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bathochromic shift and hypsochromic shift in hindi वर्णोत्कर्षी वर्णा पकर्णी विस्थापन क्या है अंतर

वर्णोत्कर्षी वर्णा पकर्णी विस्थापन क्या है अंतर what is bathochromic shift and hypsochromic shift in hindi ?

प्रतिस्थापियों का प्रभाव (Effect of substitutents)—

π →π * संक्रमणों पर प्रतिस्थापियों के प्रभाव का विस्तारपूर्वक अध्ययन किया गया है। नीचे विभिन्न प्रभाव दिए गए है।

 (1) वर्णोत्कर्षी विस्थान (Bathochromic shift )– यदि किसी यौगिक में किसी परमाणु या परमाणु समूह को एक इलेक्ट्रॉनदाता (donor) समूह जैसे – OH, CH3, NH2 आदि के द्वारा प्रतिस्थापित कर दें तो अवशोषण बैण्ड उच्च तरंगदैर्घ्य की ओर विस्थापित हो जाता है अर्थात max का मान बढ़ जाता है । अवशोषण बैण्डों का इस प्रकार उच्च तरंगदैर्ध्य की ओर विस्थापन वर्णोत्कर्षी या रक्त विस्थापन (red shift ) कहलाता है। इस प्रभाव में max के मान में वृद्धि के कारण अवशोषण शीर्ष (Absorption peak ) दृश्य प्रकाश के लाल रंग की ओर खिसक जाती है। इसी कारण से इसे रक्त विस्थापन

कहते हैं। उदाहरण के लिए C6H6 एवं C6H5CH3 के लिए max क्रमश: 254 nm तथा 261 nm होते हैं। इस प्रकार बेंजीन में CH3 समूह के द्वारा प्रतिस्थापन से अवशोषण बैण्ड में वर्णोत्कर्षी विस्थापन उत्पन्न होता है।

द्विबन्धित कार्बन पर उपस्थित हाइड्रोजन परमाणु का ऐल्किल समूह द्वारा प्रतिस्थापन करने पर वर्णोत्कर्षी (Bathochromic) विस्थापन दृष्टिगोचर होता है। ऐल्कीनों के साथ किसी ऑक्सोक्रोम अर्थात एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म सहित विषम परमाणु के जुड़ने पर भी वर्णोंत्कर्षी विस्थापन होता है। उदाहरणार्थ- मेथिल वाइनिल सल्फाइड (Methyl vinyl sulphide) H3C – S – CH = CH2 के लिए max 228 nm 8000) होता है।

(2) वर्णा पकर्णी विस्थापन (Hypsochromic shift) — किसी यौगिक में एक इलेक्ट्रॉनग्राही समूह जैसे ऐसीटिल समूह आदि का प्रवेश कराने पर अवशोषण बैण्ड निम्न तरंगदैर्ध्य की ओर प्रतिस्थापित हो जाता है अर्थात् Amax के मान में कमी होती है। अवशोषण बैण्डों के इस प्रकार निम्नतर तरंगदैघ्यों की ओर विस्थापन को वर्णोपकर्षी विस्थापन या नीला विस्थापन (blue shift) कहते हैं। यदि किसी कार्बनिक यौगिक की असंतृप्त श्रृंखला में एक CH2 समूह प्रविष्ट करा दिया जाए एवं उसका संयुग्मन नष्ट हो जाए तो यौगिक का अवशोषण बैण्ड छोटी तरंगदैर्घ्य की ओर विस्थापित हो जाता है।

उदाहरणार्थ- यौगिक C6H5N=N-C6H5 में दोनों फेनिल समूह संयुग्मन में उपस्थित हैं। यदि इसमें दो –CH2 समूह संलग्न कर दिए जाए तो बने यौगिक C6H5 CH2 – N = N-CH2C6H5 में संयुग्मन समाप्त हो जाने के कारण अवशोषण बैण्ड छोटी तरंगदैर्घ्य की ओर विस्थापित हो जाता है। वर्णोपकर्षी विस्थापन विलायक एवं ताप के द्वारा भी प्रभावित होता है।

(3) अतिवर्णक प्रभाव (Hyperchromic effect)– यदि यौगिक में उपस्थित कोई प्रतिस्थापी समूह अथवा विलायक बैण्ड की तीव्रता को बढ़ा देते हैं तो इसे उस समूह का अतिवर्णक प्रभाव कहते हैं। अवशोषण बैण्ड की तीव्रता में वृद्धि मोलर विलोपन गुणांक (६) के मान में वृद्धि के कारण होती है।

उदाहरणार्थ— C6H6 और C6H5CH3 का B बैण्ड के लिए Emax का मान क्रमशः 204 एवं 225 है। अतः C6H6 में CH3 समूह का प्रतिस्थापन अतिवर्णक प्रभाव उत्पन्न कर देता है। इसी प्रकार पिरिडीन का 251 nm&max का मान 2750 है जबकि 2- मेथिल पिरिडीन के लिए 262nm पर max का मान 3560 है।

(4) अधोवर्णक प्रभाव (Hypochromic effect)- यदि यौगिक में कोई प्रतिस्थापी समूह बैण्ड की तीव्रता में कमी उत्पन्न कर देता है तो यह प्रभाव उसका अधोवर्णक प्रभाव कहलाता है अर्थात max के मान में कमी आ जाती है। उदाहरण के लिए C6H6 एवं C6H5CI के लिए B-बैण्ड के लिए max क्रमश: 204 एवं 190 हैं। अतः CI प्रतिस्थापन अधोवर्णक प्रभाव उत्पन्न करता है। इसी प्रकार बाइफेनिल जो 250 nm पर अवशोषण करता है, के लिए Emax का मान 19000 है जबकि 2-मेथिल बाइफेनिल जो 237 nm पर अवशोषण करता है के लिए  max का मान 10250 हो जाता है।अर्थात् max का मान कम हो जाता है। यह कमी मेथिल समूहों के प्रतिस्थापन से अणुओं की ज्यामिति में विकृति के कारण होती है ।

वर्णोत्कर्षी विस्थापन, वर्णोपकर्षी विस्थापन, अतिवर्णक प्रभाव और अधोवर्णक प्रभाव को साथ-साथ निम्न चित्र 1.8 द्वारा प्रदर्शित कर सकते हैं।

संयुग्मित ईन का पराबैंगनी स्पेक्ट्रम (UV spectrum of conjugated enes)

 पराबैंगनी स्पेक्ट्रम में संयुग्मन प्रभाव (Effect of conjugation in UV spectrum): ऐल्कीनों में एक कार्बन- कार्बन द्विबन्ध उपस्थित होने के कारण  संक्रमण होता है। इस संक्रमण के फलस्वरूप एक विलगित एथिलीनिक क्रोमोफोर के द्वारा दूरस्थ पराबैंगनी क्षेत्र (far ultraviolet region) में प्रकाश विकिरणों का अवशोषण होता है तथा लगभग 165 nm तरंगदैर्घ्य पर एक तीव्र (Emax = 10,000) अवशोषण बैण्ड प्रदर्शित होता है। एथीन में Amax का मान 171 nm है जबकि 1, 4-पेन्टाडाइईन के लिये ^ max का मान 178 nm है। जब कोई अणु दीर्घतम लम्बाई के तरंदैर्घ्य वाले प्रकाश का अवशोषण करता है तो इसके उच्चतम भरे अणुक कक्षक (Highest occupied molecular orbital, HOMO) से एक इलेक्ट्रॉन निम्नतम बिना भरे अणु कक्षक (Lowest unoccupied molecular orbital, LUMO) में उत्तेजित हो जाता है। ऐल्कीन एवं ऐल्काडाइईन में उच्चतम भरा अणुक कक्षक (HOMO) बंधी कक्षक और निम्नतम बिना भरा अणुक कक्षक (LUMO) * विपरीत बंधी कक्षक है

यदि किसी यौगिक में संयुग्मन हो तो संक्रमण के संगत max के मान में वृद्धि हो जाती है। संयुग्मन के कारण – इलेक्ट्रॉनों का विस्थानीकरण (delocalisation) बढ़ जाता है फलस्वरूप – इलेक्ट्रॉनों के लिए ज्यादा स्थान उपलब्ध हो जाते हैं जिससे अनुमत ऊर्जा स्तर (allowed energy levels) पास-पास आ जाते हैं। अतः संक्रमण के लिए कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है और अवशोषण बैण्ड लम्बी तरंगदैर्घ्य वाला होता है। इस प्रकार संयुग्मित यौगिकों के Amax का मान असंयुग्मित ऐल्कीनों की अपेक्षा अधिक होता है। इसे 1,3 – ब्यूटाडाइईन का उदाहरण लेकर इस प्रकार समझा जा सकता है— 1,3- ब्यूटाडाइईन में चारों C- परमाणु sp2 संकरित अवस्था में होते हैं । अतः यह अणु समतलीय है और इसमें निम्नलिखित चार प्रकार के अणुक कक्षक होंगे जिनमे से दो उच्चतम भरे आण्विक कक्षक (HOMO) बंधी कक्षक एवं होंगे। HOMO, बंधी कक्षक, चारों C- परमाणुओं के ग्र-कक्षकों के परस्पर अतिव्यापन से बनता है जबकि HOMO बंधी कक्षक, C1-C2 एवं C3- C4 की ऊर्जा की ऊर्जा से अधिक होती है। दो-दो p–कक्षकों के परस्पर अतिव्यापन से बनता है।

इसी प्रकार दो निम्नतम बिना भरे आण्विक कक्षक (LUMO) विपरीत बंधी कक्षक  होंगे। C1-C2 एवं C3-C4 में प्रतिकर्षण के कारण विपरीत बंधी LUMO और C1 – C2 – C3-C4 में प्रतिकषर्ण के कारण विपरीत बंधी LUMO बनते हैं।* की ऊर्जा से अधिक होती है।

1.3-ब्यूटाडाइईन में अधिकतम तरंगदैर्घ्य वाले प्रकाश का अवशोषण होने परπ2 π3* संक्रमण होता है  π2 एवं π3* में ऊर्जा अन्तर कम होने के कारण अधिक तरंगदैर्घ्य के प्रकाश का अवशोषण होता है। का मान 217nm हो जाता है जो कि एथीन में 180nm है।

अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि एक द्विबन्ध के संयुग्मन में यदि दूसरा द्विबन्ध आ जाए तो वर्णोंत्कर्षी विस्थापन प्रदर्शित होता है।

जैसे-जैसे संयुग्मन बढ़ता है जाता है वैसे-वैसे λmax का मान भी बढ़ता जाता है। जैसे-जैसे संयुग्मित (एक क्रम से एकल बन्ध और एक द्विबन्ध) श्रृंखला की लम्बाई बढ़ती जाती है उसी प्रकार अनुमेय कक्षकों जिनमें संक्रमण हो सकता है, की ऊर्जाओं का अन्तर कम होता जाता है अर्थात λmax के मान में वृद्धि होती है। असंयुग्मी द्विबन्ध की अपेक्षा एक द्विबन्ध को संयुग्मी द्विबन्ध में बढ़ाने पर अवशोषित तरंगदैर्घ्य का वर्णोंत्कर्षी विस्थापन λmaxका मान 15-45 nm तक बढ़ता है। सारणी 10.2 में दिए गए आंकड़ों से इसकी पुष्टि होती हैं।

इसी प्रकार पॉलीइन ऐल्डिहाइड (Polyene aldehyde) (CH2CH=CH)n –CHO,n = 1,2,3,4,5, 6,7, के लिए अवशोषण बैण्ड क्रमशः 217,270,312,343,370, 393 एवं 415 nm पर प्राप्त होते हैं। अतः इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि संयुग्मित अणुओं का अवशोषण इस बात पर निर्भर करता है कि उपस्थित π इलेक्ट्रॉन का किस सीमा तक विस्थानीकरण हुआ है। इसी प्रकार कुछ संयुग्मित ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बनों में बेन्जीन वलय बढ़ने पर उसकी अवशोषकता बढ़ती है अर्थात् अधिक तरंगदैर्घ्य वाले विकिरणों का अवशोषण होता है एवं λmax के मान भी बढ़ते जाते हैं। उदाहरणार्थ- बेन्जीन (रंगहीन)λmax = 203 nm, नैफ्थेलीन (सफेद) λmax = 314 nm, ऐन्थ्रासीन (बर्फ रंग) λmax = 370 nm, नेफ्थेसीन (पीला)  λmax= 460nm, पेन्टासीन (नीला) λmax = 580 nm. तथा हैक्सासीन (हरा) λmax = 600nm पर अवशोषण बैण्ड का प्राप्त होना इस बात की पुष्टि करता है।

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