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आजाद हिन्द फौज की स्थापना किसने की थी और कब थी के नेता या अध्यक्ष कौन थे azad hind fauj founder in hindi
azad hind fauj founder in hindi name and year आजाद हिन्द फौज की स्थापना किसने की थी और कब थी के नेता या अध्यक्ष कौन थे ?
युद्धोपरांत लहर
आजाद हिन्द फौज (आई.एन.ए.)
युद्ध समाप्त होने के बाद, जुलाई 1945 में, ये नेतागण आजाद कर दिए गए और एक चुनाव की घोषणा कर दी गई। इस बीच, आजाद हिन्द फौज (आई.एन.ए.) ने लोकप्रिय छवि बना ली थी। इसका गठन 1940 में ब्रिटिश इण्डियन आर्मी के मोहन सिंह व अन्य ने किया, जो जापानियों द्वारा युद्ध-बन्दी बना लिए गए थे। चकाचैंध कर देने वाले साहस-प्रदर्शन में देश को ले जाकर सुभाष चन्द्र बोस ने फौज को नए सिरे से संगठित करने में अग्रणी भूमिका निभाई। जापानी सेना के हाथों में सभी प्रकार के भेदभाव को झेलते सैनिकों ने उस दुर्गम भू-भाग को ललकारा और कोहिमा सीमा तक पहुँच गए। लेकिन जल्द ही जापानियों का लौटना शुरू हो गया, और आई.एन.ए. का लाल किले पर भारतीय तिरंगा फहराने का सपना चूर-चूर हो गया। 1945 में आई.एन.ए. सैनिक ब्रिटिशों द्वारा बन्दी बना लिए गए और उन पर राजद्रोह का मुकदमा चला। मुकदमे की पहली सुनवाई नवम्बर में लाल किले में शुरू हुई। नवम्बर 1945 में और फरवरी 1946 में, पूरे देश ने क्रोध में भर इन भारतीय स्वाधीनता के वीरों पर मुकदमों और सजाओं के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन किया।
इस राष्ट्रवादी लहर के बीच ही प्रान्तीय एवं केन्द्रीय विधानमण्डलों के चुनाव हुए। यद्यपि मताधिकार जनसंख्या के एक छोटे वर्ग तक ही सीमित था, यह चुनाव राष्ट्रवाद और उनके विरोधियों की विचारधाराओं का एक इम्तहान था। कांग्रेस प्रत्याशियों को अभूतपूर्व सफलताएँ हासिल हुईं, जबकि मुस्लिम लीग ने सभी मुस्लिम सीटें जीत ली। इसने भारतीय मुसलमानों के एकमात्र प्रतिनिधि होने का दावा साबित कर दिया। बड़ी संख्या में वीरों व सजदानशीनों ने पंजाब व सिंध में लीग के लिए वोट माँगा। उलमाओं के निकाय, जमाइत-उल-उलमा-ए-हिन्द, जो पाकिस्तान की माँग के खिलाफ था, ने कांग्रेस का खुले रूप से समर्थन किया। हिन्दू महासभा, जो हिन्दुओं की एकमात्र प्रतिनिधि होने का दावा करती थी, बुरी तरह खदेड़ दी गई – कलकत्ता सीट पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में उसे अपने विरोधी के 6,000 के मुकाबले मात्र 146 वोट मिले।
बोध प्रश्न 4
नोट: क) अपने उत्तर के लिए नीचे दिए रिक्त स्थान का प्रयोग करें।
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1) भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में आजाद हिन्द फौज (आई.एन.ए.) की क्या भूमिका थी?
2) ब्रिटिशों ने भारत क्यों छोड़ा?
बोध प्रश्नों के उत्तर
बोध प्रश्न 4
1) यह व्यक्तिगत स्तर पर निम्न स्तरीय सत्याग्रह था, जो 17 अक्तूबर, 1940 को शुरू किया गया था। नेताओं ने व्यक्तिगत स्तर पर अंग्रेजी शासन के विरुद्ध भाषण दिए तथा गिरफ्तारियाँ दीं।
2) यह गाँधीजी के नेतृत्व में 8 अगस्त 1942 को शुरू हुआ था। गाँधीजी ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने को कहा तथा भारतीयों को स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए ष्करो या मरोश्श् का आवाहन किया।
विश्वयुद्ध और ‘भारत छोड़ो‘ आंदोलन
यूरोप में 1 सितम्बर, 1939 को द्वितीय विश्वयुद्ध की घोषणा हो गई। भारतीय सरकार ने, भारत में जनमत की सलाह लिए बगैर, जर्मनी से युद्ध की घोषणा कर दी। अनेक कारणों से युद्ध अवश्यंभावी हो गया, बल्कि मूल रूप से हिटलर व नाजीवाद के उद्गमन के कारण। हिटलर ने लगभग 60 लाख यहूदियों को निकाल दिया क्योंकि उसका विश्वास था वे एक नीची प्रजाति में जन्मे हैं और प्रथम विश्वयुद्ध में उसकी हार समेत जर्मन समाज की सभी बुराइयों की वजह वही हैं । इटली में मुसोलिनी, स्पेन में जेनरल फ्रेन्को और जापान में उभरती सैन्य तानाशाही ने नाजी आक्रमण को एक सत्तावादी और फासीवादी सैन्य-व्यूह प्रदान किया। भारतीयों के लिए, युद्ध ने उपनिवेशविरोधी आंदोलन के पुनरुत्थान का अवसर मुहैया कराया। तथापि, भारतीय नेतागण इस प्रकार के अवसरवाद के पक्ष में नहीं थे, क्योंकि यह लोकतांत्रिक, फासीवाद-विरोधी ताकतों के सिद्धांत विरुद्ध होता। लेकिन ब्रिटिशों ने. युद्ध को लोकतंत्र हेतु लड़ाई के रूप में घोषित करने के बावजूद, भारतीयों व उनके हेतुक के लिए कोई रुचि नहीं दर्शायी। ध्यानपूर्वक विचार करने के बाद, गाँधीजी ने 17 अक्टूबर, 1940 को ध्यानपूर्वक चुने गए वैयक्तिक सत्याग्रहियों को लेकर एक हल्का व्यक्तिगत सत्याग्रह शुरू करने का निर्णय लिया। पहले व्यक्ति थे विनोबा भावे, और दूसरे जवाहरलाल नेहरू । इनको युद्ध-प्रयास से सहयोग के विरुद्ध सार्वजनिक भाषण, और उसके बाद गिरफ्तारी देनी होती थी।
दिसम्बर 1941 में जापान युद्ध में शामिल हो गया और भारतीय सीमाओं को चुनौती दी। जापानियों की दया पर आश्रित छोड़कर ब्रिटिश फौजों के पीछे हटने की खबर ने भारत में क्षोभ और असहाय्य स्थिति का भाव पैदा कर दिया । सैनिक अत्याचारों और युद्ध-काल संकट ने लोगों को बेचैन कर दिया। गाँधीजी ने इस बढ़ते असंतोष को समझा और, अधिकतर नेताओं के बहुत ही संकोच के बावजूद, एक आंदोलन शुरू करने का निर्णय किया। 8 अगस्त, 1942 को बम्बई में, उन्होंने श्करो या मरोश् का नारा दिया और ब्रिटिशों को श्भारत छोड़ोश् कहा। उसी रात गाँधीजी व अन्य को गिरफ्तार कर लिया गया। अगले ही दिन से, देशभर में लोग घरों से बाहर निकल आए. और एक विशाल उपनिवेश-विरोधी आंदोलन शुरू हो गया। सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाया गया, और पूर्वी उत्तर-प्रदेश में बलिया, बंगाल में मिदनापुर, व महाराष्ट्र के सतारा में कृषक ठिकानों पर समानान्तर सरकारें स्थापित की गई। जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया (1910-1967), अच्युत पटवर्धन. अरुणा आसफ अली ने वीरतापूर्ण योगदान दिया। अरुणा आसफ अली एक भूमिगत रेडियो चलाती थीं। ब्रिटिश अधिकारियों ने इस आंदोलन को बड़ी सख्ती से दबाया ।
सांप्रदायिक दंगे, स्वतंत्रता और विभाजन
बम्बई व कराची में श्नेवल रेटिंग्सश् के विद्रोह ने सेना में राजद्रोह के स्पष्ट संकेत दिए । नौकरशाही का नैतिक पतन भी प्रत्यक्ष था। यह स्पष्ट था कि ब्रिटेन भारत पर अब और अधिक शासन नहीं कर सकता था। मुस्लिम लीग ने, नौकरशाही के सक्रिय संरक्षण के साथ, पहले पाकिस्तान दिए बगैर ब्रिटिशों द्वारा भारत छोड़ने के किसी भी कदम का विरोध किया। भावी इन्तजामात की सिफारिश के लिए 1946 में कैबिनेट मिशन भेजा गया। मिशन ने पाकिस्तान को एक जीवनक्षम विकल्प के रूप में निरस्त कर दिया, लेकिन प्रान्तों की एक सामूहिक व्यवस्था वाली सिफारिश को लीग द्वारा उसकी पाकिस्तान की माँग के अनुमोदन के रूप में लिया गया, जिसको नेहरू जैसे कांग्रेसी नेताओं ने दृढता से ठुकरा दिया। पाकिस्तान की अपनी माँग मनवाने के लिए लीग ने, कैबिनेट मिशन की सिफारिशें ठुकरा दी और 16 अगस्त, 1946 को ‘सीधी कार्रवाही दिवस‘ घोषित कर दिया। बिना किसी उपनिवेश-विरोधी कार्यक्रम के साथ, कांग्रेस व उनके खिलाफ जो पाकिस्तान के विरोध में थे, सीधी कार्रवाही का संकेत मिला। परिणाम हुआ कलकत्ता में एक साम्प्रदायिक हत्याकाण्ड जिसमें 5000 से अधिक जानें गईंय यहीं मुस्लिम लीगी मुख्यमंत्री ने 16 अगस्त अवकाश घोषित किया था। प्रतिक्रिया नोआखली में हिन्दू-विरोधी हिंसा के रूप में फूटी, जो असहयोग/ खिलाफत के दिनों के बाद से कृषक आंदोलन की एक खास दूरवर्ती-चैकी बन चुकी थी। साम्प्रदायिक विचारधारा अब पूरी तरह से हावी थी। बिहार में जवाबी प्रतिक्रियाएँ शुरू हो गई, जहाँ गाँव के गाँव जला डाले गए और इस हिंस्रकता के साथ कि हजारों की संख्या में मुसलमान मारे गएय मजबूर होकर नेहरू ने कहा कि अगर दंगे न रुके तो इलाके में बम गिराएँगे। इस स्थिति के लिए औपनिवेशिक स्वामीजन जिम्मेदारी ही लेने को तैयार नहीं थे जिन्होंने कि इसको पैदा करने में मनोयोग से सहायता की थी। उन्होंने अब भारत छोड़ने का फैसला कर लिया जो उपनिवेशवाद के अनिवार्यतः गैर-जिम्मेदाराना चरित्र के प्रति विश्वासघात थाय इसने अधिकांश औपनिवेशिक समाजों को अस्तव्यस्तता की स्थिति में छोड़ दिया – या तो बँटवारा करके या फिर उन्हें भीतर से तोड़ के ।
यह आभास होने लगा कि स्वतंत्रता कहीं आसपास ही है. पाकिस्तान भी बहुत दूर नहीं था। दोनों ही अपरिहार्य थे। पाकिस्तान न मिलने के परिणाम कलकत्ता, नोआखली और बिहार के दंगों से ‘स्पष्ट थे। इस प्रकार, जब कांग्रेसी नेताओं व गाँधीजी ने विभाजन स्वीकार किया, वे अपरिहार्य को स्वीकार कर रहे थे। ऐसी आशा थी कि विभाजन सम्प्रदायवाद की समस्या को हमेशा के लिए समाप्त कर देगा। 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतंत्र हो गया।
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