JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

वायुमंडल किसे कहते हैं (atmosphere meaning in hindi) , वायुमण्डल , अर्थ , संगठन , अध्ययन

(atmosphere meaning in hindi) वायुमंडल का अध्ययन क्या कहलाता है ? वायुमंडल किसे कहते हैं , वायुमण्डल , अर्थ , संगठन , का अध्ययन ?

वायुमण्डल (atmosphere) : वायुमंडल के रासायनिक चक्र उपापचय को अधिक प्रभावित करते है। हवा में मुख्य रूप से ऑक्सीजन , कार्बन डाइऑक्साइड , नाइट्रोजन , जल और निष्क्रिय गैसों की कुछ मात्रा होती है। निष्क्रिय गैसों को छोड़कर हवा से सभी अन्य घटक , मेटाबोलाइट्स की भाँती कार्य करते है और प्रत्येक भूमण्डल चक्र में घूमते है जिसमे जीव मुख्य हिस्सा अदा कर सकते है। 

क्षोभमण्डल अथवा ट्रोपोस्फीयर ही वास्तव में वायुमण्डल है। पृथ्वी के समस्त स्थलीय तथा जलीय जीवधारियों के लिए जीवन उपयोगी गैसों , उचित तापक्रम , विभिन्न वातावरण कारक तथा ऋतू परिवर्तन चक्र इसी क्षेत्र से नियंत्रित तथा सम्पादित होते है। अत: वायुमण्डल जैव विकास का अत्यधिक महत्वपूर्ण उप भाग है।

% आयतन % भार
नाइट्रोजन 78.09 75.54
ऑक्सीजन 20.93 23.14
ऑर्गन 0.03 1.27
कार्बन डाइ ऑक्साइड 0.02 0.02

भौतिक कारकों की प्रतिक्रिया मुख्य रूप से जैविक जीवो पर ही निर्भर होती है। इनको दो मुख्य आधारों पर विभाजित किया गया है –

  1. किस प्रकार पादप और जन्तु अपने पर्यावरण में अनुकूलित रहते है।
  2. किस प्रकार जीव भौतिक कारकों के कारण जिससे कि जीव जीवित रहने के लिए निरंतर अपने आपको पर्यावरण से अनूकुलित करते रहते है। पारिस्थितिकीय शब्दों में “प्राकृतिक चयन एक बल के रूप में कार्य करता है जिससे कमजोर समाप्त हो जाता है और मजबूत को जीवित रखता है। “

ऐसे बहुत से अजैविक घटकों की पर्यावरण में उपस्थिति किस प्रकार जीवों के अस्तित्व को प्रभावित करती है , इनकी संकल्पनाओं को हम पिछले अध्याय में न्यूनतमता और सहिष्णुता के नियमों में जान चुके है।

भौतिक कारक

आधार स्थल : थल , जल तथा वायु अथवा पादपो और जन्तुओं के शरीर , जिस पर जीव रहते है , ऐसी सतह अथवा ऐसे माध्यम को आधार स्थल कहा जाता है।

धरातल विशेष के अनुसार जंतुओं की संरचना में अनुकूलता आ जाती है अर्थात जिस पर जन्तु रहते है उसके अनुसार जंतुओं की संरचना में अनुकूलता आ जाती है। उदाहरण के लिए जैसे मछलियों का नाव के आकार का शरीर , जूं का चपटा शरीर , वेडिंग चिड़ियाँ की लम्बी टाँगे , गिलहरी के पेड़ो पर चढ़ने के लिए तेज नखर होना , टेपवर्म के स्कोलेक्स के कांटे होना जिससे वह आंत में चिपका रह सकता है आदि सभी विभिन्न प्रकार के धरातल पर सफल अनुकुलतायें है।

जबकि दूसरी तरफ कुछ जीव अपनी संरचना को धरातल अर्थात जिसमे वे रहते है के अनुसार अनुकूलित कर लेते है और अपने जीवनयापन के लिए धरातल को अपनी आवश्यकता के अनुसार बदल देते है। उदाहरण के लिए चीटियों के जाल , कई समुद्री एनिलोड की नलिकाएं और सबसे साधारण आदमी के द्वारा बनायीं गयी गलियाँ , पुल , मकान आदि अपनी आवश्यकता के अनुसार बदल देता है।

आधार स्थल एक परिमितकारी अथवा सीमाकारी कारक हो सकता है। एक जीव जब किसी धरातल विशेष पर भली प्रकार अनुकूलित हो जाता है तो वह अपने वितरण के आधार स्थल की उपलब्धता के कारण सीमाकारी होता है। यह भी सही है कि जीव जिस वातावरण में रहता है , वहाँ कई कारक प्रभावी होते है। यह भी सही है कि प्राणी तथा पादप केवल एक कारक से नहीं , लेकिन सभी कारकों की जटिलता से परिमित होते है।

ताप : जीवो के अन्दर तापक्रम सहन करने की सीमा या क्षमता भी उनकी सामर्थ्य के अनुसार अलग अलग होती है। सामान्यतया , जितना निम्न कोटि जिव होगा वह उतना ही अत्यधिक कम अथवा अधिक तापमान को सहन कर सकने की क्षमता रखता है।

निम्न तापक्रम सहनीय निम्नलिखित प्रकार है –

  • कुछ जीवाणु -454 डिग्री फेरिनाईट तापक्रम पर भी कई महीने जीवित रह सकते है , यह तरल हाइड्रोजन का तापक्रम है।
  • कोलपोडा , सिलिएटा -315 डिग्री फेरिनाईट पर एक सप्ताह तक रखा गया और जब गर्म किया गया तो उतनी ही अच्छी तरह बढ़ता रहा जितना कि साधारण तापमान पर। इसका दूसरा परिक्षण या प्रयोग थलीय घोंघे को -140 डिग्री फेरिनाईट तक ठंडा किया गया।
  • मेंढको को -78 डिग्री फेरिनाईट तक और मछली को -4 डिग्री फेरिनाईट तक रखा गया। प्राणियों का पानी के गलनांक अंक के नीचे के तापमान पर जीवित रहना सुपर कुलिंग क्रियाविधि से सम्बन्धित माना जाता है।

उच्च तापक्रम सहनीय : कई साधारण प्राणी उच्चतम तापमान भी सहन कर सकते है। कुछ जीवाणु 90 x 103 कुछ क्षण के लिए 284 डिग्री फारेनाइट तक गर्म किये जाने पर भी जीवित रह सकते है। उच्च तापक्रम पर मृत्यु प्रोटीन्स अथवा वसा में परिवर्तन के कारण होती है। जो प्राणी अपने शरीर का तापमान नियंत्रित नहीं कर सकते , उन्हें असमतापी प्राणी कहा जाता है। इनके शरीर का तापमान बाह्य अवस्थाओं के साथ बदलता है। बसंत में इनका तापक्रम बाह्य तापमान के अनुसार बदलता है और वे सक्रीय हो जाते है। कुछ अपपृष्ठवंशी प्राणी कुछ विशेष तरीको से तापक्रम उनके वातावरण से उच्च रख सकते है। पादपो में विशेष तापमान नियंत्रण क्रियाविधि नहीं होती , लेकिन ठन्डे मौसम में पादप श्वसन द्वारा निर्मुक्त ताप के कारण अपने शरीर का तापक्रम वातावरण से अधिक रख सकते है। गर्मी में पत्तियों से पानी का वाष्पीकरण होता है , जिससे ठंडक पैदा होती है।

अनुकुलतम तापक्रम : तापमान किसी जैविक क्रियाओं के लिए बहुत अधिक अथवा बहुत कम होता है। प्रत्येक जाति विशेष के लिए तापक्रम सीमा भी होती है जिसके अन्दर वह परिमितकारी अथवा सीमाकारी कौशल से जीवनयापन करते है। वह तापक्रम जिस पर जीव अपना जीवन भली प्रकार यापन करते है उस तापमान को अनुकूलतम तापक्रम कहते है , जो प्राणी हर समय अपना अनुकूलतम तापमान बनाये रख सकते है , उन्हें समतापी प्राणी कहा जाता है।

जैसे पक्षी और स्तनधारी।

उनकी जीवन प्रक्रिया उनके सामान्य तापक्रम पर चलने के लिए इतनी सूक्ष्म रूप से कार्य के लिए समन्वित रहती है कि यदि उनकी तापक्रम नियंत्रित क्रियाविधि ढंग से कार्य करने में असफल हो जाती है तो उनकी मृत्यु हो जाती है।

प्रकाश : प्रकाश एक परिमितकारी अथवा सीमाकारी कारक भी हो सकता है। जल का समुद्र में भेदना यह तय करता है कि हरे पौधे किस गहराई तक उग सकते है , क्योंकि कार्बन डाइ ऑक्साइड , जल तथा लवण अधिक मात्रा में उपस्थित हो तो प्रकाश बहुत मुख्य कारक होता है। शैवाल अथवा एल्गी समुद्र की सतह पर बहुत अधिक होती है तथा समुद्र की गहराई के बढ़ने पर कम शैवाल होती रहती है। 200 फुट की गहराई पर पादप जीवन बहुत कम हो जाता है तथा क्योंकि 600 फुट के निचे 0.1 प्रतिशत से कम प्रकाश पहुँचता है इसलिए हरे पौधे समुद्र की गहराई में अनुपस्थित होते है। पौधों का अनुपस्थित होने का अभिप्राय यह है कि जो जन्तु अपने भोजन के लिए पौधों पर आश्रित होते है वे भी अनुपस्थित रहते है। महासागर के तल पर केवल कीटाहारी और अपमार्जक रहते है और ये एक दुसरे को तथा उस कार्बनिक पदार्थ , जो उपरी सतह से नीचे जम जाता है , को खाते है।

प्राणी अपने भोजन के लिए पौधों पर निर्भर रहते है इसलिए प्रकाश अप्रत्यक्ष रूप से प्राणियों को भी प्रभावित करता है। प्रकाश प्राणियों को कई अन्य क्रियाविधियों से भी प्रभावित करता है। कुछ प्राणी पराबैंगनी किरणों के न मिलने से विटामिन D उत्पन्न नहीं कर सकते। प्रकाश प्राणियों को अपने भक्षी शिकारों अथवा भोजन को देखने और खोजने में प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। इसी आधार पर बहुत से जन्तुओं का आकार और प्रकार ऐसा बना होता है जिनसे वे अपने शिकारियों की नजर से बच सकते है। उदाहरण के लिए छड़ीनुमा कीट , मृत पत्तिनुमा तितली , पक्षी , सर्प और स्तनधारी आदि।

जल : बहुत से जलीय सरीसृप लगातार पानी की उपलब्धि के बिना नहीं रह सकते है। जैसे सभी मछलियाँ जिनमे जलीय श्वसन होता है , पानी में मिली ऑक्सीजन का उपयोग करती है। मेंढक जमीन पर रहता है लेकिन अंडे देने के लिए पानी के किनारे आता है।

सरीसृप (रेप्टीलिया) प्रथम पृष्ठवंशी है जिनके वितरण में पानी परिमितकारी अथवा सीमाकारी कारक नही है। वे अंडे जमीन पर देते है और उनकी त्वचा पर शल्क होते है , जिनसे पानी बाहर नहीं निकल सकता है। कुछ रेप्टीलिया (कछुए और मगर) द्वितीयक रूप से पानी में आते है। लेकिन रेप्टीलिया का पूरा समूह पानी की कमी होने पर भी पहले से ही सफलतापूर्वक अनुकूलित रहे है और इस समूह में अब बहुत से ऐसे जन्तु मिलते है जो रेगिस्तान में सफलतापूर्वक रहते है। रेगिस्तान जन्तुओ की तरह , ऐसे पौधे जो कम पानी की उपापचय व्यवस्था जीवित रहते है। और वहां उच्चतम तापक्रम होने के अतिरिक्त भी उनमे तुलनात्मक रूप से कम उपापचिक गति होती है। रेगिस्तान में सूर्य की रौशनी , कार्बन डाई ऑक्साइड , ऑक्सीजन , मृदा के खनिज लवण और दुसरे सभी कारक अत्यधिक मात्रा में मिलते है , फिर भी जल परिमितकारी अथवा सीमाकारी कारक होता है।

वायु : वायुमण्डल में विभिन्न गैसे लगभग निश्चित अनुपात में मिश्रित रहती है तथा इनके मिश्रण को वायु कहते है। सभी जीवधारी अपनी दैनिक क्रियाओ के लिए श्वसन द्वारा वायु से भोजन का ऑक्सीकरण करके ऊर्जा प्राप्त करते है। साधारणतया वायु में विभिन्न गैसों का अनुपात निम्नवत होता है :

गैसे आयतनात्मक प्रतिशत नकारात्मक प्रतिशत
नाइट्रोजन 78.09 75.54
ऑक्सीजन 29.93 23.14
कार्बन डाइ ऑक्साइड 0.03 0.03
आर्गन 0.02 0.02

अन्य गैसे : अत्यधिक सूक्ष्म मात्रा में हाइड्रोजन , हाइड्रोजन सल्फाइड , सल्फर डाइ ऑक्साइड , ओजोन , रेडॉन , हीलियम , नियोन , जिनोन और क्रिप्टोन आदि गैसे शामिल है। कभी कभी अमोनिया तथा मीथेन भी वायु में मिश्रित रहती है। इन सब गैसों का कुल योग लगभग 0.02 प्रतिशत होता है।

उपर्युक्त गैसों के अतिरिक्त वायु में कभी कभी धुल , मिट्टी , समुद्री लवण तथा वाष्प आदि के निलंबित कण तथा धुआं भी मिश्रित रहता है।

हालाँकि वायु की संरचना लगभग स्थिर है फिर भी विभिन्न प्राकृतिक निवास स्थानों जैसे गहरे समुद्र , ऊँची पर्वत श्रृंखलाओं में गैसों के अनुपात में अंतर होना साधारण घटना है।

वायु की संरचना पर स्थानीय तापमान , औद्योगिक गतिविधियां , ज्वालामुखी , समुद्रतल से ऊंचाई , वनस्पतियो और जन्तुओ का भारी प्रभाव पड़ता है।

tags : वायुमण्डल , अर्थ , संगठन , का अध्ययन क्या कहलाता है , जीवन के लिए वायुमंडल क्यों आवश्यक है , वायुमंडल को इंग्लिश में क्या कहते हैं , में कितने प्रकार की गैस पाई जाती है ?

Sbistudy

Recent Posts

सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है

सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…

12 hours ago

मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the

marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…

12 hours ago

राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi

sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…

2 days ago

गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi

gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…

2 days ago

Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन

वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…

3 months ago

polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten

get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…

3 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now