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आर्कमिडीज का सिद्धांत की परिभाषा क्या है , आर्कीमिडिज का सिद्धान्त का अनुप्रयोग , सूत्र , archimedes principle in hindi
archimedes principle in hindi , आर्कमिडीज का सिद्धांत की परिभाषा क्या है , आर्कीमिडिज का सिद्धान्त का अनुप्रयोग , सूत्र :-
आर्कीमिडिज का सिद्धांत : आर्किमिडिज़ ने बताया कि जब किसी वस्तु को द्रव में डुबोया जाता है तो द्रव के द्वारा वस्तु पर ऊपर की ओर एक बल लगता है जिसे उत्प्लावन बल कहते है।
उत्पलावान बल का मान वस्तु द्वारा हटाये गए द्रव के भार के बराबर होता है।
उत्पलावन बल सदैव ऊपर की ओर लगता है।
उत्पलावन बल = हटाये गए द्रव का भार
F = w
F = mg (ऊपर की ओर)
स्टॉक का नियम : जब किसी वस्तु को द्रव में डुबाया जाता है तो द्रव की परतों के मध्य लगने वाला श्यान बल वस्तु की गति का विरोध करता है।
श्यान बल वस्तु की गति के विपरीत दिशा में लगता है। स्टोक के अनुसार यदि कोई वस्तु द्रव में VT सीमांत वेग से गति करती है तो उस पर गति करने वाले श्यान बल का मान निम्न होता है।
B = 6πnrVT
द्रव में नीचे की ओर गिरती हुई वस्तु का सीमांत वेग (VT) : माना Ms द्रव्यमान व σ घनत्व तथा r त्रिज्या वस्तु सीमांत वेग VT से σ घनत्व वाले द्रव में नीचे गिर रही है तो वस्तु पर लगने वाले बल –
(i) भार बल :
W = Msg . . . . . . . . . समीकरण-1
द्रव्यमान = घनत्व x आयतन
Ms = σ V
Ms = σ x 4πr3/3 . . . . . . . . . समीकरण-2
समीकरण-2 का मान समीकरण-1 में रखने पर –
W = -g 4πr3/3 . . . . . . . . . समीकरण-3
2. उत्पलावन बल = हटाये गए द्रव का भार
B = Meg . . . . . . . . . समीकरण-4
चूँकि ML = σ V
ML = σ 4πr3/3 . . . . . . . . . समीकरण-5
समीकरण-5 का मान समीकरण-4 में रखने पर
B = σg 4πr3/3 . . . . . . . . . समीकरण-6 (ऊपर की ओर)
3. श्यान बल :
स्टॉक का नियम –
F = 6πnrVT . . . . . . . . . समीकरण-7 (ऊपर की ओर)
साम्यावस्था पर –
F + B = w
F = W – B समीकरण-8
समीकरण-3 , 6 , 7 का मान समीकरण-8 में रखने पर –
6πnrVT = σg 4πr3/3 – eg 4πr3/3
6πnrVT = g4πr3/3(σ – e)
6nVT = g4r2/3(σ – e)
VT = (σ – e)2gr2/9n
रेनाल्ड संख्या : रेनाल्ड संख्या एक विमाहिन अंक होता है , रेनाल्ड संख्या की सहायता से द्रव के प्रवाह की ज्ञानकारी प्राप्त होती है।
रेनाल्ड संख्या Re से लिखते है।
यदि प्रवाहित हो रहे द्रव का घनत्व e है उसकी चाल V है , यदि नली का व्यास d व प्रत्यास्थता गुणांक n हो तो –
Re = eVd/n
(i) Re < 1000 धारा रेखीय
(ii) 1000 < Re < 2000 परिवर्ती प्रवाह
(iii) Re > 2000 विक्षुब्ध प्रवाह
पृष्ठ तनाव (T) : पृष्ठ तनाव द्रव का विशेष गुण होता है। प्रत्येक द्रव अपने पृष्ठ का न्यूनतम क्षेत्रफल धारण करने की कोशिश करता है। द्रव के इस गुण को पृष्ठ तनाव कहते है।
T = F/l
यदि l = 1 m तो
T = F
दाब के पृष्ठ का एकांक लम्बाई पर लगने वाला बल पृष्ठ तनाव कहलाता है।
मात्रक –
T = F/l
T = N/M
T = NM-1
विमा :
T = F/l
T = M1L0T-2
पृष्ठीय ऊर्जा : जब किसी द्रव के पृष्ठ का क्षेत्रफल बढाया जाता है तो द्रव के अणुओं के मध्य लगने वाले ससंजक बल के विरुद्ध कार्य किया जाता है।
द्रव के अणुओं के मध्य लगने वाले संसंजक बल के विरुद्ध किया गया कार्य ही पृष्ठीय ऊर्जा कहलाता है।
पृष्ठीय ऊर्जा व पृष्ठ तनाव में सम्बन्ध : माना A , B , C , D एक आयताकार पृष्ठ है जिसके ऊपर l लम्बाई वाली PQ भुजा रखी हुई है जो कि गति करने के लिए स्वतंत्र है , जब आयताकार फ्रेम की साबुन के घोल में डुबोया जाता है तो एक पतली फिल्म का निर्माण होता है , फिल्म के पृष्ठ तनाव के कारण P भुजा अन्दर की ओर विस्थापित होती है अत: पृष्ठ तनाव के विरुद्ध बाह्य बल P लगाया जाता है।
अत: किया गया कार्य।
कार्य = बल x विस्थापन
चूँकि T = F/l
F = Tl
W = Tldx
चूँकि A = ldx
W = TA
किसी द्रव के पृष्ठ तनाव का मापन : किसी द्रव के पृष्ठ तनाव का मान ज्ञात करने के लिए एक बीकर में द्रव लिया जाता है तथा एक तुला लेते है , तुला के एक पलड़े से क्षैतिज पतली काँच की पट्टिका लगा देते है तथा दुसरे पलड़े में द्रव्यमान रखने के लिए एक सांचा बना हुआ होता है जब काँच की क्षैतिज पट्टिका लगी हुई भुजा को बीकर में भरे हुए द्रव के पास ले जाया जाता है तो कांच की पट्टिका व द्रव के अणुओं के मध्य लगने वाले आंसंजक बल के कारण कांच की पट्टिका नीचे की ओर आकर्षित होती है अर्थात कांच की पट्टिका पर नीचे की ओर द्रव के द्वारा पृष्ठ तनाव लगाया जाता है।
तुला की दूसरी भुजा में द्रव्यमान रखकर तुला को संतुलित अवस्था में लाया जाता है।
अत: द्रव का पृष्ठ तनाव –
पृष्ठ तनाव
T = F/l समीकरण-1
संतुलित की अवस्था –
F = W समीकरण-2
समीकरण-1 व समीकरण-2 से –
T = W/l
सम्पर्क कोण : जब कोई द्रव किसी ठोस सतह के सम्पर्क में आता है , तो द्रव वक्राकार आकृति ग्रहण कर लेता है अत: ठोस सतह पर खिंची गयी स्पर्श रेखा तथा द्रव में वक्र पृष्ठ पर खिंची गयी स्पर्श रेखा के मध्य बनने वाले कोण को स्पर्श कोण कहते है।
कुछ द्रव ठोस के पृष्ठ को गिला कर देते है , उनके लिए सम्पर्क कोण का मान न्यूनकोण होता है।
जैसे :
- पानी का कांच या प्लास्टिक के सम्पर्क में आने पर।
- मिट्टी के तेल का किसी भी सतह के सम्पर्क में आने पर फ़ैल जाता है।
- साबुन तथा अपमार्जक पृष्ठ को गिला कर देते है।
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