बादामी की स्थापना किसने की और कब की क्या है , badami was the capital of which kingdom in hindi
badami was the capital of which kingdom in hindi बादामी की स्थापना किसने की और कब की क्या है ?
बादामी (15°55‘ उत्तर, 75°40‘ पूर्व)
बादामी, जिसे वातापी के नाम से भी जाना जाता है, 543-757 ई. तक चालुक्यों की राजधानी रहा। वर्तमान समय में यह कर्नाटक के बीजापर राज्य में स्थित है।
ऐसी मान्यता है कि बादामी की स्थापना प्रसिद्ध चालुक्य शासक पुलकेशियन प्रथम ने की थी। कालांतर में उसके उत्तराधिकारियों ने इस नगर को प्रसिद्ध सांस्कृतिक नगर के रूप में विकसित किया। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने सातवीं शताब्दी में यहां की यात्रा की थी एवं इसका उल्लेख एक फलते-फूलते नगर के रूप में किया था। पल्लव शासक नरसिंहवर्मन प्रथम ने बादामी पर आक्रमण कर पुलकेशियन द्वितीय को परास्त कर दिया तथा बादामी को तहस-नहस कर दिया। इस विजय के उपरांत नरसिंहवर्मन ने ‘वातापी कोण्डा‘ (वातापी का विजेता) की उपाधि धारण की।
इस नगर में एक ब्राह्मण गुफा, एक जैन मंदिर एवं एक बौद्ध गुफा पाई गई है। बादामी की ब्राह्मण गुफा, पत्थर को काटकर बनाई गई दक्षिण भारत की पहली गुफा है तथा इसकी प्राचीनता उदयगिरी की गुफाओं से भी अधिक है। इन गुफाओं में एक साम्यता दृष्टिगोचर होती है, तथा जिसमें एक खुला आंगन, स्तंभयुक्त बरामदा तथा कालमयुक्त बड़ा कमरा (हाल) है। बादामी की गुफाओं के भित्ति चित्र काफी हद तक अजन्ता की गुफाओं से समानता रखते हैं।
सातवीं शताब्दी में निर्मित मेलेगती शिवालय मंदिर, प्रारंभिक दक्षिण भारतीय मंदिर शैली का एक अच्छा उदाहरण है। इसमें एक छोटा छज्जा, एक मंडप एवं एक संकरा विमान है, जो कि पश्चिमी चालुक्य स्थापत्य कला का एक विशिष्ट लक्षण है।
बादामी पर कई शक्तिशाली राजवंशों ने शासन किया, जैसे-राष्ट्रकूट, यादव, विजय नगर एवं मराठा। 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में यह ब्रिटिश साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया गया।
बदायूं (28° उत्तर, 78° पूर्व)
दिल्ली सल्तनत के समय बदायूं एक प्रांत या इक्ता था। सुल्तान बनने से पहले इल्तुतमिश बदायूं का ही इक्तादार था। इसके पश्चात बदायूं का इक्ता एक महत्वपूर्ण इक्ता बन गया। अलाउद्दीन खिलजी ने यहीं पर व्यापारियों से अपनी फसल लाने का आदेश दिया था, जिससे बाजार के नियमों को लागू किया जा सके और बड़ी सेना के रख-रखाव हेतु सस्ती कीमत पर अनाज राजधानी को दिया जा सके।
मुगल काल के प्रारंभ में रुहेलखण्ड की राजधानी बदायूं से बरेली स्थानांतरित कर दी गई। उसके बाद ही रामपुर का महत्व बढ़ने लगा।
अकबर के दरबार का प्रमुख मुस्लिम लेखक अब्दुल कादिर बदायूंनी यहीं जन्मा था। इसने मुन्तखाब-अल-तवारीख नामक ग्रंथ की रचना की, जिससे अकबर के शासन काल की महत्वपूर्ण घटनाओं की जानकारी प्राप्त होती है।
बाद के वर्षों में भी बदायूं प्रमुख गतिविधियों का केंद्र बिन्दु बना रहा। आगे चलकर यह अवध के राज्य का हिस्सा बन गया फिर अंततः इसे अंग्रेजों ने हस्तगत कर लिया।
वर्तमान में बदायूं उत्तर प्रदेश का एक जिला है।
बद्रीनाथ (30.74° उत्तर, 79.49° पूर्व)
बद्रीनाथ, अलकनंदा नदी के दाहिने तट पर स्थित है तथा वर्तमान समय में यह उत्तराखण्ड राज्य में स्थित है। साधु-संतों एवं तपस्वियों के प्रमुख स्थल के रूप में बद्रीनाथ हिन्दुओं के चार धामों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि मोक्ष प्राप्त करने के लिए हिन्दुओं को इन चारों धामों की यात्रा अवश्य करनी चाहिए।
मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान विष्णु नारायण के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुए तब बद्रीनाथ ही उनका निवास स्थान था। इसे ‘तपोभूमि‘ के नाम से भी जाना जाता है। तपोभूमि का अर्थ है-वह स्थान जहां ध्यान एवं तप किया जा सके। इसका एक अन्य नाम है- ‘भू-बैकुंठ अर्थात पृथ्वी पर स्वर्ग। यह नर तथा नारायण नामक दो पर्वतश्रेणियों से घिरा है तथा पृष्ठभूमि में भव्य नीलकंठ शिखर दिखाई देता है। बद्रीनाथ मंदिर के सामने एक गर्म पानी का झरना भी है जिसे तप्त कुंड कहा जाता है। नारदकुंड तथा सूर्यकुंड यहां पाए जाने वाले अन्य झरने हैं।
बद्रीनाथ, पंचबद्रियों में से एक है तथा इसे विशाल बद्री भी कहा जाता है। मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार 15 मी. ऊंचा है तथा एक प्रमुख आकर्षण है। मंदिर प्रांगण में 15 मूर्तियां हैं। काले पत्थर पर बारीकी से तराशी गई बद्रीनाथ की एक मीटर ऊंची मर्ति भी है। इसमें विष्णु भगवान को ध्यान मुद्रा में दर्शाया गया है। यह मंदिर अक्टूबर से अप्रैल माह के बीच अत्यधिक सर्दी के कारण बंद रहता है। बद्रीनाथ में आदि शंकराचार्य ने 9वीं शताब्दी में एक मठ की स्थापना की थी, जिसे ज्योर्तिमठ कहा जाता है।
बाघ (22.37° उत्तर, 74.77° पूर्व)
बाघ, अजंता के उत्तर-पश्चिम में मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित है। यह नर्मदा की सहायक नदी बाघ के किनारे स्थित है। यह स्थल बौद्धकालीन गुफाओं के लिए प्रसिद्ध है, जिनका उपयोग विहारों के रूप में किया जाता था। स्थापत्यकला, भूमिकला एवं चित्रकला की शैली के आधार पर इन गफाओं का समय 500 से 600 ई. के मध्य निर्धारित किया जाता है। यद्यपि योजना एवं विन्यास में ये गुफाएं, अजंता की गुफाओं से घनिष्ठता से संबंधित हैं। किंतु इनमें कुछ आधारभूत भिन्नताएं भी हैं। उदाहरणार्थ-बाघ की गुफाओं में स्तूप प्रमुख हैं, जबकि अजंता की गुफाओं की मूल विषय-वस्तु बुद्ध हैं। इसके अतिरिक्त सामान्य स्तंभों की दृष्टि से बाघ की गुफाओं में कमरों में केंद्र में चार स्तंभों की व्यवस्था है, जो छत को अतिरिक्त सहारा प्रदान करते हैं।
बाघ में कुल नौ गुफाएं हैं किंतु दूसरी एवं छठवीं गुफा ही संरक्षित अवस्था में हैं। इन गुफाओं में सबसे महत्वपूर्ण चैथी गुफा है, जिसे रंगमहल के नाम से जाना जाता है। इस गुफा की दीवारों पर अत्यंत सुंदर चित्रकारी की गई है, जिसका मूल विषय बौद्ध एवं जातक कथाएं हैं। ये चित्र यद्यपि सदियों पुराने हैं किंतु अपनी प्रकृति में ये अत्यधिक धर्मनिरपेक्ष हैं। इन चित्रों से तत्कालीन लोगों की जीवन शैली पर भी प्रकाश पड़ता है।
बागोर (25°22‘ उत्तर, 74°23‘ पूर्व)
बागोर राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में कोठारी नदी पर स्थित उत्तर मध्यपाषाणकालीन (पूर्व-हड़प्पा) पुरातात्विक स्थल है। 1960 और 1970 के दशक में बागोर की खुदाई हुई थी तथा यहां 5000 से 3000 ई.पू. के खानाबदोश चरवाहों द्वारा भेड़, मवेशी तथा बकरियों के पालतू बनाने के प्रमाण मिले थे।
वैराट/बिराट/बैराट (27.45° उत्तर, 76.18° पूर्व) वैराट, जयपुर के निकट राजस्थान में स्थित है। यहां से एक धार्मिक अवशेष पाया गया है, जिसे भारत के प्राचीनतम धार्मिक अवशेषों में से एक माना जाता है। इस संरचना का निर्माण ईंटों एवं काष्ठ से किया गया था। यद्यपि इसकी काष्ठ का अधिकांश हिस्सा नष्ट हो चुका है किंतु उसके कुछ अवशेष अभी भी देखे जा सकते हैं। ये अवशेष एक बड़े कक्ष में हैं। संभवतः इस कक्ष में तीसरी शताब्दी ई.पू. का एक बौद्ध स्तूप था।
वैराट को विराटनगर के नाम से भी जाना जाता है, जो मत्स्य महाजनपद की राजधानी था। यह इंद्रप्रस्थ के दक्षिण या दक्षिण पश्चिम में तथा सुरसेना के दक्षिण में स्थित था। क्योंकि यह मत्स्य के राजा की राजधानी विराटा थी, इसलिए यह वैराटनगर कहलाता था। विराटनगर वर्तमान समय में, जयपुर की एक तहसील का मुख्यालय है। विराटनगर चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा हआ है, जो तांबे की खानों के लिए प्रसिद्ध हैं। यह अशोक के रूपनाथ तथा साताराम के बैराट संस्करण के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां एक जैन मंदिर भी पाया गया है।
महाभारत के अनुसार पांडवों ने अपने निर्वासन का एक वर्ष यहां व्यतीत किया था। कीचक वध नामक प्रसिद्ध कथा इसी स्थान से संबंधित है।
वैराट पुरातात्विक दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण स्थल है। यहां के पुरातात्विक उत्खनन से मौर्यकालीन अवशेष प्राप्त किए गए हैं। यहां से प्राप्त निर्माण अवशेषों की एक महत्वपूर्ण एवं रोचक विशेषता उनका पकी ईंटों से निर्मित होना है, जबकि इस स्थान में प्रस्तर की बहुतायत है।
यहां से प्राप्त पुरातात्विक महत्व की वस्तुओं में सर्वाधिक उल्लेखनीय अशोक का एक लघु शिलालेख एवं अशोक निर्मित एक बौद्ध मठ है। इस अभिलेख में अशोक बौद्ध, धम्म एवं संघ के प्रति आदर प्रकट करता है तथा उसका बौद्ध होना सुनिश्चित होता है। इसके अतिरिक्त यहां से कई आहत सिक्के प्राप्त किए गए हैं, ये चांदी के हैं। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व का एक भाण्ड एवं प्रथम सदी ईस्वी का सूती कपड़े का एक टुकड़ा भी मिला है।
इस प्रकार बैराट एक धार्मिक महत्व का नगर था तथा विशाल जनसंख्या युक्त इस क्षेत्र का प्रमुख स्थल था।
बालासोर (21.49° उत्तर, 86.93° पूर्व)
बालासोर, वर्तमान समय में उड़ीसा का एक जिला है। मध्यकाल में यह प्रमुख व्यापारिक पत्तन था तथा बरहाबालंग नदी से संबंधित था। यह नदी यहां से 11 किमी. चलकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
इस नगर के कुछ भाग पर फ्रांसीसियों एवं डचों ने अधिकार कर लिया तथा इसका नाम फरासिडिंगा एवं डीनामारडिंगा रख दिया। फ्रांसीसी तथा डचों दोनों ने यहां अपनी व्यापारिक फैक्ट्रियां स्थापित की तथा यहां से अपनी महत्वपूर्ण व्यापारिक गतिविधियां संपन्न की। बाद में यह नगर अंग्रेजों के प्रभाव में आ गया।
महादेव बाणेश्वर का मंदिर बालसोर का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है।
बामियान (34°49‘ उत्तर, 67°49‘ पूर्व) बामियान, अफगानिस्तान में हिन्दूकुश पहाड़ियों की तलहटी में स्थित है। उत्तर तथा उत्तर-पश्चिमी भारत एवं बल्ख (बैक्ट्रिया) के व्यापारिक मार्ग में यह एक महत्वपूर्ण पड़ाव था तथा चीन एवं पश्चिमी विश्व के प्रसिद्ध रेशम मार्ग से जुड़ा हुआ था।
कुषाणकाल में, यह बौद्ध धर्म के एक प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित हुआ। गांधार कला शैली के अनेक नमूने यहां से प्राप्त किए गए हैं। यहां कई प्राकृतिक एवं मानवनिर्मित गुफाएं हैं, जिसका उपयोग बौद्ध भिक्षु निवास स्थान के रूप में करते थे। ईसा की प्रारंभिक शताब्दी में यहां हिन्दूकुश पर्वत की चट्टानों को तराश कर बुद्ध की एक विशाल प्रतिमा का निर्माण किया गया था। यह बुद्ध की सबसे बड़ी प्रतिमा थी। सातवीं शताब्दी तक यहां बौद्ध धर्म अच्छी तरह फलता-फूलता रहा।
हाल के वर्षों में यह क्षेत्र उस समय सुर्खिों में आया था, जब अफगानिस्तान के तालिबान शासकों ने इन सभी बौद्ध प्रतिमाओं को, जिनमें बुद्ध की सबसे बड़ी मूर्ति भी शामिल थी, बम विस्फोट से नष्ट कर दिया। तालिबान का शासन समाप्त होने के उपरांत, देश के नए राष्ट्रपति हामिद करजाई ने इन बौद्ध प्रतिमाओं को पुनः स्थापित करने की घोषणा की है।
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