हिंदी माध्यम नोट्स
बाल्कन संकट क्या है , बाल्कन युद्ध के कारणों एवं परिणामों का वर्णन कीजिए , घटनाओं , balkan war in hindi
balkan war in hindi बाल्कन संकट क्या है , बाल्कन युद्ध के कारणों एवं परिणामों का वर्णन कीजिए , घटनाओं ?
प्रश्न: बाल्कन संकट क्या था यह प्रथम विश्व युद्ध के लिए कहां तक उत्तरदायी था?
उत्तर: बाल्कन (मध्यपूर्व) को लेकर समस्त यूरोपीय देशों मे मध्य विवाद था। आस्ट्रिया ने 1908 में बोस्निया व हर्जेगोविना पर अधिकार किया। आस्ट्रिया अपनी सीमा का विस्तार कस्तुनतुनिया तक करना चाहता था। बोस्निया व हर्जेगोविना में भी स्लाव जाति के लोग थे। सर्बिया एक स्लाव राज्य गठित करना चाहता था। इसका नारा था – श्स्लाव स्लाववासियों के लिए श् जिसमें बोस्निया, हर्जेगोबिना, मोण्टेनिग्रो आदि सम्मिलत थे। रूस में भी स्लाव जाति के लोग रह रहे थे। रूस की मदद से सार्बिया यह कर सकता था। सर्बिया में प्रेस पर नियंत्रण नहीं था। ऑस्ट्रिया के खिलाफ ऑस्ट्रिया में आतंकवादा गट बने जिनका उद्देश्य आस्ट्रिया के प्रमुख शीर्षस्थ अधिकारियों की हत्या करना था। आस्ट्रिया, हंगरी व रूमानिया के जाँच विवाद था क्योंकि हंगरी में रूमेनियावासियों पर अत्याचार हो रहे थे। इससे आस्ट्रिया-हंगरी तथा रूमेनिया के मध्य तनाव था। बाल्कन में जर्मनी व रूस के बीच भी विवाद था। जर्मनी को टर्की से बर्लिन-बगदाद रेलवे के निर्माण का ठेका पाप्त हुआ था। जिससे जर्मनी का टर्की में प्रभाव बढ़ा। जिसका रूस ने विरोध किया। बल्गेरिया व रूमेनिया में जर्मन वश हमारक थे। 1912 में रूस के प्रोत्साहन पर बाल्कन संघ के राज्यों-सर्बिया, मोण्टेनिग्रो, बुल्गारिया, यूनान ने तुका १ विरुद्ध युद्ध (प्रथम बाल्कन युद्ध) छड़ दिया, जिसमें तुकी परास्त हुआ। युद्ध के बाद 1913 में लंदन संधि हुई, लेकिन बंटवारे को लेकर विजेता राज्यों में विवाद हो गया। तब सबिया, मोण्टेनिग्रो, रोमानिया, यूनान आदि ने मिलकर बुल्गारिया क विरुद्ध यद्ध छेड दिया। तुकी भी बुल्गारिया के विरुद्ध बाकी राज्यों के साथ मिल गया। इसे द्वितीय बाल्कन युद्ध कहते हा इस युद्ध में बल्गारिया की पराजय हुई। इस युद्ध का समापन 1913 की बुखारेस्ट की संधि से हुआ। इन बाल्कन युद्धों न प्रथम विश्व युद्ध का मार्ग प्रशस्त किया।
भाषा एवं साहित्य
तेलुगू
तेलुगू का इतिहास 7वीं शताब्दी से मिलना शुरू होता है, किंतु साहित्यिक भाषा के रूप में संभवतः वह 11वीं शताब्दी में सामने आई, जब नन्नाया ने महाभारत का इस भाषा में अनुवाद किया। हालांकि नन्नाया की रचना शैली नवीनता के कारण मौलिक लगती है। भीम कवि ने तेलुगू व्याकरण के साथ-साथ भीमेश्वर पुराण भी लिखा। नन्नाया द्वारा शुरू किए गए महाभारत के काम को टिक्काना (13वीं शताब्दी-) तथा येरान्ना (14वीं शताब्दी) ने जारी रखा।
14वीं-15वीं शताब्दी में तेलुगू साहित्य का एक रूप विकसित हुआ, जिसे प्रबंध कहा गया (छंद में कहानी)। इसे लोकप्रिय बनाया श्रीनाथ ने। इसी अवधि में रामायण का तेलुगू में अनुवाद हुआ। ऐसा ही सबसे पहले किया गया कार्य गोना बुद्ध रेड्डी द्वारा रंगनाथ रामायण था। पोटन, जक्काना और गौराना आज के चर्चित धार्मिक कवि हैं। वेमना ने नैतिकता पर शतक लिखा।
विजय नगर के कृष्णदेव राय के शासनकाल को इस भाषा के साहित्य का स्वर्णयुग माना जाता है। कृष्णदेवराय का अमुक्तमाल्यद एक अद्वितीय रचना है। अल्लासानी पेद्दाना एक अन्य महान कवि थे, जिन्होंने मनुचरित लिखा। नंदी थिम्माना की पारिजातपाहरनम एक अन्य प्रसिद्ध कृति है। तेनालीरामा कृष्ण की लोकप्रियता उसके कवि होने और कृष्णदेव राय के दरबार में विदूषक होने की वजह से थी। उसने पांडुरंग महामाया लिखी। विजयनगर के पतन के बाद तेलुगू साहित्य नायक शासकों की राजधानियों में फला-फूला।
कुमारगिरी वेम्मा रेड्डी (वेमना) ने 14वीं शताब्दी के दौरान आम भाषा एवं लोकोक्तियों का प्रयोग करके तेलुगू में लोकप्रिय कविताएं लिखीं। बामेरा पोतनामत्या (1450-1510) को उनके अनुवाद भागवत पुराण, आंध्र महा भागवतामू, और भोगिनी दंदाकम के लिए जागा जाता है। उनके कार्य वीरभद्र विजयामू शिव के पुत्र वीरभद्र के पराक्रमों का वर्णन है। तालपक्का अन्नामाचार्य (या अन्यामाया) (15वीं शताब्दी) को तेलुगू भाषा का पड-कविता पितामह माना जाता है। अन्नामाचार्य ने भगवान गोविंदा वेंकटेश्वरा पर 32,000 से अधिक संकीर्तनों (गीतों) का संकलन किया है, लेकिन आज मात्र 12,000 ही उपलब्ध हैं। अन्नामाचार्य की पत्नी, थिमक्का (तलापका तिरुमलाम्मा), ने सुभद्रा कल्याणमलिखा, और उन्हें तेलुगू साहित्य की प्रथम महिला कवि माना जाता है। अलासनी पेडन्ना (15-16वीं शताब्दी) को अष्टडिग्गालू, कृष्णदेवराय के दरबार के आठ कवियों का समूह, में अग्रणी स्थान प्राप्त था। पेडन्ना ने प्रथम सबसे बड़ा प्रबंध लिखा जिस कारण उन्हें आंध्र कविता पितामह (तेलुगू कविता का ग्रांडफादर) माना जाता है। उनके अन्य प्रसिद्ध कार्यों में मनु चरित और हरिकथासारामू शामिल हैं। तंजौर के त्यागराजा (1767-1847) ने तेलुगू में भी भक्ति गीतों का संकलन किया। 600 संकलनों (क्रिटिस) के अतिरिक्त त्यागराजा ने तेलुगू में दो संगीतमयी नाटकों प्रहलाद भक्ति विजयम और नौका चरितम का निर्माण किया।
आचार्य आत्रेय (1921-1989) तेलुगू फिल्म उद्योग के नाटककार, गीतकार और पटकथा लेखक थे। मानव मन एवं आत्मा पर कविता के लिए प्रसिद्ध, आत्रेय को मानासू कवि का खिताब दिया गया।
डेल्टा क्षेत्र की सामान्य आर्थिक समृद्धि के परिणामस्वरूप वहां विद्यालयों एवं काॅलेजों की स्थापना से शिक्षा का विस्तार हुआ और पश्चिमी शिक्षा के मध्यवर्गीय शिक्षितों का जन्म हुआ।
तेलुगू पत्रकारिता की शुरुआत मुख्य रूप से धार्मिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक जर्नल से हुई। सत्योदय प्रथम तेलुगू जर्नल था जिसे मद्रास में (अब चेन्नई) बेलारी के ईसाई संगठनों द्वारा प्रकाशित किया गया। मिशनरियों के प्रचार को रोकने के लिए वेद समाज द्वारा तत्वबोधिनी का प्रकाशन प्रारंभ किया गया। राय बहादुर के. वीरसिंगलिमय पंटुलू में प्रथम आधुनिक जर्नल विवेकानंदिनी प्रकाशित किया जो सामाजिक एवं भाषा सुधार को समर्पित थे। उन्होंने 3 जर्नल महिलाओं के लिए सहिताबोधिनी, हास्यवर्धिनी और सत्यवादिनी प्रकाशित किए। पंटुलू को आंध्र प्रदेश के पुगर्जागरण आंदोलन का पिता माना जाता है।
राजमुंदरी, कोकानाडा, बेजावाडा, मछलीपट्टनम, अमलापुरम और नरसापुरम पत्रकारिता के केंद्र बन गए। आंध्रभाषा संजीवनी, वेंकटरम पंटुलू द्वारा संपादित, बेहद लोकप्रिय हो गई, जो एक साप्ताहिक पत्रिका है। आंध्र प्रकाशिका का प्रकाशन ए.पी. पार्थसारथी नायडू द्वारा मद्रास से किया गया। देवगुप्ता शेषचल राव ने देशभिमानी प्रारंभ किया, जो बाद में प्रथम तेलुगू डेली बन गया।
तेलुगू प्रेस ने एक पृथक् तेलुगू पहचान बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और एक पृथक् आंध्र राज्य की मांग की। तेलुगू साहित्य का आधुनिक काल 19वीं शताब्दी में प्रारंभ हुआ। आरंभिक लेखकों में थे चिन्नाया सूरी और कंडुकुरी विरेसलिंगम। कंडुकुरी ने तेलुगू साहित्य की हर शाखा में अपनी छाप छोड़ी। उन्होंने पहला उपन्यास, पहला नाटक, तेलुगू कवियों पर पहला शोध प्रबंध, पहली आत्मकथा और विज्ञान पर पहली पुस्तक तेलुगू में लिखी। उन्होंने सामाजिक बुराइयां दूर करने के लिए साहित्य का सहारा लिया। इनके समकालीन लेखक थे चिलाकामार्ती नरसिंहमन, वेदम वेंकटाशास्त्री, सी.आर. रेड्डी, के.वी. लक्ष्मण राव, जी. अप्पा राव इत्यादि। वी. सत्यनारायण को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिल चुका है।
उर्दू
वही खड़ी बोली जिसने हिन्दी को उन्नत किया था, उसी ने 11वीं शताब्दी में उर्दू को भी समृद्ध किया। पश्चिमी सौरसेनी अपभ्रंश उर्दू के व्याकरण विन्यास का स्रोत है, जबकि इस भाषा का शब्द संग्रह, उसके मुहावरे और साहित्यिक परंपराएं तुर्की और फारसी से काफी प्रभावित हैं। उर्दू का शाब्दिक अर्थ है ‘शिविर’। अमीर खुसरो ने सबसे पहले इस भाषा का इस्तेमाल साहित्य के लिए किया। हालांकि, दक्षिण में बहमनी,गोलकुंडा और बीजापुर के राज दरबारों में उसे सबसे पहले साहित्यिक दर्जा हासिल हुआ। उर्दू शायरी के कुछ एक साहित्यिक रूप हैं मसनवी, कसीदा, गजल, मर्सिया और गजम।
उत्तर में 18वीं शताब्दी के प्रारंभ में राजनीतिक उथल-पुथल के दौरान और फारसी के पतन के बाद उर्दू साहित्य फला-फूला। कुछ प्रसिद्ध लेखक हैं मिर्जा जाग-ए-जागम मजहर, ख्वाजा मीर दर्द, मुहम्मद रफी सौदा और मीर हसन। जहां तक उर्दू गजल का प्रश्न है, उसमें मिर्जा असदुल्ला खां गालिब का नाम सबसे पहले आता है, जिन्होंने जीवन को उसके हर रंग रूप में पेश किया और शायद वह उर्दू के सबसे मौलिक शायर थे।
उर्दू को इसके विभिन्न प्रारंभिक रूपों में मुहम्मद उर्फी, अमीर खुसरो (1259-1325) और ख्वाजा मुहम्मद हुसैनी (1318-1422) के कार्य में देखा जा सकता है। उर्दू में प्रारंभिक लेखन दखनी (दक्कनी) बोली में है। सूफी संत दखनी उर्दू के शुरुआती प्रचारक रहे हैं। सूफी-संत हजरत ख्वाजा बंदा नवाज गेसूदराज को पहला दखनी उर्दू का लेखक माना जाता है (मीराजुल अशिकिन और तिलावतुल वजूद)। उर्दू भाषा में प्रथम साहित्यिक कार्य बीदर के कवि फकरुद्दीन गिजामी द्वारा किया गया (पंद्रहवीं शताब्दी)। वली मोहम्मद या वली दखनी (दीवान) प्रमुख दखनी कवि थे जिन्होंने गजल शैली को विकसित किया। उनके गजल संग्रह एवं अन्य कवित्त शैलियों ने दिल्ली के कवियों को प्रभावित किया।
मध्यकाल की उर्दू शायरी पारसी कविता की छांव तले पल्लवित हुई। सिराजुद्दीन अली खान अर्जू और शेख सदुल्ला गुलशन उत्तर भारत में उर्दू के प्रारंभिक प्रोत्साहक थे। शेख गुलाम हमदानी मुसाफी, इंशा अल्लाह खान (दरिया-ए-लताफत और रानी केतकी), ख्वाजा हैदर अली आतिश, दया शंकर नसीम (मथानवीः गुलजार-ए-नसीम), नवाब मिर्जा शौक (बहर-ए-इश्क, जहर-ए-इश्क, लज्जत-ए-इश्क) और शेख इमाम बख्श नासिख लखनऊ के शुरुआती शायर एवं कवि थे। मीर बाबर अली अनीस (1802-1874) ने खूबसूरत मरसियास लिखी।
आधुनिक उर्दू साहित्य में 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के समय से लेकर वर्तमान समय शामिल है। अल्ताफ हुसैन हाली ख्(दीवान-ए-हाली, मद-ओ-जर-ए-इस्लाम या मुसादस्स-ए-हाली (1879)एशक्वा-ए-हिंद (1887), मुनाज्जत-ए-बेवा (1886) और चुप की दाद (1905), को उर्दू शायरी में आधुनिक शैली का वास्तविक खोजी माना जाता है। 19वीं-20वीं शताब्दी के प्रमुख कवियों में सय्यद अकबर हुसैन अकबर अलाहबादी, मोहम्मद इकबाल और हसरत मोहानी थे।
फणी बदायूंनी,शाद अजीमाबादी, असगर गोंदवी, जिगर मोरादाबादी, फैज अहमद फैज, अली सरदार जाफरी, कैफी आजमी, जन निसार अख्तर, साहिर लुधयानिवी, मजरूह सुल्तानपुरी, और इब्ने-ए-इंशा जैसे कवियों ने उर्दू शायरी को एक नई ऊंचाई दी।
आधुनिक समय में उर्दू को मात्र मुस्लिम लेखकों तक सीमित नहीं किया जा सकता। मुंशी प्रेमचंद, फिराक गोरखपुरी, पंडित रतन नाथ सरशार (फसाना-ए-आजाद), ब्रज नारायण चकबास्त, उपेन्द्र नाथ अश्क, जगन्नाथ आजाद, जोगेन्दर पाल, बलराज कोमल और कुमार पाशी जैसे कई अन्य धर्मों के लेखकों ने भी उर्दू साहित्य को अपना योगदान दिया।
प्रोफेसर हाफिज मोहम्मद शीरानी (1888-1945) ने उर्दू साहित्यिक आलोचना के क्षेत्र में लंबे समय तक काम किया। शेख मोहम्मद इकराम सय्यद इहेत्शाम हुसैन, मोहम्मद हसन असकरी, अले-अहमद सुरूर, मुमताज हुसैन, मसूद हुसैन,शम्स-उर-रहमान फारुकी, गोपीचंद नारंग, मुघनी तब्बसुम अन्य प्रमुख साहित्यिक आलोचक हैं।
फरंग-ए-असिफया प्रथम उर्दू शब्दकोश था। इसका सृजन 1892 में मौलाना सय्यद अहमद देहलवी द्वारा किया गया।
उर्दू गद्य का विकास बहुत धीरे-धीरे हुआ और सैयद अहमद खान ने गद्य को एक विशेष शैली प्रदान की। इस परंपरा को कृष्ण चंदर, सिज्जाद जहीर, के.ए. अब्बास, ईस्मत चुगताई जैसे प्रतिभाशाली लेखकों ने आगे बढ़ाया। कहानी के क्षेत्र में रूसवा (उमरा जाग अदा) तथा प्रेमचंद का नाम आता है।
उर्दू लेखन में ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता हैं फिराक गोरखपुरी (गुल-ए-नगमा) तथा कुत्र्तुलेन हैदर (आग का दरिया, पत्थर की आवाज)। उर्दू को फारसी.अरबी लिपि और देवनागरी में लिखा जाता है।
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…