JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: इतिहास

बराबर की पहाड़ियां कहां स्थित है barabar caves in hindi नागार्जुन की गुफाएं क्या हैं ? बराबर की गुफा कहाँ है

barabar caves in hindi बराबर की पहाड़ियां कहां स्थित है नागार्जुन की गुफाएं क्या हैं ? बराबर की गुफा कहाँ है ?

प्रश्न: मौर्यकालीन गुहा निर्माण परम्परा पर एक लेख लिखिए।
उत्तर: बिहार में बराबर की पहाड़ियों में सुदामा, विश्व की झोपड़ी, करण चैपड़ तथा नागार्जुनी पहाड़ियों में गोपी, वापि, वथिक की गुफाएँ। जो एक
सीमा तक नैसर्गिक भी है, का निर्माण मौर्य शासक अशोक मौर्य एवं दशरथ मौर्य ने करवाया।
अशोक के समय में पर्वतों को काटकर गुफा बनाकर उसमें रहने की कला का खूब विकास हुआ। बिहार में गया जिले से लगभग 31 कि.मी. उत्तर में पहाड़ियों को काटकर सात प्रस्तर गुहा आवासों का निर्माण किया गया। इन गुहा-आवासो म चार बराबर पहाड़ियों में तथा तीन नागार्जुन पहाड़ियों में स्थित हैं, जिनका अशोक एवं उसके पौत्र दशरथ ने निर्माण कराया था। ये गुहाएँ पत्थरों को काटकर निर्मित स्थापत्य का प्राचीनतम निदर्शन हैं। इनमें से कुछ गुहा आवासों को अशोक एवं उसके पौत्र दशरथ ने आजीविकों को दान में प्रदान किया था। बराबर की जिन तीन गुहाओं में अशोक के गुहा अभिलेख प्राप्त हुए हैं, वे हैं – कर्ण की चैपड़ गुफा, सुदामा गुफा एवं लोमस ऋषि गुफा। सुदामा की गुफा में दो कोष्ठ हैं। इनकी छत ढोलाकार है। दोनों कोष्ठों की दीवारों तथा छतों पर शीशे के समान चमकीली पॉलिश है। दशरथ के समय बनी गुफाओं में श्लोमश ऋषिश् नाम की गुफा उल्लेखनीय है। यह बराबर-समूह की सबसे प्रासद्ध गुफा है जिसका वास्तु-विन्यास सुदामा की गुफा के ही समान है। अंतर केवल यही है कि इसका आंतरिक कोष्ठ वर्गाकार न होकर अंडाकार है। इसका निर्माण कार्य बड़ी सावधानी से हुआ है तथा यह कालांतर के चैत्यगृहों के अग्रभाग को सुसज्जित करने वाले अलंकरणों की वृहद् योजना के प्रारंभ का प्रतिनिधित्व करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इस गुफा का प्रवेशद्वार सर्वोत्तम है। दोनों पंखों पर तिरछे खड़े दो स्तंभ हैं जिनके ऊपर गोल मेहराब बने हुए हैं। इनके बीचों-बीच एक स्तूप तथा दोनों किनारों पर हाथियों की आकृतियाँ उत्कीर्ण हैं।
बराबर पहाड़ी की चैथी गुफा को श्विश्व की झोंपड़ीश् कहा जाता है। इसका निर्माण भी अशोक के शासनकाल के बारहवें वर्ष हुआ था। इसमें दो कोष्ठ हैं। इनकी दीवारों पर चमकीली पॉलिश मिलती है।
नागार्जुनी समूह में गोपिका गुफा महत्वपूर्ण है जिसे दशरथ ने अपने अभिषेक-वर्ष में बनवाया था। यह सुरंग के आकार की है जिसके दोनों सिरों पर दो गोल-मंडप बने हैं। इनमें एक गर्भगृह तथा दूसरा मुखमंडप है। इसमें मौर्यकालीन गुहा-स्थापत्य की सभी विशेषताएं प्राप्त होती हैं। इस प्रकार मौर्य युग में गुहा-स्थापत्य का पूर्ण विकास हुआ।
मूर्ति निर्माण कला को प्रोत्साहन रू मौर्य, काल में यक्ष-यक्षिणी एवं जैन तीर्थकरों की मूर्तियों का निर्माण करवाया गया। जिनके अवशेष बिहार के दीदार-गंज, लोहानीपुर, पाटलीपुत्र आदि में मिलते हैं।
सारनाथ सिंहशीर्ष, धौली हस्थि, रामपुरवा वृषभ मौर्यकालीन मूर्ति-शिल्प के उत्कृष्ट उदाहरण है। कनिष्क प्रथम के शासनकाल में स्थापित खड़े बोधिसत्व की मूर्ति का निर्माण मथुरा में ही किया गया था।
प्रश्न: गुप्तकाल को कला एवं साहित्य की दृष्टि से भारतीय इतिहास का श्क्लासिकल युगश् (स्वर्ण युग) कहा जाता है। विवेचना कीजिए।
उत्तर: कला को हम स्थापत्य कला एवं ललित कला में विभाजित कर सकते हैं। स्थापत्य कला के अंतर्गत मंदिर स्थापत्य, दुर्ग स्थापत्य, गुहा
स्थापत्य, मूर्तिकला आदि तथा ललित कला के अंतर्गत चित्रकला, संगीत व नृत्य कला आदि सम्मिलित किये जाते हैं।
गुप्तकाल साहित्य के विकास की दुष्टि से स्वर्णयुग माना जाता है। इस समय विशुद्ध दरबारी संस्कृत भाषा में साहित्य लिखा गया। पुराणों को अंतिम रूप गुप्तकाल में दिया गया। रामायण और महाभारत भी अपना वास्तविक रूप गुप्तकाल में ही प्राप्त कर सकें। नारद, कात्यायन, पाराशर, बृहस्पति आदि स्मृतियों की रचना भी इसी समय में हुई। इस समय अनेक महान् और श्रेष्ठ कवि हुए।
प्रयाग प्रशस्ति का लेखक हरीषेण, मंदसौर प्रशस्ति का लेखक वासुल, दूसरी मंदौर प्रशस्ति का लेखक वत्सभट्टी और उदयगिरी लेख का प्रशस्तिकार वीरसेन जो व्याकरण, न्याय, माीमांसा, एवं शब्दानुशासन का प्रकाण्ड पंडित और कवि था गुप्तकाल की देन है।
इस समय भारत का कवि शिरोमणि कालिदास भी हुआ। इस समय और भी महान नाटककार हुए जिनमें शूद्रक ने मृच्छकटिकम् और विशाखदत्त ने मुद्राराक्षस एवं देवीचन्द्रगुप्तम् लिखा।
व्याकरण ग्रंथ भी लिखे गये। जिनमें अमरसिंह का अमरकोश और चन्द्रगोमिन का चन्द्रव्याकरण तथा कात्यायन का वार्तिक बड़े प्रसिद्ध हैं। इन कवि एवं नाटककारों के अलावा बेताल भट्ट, भारवि, वररूचि, हरिशचन्द्र, शंकु आदि भी अनेक साहित्यकार हुए।
महर्षि व्यास द्वारा रचित महाभारत महाकाव्य रामायण से वृहद है। महाभारत में मूलतः 8800 श्लोक थे तथा इसका नाम जयसंहिता था। बाद में श्लोकों की संख्या 24000 होने के पश्चात् यह वैदिक जन भरत के वंशजों की कथा होने के कारण श्भारतश् कहलाया। कालान्तर में श्लोकों की संख्या एक लाख होने पर यह शतसहस्त्री संहिता या महाभारत कहलाया। महाभारत का प्रारम्भिक उल्लेख आश्वलायन गृहसूत्र में मिलता है। गुप्तकाल के एक अभिलेख में सर्वप्रथम एक लाख श्लोकों वाली शतसहस्त्रीसहिंता (महाभारत) का उल्लेख मिलता है। वर्तमान में इस महाकाव्य में लगभग एक लाख श्लोकों का संकलन है। महाभारत महाकाव्य 18 पर्यों में विभाजित है। इससे तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक एवं . धार्मिक स्थिति का ज्ञान होता है।
अनुश्रुतियों के अनुसार उसके दरबार में नौ विद्वानों की एक मण्डली निवास करती थी जिसे नवरत्न कहा गया है। इनमें कालिदास, धानवन्तरि, क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, वेताल भट्ट, घटकर्पर, वाराहमिहिर, वररुचि जैसे विद्वान थे। उसका संधिविग्रहित वीरसेन शाव याकरण, न्याय, मीमांसा, एवं शब्द का प्रकाण्ड पंडित और कवि था। राजशेखर के अनुसार उसके समय में उज्जैनी में एक शिक्षा अकादमी थी। विद्धयत् परिषद् जिसने कालिदास, भतृभट्ट, भारवि, अगरू, हरिषचन्द्र और चन्द्रगुप्त आदि कवियों की परीक्षा ली थी।

संस्कृति के विविध क्षेत्रों के साथ ही साथ कला और स्थापत्य के क्षेत्र में भी गुप्त युग की उपब्धियाँ भारतीय इतिहास पृष्ठों में अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। कला की विविध विधाओं, जैसे वास्तु, स्थापत्य, चित्रकला, मृदभांड कला आदि का इस में सम्यक् विकास हुआ। धर्म एवं कला का समन्वय स्थापित हुआ। इस युग में समस्त भारत में कला की अभूतपूर्व उनी हुई। मूर्ति-कला, भवन-निर्माण-कला, चित्र-कला और टेराकोटा ने बहुत प्रगति की। कुछ अत्यन्त सुन्दर स्मारक गप्त का की देन हैं। इस युग में मथुरा, बनारस और पटना कला-केन्द्र थे।
गुप्त कला में परिष्कृति और संयम का मेल दृष्टिगोचर होता है। कलाकारों ने मात्रा की अपेक्षा लावण्य पर अधिक बल दिया। उनकी कला में अभिव्यक्ति की सरलता और आध्यात्मिक उद्देश्य स्पष्ट दिखाई देते हैं। वस्त्रों, आभूषणों तथा अन्य सजावटी वस्तुओं के प्रयोग में गम्भीरता दिखाई देती है। गुप्त कला श्रूपमश् या सौन्दर्य की कल्पना के लिए प्रसिद्ध है। गुप्त कलाकारों ने सुन्दर आकृति की विभिन्न आकारों में उपासना की। अजन्ता की गुफाओं में देवताओं, ऋषियों, राजाओं, रानियों और उनके अनुचरों के चित्रों से अच्छाई और बुराई का पता चलता है। गुप्त कला से शैली की सरलता और अभिव्यक्ति की सुगमता का पता चलता है। महान् विचारों को प्राकृतिक और सरल ढंग से स्पष्ट रूप में प्रस्तुत किया गया।
आर्थिक समृद्धि के फलस्वरूप गुप्तकाल में कला का बहुत अधिक विकास हुआ। कला और साहित्य के विकास की दृष्टि से गुप्त काल को भारतीय इतिहास का श्क्लासिकल युग अथवा स्वर्णयुगश् कहा गया है। स्थापत्य एवं चित्रकला के क्षेत्र में विकास की चरम सीमा गप्तकाल में ही प्राप्त होती है।

Sbistudy

Recent Posts

सारंगपुर का युद्ध कब हुआ था ? सारंगपुर का युद्ध किसके मध्य हुआ

कुम्भा की राजनैतिक उपलकियाँ कुंमा की प्रारंभिक विजयें  - महाराणा कुम्भा ने अपने शासनकाल के…

1 month ago

रसिक प्रिया किसकी रचना है ? rasik priya ke lekhak kaun hai ?

अध्याय- मेवाड़ का उत्कर्ष 'रसिक प्रिया' - यह कृति कुम्भा द्वारा रचित है तथा जगदेय…

1 month ago

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

3 months ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

3 months ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

3 months ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

3 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now