कालीन संस्कृति का उल्लेख कीजिये।
उत्तर : मध्यपाषाण कालीन संस्कृति (10000 ई.पू. – 5000 ई.पू.) की मुख्य विशेषता माइक्रोलिथिक (सूक्ष्मपाषाण) है। इस काल के अवशेष बागौर , तिलवाड़ा , डीडवाना आदि से मिले है। इस काल के मानव द्वारा अस्थि और पाषाणों के सूक्ष्म उपकरण (फलक , खुरचन आदि) काम में लिए गए। इस समय का मानव आखेटक और खाद्य संग्राहक था।
प्रश्न : “दर” के बारे में बताइए ?
उत्तर : भरतपुर के दर नामक स्थान से कुछ उत्तरपाषाण कालीन संस्कृति के चित्रित शैलाश्रय प्राप्त हुए है , जिनमें मानवाकृति , व्याघ्र , सूर्य आदि प्रमुख है जो पाषाण कालीन मानव की कलात्मक प्रवृत्ति को दर्शाते है।
प्रश्न : राजस्थान में नवपाषाण कालीन संस्कृति के बारे में बताइए ?
उत्तर : इस संस्कृति (5000 ईस्वी पूर्व – 3000 ईस्वी पूर्व के अवशेष राजस्थान में बगौर , तिलवाड़ा और अन्य अनेक स्थानों पर मिले है। इस काल के मानव ने बसूला , कुल्हाड़ी , एड्ज़ आदि पाषाण उपकरण बनाये और बस्ती में समूह बनाकर रहने लग गया। वह पशुपालन और कृषि कर्म की तरफ उन्मुख हुआ।
प्रश्न : राजस्थान में ताम्रपाषाण कालीन संस्कृतियाँ कौन कौनसी है तथा उनकी विशेषताएँ क्या है ?
उत्तर : राजस्थान के दक्षिण पूर्व में बागौर , आहड , गिलुंड , बालाथल , टोंक आदि अनेक स्थानों से ताम्रपाषाण कालीन संस्कृति के अवशेष मिले है। यहाँ से प्राप्त भंडारगर्त , लाल काले मृदभाण्ड , तंदूर , ताम्बे का व्यापक प्रयोग , मकानों में पक्की ईटों का प्रयोग आदि प्रमुख है।
प्रश्न : बागौर के बारे में बताइए ?
उत्तर : भीलवाडा में कोठारी नदी के किनारे स्थित मध्यपाषाण कालीन संस्कृति के मुख्य स्थल बागौर का उत्खनन वीरेन्द्रनाथ मिश्र के निर्देशन में हुआ। यहाँ से मध्यपाषाण कालीन संस्कृति के क्रमिक विकास और कृषि और पशुपालन के प्राचीनतम साक्ष्य के प्रमाण मिले है।
प्रश्न : तिलवाड़ा एक मुख्य पाषाणीक सांस्कृतिक स्थल के रूप में।
उत्तर : बाड़मेर के निकट स्थित इस ताम्रपाषाण कालीन संस्कृति के मुख्य स्थल का उत्खनन वी.एन. मिश्र के निर्देशन में हुआ। यहाँ से ताम्र पाषाण उपकरण आभूषण , कृषिकर्म , लिपि और लौह गलन भट्टियों के मिले अवशेषों से ताम्रपाषाण कालीन संस्कृति के विकास की जानकारी मिलती है।
प्रश्न : आहड संस्कृति के बारे में जानकारी दीजिये ?
उत्तर : आहड नदी (उदयपुर) के किनारे स्थित मुख्य ताम्रपाषाण युगीन स्थल है जिसका उत्खनन एच.डी. सांकलिया के नेतृत्व में हुआ। यहाँ से ताम्र उपकरण , कृषि – पशुपालन , आवास , मुद्राएँ आदि के अवशेष प्राप्त हुए है जो एक उन्नत संस्कृति के द्योतक है।
प्रश्न : राजस्थान की ताम्र (कांस्य) युगीन संस्कृतियों का वर्णन कीजिये।
उत्तर : राजस्थान में ताम्रयुगीन संस्कृति के अवशेष गणेश्वर , कालीबंगा , रंगमहल , पीलीबंगा आदि अनेक स्थानों पर मिले है। इस समय का मानव बस्तियों में रहने लग गया था। वह विविध प्रकार के औजारों का प्रयोग करता था और कृषि और पशुपालन उसका मुख्य व्यवसाय था।
प्रश्न : गणेश्वर संस्कृति के बारे में बताइए ?
उत्तर : कान्तली नदी (नीम का थाना) के किनारे स्थित ताम्रयुगीन सभ्यता का प्रमुख स्थल गणेश्वर का उत्खनन आर.पी. अग्रवाल के नेतृत्व में हुआ। ताम्र सभ्यताओं की आदि संस्कृति होने से इसे ताम्रयुगीन सभ्यताओं की जननी कहा गया है।
प्रश्न : कालीबंगा सभ्यता के बारे में जानकारी ?
उत्तर : घग्घर नदी (हनुमानगढ़) के किनारे स्थित इस ताम्र कांस्य युगीन हड्डपा कालीन संस्कृति के मुख्य स्थल का उत्खनन अम्लानंद घोष , बी.बी. लाल आदि के निर्देशन में हुआ। यहाँ से जुते हुए खेत , विन्यासित नगर , गढ़ी , हवनकुण्ड मेसोपोटाटामिया की मुहरें , अलंकृत फर्श और भूकम्प आदि के अवशेष मिले है।
प्रश्न : पीलीबंगा सभ्यता ?
उत्तर : हनुमानगढ़ जिले में स्थित कांस्य युगीन सभ्यता का स्थल जहाँ सिंधुघाटी सभ्यता का विकास हुआ जो कालान्तर में विलुप्त हो गयी।
प्रश्न : रंगमहल सभ्यता ?
उत्तर : हनुमानगढ़ जिले में स्थित ताम्र पाषाण युगीन मुख्य स्थल जिसका उत्खनन स्वीडिश दल के नेतृत्व (1952-54 ) में हुआ। यहाँ हडप्पाकालीन सभ्यता का विकास हुआ जो कालान्तर में विलुप्त हो गयी।
प्रश्न : बैराठ सभ्यता ?
उत्तर : जयपुर के उत्तर पूर्व में स्थित , पाषाणकालीन से कुषाण कालीन संस्कृति के प्रमुख स्थल का उत्खनन दयाराम साहनी और एन. बनर्जी के निर्देश में हुआ। यहाँ से प्राप्त बौद्ध चैत्य (पूजा गृह) भारत में प्राचीनतम है।
ताम्रयुगीन संस्कृति के अन्य स्थल है – पिण्ड पाडलिया (चित्तोडगढ) , झाडौल (उदयपुर) , कुराडा (नागौर) , साबणियों , पूगल (बीकानेर) , नन्दलालपूरा , किराडोत (जयपुर) , बुढा पुष्कर (पुष्कर)
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