JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: history

बैराठ सभ्यता कहाँ स्थित है वर्तमान में bairath civilization in rajasthan in hindi present location

bairath civilization in rajasthan in hindi present location बैराठ सभ्यता कहाँ स्थित है वर्तमान में ?

बैराठ (विराट नगर )

राजस्थान राज्य के उत्तर-पूर्व में जयपुर जिले के शाहपुरा उपखण्ड में विराटनगर करना जिसे ‘बैराठ’ भी कहा जाता है. एक तहसील मुख्यालय है यह क्षेत्र पुरातत्व एवं इतिहास की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण क्षेत्र है। प्राचीन काल में मत्स्य जनपद, मत्स्य क्षेत्र एवं मत्स्य देश के रूप में उल्लेखित किया जाने वाला यह क्षेत्र वैदिक युग से निरन्तर वर्तमान काल तक अपना विशिष्ट महत्व प्रदर्शित करता रहा है। यह क्षेत्र मुख्य रूप से पर्वतीय प्रदेश है ऊँचे-ऊँचे पर्वतों के निकट स्थित छोटी-छोटी ग्रेनाइट चट्टानों की पहाड़ियाँ यहाँ के लोगों के लिए सुरक्षित आश्रय स्थल है। पर्वतीय भू-भाग होने के कारण नदी-नाले भी हैं। इस प्रकार प्राचीन काल में मानव के लिए यहाँ अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों दिखाई देती है। पाषाण युग पर्वतीय कन्दराओं, गुफाओं एवं वन्य प्राणियों वाला यह क्षेत्र प्रागैतिहासिक काल से ही मानव के आकर्षण का केन्द्र रहा है। इस क्षेत्र में मानव की उपस्थिति के प्रमाण पाषाण युग से ही प्राप्त होने लगते हैं प्रागैतिहासिक काल में मानव ने आसानी से उपलब्ध पाषाण लकड़ी एवं हड्डी का किसी न किसी प्रकार से उपयोग किया है। लकड़ी एवं हड्डी दीर्घकालीन परिस्थितियों में नष्ट हो गयी, लेकिन पाषाण जिसको उसने उपयोग करने के लिए थोड़ा बहुत घड़ा है, ताशा है, यहाँ उपलब्ध हुए हैं। अर्थात् प्रागैतिहासिक कालीन मानव के प्रमान सामान्यतः पाषाण उपकरण ही है जो उपलब्ध होते हैं इसीलिए इस युग के मानव को पाषाण युगीन मानव कहा जाता है। इस क्षेत्र में विगारिया एवं भानगढ़ से गोलारमों पर निर्मित उपकरण प्राप्त हुए हैं, जिन्हें पुरापाषान उपकरण कहा जाता है इस युग का मानव पूर्णतः प्रकृतिजीवी था प्राकृतिक रूप से उपलब्ध फल फूल और कन्दमूल, आखेट में मारे गये वन्य पशुओं से अपनी भूख मिटाता था। पाषाण युग की द्वितीय अवर मध्य पाषाण युग के उपकरण बैराठ के उत्तर एवं दक्षिण दोनों भागों में प्राप्त हुए हैं। इस काल में पर्यावरणीय परिवर्तन हुए जिसके कारण पशु समूह अपने अनुकूल स्थलों की ओर गमन कर गये। बड़े-बड़े जानवरों के शिकार पर आश्रित रहने वाला मानव अब छोटे-छोटे जानवरों का आखेट करने लगा। इस कारण से उसे अपने उपकरणों में भी परिवर्तन करना पड़ा, जो अब ‘लघु’ हो गये हैं। इस काल में मानव पानी की झीलों के किनारे टीलों पर अस्थायी रूप से झोपड़ियाँ बनाकर रहने लगा था धीरे धीरे उसने हाथ से मृद्यात्रों का निर्माण करना सीखा। ये वृंदापात्र कम पके तथा रेत से निर्मित बेडोल एवं मोडे, मोटे हैं।

इस काल में मानव के मन में सौन्दर्य भावना का उदय दिखाई देता है। लघु पाषाण उपकरणों पर कलात्मक रेखांकन इसके उदाहरण है। उसे अब एक विस्तृत कैनवास शैलाश्रयों की सपाट मित्तियों के रूप में उपलब्ध था। मृदभाण्ड निर्माण प्रारम्भ होने के पश्चात् इन पात्रों की सतह भी उसकी कलात्मक प्रवृत्तियों का आधार बनी शैलाश्रयों की छत एवं दीवारों पर लाल रंग से निर्मित चित्रों (शैल चित्र) की प्राप्ति उसके स्वयं के द्वारा निर्मित अभिलेखों का मिलना है विराटनगर की पहाड़ियों जैसे गणेश डूंगरी, बीजक दूरी एवं भीम डूंगरी में शताधिक शैलाश्रयों में लाल एवं अन्य रंगों द्वारा रेखांकन किया गया प्राप्त हुआ है। यह रेखाकंन किसी एक समय में नहीं किया गया है। ये दीर्घकाल की रचनाएँ हैं।

ताम्र युग मध्य पाषाण युग के पश्चात् धातु युग का प्रादुर्भाव हुआ और धातुओं में सर्वप्रथम ताम्र का ‘ताम्र पाषाण की अपेक्षा अधिक सुदृढ सुडौल, सुन्दर और चिकना था। इसे इच्छानुसार रूपाकृति दी जा सकती थी अब उसे स्थायी औजार प्राप्त हुए धातु ज्ञान ने तत्कालीन मानव जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया। इस काल में मानव चाक पर मृद्भाण्ड बनाने लगा था ताम्र धातु का ज्ञान रखने वालों लोगों ने ‘आकर कलर पात्र परम्परा के पात्रों का निर्माण किया जो ठीक से पकाये नहीं गये। हाथ लगाने से झरने लगते हैं। इन पर उकेरण विधि द्वारा अलंकरण किया जाता था जोधपुरा (जयपुर) एवं गणेश्वर (सीकर) के उत्खनन में ऐसे साक्ष्य प्राप्त हुए है जिससे यह स्पष्ट होता है कि ये लोग, ताम्र खनिज से ताम्र धातु का निष्कर्षण भली भांति करते थे तथा अपने प्रयोग में आने वाले उपकरणों का निर्माण किए करते थे। ताम्र खनिज से धातु का निष्कर्षण तथा उससे उपकरणों का निर्माण करना इन लोगों की सामाजिक स्थिति का परिचायक रहा होगा। संभवतः इसी कारण से ऑकर-कलर-पात्र संस्कृति का क्षेत्र से अन्य क्षेत्रों में विस्तार हुआ होगा। सीमित तौर पर हुए उत्खनन से इस संस्कृति के लोगों सामाजिक जीवन पर कोई विशेष प्रकाश नहीं पड़ा। कुछ विद्वानों का अनुमान है कि ये लोग वर्तमान के माहोलिया लुहारों की तरह अपना जीवन यापन करते थे। घूम-घूम कर अपनी ताम्र निर्मित साम का निर्यात करते थे । आर० सी० अग्रवाल के मतानुसार ये लोग समकालीन संस्कृति जैसे प्रा एवं हड़प्पा के लोगों से अभित्र थे। इनके आर्थिक जीवन में ताम्र धातु का बहुत महत्व था। ये यदि स्था निवास करते तो उत्खनन में दैनिक जीवन में काम आने वाली वस्तुओं के अवशेष मिलते। इनके में आखेट का महत्व रहा होगा ऑकर कलर पात्र परम्परा से सम्बद्ध अनेक स्थलों से मछली प के कॉट प्राप्त हुए हैं तथा ताम्र के अन्य उपकरणों में कुल्हाड़ियों, गा भाले तथा अनेक प्रकार के बार प्राप्त हुए हैं। ऑकर कलर मात्र परम्परा के पश्चात् ‘ब्लैक एण्ड रेड पात्र परम्परा संस्कृति अवशेष मिलते हैं। इस क्षेत्र की ब्लैक एण्ड रेड पात्र परम्परा, बनास संस्कृति या अहा संस्कृति ब्लैक एण्ड रेड पात्र परम्परा से पूर्णतया मित्र है बैराठ के सन्दर्भ में यह पेन्टेड प्रे पात्र संस्कृति से कालीन है। अहाड़ संस्कृति से सम्बद्ध ब्लैक एण्ड रेड पात्र परम्परा में पात्रों के काले भाग पर रंग से चित्रकारी की गई है जबकि बैराठ की इस पात्र परम्परा में कोई किसी प्रकार की चित्रकारी  हैं।

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है ये पात्र काले लाल रंग के है और इनका काला रंग स उल्टी तपाई विधि के कारण उत्पन्न हुआ है। पात्र को भली प्रकार तैयार की गई मिट्टी से चाक पर गया है। बनावट की दृष्टि से अधिकांश पात्र फ सुधरे हैं पतले हैं और अच्छी तरह पकाये गये * इनमें कटोरे, जार तथा तस्तारियों मुख्य पात्र हैं।

लौह युग ब्लैक एण्ड रेड पात्र संस्कृति के पश्चात इस क्षेत्र में ‘लेटी रंग के चित्रित गृद्भाण्ड फिन वेयर PGW) संस्कृति के पुरावशेष प्राप्त होते हैं। गंगा घाटी में वह पात्र संस्कृति 1100 ई. पू. में विद्या थी तथा पांचवी शताब्दी ई. पू. तक प्रचलित रही ये पात्र सलेटी रंग के हैं इन पर काले एवं मह रंग से चित्रांकन किया गया प्राप्त हुआ है इसीलिए इन्हें आंग्ल भाषा में पेन्टेड में कहा गया है। ये पतले एवं हल्के है इनका रंग इन्हें भट्टी में अपचयन विधि से पकाने के कारण हुआ लगता है ि के प्रारूपों में अधिकांशतः ज्यामितिक आकृतियों जैसे विभिन्न प्रकार की आड़ी-तिरछी रेखाए अर्द्धवृत वृती की श्रृंखला, स्वास्तिक का अंकन प्राप्त हुआ है। पात्रों में मुख्यतः कटोरे और तश्तरियाँ प्रमुख

ये लोग अपने निवास हेतु बॉस एवं सरकण्डों से आवास का ढांचा तैयार करके उस पर मिट्टी का पलस्तर करते थे। कहीं-कहीं पर- कच्ची ईंटों के आवासों के प्रमाण, भी मिले है। इनका जीवन पूर्णतः ग्रामीण संस्कृति का दिखाई देता है मुख्य व्यवसाय कृषि एवं

पशुपालन था खाद्यान्नों में गेहूँ एवं चावल का उत्पादन किया जाता था। पशुओं में गाय, बैल, गैस, सुअर एवं अश्य पालते थे। भेड़-बकरी की हड्डियाँ भी उत्खनन में मिली है, इन्हें भी दूध, मांस एवं धर्म हेतु पाला जाता था।

इस संस्कृति के लोग लोह धातु से परिचित थे अतरंजीखेडा (उत्तर प्रदेश) के उत्खनन में इसकी पुष्टि हुई है। बैराठ क्षेत्र से लौह अवशेष इस स्थिति तक प्राप्त हुए हैं कि ये लोग स्थानीय तौर पर इसका निष्कर्षण करते थे और इससे चाकू तीर भाला हाँसिया, कुदाल, कुल्हाड़ी, चिमटा, कील आदि उपकरणों का निर्माण करते थे। पेन्टेड पात्र संस्कृति के पश्चात् बैराठ क्षेत्र में उत्तरी काली चमकीली

मृदपान संस्कृति * (Northern Black Polished Ware NBP) के पुरावशेष प्राप्त होते हैं इस संस्कृति के ये विशेष मृदभाण्ड सामान्यतः उत्तरी भारत में मिले हैं, और इन पर काले रंग की चमकीली सतह है, इसलिए इनका यह विशेष प्रकार का नामकरण किया गया है।

इन मृदपात्रों का निर्माण भली भांति तैयार की गई मिट्टी द्वारा तीव्र गति से किया गया था, तत्पश्चात् धूप में सुखाकर तेज आग में तपाया जाता था। इसके गिरने पर सुनायी पड़ती है। ये मृदपात्र बहुत हल्के एवं पतले होते हैं। इनमें मुख्य रूप से किनारों की थालियों, कटोरे, ढक्कन और छोटे कलश प्रमुख हैं। इस संस्कृति का कालक्रम पांचवी शताब्दी ई. पू. से द्वितीय शताब्दी ई. पू. माना जाता है। इस काल तक लोहे का व्यापक प्रयोग होने लगा था जिससे उत्पादन में भारी वृद्धि हुई। समवतः इसी कारण से उत्तरी भारत में द्वितीय नागरक क्रांति का सूत्रपात हुआ। ‘अतिरिक्त उत्पादन में भारी वृद्धि नागरक क्रांति का प्रमुख कारण है। नागरिक समाज का आर्थिक जीवन जटिल होने लगा, परिणाम स्वरूप वस्तु विनिमय से परेशानी होने लगी। इन्हीं आवश्यकताओं, आर्थिक, जटिलताओं ने सिक्कों के प्रचलन का मार्ग प्रशस्त किया जाम्र एवं रजत निर्मित आहत सिक्के (Panch marked Coins) हमारे देश के प्राचीनतम सिक्के हैं लेख रहित ताम्बे के सिक्के भी इनके समान प्राचीन माने गये हैं। सिक्कों के प्रचलन से व्यापार वाणिज्य के विकास में भारी प्रगति हुई।

मौर्य साम्राज्य कालीन बैराठ =  मौर्य काल में बैराठ क्षेत्र का विशेष महत्व रहा है। इस कारण से दीर्घकाल से पुराविदों के लिए यह आकर्षण का केन्द्र बना रहा है। 1837 ई. में कैप्टन बर्ट ने बीजक दूंगरी पर मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण सम्राट अशोक का शिलालेख खोजा स्थानीय लोग इस लेख को बीजक कह कर पुकारते थे, इसी कारण से इस दूंगरी का नाम बीजक गरी पड़ गया। 1840 ई. में इस अभिलेख, को चट्टान से काट कर कलकत्ता संग्रहालय में ले जाया गया। 1871-72 ई. में कार्लाईल ने इस क्षेत्र का गहन सर्वेक्षण किया, जिसके अन्तर्गत भीम डूंगरी में एक और अशोक का शिलालेख प्रकाश में आया। 1936 ई. में दयाराम साहनी ने बीजक की डूंगरी पर पुरातात्विक उत्खनन किया, जिसके दौरान मौर्य कालीन अशोक स्तंभ, बौद्ध मंदिर एवं बौद्ध विहार आदि के ध्वंसावशेषों की प्राप्ति हुई। तत्पश्चात् 1962 ई. में एन. आर. बनर्जी ने पुनः पुरातात्विक सर्वेक्षण किया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक अमलानन्द घोष ने भी इस क्षेत्र का निरीक्षण किया। 1990 ई. में बैराठ कस्बे के निकट स्थित इन पहाड़ियों में गणेश दूंगरी, बीजक डूंगरी एवं भीम डूंगरी) स्थित शैलाश्रयों में अनेक शैलचित्र खोजे गये। इस प्रकार बैराठ क्षेत्र पुरासम्पदा से सम्पन्न होने के कारण पुरावेत्ताओं एवं इतिहासकारों को दीर्घकाल से निरंतर अपनी ओर आकर्षित करता रहा है।

बीजक डूंगरी के शिखर पर क्रमशः दो प्लेट फॉर्म है उत्खनन के दौरान निचले प्लेटफॉर्म पर बौद्ध स्तूप के पुरावशेष प्राप्त हुए हैं। यह गोलाकार स्तूप, स्तनों पर आधारित चुनार के प्रस्तर से निर्मित था। इसके पूर्व की ओर 6 फुट चौड़ा द्वार तथा स्तूप के चारों ओर 7 फुट चौड़ा गोलाकर परिक्रमा मार्ग था उत्खनन में स्तंभ एवं छत्र के टूटे हुए प्रस्तरावशेष प्राप्त हुए हैं। इसी डूंगरी के 5-7 मीटर ऊँचे प्लेटफार्म पर बौद्ध विहार के ध्वंसावशेष प्राप्त हुए हैं। यहां बौद्ध धर्मानुयायी साधना या उपासना करना सीखते होंगे।

यहाँ की छोटी-छोटी कोठरियाँ साधना कक्ष स्वरूप दिखाई देती है।

इस प्रकार बैराठ के उत्खनन से यह प्रमाणित होता है कि यह मौर्यकाल में बौद्ध धर्मानु के लिए एक महत्वपूर्ण केन्द्र के रूप में प्रतिष्ठित था तथा स्वयं भीर्य सम्राट अशोक का इस क्षेत्र से लगाव था, लेकिन परवर्ती काल में इस केन्द्र का ध्वंस किया गया। यहाँ से अशोक स्तंभ एवं बौद्ध छत्र आदि के हजारों की संख्या में टुकड़े प्राप्त होना, यहां की गई विनाशलीला को अभिव्यक्त करते दयाराम साहनी के मतानुसार हूण शासक मिहिरकुल ने बैराठ का ध्वंस किया हूण शासक मिहिरक छठी शताब्दी ई. के प्रारंभिक काल में पश्चिमोत्तर भारतीय क्षेत्र में 15 वर्षों तक शासन किया था। में चीनी यात्री व्हेनसांग के अनुसार मिहिरकुल ने पश्चिमोत्तर भारत में 1600 स्तूपों और बौद्ध द को ध्वस्त किया तथा कोटि बौद्ध उपासकों का वध किया। संभवतः इस विनाशकाल में ही धर्मानुयायियों ने कूट लिपि (गुप्त लिपि) का इन पहाड़ियों के शैलाश्रयों में प्रयोग किया है। गुप्त ब्राह्मी लिपि को अत्यधिक अलंकृत करके लिखा जाना यह कूट लिपि गुप्त लिपि या शंख लि इसका अधिकांशतः लाल रंग द्वारा 200 से अधिक शिलाखण्डों की विभिन्न सतहों पर अंकन प्राप्त है शैलाश्रयों की भीतरी दीवार एवं छतों पर ये लेख अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित हैं। कुछ शैलाश्रयों प्रतीकों का अंकन भी दिखाई देता है।

महत्वपूर्ण बिन्दु

. राजस्थान राज्य भारत के पश्चिमोत्तर भाग में देश का सबसे बड़ा राज्य है।

. राज्य 32 जिलों में विभक्त है तथा इसकी 2001 ई. में 564.73 लाख जनसंख्या थी।

. राज्य में दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर अरावली पर्वत श्रृंखला विस्तृत है। सर्वाधिक ऊँची चोटी सिरोही ‘जले में गुरुशिखर है।

. अरावली का पश्चिमी भाग, जिसमें बीकानेर, जोधपुर और जैसलमेर जिलों का क्षेत्र मरू प्रदेश, रेगिस भू-भाग मारवाड़ कहलाता है।

. उत्तरी राजस्थान में प्राचीन काल में सरस्वती एवं दृषद्वती नदियाँ प्रवाहित होती थी ये म सदानीरा थी। इनके किनारे प्राचीन काल में सभ्यताएँ विकसित हुई।

. बीकानेर एवं जोधपुर जिलों के क्षेत्र को महाभारत काल में जांगल देश कहा जाता था। कोटा, बूंदी एवं झालावाड़ जिलों के क्षेत्र को हाड़ौती कहा जाता है।

. जयपुर एवं भरतपुर का कुछ क्षेत्र एवं अलवर जिले का भूभाग ‘मत्स्य देश’ कहलाता था राजधानी विराटनगर (बैराठ थी।

. प्राचीन काल में चित्तौड़ का क्षेत्र शिवि जनपद के नाम से जाना जाता था. जिसकी राज मध्यमिका थी, उसे वर्तमान में ‘नगरी’ कहा जाता है।

. उदयपुर के निकटवर्ती वन्य प्रदेश, जिसमें नदियों का जाल बिछा हुआ है ‘मेवाड़ कहला जयपुर के निकटवर्ती क्षेत्र को ढूंढाड कहा जाता था।

. पुरातात्विक सामग्री को इतिहास के स्रोतों में सर्वाधिक प्रामाणिक माना जाता है। प्रागतिक राजस्थान के विषय में केवल पुरातत्व ही जानकारी उपलब्ध करवाता है।

.पुरातात्विक सामग्री में अभिलेख, मुद्राएँ, स्मारक, शैलचित्र एवं उत्खनित पुरावस्तुएँ उपकरण, आभूषण आदि) प्रमुख हैं।

. राजस्थान के प्रमुख इतिहासकार मुहणोत नैणसी जेम्स टॉड, कविराजा श्यामलदास, स मिश्रण तथा गौरीशंकर हीराचन्द ओझा है।

. उत्तरी राजस्थान के हनुमानगढ जिले में प्राचीन सरस्वती नदी के किनारे कालीबंगा हड़प्पा सभ्यता का प्रमुख स्थल है जिसके निम्नस्तरों में प्राहड़प्पा युगीन सभ्यता के भी अवशेष प्राप्त हुए हैं।

. उदयपुर जिले में, बनास नदी घाटी क्षेत्र में ताम्र युगीन सभ्यता का आहड़ एक प्रमुख स्थल है जो उदयपुर शहर के निकट स्थित है।

. जयपुर जिले का बैराठ (विराटनगर) प्राचीन काल से एक महत्वपूर्ण क्षेत्र रहा है। भौर्यकाल में सम्राट अशोक ने यहाँ अपने दो शिलालेख चट्टान पर खुदवाये थे।

. बैराठ के उत्खनन में बौद्ध स्तूप अशोक स्तंभ तथा बौद्ध विहार के ध्वंसावशेष प्राप्त हुए हैं।

.  बैराठ की गणेश दूँगरी, बीजक दूंगरी एवं भीम डूंगरी के अनेकों शैलाश्रयों में उत्तर गुप्तकालीन शंखलिपि में लिखे लेख मिले हैं। अभ्यासार्थ प्रश्न

बहुचयनात्मक प्रश्न (सही विकल्प लिखिए)

1. राजस्थान को दो भागों में विभाजित करने वाला तत्व है-

(क) नदी                            (ख) विशाल मरूस्थल

(ग) अरावली पर्वत            (घ) पठार

 

2. ‘मत्स्य- देश की राजधानी थी-

(क) नगरी         (ख) मध्यमिका

(ग) शाकम्भरी     (घ) विराटनगर

3. ‘जांगल देश कहा जाता था

(क) बीकानेर एवं जोधपुर क्षेत्र को,

(ख) उदयपुर के वन्य प्रदेश को

(ग) चम्बल नदी घाटी क्षेत्र को,

(घ) भीलवाड़ा तथा बांसवाड़ा क्षेत्र को

4. निम्नलिखित कथनों में से कौन सा कथन असत्य है?

(क) पुरातत्व, प्राचीन काल के बारे में प्रामाणिक जानकारी प्रदान करता है।

(ख) शैलचित्र पर्वतीय क्षेत्र में स्थित शैलाश्रयों में किया गया चित्रांकन है।

(ग) जेम्स टॉड ने ‘राजस्थान का इतिहास’ नामक ग्रंथ लिखा।

(घ) पृथ्वीराज रासो की रचना चन्दरबरदाई ने की।

5. राजस्थान में सबसे प्राचीन सिक्के प्राप्त हुए हैं ये कहलाते हैं-

(क) आहत मुद्राएँ

(ख) झाड़शाही

(ग) दम

(घ) इण्डोग्रीक सिक्के

अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न (दो पंक्तियों में उत्तर दीजिए)

  1. राजस्थान में विस्तृत पर्वत श्रृंखला का नाम लिखिए।
  2. भौगोलिक दृष्टि से राजस्थान के प्रमुख भागों के नाम लिखिए।
  3. राजस्थान के पश्चिमी क्षेत्र की प्रमुख नदी का नाम लिखिए।
  4. राजस्थान के उत्तरी क्षेत्र में प्रवाहित होने वाली प्राचीन नदी का नाम लिखिए।
  5. मत्स्य- देश के अन्तर्गत आने वाले भूभाग का नाम लिखिए।
  6. राजस्थान के दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र को क्या कहा जाता था ?
  7. जयपुर के निकटवर्ती क्षेत्र को क्या कहा जाता था
  8. पृथ्वीराज विजय के रचयिता का नाम लिखिए।
  9. भास्कर के रता का नाम लिखिए।
  10. महाराणा जसवन्त सिंह के दीवान द्वारा रचित कृति का नाम लिखिए।
  11. राजस्थान राज्य में हड़प्पा सभ्यता के स्थल का नाम लिखिए।
  12. आहड़ संस्कृति के क्षेत्र का नाम लिखिए।
  13. राजस्थान राज्य में मौर्य सम्राट अशोक के अभिलेख कहाँ से प्राप्त हुए हैं?
  14. मत्स्य क्षेत्र में बौद्ध धर्म से सम्बन्धित पुरावशेष किस दूंगरी से प्राप्त हुए है?
  15. मत्स्य क्षेत्र के बौद्ध केन्द्र पर आक्रमण करने वाले कौन थे?

लघुतरात्मक प्रश्न (आठ पंक्तियों में उत्तर दीजिए)

  1. राजस्थान राज्य के प्रमुख प्राकृतिक भूभागों के नाम लिखिए।
  2. पश्चिमी राजस्थान में प्रवाहित होने वाली नदियों के नाम लिखिए।
  3. मेवाड़ एवं भारवाड़ किस क्षेत्र को कहा जाता है ?
  4. संपादलक्ष क्या है ? यह किससे सम्बद्ध है?
  5. मेवाड़ के शिल्पी एवं उसके द्वारा रचित कृति का नाम लिखिए।
  6. गौरी एवं पृथ्वीराज चौहान के मध्य गुद्ध का वर्णन किस कृति में किया गया है? तथा उसके का नाम लिखिए।
  7. कान्हड़ ये प्रबंध क्या है?
  8. राजस्थान में फारसी भाषा के दो अभिलेखों का एवं उनके प्राप्ति स्थल का नाम लिखि
  9. गधिया सिक्कों की प्रमुख विशेषता लिखिए।
  10. राजस्थान में स्थित 5 महत्वपूर्ण स्मारकों का नाम लिखिए।
  11. राजपूत काल में लिखे 4 महत्वपूर्ण संस्कृत भाषा के ग्रंथों एवं उनके रचयिताओं लिखिए।
  12. ख्यात साहित्य क्या है ? किन्हीं तीन रूपात ग्रंथों का नाम लिखिए।
  13. श्यामलदास कौन थे ? इनकी रचनाओं के नाम लिखिए।
  14. गौरी शंकर हीराचन्द ओझा की रचनाओं का नाम लिखिए।
  15. कालीबंगा कहाँ स्थित है ? यह क्यों प्रसिद्ध है?
  16. आहड़ संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।

निबंधात्मक प्रश्न (तीन पृष्ठों में उत्तर दीजिए)

  1. राजस्थान के इतिहास के प्रमुख साहित्यिक स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
  2. राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों का विवरण दीजिए।
  3. राजस्थान की भौगोलिक विशिष्टताओं का उल्लेख करते हुए उनको प्राचीन काल में नामों से जाना जाता था ? विवरण दीजिए।
  4. राजस्थान के प्रमुख इतिहासकारों का नामोल्लेख करते हुए उनकी रचनाओं का दीजिए।
  5. कालीबंगा के उत्खनन से तत्कालीन मानव जीवन पर क्या प्रकाश पड़ता है? लिखिए।
  6. आहड़ सभ्यता की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए यहाँ के निवासियों के सामाजिक एवं आर्थिक जीवन का वर्णन कीजिए ।
  7. ‘बैराठ मौर्य काल में बौद्ध धर्मानुयायियों का एक प्रसिद्ध केन्द्र था? विवरण दीजिए।

उत्तरमाला (बहुचयनात्मक प्रश्न)

1. (ग)

2. (क)

3. (घ)

4. (ग)

5. (क)

Sbistudy

Recent Posts

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

4 weeks ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

4 weeks ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

1 month ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

1 month ago

चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi

chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…

1 month ago

भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi

first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…

1 month ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now