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augsburg treaty in hindi Peace of Augsburg 1555 आग्सबर्ग की शांति संधि क्या थी , कारण , कमी

जाने augsburg treaty in hindi Peace of Augsburg 1555 आग्सबर्ग की शांति संधि क्या थी , कारण , कमी ?

प्रश्न: ‘आग्सबर्ग की संधि‘ क्या थी ? इसमें क्या खामियां रह गई थी। वर्णन कीजिए।
उत्तर: रोमन शासक चार्ल्स II ने जर्मन राज्यों में शान्ति स्थापित करने के लिए अपने भाई फर्डिनेन्ड को नियुक्त किया। कैथोलिकों एवं प्रोटेस्टेण्टो के मध्य 1555 में ‘आक्सबर्ग की संधि‘ हुई। इसे ‘आग्सबर्ग की शांति‘ भी कहते हैं। इस संधि के अनुसार –
(1) केवल प्रोटेस्टेंट धर्म को एक स्वतंत्र धर्म के रूप में मान्यता दी गई।
(2) चर्च की संपत्ति चर्च के पास रहेगी परंतु भविष्य में उसे संपत्ति अधिकृत करने का अधिकार नहीं होगा।
(3) राजा का धर्म ही राज्य का धर्म होगा।
(4) केवल लूथरवादियों को ही मान्यता दी गई।
केवल प्रोटेस्टेण्ट को मान्यता, राजा द्वारा धर्म की मान्यता, लूथरवाद को ही मान्यता आदि आग्सबर्ग संधि की खामियां थी।

प्रमुख योगदानकर्ता एवं देश के विभिन्न भागों से योगदान
प्रश्न: टी. प्रकाशम
उत्तर: टी. प्रकाशम गांधीजी के आह्वान पर स्वतंत्रता आन्दोलन में प्रविष्ट हुए। उन्होंने एक दैनिक पत्र ‘स्वराज्य‘ भी निकाला। उन्होंने 1928 में मद्रास में साइमन विरोधी आन्दोलन तथा नमक सत्याग्रह में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, जिसके कारण उन्हें ‘आंध्र केसरी‘ के उपनाम से विभूषित किया गया। मद्रास मे जमींदारी प्रथा के उन्मूलन में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। 1953 में आंध्र प्रदेश राज्य के बनने पर वे प्रथम मुख्यमंत्री बने।
प्रश्न: व्योमेश चंद्र बनर्जी
उत्तर: व्योमेश चंद्र बनर्जी (1844-1905 ई.) एक सफल वकील भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष तथा ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमंस के लिए चुनाव लड़ने वाले प्रथम भारतीय थे। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दो बार अध्यक्ष (1885 एवं 1892 ई.) बने और राजनीति में उदारवादी बने रहे।
प्रश्न: आनंद मोहन बोस
उत्तर: आनंद मोहन बोस (1847-1906 ई.) बंगाल के अग्रणी शिक्षाविद् समाज सुधारक तथा राष्ट्रवादी थे। एस.एन.बनर्जी के साथ मिलकर उन्होंने ‘इंडियन एसोसिएशन‘ और ‘इंडियन नेशनल कांफ्रेंस‘ का गठन किया। इल्बर्ट बिल और व कलर प्रेस एक्ट के मुद्दों पर आंदोलन प्रारंभ किया। ये कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन (1898) के अध्यक्ष भी रहे।
प्रश्न: रमेश चंद्र दत्त
उत्तर: आर.सी. दत्त (1848-1909 ई.) विद्याविद, अर्थशास्त्री एवं राष्ट्रवादी थे। 1899 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लखनक आधवशन की अध्यक्षता की। उनकी रचनाओं में ‘द इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इंडिया‘, ‘विक्टोरिया यग में भारत‘ एवं ‘प्राचीन सभ्यता का इतिहास‘ आदि प्रमुख हैं। आर्थिक क्षेत्र में इनकी रचनाओं का विशिष्ट योगदान रहा है। जिसने राष्ट्रवादी आंदोलन को भी अपने तरह से दिशा दी। ‘धन के बहिर्गमन‘ सिद्धांत के महान प्रवर्तक थे।
प्रश्न: सुरेन्द्र नाथ बनर्जी
उत्तर: एस.एन. बनर्जी राष्ट्रवादी नेता, लोकप्रिय पत्रकार तथा समर्पित शिक्षाविद् थे। ये भारतीय सिविल सेवा के लिए चुने गए थे किंतु भेदभावपूर्ण ढंग से निकला दिया गया। 1876 में एंडियन एसोसिएशन एवं 1883 में इंडियन नेशनल कांफ्रेंस की स्थापना का। 1918 में कांग्रेस छोड़ दिया एवं ‘लिबरल फेडरेशन‘ की स्थापना की। इन्होंने ‘बंगाली‘ समाचार पत्र का संपादन किया।
प्रश्न: गोपाल कृष्ण गोखले
उत्तर: गोपाल कृष्ण गोखले (1866-1915 ई.) शिक्षाविद, मानववादी, समाज-सुधारक एवं माहन देशप्रेमी थे और कांग्रेस की उदारवादी राजनीति से संबद्ध थे। 1905 में उन्होंने ‘भारत सेवक समाज‘ (ैमतअंदजे व िप्दकपं ैवबपमजल) की स्थापना की। स्वतंत्रता के लिए भारतीय संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए इंग्लैण्ड एवं द. अफ्रीका की यात्रा की। 1915 में इनकी मृत्यु पर तिलक ने इन्हें श्भारत का हीराश् कहा था। महात्मा गांधी ने गोखले को अपना श्राजनीतिक गुरूश् बताया।
प्रश्न: दादा भाई नौरोजी
उत्तर: दादा भाई नौरोजी (1825-1917 ई.) पारसी पुरोहित परिवार में पैदा हुए थे और ‘ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ इंडिया‘ के रूप में समादृत हुए। इन्होंने डब्ल्यू.सी. बनर्जी के साथ मिलकर ‘लंदन इंडिया सोसाइटी‘ का गठन किया जिसका कार्य भारत के दुख-दों का प्रचार करता था। 1892 में लिबरल पार्टी के टिकट पर ‘ब्रिटिश हाउस ऑफ कामन्स‘ के लिए चुने जाने वाले ये प्रथम भारतीय थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना में इनकी प्रमुख भूमिका थी एवं ये तीन बार (1886, 1893 तथा 1906 में) इसके अध्यक्ष रहे। इन्होंने अपने लंबे निबंध श्पावर्टी एंड अन ब्रिटिश रूल इन इंडियाश् में स्पष्ट रूप से ब्रिटिश शासन के दौरान भारत की आर्थिक दुरव्यवस्था पर प्रकाश डाला तथा श्धन के बहिर्गमन के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।
प्रश्न: एस. सुब्रह्मण्यम अय्यर
उत्तर: एस. सुब्रह्मण्यम अय्यर (1842-1924 ई.) एक सुप्रसिद्ध वकील और न्यायाधीश थे तथा इन्हें सामान्यतः ‘दक्षिण भारत के महान वयोवृद्ध व्यक्ति‘ के नाम से जाना जाता है। 1885 में कांग्रेस के संस्थापकों में से एक थे। 1916 में श्रीमती बेसेंट द्वारा स्थापित होमरूल लीग के अध्यक्ष रहे। मद्रास विश्वविद्यालय के उपकुलपति नियुक्त होने वाले प्रथम भारतीय थे। 1945-47 में भारत के अंतरिम सरकार में रेल मंत्री बने। 1947-48 में संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रथम भारतीय राजदूत बने एवं उड़ीसा के राज्यपाल भी बने।
प्रश्न: देशबंधु चितरंजन दास
उत्तर: सी.आर. दास (1870-1925 ई.) महान राष्ट्रवादी एवं प्रसिद्ध विधिशास्त्री थे। अलीपुर पड़यंत्र केस में क्रांतिकारियों के पक्ष में वकालत की। असहयोग आंदोलन के दौरान वकालत छोड़ दी। चितरंजन दास ने मोतीलाल नेहरू के साथ मिलकर ‘स्वराज पार्टी‘ बनाई। 1923 में लाहौर एवं 1924 में अहमदाबाद में ‘अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस‘ की अध्यक्षता की।
प्रश्न: स्वामी श्रद्धानंद
उत्तर: स्वामी श्रद्धानंद (1856-1926 ई.) पंजाब के प्रमुख आर्य समाजी, शिक्षाविद् एवं राष्ट्रवादी नेता थे। इन्होंने जलंधर में ‘सत्य धर्म प्रचारक‘ साप्ताहिक निकाला एवं कनखल (हरिद्धार) में गंगा के किनारे ‘गुरूकुल-कांगड़ी‘ की स्थापना की। इन्होंने रौलेट विरोधी आन्दोलन में भाग लिया और 1919 में अमृतसर के कांग्रेस अधिवेशन के स्वागत समिति के अध्यक्ष बने। इन्होंने स्त्री शिक्षा और विधवा विवाह का समर्थन और जाति-भेद आदि का विरोध किया। ये आर्य समाज के ‘शुद्धि सभा‘ के अध्यक्ष थे। 1926 में एक धर्मान्ध मुसलमान ने इनकी हत्या कर दी।

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