हिंदी माध्यम नोट्स
बाघ की गुफा कहां स्थित है | बाघ की गुफाएं किसने बनाया संख्या कितनी है bagh caves in hindi history
bagh caves in hindi history बाघ की गुफा कहां स्थित है | बाघ की गुफाएं किसने बनाया संख्या कितनी है ?
प्रश्न: बाघ की गुफा के चित्रों पर लेख लिखिए।
उत्तर: भारतीय चित्रों की परम्परा का प्रतिनिधित्व अजन्ता के बाद बाघ की कला में देखने को मिलता है। बाघ गुफाएं प्राचीन ग्वालियर (मध्यप्रदेश) में विन्ध्याचल पर्वत श्रेणी के निकट ही नर्मदा की सहायक नदी बाग्मती (बाघिनी) से 2-3 मील दूर ’बाघ’ नामक गांव के पास स्थित हैं।
सन् 1818 ई. में सर्वप्रथम इन गुफाओं का विवरण एवं परिचय ’लेफ्टीनेंट डेंजरफील्ड’ ने मम्बई से प्रकाशित ’साहित्यिक विनिमय संघ’ की पत्रिका के द्वितीय अंक में छपवाया था। ’परिक्सन’ ने भी इन गुफाओं के विषय में छपे लेख पर अपनी टिप्पणियाँ लिखी। सन् 1907-08 ई. में ’कर्नल सी.ई. ल्यूवर्ड’ ने इन गुफाओं को देखा और मुम्बई की ’रॉयल ऐशियाटिक सोसायटी’ की पत्रिका में सन् 1909 ई. में गवेषणात्मक निबंध लिखा।
बाघ गुफाएं महायान बौद्ध सम्प्रदाय से संबंधित हैं और बौद्ध धर्म का मुख्य केन्द्र रही हैं। ये गुफाएं बौद्ध भिक्षुओं के आवास हेतु तथा बुद्ध उपदेशों के प्रवचन, श्रवण के उद्देश्य से ही बनाई गयी थी।
बाघ की गुफाएं गुप्तकाल के श्रेष्ठतम उदाहरणों में से हैं। ये गुफाएं ’महाराज सुबन्धु’ के समय बनकर तैयार हो गई होंगी, जिसका समय चैथी-पांचवीं शताब्दी माना जा सकता है। कला मर्मज्ञ ’फर्ग्युसन’ और ’बर्गेस’ ने इसका निर्माण काल 200 ई. बताया है।
बाघ गुफाओं की कुल संख्या नौ थी, जो सभी विहार गुफाएं थी। बाघ गुफाओं में सात गुफाओं के चित्र प्रायः पूर्ण रूप से नष्ट हो चुके हैं। केवल गुफा संख्या चार व पाँच में कुछ चित्र बने हैं, वे भी अब क्षत-विक्षत अवस्था में हैं।
चैथी गुफा रंग महल (Hall of Colours) कहलाती है। यह गफा चैत्याकार है तथा पद्मासीन बुद्ध मूर्तियाँ होने के कारण लगता है कि यह चैत्य गुफा है और किसी समय चित्रों के रूप में सुसज्जित रही होगी।
पहला दृश्य ’वियोग’ का है, दूसरा दृश्य ’मंत्रणा’ का है, जिसमें चार भद्रपुरुष सुखासन मुद्रा में नीली तथा पीली गोल गद्दियों पर बैठे किसी गम्भीर वार्ता में निमग्न हैं। तीसरे दृश्य में देव पुरुषों का आकाश में विचरण है। पांचवां दृश्य ’नृत्यांगनाओं एवं वादिकाओं’ का है।
पांचवीं गुफा में अनेक चित्र हैं, जिनमें बुद्ध का सुन्दर चित्र अवशेष मात्र रह गया है। इसी प्रकार इसके अन्दर की पांचों भीतरी कोठरियां भी चित्रों से सजी हुई थी। इन चित्रों की आकृतियां, भंगिमाएं अलंकरण (जिनमें कमल की बेल, पुष्पों व पशु-पक्षियों तथा छोटे-बड़े फल भी यथा-स्थान चित्रित हैं तथा शैली अजन्ता शैली के समान है।)
बाघ गुफाओं की विशेषताएं:
(1) जीवन के विभिन्न पक्षों का चित्रण: बाघ गुफाओं में केवल बौद्ध धर्म का ही चित्रण नहीं हुआ है, अपितु नृत्य-गान, अश्वारोहण, गजारोहण आदि के अलावा स्त्रियों की विभिन्न अवस्थाओं, जिनमें प्रेम, विरह आदि का भी बखूबी अंकन हुआ है।
(2) प्रकति का अंकन: बाघ गुफाओं में प्रकृति का अंकन बड़ा ही अद्भुत एवं उल्लेखनीय है। लता-बन्धों, लताओं का झकाव सन्दर ढंग से किया गया है। साथ ही बीच-बीच में पक्षियों को विविध रूप में अत्यन्त रोचक ढंग से चित्रित किया है।
निंबधात्मक प्रश्न
प्रश्न: अजन्ता चित्रों की विशेषताएं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: अजंता चित्रों की विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
रेखाओं का असाधारण प्रभुत्व: अजन्ता का चितेरा रेखीय अंकन की निपुणता के बल पर ही नग्न आकृतियों को सौम्य और सैद्धांतिक रूप में प्रस्तुत कर सका।
नारी चित्रण में चरम उपलब्धि: नारी चित्रण अजन्ता की चरम उपलब्धि है।
विषय वैविध्यः भगवान बुद्ध, बोधिसत्व आदि से अजन्ता की भित्तियां सजी हुई हैं। वहीं तत्कालीन, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक परिस्थितियों का प्रदर्शन करती विविध घटनाएं, अन्जता की भित्ति का अलग रूप प्रदर्शित करती हैं।
रंग विधान: अजन्ता के भित्तिचित्रों में प्लास्टर पर टेम्परा पद्धति (अर्थात् गीले प्लास्टर पर कार्य न करके सूखने पर किया गया है) से चित्रण किया हुआ मिलता है।
भवन: अजन्ता के चित्रों में गुप्ताकलीन भवन तथा वास्तु का प्रयोग है।
केश विन्यास: सुन्दर केशों के अलावा क्रूर, धूल-धूसरित या राक्षसों के बाल दर्शाने में भी चित्रकार पीछे नहीं हैं।
आलेखन: अजन्ता को यदि ’आलेखनों की खान’ कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
परिप्रेक्ष्य: अजन्ता के चित्रकारों ने भावना और कल्पना के महत्व को स्थापित करने के लिये मानसिक परिप्रेक्ष्य को ही उपयुक्त समझा।
मुकुट, आभूषण तथा वस्त्र: अजन्ता के चित्रों में मुकुटों, आभूषणों तथा वस्त्रों को भी सुन्दरता से अंकित किया गया है।
स्त्रियों का स्थान: अजन्ता के चित्रों में नारी लज्जा, ममता, वात्सल्य व विनय के प्रतीक स्वरूप चित्रित हुई हैं।
हस्त मुद्राएं, अंग एवं भाव-भंगिमाएं: अजन्ता के चित्रों में विभिन्न हस्त मुद्राओं, अंग एवं भाव-भंगिमाओं की अद्भुत छटा देखने को मिलती है।
आकृतियों की विभिन्न भाव-भंगिमाएं प्रदर्शित करते समय चित्रकार ने मांसपेशियों तथा अस्थिपंजरों का विशेष ध्यान रेखा है, क्योंकि किसी भी आकृति में उसकी शारीरिक रचना में विकृति नहीं दिखाई देती। भय, शांति, श्रृंगार, हर्ष, रौद्र तथा वीर आदि भावों को चित्रकार ने चित्र आकृतियों की मुखाकृति पर विधिवत् दर्शाया है।
प्रश्न: गप्तकालीन चित्रकला के सर्वोत्तम नमूने अजंता और बाघ की गुफा चित्रकला में मिलते है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: गुप्तयुग में चित्रकला में चित्रकला अपनी पूर्णता को प्राप्त हो चुकी थी। प्रारंभिक चित्र प्रागैतिहासिक युग की पर्वत गुफाओं की दीवारों प्राप्त होते हैं। कछ गुहा-मंदिरों की दीवारों पर भी चित्रकारियाँ मिलती हैं। गुप्तकाल के चित्रों के अवशेषों को बाघ की गुफाओं, अजन्ता की गुफाओं तथा बादामी की गुफाओं में देखा जा सकता है। अजन्ता के चित्र मुख्यतः धार्मिक विषयों पर आधारित है जबकि बाघ के चित्र मनुष्य के लौकिक जीवन से लिए गये हैं।
अजन्ता की चित्रकला: इस युग की चित्रकला के इतिहास-प्रसिद्ध उदाहरण आधुनिक महाराष्ट्र प्रांत के औरंगाबाद जिले में स्थित अजन्ता तथा मध्यप्रदेश के ग्वालियर के समीप स्थित बाघ नामक पर्वत गुफाओं से प्राप्त होते हैं। इनमें भी अजन्ता की गुफाओं के चित्र समस्त विश्व में प्रसिद्ध है। यहां चट्टान को काटकर उन्तीस गुफायें बनायी गयी थी। इनमें चार चैत्यगृह तथा शेष विहार गुफाये थीं। 1819 ई. में मद्रास सेना के कुछ यूरोपीय सैनिकों ने इन गुफाओं की अचानक खोज की थी। 1824 ई. में जनरल सर जेम्स अलेक्जेन्डर ने रायल एशियाटिक सोसायटी की पत्रिका में प्रथम बार इनका विवरण प्रकाशित कर संसार को अजन्ता के दुर्लभ चित्रों की जानकारी दी।
अजन्ता में पहले 29 गुफाओं में चित्र बने थे परन्तु अब कवल छः गुफाओं (1-2, 9-10 तथा 16-17) के चित्र अवशिष्ट हैं। इनका समय अलग-अलग है। नवीं-दशवीं गुफाओं के चित्र प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व के हैं तथा दसवीं गुफा के स्तम्भों पर अंकित चित्र एवं सोलहवीं-सत्रहवीं गुफाओं के भित्ति चित्र गुप्तकालीन हैं। इस प्रकार अजंता चित्रकला के लक्षण शुंग, वाकाटक और गुप्तकाल में दिखाई देते हैं। अजंता की गुफा 16,17 में गुप्तकालीन चित्रकला के सर्वोत्कृष्ट चित्र मिलते हैं।
दृश्यों को अलग-अलग विन्यास में नहीं विभाजित किया गया है। यह चित्र अधिकतर जातक कथाओं को दर्शाते हैं। इन चित्रों में कहीं-कहीं गैर-भारतीय मूल के मानव चरित्र दर्शाए गए हैं।
अजन्ता के चित्रों के तीन प्रमुख विषय है – अलंकरण, चित्रण और वर्णन। विविध फूल-पत्तियों, वृक्षों तथा पशु-आकतियों से अलंकरण का काम लिया गया है। अनेक बुद्धों एवं बोधिसत्वों का चित्रण हआ है जबकि जातक ग्रंथों से ली गयी कथायें वर्णनात्मक दृश्यों के रूप में उत्कीर्ण हई है। अजंता चित्रकला में गुहा भित्तियों पर दो पर्तो में पलस्तर करके चित्र बनाए गए हैं। अजन्ता में फ्रेस्को तथा टेम्पेरा दोनों ही विधियों से चित्र बनाये जाते थे तथा रंग के साथ अंडे की सफेदी एवं चूना मिलाया जाता था। शंखचूर्ण, शिलाचूर्ण, सिता मिश्री, गोबर, सफेद मिट्टी, चोक आदि को फेटकर गाढ़ा लेप तैयार किया जाता था। चित्र बनाने के पूर्व दीवार को भली-भांति रगड़कर साफ करते थे तथा फिर उसके ऊपर लेप चढ़ाया जाता था। चित्र का खाका बनाने के लिए लाल खड़िया का प्रयोग होता था। रंगों में लाल, पीला, नीला, काला तथा सफेद रंग प्रयोग में लाये जाते थे। इसकी अलंकृत परिकल्पनाओं में पद्धतियां, नक्काशी, पेड़-पौधे, लहरदार रेखाएं तथा संवेदनशील रंग शामिल हैं। परिदृश्य से रहित होकर इसमें गहराई का भ्रम पैदा करने के लिए पृष्ठभूमि की आकृति को आगे की आकृति से थोड़ा ऊँचा बनाया जाता था। अजन्ता शैली एशियाई चित्रकला एवं भित्तिचित्रों के लिए मूल स्त्रोत बन गयी (जैसे – सीरिया, श्रीलंका, बामिंयान, अफगानिस्तान, चीन, कोरिया एवं जापान।)
16वीं गुफा: अजंता की 16वीं गुहा को उत्खनित करने का श्रेय वराहदेव को है। अजन्ता की 16वीं गुफा के चित्रों में ’मरणासन्न राजकुमारी’ नामक चित्र सर्वाधिक सुन्दर एवं आकर्षक है। यह पति के विरह में मरती हुई राजकुमारी का चित्र है। उसके चारों ओर परिवारजन शोकाकुल अवस्था में खड़े हैं। विद्वानों ने इसकी पहचान बुद्ध के सौतेले भाई नन्द की पत्नी सुन्दरी से की है। ग्रिफिथ, बर्गेस तथा फग्र्गुसन जैसे कलाविदों ने इस चित्र की मुक्तकण्ठ से प्रशंसा की है। इसी गुफा में ’बुद्ध के महाभिनिष्क्रमण’ का चित्रांकन है जिसमें वे अपनी पत्नी, पुत्र तथा परिचायिकाओं को छोड़कर जाते हुए दिखाये गये हैं। इसके अलावा अंधेतपस्वी माता-पिता का चित्र भी आकर्षक है।
17वीं गुफा: सत्रहवीं गुफा को ’चित्रशाला’ कहा गया है। ये अधिकतर बुद्ध के जन्म, जीवन, महाभिष्क्रिमण तथा महापरिनिर्वाण की घटनाओं से संबंधित हैं। समस्त चित्रों में ’माता और शिशु’ नामक चित्र आकर्षक है जिसमें संभवतः बुद्ध की पत्नी अपने पुत्र को उन्हें समर्पित कर रही है। हैवेल महोदय ने तो इस चित्र को जावा के बोराबुदुर से प्राप्त कला की समकक्षता में रखना पसन्द किया है। इसमें महाभिनिष्क्रमण का एक चित्र अत्यन्त सजीवता के साथ उत्कीर्ण किया गया है। इसमें युवक सिद्धार्थ के सिर पर मुकुट है तथा शरीर सुडौल है। आँखों से अहिंसा, शांति एवं वैराग्य टपक रहा है। एक अन्य चित्र में कोई सम्राट एक सुनहले हंस से यात्रा करते हुए बातें करता हुआ चित्रित किया गया है। निवेदिता के विचार में इस चित्र से बढ़कर विश्व में कोई दूसरा चित्र नहीं हो सकता। एक चित्र में स्वर्ग में बुद्ध का स्वागत करने के लिए इन्द्र की उड़ान दिखाई गई है। इसी गुफा में आकाश में विचरण करते हुए गन्धर्वराज को अप्सराओं तथा परिचारकों के साथ चित्रित किया गया है। अन्य चित्रों में काले मृग, हाथी एवं सिंह के शिकार के दृश्यों का अंकन अत्यधिक कुशलता के साथ किया गया है। अजन्ता की गुफाओं में जातक कथाओं से लिये गये दृश्यों का भी बहुविध अंकन प्राप्त होता है। जातक कथायें सबसे अधिक सत्रहवीं गुफा में चित्रित की गयी हैं।
राथोन्स्टाइन ने लिखा है- ’इन चट्टानों से कटे मंदिरों की सैकड़ों दीवारों और स्तम्भों पर एक विशाल नाटक देखते हैं, जिसे राजकुमारों, ऋषियों और नायकों तथा प्रत्येक स्थिति के पुरुषों तथा स्त्रियों ने अलौकिक विभिन्न पृष्ठभूमि में खेला। जंगलों तथा उद्यानों, दरबारों तथा नगरों के चैड़े मैदानों तथा घने वनों में उन्हें विभिन्न कार्यों में व्यस्त दिखाया गया है और उनके ऊपर देवगण आकाश में विचरण कर रहे हैं। इस सबसे एक अवर्णनीय आनंद उत्पन्न होता है जो प्रकृति के सौन्दर्य, पुरुषों तथा स्त्रियों की शारीरिक श्रेष्ठता, पशुओं के बल तथा लावण्य और पक्षियों तथा फूलों की सुन्दरता तथा पवित्रता से प्रस्फुटित होता है। संसार के पदार्थों की इस सुन्दर रचना में हम संसार की आध्यात्मिक शक्तियों का क्रम-बद्ध चित्र देखते हैं।‘‘
‘‘करुणा और विचारों की दृष्टि से और अपनी कथा कहने के ठीक ढंग की दृष्टि से, मेरे विचार में कला के इतिहास में इससे अधिक श्रेष्ठ चित्र बनाना सम्भव नहीं है। फ्लोरेन्स का कलाकार अधिक अच्छी रूप-रेखा बना लेता और वेनिस का कलाकार अधिक अच्छे रंग लगा सकता, किन्तु उनमें से एक भी इससे अच्छी प्रकृति के सौन्दर्य प्रस्तुत न कर सकता।‘‘
श्रीमती हैरिंघम के अनुसार ये चित्र प्रकाश और छाया के क्रम पर बनाए गए हैं जिनकी तुलना इटली में सत्रहवीं शताब्दी से पहले नहीं की जा सकती।
अन्य गुफाओं की चित्र: नवी-दसवीं गुफाओं में चित्र सबसे प्राचीन हैं और उनका समय लगभग प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व निर्धारित किया जाता है। इनमें एक राजकीय जुलूस का चित्र अति प्रसिद्ध है। इसमें राजा, रानी तथा बहुत से स्त्री-पुरुषों को सुसज्जित वेश-भूषा में चलते हुए दिखाया गया है। इस चित्र का अलंकरण अत्यन्त विस्तृत है। पहली-दूसरी गुफाओं के चित्रों में सबसे सुन्दर चित्र फारस देश के राजदूत का है जो चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय के दरबार में आया था। इसमें संभवतः पुलकेशिन् दूत का स्वागत करते हुये दिखाया गया है। पहली गुफा की ही एक भित्ति पर 12 फुट ऊँचा तथा 8 फुट लम्बा ’बुद्ध का मार (कामदेव) विजय’ का चित्र उत्कीर्ण मिलता है। बुद्ध तपस्या में लीन हैं जिन्हें कामदेव कई कन्याओं के साथ रिझाने का प्रयास कर रहा है। इसी गुफा में एक मधुपायी दम्पत्ति का चित्रण है जिसमें प्रेमी अपने हाथ से प्रेमिका को मधुपात्र देते हुए दिखाया गया है। इस प्रकार समग्र रूप में अजन्ता की चित्रकला बड़ी प्रशंसनीय है।
बाघ की चित्रकला: बाघ की गुफायें विन्ध्य पहाड़ियों को काटकर बनायी गयी हैं। सर्वप्रथम 1818 ईस्वी में इनका पता डेंजन फील्ड ने लगाया था। इन गुफाओं की संख्या नौ है जिनमें चैथी-पांचवीं गुफाओं के भित्ति-चित्र सबसे अधिक सुरक्षित अवस्था में है। मालवा की बाघ गुफाएं भी अजन्ता की गुफाओं की कोटि की हैं। नमूनों की विभिन्नता वहां विद्यमान हैं कला-कौशल में वे सजीव हैं। उनमें से अधिकांश चित्र धर्म-निरपेक्ष हैं। यहाँ पर धार्मिक चित्रांकनों के स्थान पर लौकिक एवं बौद्धिक विषयों का चित्रांकन जैसे केश-विन्यास, वेश-भूषा, श्रृंगार, नृत्य, संगीत आदि का हुआ है। गायन तथा नृत्य को स्वच्छन्दता से प्रयक्त किया गया है। इन चित्रों में एक संगीतयुक्त नृत्य के अभिनय का दृश्य अत्यन्त आकर्षक है जिसमें स्त्रियों और पुरुषों को अलंकृत वेश-भूषा में बाजों के साथ स्वच्छन्दतापूर्वक नृत्य करते हुए दिखाया गया है। इन चित्रों के अध्ययन से तत्कालीन मध्यभारत के सामान्य जन-जीवन का अन्दाजा लगाया जा सकता है। मार्शल के शब्दों में – ‘‘बाघ के चित्र जीवन की दैनिक घटनाओं से लिये गये हैं। परन्तु वे जीवन की सच्ची घटनाओं को ही चित्रित नहीं करते वरन् उन अव्यक्त भावों को स्पष्ट कर देते हैं जिनको प्रकट करना उच्च कला का लक्ष्य है।‘‘
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…