JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: sociology

आत्मबोध की परिभाषा क्या है | आत्मबोध किसे कहते है अर्थ मतलब atma bodha in hindi meaning

atma bodha in hindi meaning and definition आत्मबोध की परिभाषा क्या है | आत्मबोध किसे कहते है अर्थ मतलब ?

फ्यूअरबॉक (Feuerbach) : फ्यूअरबॉक के अनुसार धर्म मनुष्य के आत्मबोध का वास्तविक रूप है। ईश्वर मनुष्य के गुणों का प्रतिबिंब है, जिसे उच्च स्थान दिया गया है। ईश्वर का ज्ञान आत्मिक ज्ञान है, और ईश्वर का बोध आत्म बोध है। मनुष्य के विचार ही उसके भगवान हैं। ईश्वर के माध्यम से मनुष्य को पहचाना जा सकता है, और मनुष्य के माध्यम से उसके ईश्वर को । फ्यूअरबॉक के विचार में धर्म के द्वारा हम यह जान सकते हैं कि मनुष्य अपने बारे में क्या सोचता है। फ्यूअरबॉक मानता है कि धार्मिक विचारों की जड़ मनुष्य के मन में ही होती है। अपनी इच्छाओं की पूर्ति करने की क्षमता सीमित होने के कारण मनुष्य एक सर्वशक्तिमान ईश्वर का निर्माण करता है, जो सारे गुणों से निपुण है।

धर्म एवं समाज (Religion and Society)
क्या आपने अंग्रेजी फिल्म ‘‘दि गॉडज मस्ट बी क्रेजी देखी है। यह अत्यंत दिलचस्प फिल्म हैं जिससे धर्म के उद्गम और विकास के बारे में काफी जानकारी प्राप्त होती है। मोटे तौर पर, छिपे रहस्य को समझने का मानव द्वारा किया गया प्रयास ही धर्म कहलाता है। शक्तियों का डर धर्म से जुड़ा हुआ है।

जैसा कि आप जानते हैं, जीवन रहस्यों से भरा हुआ है। मृत्यु जन्म, सृजन और जीवन खुद अपने आप में एक रहस्य है। धर्म हमारे आस-पास के रहस्यों को खोलता है। धर्म जीवन की अनिश्चितंताओं का सामना करने में मनुष्यों की सहायता करता है। समाजशास्त्र के आरंभ से ही समाजशास्त्री मानव और धर्म को समझने में लगे हुए हैं।
धर्म हमारे जीवन का एक आधार है और हमारी बोल-चाल में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। मिथक रीति-रिवाजों और अनुष्ठानों द्वारा यह हमारे जीवन को अर्थ प्रदान करता है। धर्म से हमें अतीत का बोध और भविष्य के लिये लक्ष्य मिलते हैं।

 धर्म एवं अर्थव्यवस्था (Religion and Economy)
सामान्यतः अर्थशास्त्र वस्तुओं के उत्पादन और वितरण से संबद्ध है। मनुष्य उत्पादन और वितरण की प्रक्रियाओं से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। किन वस्तुओं का उत्पादन और वितरण होगा, यह समाज की खपत विशेषताओं के सामान्य प्रारूप पर निर्भर करता है। पिछले भाग में हमने कहा कि धर्म हमारी कथनी और करनी को प्रभावित करता है। स्वाभाविक है कि धार्मिक मान्यताएँ और मूल्य काम धंधे और उपभोग के प्रति भी मानव व्यवहार पर असर डालते हैं।

जिस धर्म में मनुष्य की मुक्ति का मार्ग कठोर परिश्रम माना गया है, उसके अनुयायी निश्चित रूप से समर्पित और ईमानदार श्रमिक होंगे। दूसरी ओर, यदि किसी धर्म में काम को पापों की सजा के रूप में देखा गया हो तब तो उसमें समर्पित और ईमानदार श्रमिक मिलने से रहे। इस बात को एक अलग तरह से देखें । यदि किसी धर्म में काम के प्रति ईमानदारी और लगन पर बहुत जोर हो तो अनुयायी कारखानों में श्रमिकों के शोषण को नजरंदाज भी कर सकते हैं।

धार्मिक मान्यताएँ उपभोग को भी प्रभावित करती हैं। यदि किसी धर्म के अनुयायी शुद्ध शाकाहारी हों, तो माँस की माँग ही नहीं होगी। यदि किसी समाज में शंखों का धार्मिक महत्व हो तो उन्हें सुरक्षित/संरक्षित किया जायेगा। यदि मद्यपान निषिद्ध हो तो शराब के कारखानों को बंद कर दिया जायेगा। इसलिए यह कहना सही है कि धर्म मनुष्य की आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित करता है। अक्सर यह भी देखा गया है कि आर्थिक संकटों से धर्म उत्पन्न होता है। भारत की अनेक जनजातियों में भूमि हस्तान्तरण और गरीबी की वजह से नये धार्मिक पंथों का उदय हुआ है। नये ‘मसीहे‘ या पैगम्बर इन पंथों के माध्यम से संकट अभी तक हमने दर्शाया कि धार्मिक मान्यताएँ और मूल्य उत्पादन, वितरण और उपभोग को प्रभावित करते हैं। कार्ल मार्क्स और मैक्स वेबर जैसे शास्त्रीय विचारकों ने इस संबंध पर और विशेषतः पूँजीवाद पर गहरा चिंतन किया है। उनके विचारों के विषय में आप अगले अनुभाग में विस्तार से पढ़ेंगे।

धर्म एवं पूँजीवाद (Religion and Capitalism)
प्रत्येक युग की अपनी विशिष्ट अर्थव्यवस्था होती है। सामंतवाद, पूँजीवाद और साम्यवाद इसके कई उदाहरण हैं। उत्पादन, वितरण और उपभोग का स्वरूप और संगठन विविध आर्थिक व्यवस्थाओं में एक-दूसरे से काफी भिन्न होते हैं।

15वीं और 16वीं शताब्दियों में यूरोप में विज्ञान, दर्शन एवं पुनर्जागरण (रनेसान्स) के प्रभाव से सामंतवाद का पतन हो रहा था । अनेक सामंतवादी देशों में कैथोलिक चर्च की मजबूत जड़े थीं। सामंतवाद के परिवर्तन के साथ-साथ धार्मिक क्षेत्र में भी परिवर्तन आने लगा। कैथोलिक चर्च के धर्मसिद्धांतों को नई विचारधाराओं ने चुनौती दी। ‘पोप‘ का आधिपत्य, राष्ट्र के कार्य में चर्च का दखल विशेष रूप से कड़ी आलोचना के विभिन्न यूरोपीय देशों में अनेक प्रोटेस्टेंट पंथों का उदय हुआ । बहुत से विद्वानों ने पूंजीवाद और धर्म के संबंध और विशेषरूप से प्रोटेस्टेंटवाद को समझने का प्रयास किया। कार्ल मार्क्स और मैक्स वेबर ऐसे दो विद्वान हैं, जिन्होंने इस संबंध पर महत्वपूर्ण प्रकाश डाला।

Sbistudy

Recent Posts

सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है

सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…

22 hours ago

मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the

marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…

22 hours ago

राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi

sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…

3 days ago

गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi

gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…

3 days ago

Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन

वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…

3 months ago

polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten

get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…

3 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now