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बादामी की गुफा कहां स्थित है | बादामी गुफा की खोज किसने की कहाँ अवस्थित है * badami caves in hindi

badami caves in hindi build by whom ? बादामी की गुफा कहां स्थित है | बादामी गुफा की खोज किसने की कहाँ अवस्थित है * ?

प्रश्न: बादामी की गुफाएं (पूर्व मध्यकाल)
उत्तर: बादामी की गुफाएं ’बीजापुर जिले’ के अंतर्गत ’आइहोल’ के निकट ’महाराष्ट्र प्रांत’ में स्थित हैं। आज ’वात्यपिपुरम’ (Vatapipuram) नामक स्थान का आधुनिक नाम ’बादामी’ है।
कीर्तिवर्मन के मरणोपरांत उसका छोटा भाई ‘मंगलेश’ चालुक्य साम्राज्य का शासक बना और उसने ’वात्यपिपुरम’ को अपनी राजधानी बनाया। कलाओं का महान संरक्षक होने की वजह से उसके राज्य काल में महाबलीपुरम, कांचीपुरम तथा बादामी की चैथी गुफा बनकर तैयार हुई। यह गुफा चित्रकारी, वास्तु एवं शिल्पसज्जा (मुख्य मंडप) की दृष्टि से श्रेष्ठ मानी जाती है।
इस गुफा में ’मंगलेश’ के शासन काल के बारहवें वर्ष का लेख प्राप्त हुआ है, जिसका समय 579 ई. है। बादामी चित्रों की खोज का श्रेय ’डॉ. स्टेला क्रेमरिश’ को है। चालुक्यों द्वारा बादामी में चार गुफा मंदिर निर्मित हैं, जिनमें एक जैन धर्म से और तीन ब्राह्मण धर्म से संबंधित हैं। इस प्रकार ब्राह्मण धर्म से संबंधित चित्रों में अब तक के ज्ञात उदाहरणों में से ये सबसे प्राचीनतम् भित्ति चित्र हैं। इनकी शैली अजन्ता शैली जैसी है।
प्रश्न: बादामी गुफा के चित्र
उत्तर: प्रथम विशाल पैनल में महल का दृश्य अंकित है, जिसमें केन्द्र में प्रदर्शित सिंहासनारूढ़ राजा-रानी संगीत-नृत्य का आनन्द ले रहे हैं। बायीं ओर ’इन्द्र सभा’ का चित्रण है।
दूसरे पैनल में सिंहासन पर एक राजा किंचित विश्राम की स्थिति में लीलासन की मुद्रा में है। गुफा के निकट ही ’वराह की प्रतिमा’ है। बादामी गुफा के अन्य पैनलों में जो खण्डित चित्र बचे हैं, उनमें ’आकाशधारी विद्याधर’ विशेष उल्लेखनीय है। एक स्थान पर खम्भे के सहारे खड़ी एक ’विरहिणी रमणी’ की आकृति भी अंकित है, जो किसी की स्मृति में लीन है। शिव-पार्वती के अनेक प्रसंग भी यहां चित्रित हैं।
अजन्ता की ही भांति लौकिकता के पीछे आध्यात्मिकता और बौद्धिक तटस्थता के दर्शन बादामी में भी होते हैं, किन्तु चित्र उत्कृष्टता और मृदुता की दृष्टि से उस स्तर के नहीं पाये गए हैं।
कला इतिहासकार ’पर्सी ब्राउन’ ने बादामी गुफाओं के विषय में लिखा है कि ’बादामी गुफाओं के भीतर आकार, उनके – वैभव को देखकर, मनुष्य सचमुच चकित हुये बिना नहीं रहता।’’

उत्तरप्रदेश के प्रमुख क्षेत्र
मिर्जापुर
मिर्जापुर जिले (उत्तर प्रदेश) में विन्ध्याचल पर्वत की कैमूर श्रृंखलाओं के अन्दर सोन नदी की घाटी में एक सौ से अधिक चित्रित गुफाएं तथा शिलाश्रय प्राप्त हुये हैं। कोहवर, विजयगढ़, सौहरीरोप, सोरहोघाट, भल्डारिया, लिखुनियों, कंडाकोट, घोड़मंगर, खोडहवा आदि स्थान हैं, जहां गुफाओं की छतों व दीवारों पर 5,000 ई.पूर्व के चित्र उत्कीर्ण हैं।
मानिकपुर
यह स्थान बान्दा जिले के अंतर्गत आता है। यहां ’सरहाट’, ’कर्परिया’ एवं ’करियाकुंड’ आदि स्थानों पर मिले प्रागैतिहासिक चित्र महत्वपूर्ण हैं।
प्रागैतिहासिक चित्रों का उद्देश्य एवं प्रेरणा
गुहावासी मानव आखेट करने से पूर्व आदिम पशु का चित्र बनाकर कुछ जादू-टोना, टोटका आदि करके अपने आखेट की सफलता पर विश्वास करता था। उसका विश्वास था कि जिस पशु को वह चित्र रूप में अंकित करता है, वह उसके वश में सहजता एवं सरलता से आ जाता है।
प्रश्न: हड़प्पाकालीन चित्रकला पर एक लेख लिखिए।
उत्तर: हडप्पा, मोहनजोदड़ो तथा लोथल की चित्रकारी का अनमान मिट्टी के बर्तन, भांडों पर बने असंख्य अलंकरणों से लगाया जा सकता है। आखेटीय जीवन को काले व गेरू रंग से उतारा गया है। यहां आकृति के रेखीय प्रभाव को उतारने का अविश्वसनीय दक्षता प्रदर्शित की है। सम्भवतः दो-तीन रेखाओं में मानवाकृतियों का निर्माण किया गया है। कभी-कभी चैखुटे धड़ से मनुष्य आकृति बनाई गई है, जिसमें कभी तिरछी और कभी पड़ी रेखाएं भर दी गई है। चित्रों में रेखा या सीमा रेखा की प्रधानता है, इस कारण इनको रेखा-चित्र मानना संगत है। रूप की सृष्टि के लिये मोटाई व छाया हेतु लहरदार रेखाओं का यत्र-तत्र प्रयोग किया गया है।
प्रश्न: मौर्यकालीन भित्ति चित्रकला के रूप में ’जोगीमारा गुफा’ की चित्रकला का वर्णन कीजिए।
उत्तर: जोगीमारा की गुफा ’मध्यप्रदेश’ की ’भूतपूर्व सरगुजा रियासत’ (जिसे 10वीं शताब्दी में ’डंगारे’ तथा रामायण काल में ’झारखंड’ कहा जाता था) के अमरनाथ नामक स्थान पर नर्मदा नदी के उद्गम स्थल ’रामगढ की पहाडियों’ पर स्थित है। यहां पर दो गुफाएं पास-पास हैं। एक गुफा ’सीता बोंगरा’ या ’सीता लांगड़ा’ नाम की है, जो एक प्रेक्षागार (नाट्यशाला) थी। इसी के निकट दूसरी गुफा ’जोगीमारा’ की है। वरुण देवता की सेवा में ’सुतनुका नामक देवदासी’ रहती थी। यह देवदासी रंगशाला के रूपदक्ष देवदीन पर प्रेमासक्त थी। रूपदक्ष देवदीन ने इस प्रेमप्रसंग को सीता बोंगरा की भित्ति पर अभिलेख के रूप में सदैव के लिये अंकित कर दिया। इन दोनों गुफाओं में भित्ति चित्रों के प्राचीनतम अवशेष देखे जा सकते हैं।
प्रश्न: भारत में बौद्ध चित्रकला ग्रंथ
उत्तर: ’डॉ. मोती चन्द्र’ के अनुसार 9वीं से 12वीं शताब्दी तक की बौद्ध चित्रकला के इतिहास में कुछ सचित्र बौद्ध ग्रंथ हैं, जिनमें ’बौद्ध देवी-देवताओं’ तथा ’बुद्ध के जीवन संबंधी’ चित्र हैं। ये ग्रंथ पाल-युगीन हैं, जिनके नाम हैं – ’अष्टसाहस्त्रिका प्रज्ञापारमिता’, ’पेन्जरक्षा’ और ’महामयूरी गण्डव्यूह’ आदि। ये ताड़पत्रीय ग्रंथ और इनकी पटरियों पर की गई चित्रकारी उक्त शताब्दियों की महत्वपूर्ण कला थाती है।
प्रश्न: प्रारंभिक बौद्ध चित्रकला की प्रमुख शैलियां एवं केंद्र
उत्तर: तिब्बती इतिहासकार ’लामा तारानाथ’ ने बौद्ध चित्रकला की तीन प्रमुख शैलियों के विषय में लिखा है- ’देव शैली’, ’यक्ष शैली’ और ’नाग शैली’।
देव शैली: मध्य देशीय केन्द्र मगध में प्रचलित थी, जिसके संस्थापक ’आचार्य बिम्बसार’ थे, जो पाँचवीं-छठी शताब्दी में जन्म थे। इस केन्द्र में उच्चकोटि के कलाकार थे।
यक्ष शैली: सम्राट अशोक के काल में प्रचलित थी, जिसका केन्द्र राजपूताना था और इस केन्द्र के मुख्य चित्रकार ’आचार्य शारंगधर’ थे, जिनका जन्म मारवाड़ में सातवीं शताब्दी में हुआ था।
नाग शैली: प्रसिद्ध ’आचार्य नागार्जुन’ के समय तीसरी शताब्दी में रही। इसका केन्द्र बंगाल था, जिसका समय था। इस केंद्र के प्रमुख आचार्य ’धीमान’ और उनका पुत्र ’वितपाल’ हुए। इन तीन प्रमुख केन्द्रों के अतिरिक्त कश्मीर, -बर्मा और दक्षिण भारत आदि में बौद्ध चित्रकला के अनेक केन्द्र थे, जिनका समय छठी शताब्दी से दसवीं शताब्दी था।
प्रश्न: भारत में बौद्ध भित्ति चित्रण के बारे में बताइए।
उत्तर: भारत में बौद्ध कला की महान विरासत भित्ति चित्रों के रूप में सुरक्षित है। इन भित्ति चित्रों का विस्तार भारत में सर्वत्र मिलता है। इस कलात्मक धरोहर की लोकप्रियता भारत के उत्तर-पश्चिम सीमा प्रान्त तथा मध्य एशिया के अनेक देशों तक पहुंची। बौद्ध कला की इस महान् थाती का समृद्ध केन्द्र ’अजन्ता’ है, जो महात्मा बुद्ध के जीवन की घटनाओं तथा जातक कथाओं पर आधारित है। श्रीलंका में ’सिगिरिया की गुफाओं’ में भी इस कला शैली का परिपक्व रूप दिखाई पड़ता है। भारत में ’बाघ’, ’बादामी’, ’सित्तन्नवासल’ के चित्रों में अजन्ता के चित्रों की छाप है।
प्रश्न: उनके महत्त्वपूर्ण अभिलक्षणों पर प्रकाश डालते हुए ’अजन्ता चित्रकला’ और ’बाघ चित्रकला’ के बीच विभेदन व समानता के बिंदु बताइए।
उत्तर: अजन्ता तथा बाघ चित्रों के बीच परस्पर विभेदन व समानता निम्नलिखित बातों को लेकर है-
1. बाघ गफा के सभी चित्र एक साथ एक ही समय बने प्रतीत होते हैं, जबकि अजन्ता के चित्र 800 वर्षों के दौरान बनाये गये हैं।
2. बाघ के चित्रों में जीवन के विभिन्न पक्षों का चित्रण हुआ है, जिनमें राजसी जीवन एवं उल्लासपूर्ण जीवन प्रमुख है, जबकि अजन्ता के चित्रों का आधार प्रायः बुद्ध के जन्म-जन्मान्तर की कथाएं हैं।
3. अजन्ता तथा बाघ दोनों में छतों तथा दीवारों पर कमल, मुरियों के बड़े ही सुन्दर अलंकरण बने हैं, जिनमें पशु-पक्षी, लताओं, पुष्पों का समावेश है। शुक, सारिका, कलहंस, मयूर, कोकिल, सारस, चकोर, गाय, बैल आदि सभी पशु-पक्षियों का अंकन शोभनों के साथ चित्रित है।
4. अजन्ता तथा बाघ दोनों में ही नारी के आध्यात्मिक एवं शारीरिक सौन्दर्य को बखूबी उकेरा है।
5. बाघ में रेखा, रूप, रंग, संयोजन, भित्ति चित्रण प्रक्रिया, वर्तनी एवं भावाभिव्यक्ति आदि सभी कुछ अजन्ता के चित्रों जैसा है।

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