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arndt eistert process in hindi अरंड्ट ईस्टर्ट आर्ष्ट आइसटर्ट अभिक्रिया द्वारा समझाइए उदाहरण
अरंड्ट ईस्टर्ट आर्ष्ट आइसटर्ट अभिक्रिया द्वारा समझाइए उदाहरण arndt eistert process in hindi ?
ऐरोमैटिक अम्लों की अम्ल सामर्थ्य-
ऐरोमैटिक अम्ल, ऐलिफैटिक अम्लो की तुलना में अधिक अम्लीय होते हैं। इसका मुख्य कारण. COOH समूह का बेंजीन वलय से जुड़ा होना है। बेंजीन वलय में कार्बन परमाणु sp2 संकरित अवस्था में होता है तथा sp2 संकरित कार्बन परमाणु sp3 संकरित कार्बन परमाणु से अधिक विद्युतऋणीय होता है। अतः फेनिल समूह इलेक्ट्रॉन को अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता रखता है, फलस्वरूप बेन्जोइक अम्ल, ऐसीटिक अम्ल की तुलना में अधिक अम्लीय हो जाता है।
प्रतिस्थापित समूह का ऐरोमैटिक अम्ल की अम्ल सामर्थ्य पर प्रभाव (Effect of Substituent on the Acid Strength of Aromatic Carboxylic acids)-
किसी अम्ल की सामर्थ्य, उसके वियोजन स्थिरांक (K) द्वारा प्रदर्शित की जाती है। यदि बेंजीन वलय पर इस प्रकार के समूह उपस्थित हों जो वियोजन स्थिरांक के मान को बढ़ा देते हो तो अम्ल प्रबल अम्ल कहलाते हैं और यदि ये समूह वियोजन स्थिरांक के मान को कम कर देते हों या कोई प्रभाव नहीं डालते हों तो वे अम्ल दुर्बल अम्ल कहलाते हैं।
यदि इलेक्ट्रॉन आकर्षी समूह (Electron withdrawing groups ) जैसे – NO2, –CN, X इत्यादि बेंजीन वलय में उपस्थित होते हैं तो कार्बोक्सिलिक अम्ल की अम्ल सामर्थ्य बढ़ जाती है। इन समूहों की उपस्थिति से कार्बोक्सिलेट आयन का स्थायित्व अनुनाद के कारण बढ़ जाता है। यदि इलेक्ट्रॉन आकर्षी समूह – COOH समूह के आर्थो या पैरा स्थिति पर उपस्थित होते हैं तो मेटा की तुलना में अम्ल अधिक अम्लीय होते हैं।
बेंजीन वलय पर यदि ऐल्किल समूह ( – CH3, – C2H5) उपस्थित हों तो अम्ल सामर्थ्य पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है किन्तु यदि – OCH3 – OH या – NH2 समूह उपस्थित होते हैं तो सामर्थ्य कम हो जाती है। इन समूहों में मुख्य परमाणु (O या N) पर एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म उपस्थित है, इसके कारण + Mया + R प्रभाव उपस्थित होता है, फलस्वरूप बेंजीन वलय पर इलेक्ट्रॉन घनत्व बढ़ जाता है और कार्बोक्सिलेट आयन का स्थायित्व कम हो जाता है ।
बेंजोइक अम्ल के विभिन्न व्युत्पन्नों के pK के मान निम्नलिखित सारणी में दिये गये हैं-
कार्बोक्सिलिक अम्ल बनाने की विधियाँ (Methods of Formation of Carboxylic Acids)
ऐल्कीन के ऑक्सीकरण से-
ऐल्कीन गर्म, सान्द्र, क्षारीय KMnO4 से ऑक्सीकरण पर कार्बोक्सिलिक अम्ल बनाती हैं।
ऐल्कीन के ओजोनाइडों को भी ऑक्सीकरण द्वारा कार्बोक्सिलिक अम्लों में परिवर्तित किया जा सकता है।
प्राथमिक ऐल्कोहॉल तथा ऐल्डिहाइड के ऑक्सीकरण से-
“प्राथमिक ऐल्कोहॉल तथा ऐल्डिहाइड का अम्लीय पोटैशियम परमैंगनेट या पोटैशियम डाइक्रोमेट से ऑक्सीकरण करने पर कार्बोक्सिलिक अम्ल बनते हैं।
ऐल्डिहाइड का ऑक्सीकरण मृदु ऑक्सीकारक जैसे टॉलेन अभिकर्मक [Ag(NH3)2]+OH- से भी कर सकते हैं।
ऐल्किल बेंजीन के ऑक्सीकरण से-
प्राथमिक एवं द्वितीयक ऐल्किल समूह (तृतीयक ऐल्किल समूह नहीं) के सीधे बेंजीन वलय से जुड़े होने पर उनका क्षारीय KMnO4 द्वारा कार्बोक्सिलिक समूह में परिवर्तन हो जाता है।
6.6.4 मेथिल कीटोन के ऑक्सीकरण द्वारा-
ऐसीटोन की अभिक्रिया हैलोजन और क्षार जैसे NaOH या KOH से करने पर कार्बोक्सिलिक अम्ल प्राप्त होते हैं। (हैलोफार्म अभिक्रिया)
1,1,1- ट्राइहैलोऐल्केन से- 1,1,1- ट्राइहैलोएल्केन क्षारीय जल अपघटन पर कार्बोक्सिलिक अम्ल देते हैं।
नाइट्राइलों (ऐल्किल या ऐरिल सायनाइड) के जल अपघटन से-
नाइट्राइल का अम्लीय जल अपघटन करने पर कार्बोक्सिलिक अम्ल प्राप्त होते हैं। अभिक्रिया में पहले ऐमाइड बनते हैं जो फिर जल अपघटित होकर कार्बोक्सिलिक अम्ल देते हैं।
अम्ल व्युत्पन्नों के जल अपघटन से-
अम्ल हैलाइड, अम्लऐमाइड, अम्ल ऐन्हाइड्राइड तथा एस्टर अम्लीय अथवा क्षारीय जल अपघटन पर कार्बोक्सिलिक अम्ल बनाते हैं। क्षारीय जल अपघटन, अम्लीय जल अपघटन की अपेक्षा तेजी से होता है।
ग्रीन्यार अभिकर्मक के कार्बोनीकरण से
अभिकर्मक CO2 के साथ अभिक्रिया करके मैग्नीशियम कार्बोक्सिलेट बनाते है जो अम्लीकृत करने पर कार्बोक्सिलिक अम्ल देते हैं।
ऐल्केनडाइओइक अम्लों (डाइकार्बोक्सिलिक अम्लों) के विकार्बोक्सिलीकरण द्वारा-
ऐसे डाइकार्बोक्सिलिक अम्लों में से जिनमें दोनों – COOH समूह एक ही कार्बन परमाणु पर उपस्थित होते हैं, गर्म करने पर एक अणु कार्बन डाइऑक्साइड का निकल जाता है और ऐल्केनोइक अम्ल प्राप्त होते हैं।
सोडियम ऐल्कॉक्साइड के कार्बोनिलीकरण द्वारा-
पहले ऐल्केनॉल की अभिक्रिया सोडियम के साथ करायी जाती है जिससे सोडियम ऐल्कॉक्साइड बनता है और हाइड्रोजन निकल जाती है। इस प्रकार बने सोडियम ऐल्कॉक्साइड की अभिक्रिया कार्बनमोनोऑक्साइड के साथ उच्च ताप व दाब पर कराने पर ऐल्केनोइक अम्ल के सोडियम लवण प्राप्त होते हैं। इन सोडियम लवणों का अम्लीय जल अपघटन करने पर ऐल्केनोइक अम्ल बनते हैं।
यदि R=H लिया जाये, अर्थात् सोडियम ऐल्कॉक्साइड के स्थान पर सोडियम हाइड्रॉक्साइड लें तो मेथेनोइक अम्ल प्राप्त होता है।
सोडियम मेथॉक्साइड
सोडियम ऐल्कॉक्साइड के स्थान पर सीधे ऐल्केनॉल भी उपयुक्त उत्प्रेरक BF, और जल की अल्प मात्रा की उपस्थिति में कार्बनमोनोऑक्साइड के साथ 398-453K ताप तथा 500 वायुमण्डलीय दाब पर अभिक्रिया करके ऐल्केनोइक अम्ल बनाते हैं।
ऐल्कीन से-
ऐल्कीन को कार्बन मोनोऑक्साइड तथा भाप के साथ 573-673K ताप तथा उच्च दाब पर उत्प्रेरक फास्फोरिक अम्ल की उपस्थिति में गर्म करने पर ऐल्केनोइक अम्ल बनता है। इस विधि से मेथेनोइक अम्ल और एथेनोइक अम्ल नहीं बनाये जा सकते हैं।
आर्ष्ट आइसटर्ट अभिक्रिया द्वारा (Arndt Eistert Process)
इस विधि में ऐल्केनोयल हैलाइड की अभिक्रिया डाइऐजोमेथेन से करते हैं और बने उत्पाद का जल अपघटन करने पर एक कार्बन अधिक वाला ऐल्केनोइक अम्ल प्राप्त होता है। यह अभिक्रिया आरोहण श्रेणी में प्रयुक्त होती है ।
कार्बोक्सिलिक अम्लों की अभिक्रियाऐं (Reactions of Carboxylic Acid)
हेल-वोलार्ड- जैलिंस्की अभिक्रिया (Hell-Volhard-Zelinsky reaction)—–
ऐल्केनोइक अम्ल क्लोरीन अथवा ब्रोमीन के साथ निम्न ताप पर धीरे-धीरे अभिक्रिया करते हैं परन्तु उच्च ताप और लाल फॉस्फोरस की अल्पमात्रा की उपस्थिति में अभिक्रिया तेजी से होती है और a- हैलो (क्लोरो अथवा ब्रोमो) ऐल्केनोइक अम्ल प्राप्त होते हैं। यह अभिक्रिया मेथेनोइक अम्ल नहीं देता है क्योंकि उसमें a-हाइड्रोजन परमाणु नहीं होते हैं ।
लाल फास्फोरस का कार्य- लाल फास्फोरास कार्बोक्सिलिक अम्ल को हैलाइड में बदल देता हैजो संगत अम्ल की तुलना में अधिक क्रियाशील होता है तथा इसमें Q- हैलोजनीकरण सुगमता से हो जाता है।
उत्पाद में बना प्रोपेनोयल ब्रोमाइड बार-बार प्रयुक्त होता रहता है जब तक कि पूर्ण अम्ल a- हैलोजनीकृत नहीं हो जाता ।
अम्ल-क्लोराइड का संश्लेषण (Synthesis of acid chlorides)—
अम्लों से अम्ल क्लोराइड बनाने के लिए साधारणतया अम्लों की अभिक्रिया PCI5 या PCI3 या SOCI2 के साथ करते हैं। ये सभी अभिकर्मक अम्लों के साथ अभिक्रिया करके ऐसिल क्लोराइड (अम्ल क्लोराइड) अच्छी मात्रा में बनाते हैं।
क्रियाविधि – यहाँ हम थायोनिल क्लोराइड की अम्ल के साथ अभिक्रिया का उदाहरण लेते हैं। अम्ल, थायोनिल क्लोराइड से अभिक्रिया करके पहले एक उच्च अभिक्रियाशील मध्यवर्ती ऐसिल क्लोरो सल्फाइट बनाता है। इस मध्यवर्ती पर क्लोराइड आयन द्वारा निम्न प्रकार नाभिक स्नेही आक्रमण होता है।
एस्टर का संश्लेषण (Synthesis of Esters)
(1) ऐल्केनॉल से- ऐल्केनोइक अम्ल ऐल्केनॉल के साथ अम्ल उत्प्रेरक जैसे सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल की अल्प मात्रा की उपस्थिति में अभिक्रिया करके ऐल्किलऐल्केनोएट बनाते हैं।
एस्टरीकरण की अभिक्रिया अम्ल उत्प्रेरित होती है। अभिक्रिया में बने जल को हटाने पर अभिक्रिया की गति बढ़ जाती है और एस्टर की अधिक मांत्रा प्राप्त होती है। इस अभिक्रिया में जल का अणु बनने में अम्ल से – OH तथा ऐल्कोहॉल से H- परमाणु का योगदान होता है।’
जब ऐसीटिक अम्ल O18 वाले मेथेनॉल से अभिक्रिया करता है तो फलस्वरूप बने मेथिल ऐसिटेट में O18 ऑक्सीजन उपस्थित होता है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि ऐसीटिक अम्ल में C-OH बंध टूटता है ।
(2) ऐल्किल हैलाइड से- ऐल्केनाइक अम्ल के सोडियम लवण ऐल्किल हैलाइड के साथ अभिक्रिया करके ऐल्किलऐल्केनोएट देते हैं।
(3) ऐसिल क्लोराइड से – ऐसिल क्लोराइड की ऐल्कोहॉल के साथ शीघ्रता से अभिक्रिया हो जाती है और एस्टर बनते हैं। अभिक्रिया में बने HCI को अवशोषित करने के लिये पिरिडीन दुर्बल क्षार के रूप में प्रयुक्त करते हैं।
(4) कार्बोक्सिलिक अम्लों के ऐन्हाइड्राइड से-
अम्ल ऐन्हाइड्राइड ऐल्कोहॉल से शीघ्रता से अभिक्रिया करके एस्टर बनाते हैं।
(5) ट्रॉस-एस्टरीकरण से उच्च क्वथनांकी एस्टर एवं उच्च क्वथनांकी ऐल्कोहॉल के मिश्रण को आसवित करने पर निम्न क्वथनांकी ऐल्कोहॉल आसवित हो जाता है
(6) ऐल्कीन से- ऐल्केनोइक अम्ल ऐल्कीन के साथ उत्प्रेरक बोरॉन ट्रॉइफ्लुओराइड की उपस्थिति में अभिक्रिया करके ऐल्किलऐल्केनोएट देते हैं। उदाहरणार्थ – आइसोब्यूटिलीन (2 – मेथिलप्रोपीन) ऐल्केनोइक अम्ल से अभिक्रिया करके तृतीयक ब्यूटिल ऐल्केनोएट बनाता है।
(7) डाइऐजोमेथेन- ऐल्केनोइक अम्ल डाइऐजोमेथेन के साथ अभिक्रिया करके मेथिल ऐल्केनोएट देते हैं।
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