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CFT के अनुप्रयोग Applications of crystal field theory in hindi
Applications of crystal field theory in hindi CFT के अनुप्रयोग : CFT की सहायता से संकुल यौगिकों के चुम्बकीय गुण , रंग , ज्यामिति एवं स्पेक्ट्रम आदि गुणों की व्याख्या की जाती है।
1. चुम्बकीय गुण
वे संकुल यौगिक जिनमे अयुग्मित e होते है , अनु चुम्बकीय होते है एवं वे संकुल यौगिक जिनमे एक भी अयुग्मित electron नहीं होता प्रतिचुम्बकीय होते है।
संकुल यौगिक में n अयुग्मित electron होने पर चुम्बकीय आघूर्ण का मान निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जाता है।
u = √n(n+2)
निम्न दो प्रभाव d कक्षकों में e के वितरण को प्रभावित करते है –
1. क्रिस्टल क्षेत्र विभाजन उर्जा
2. युग्मन उर्जा : दो electrons को युग्मन के लिए आवश्यक उर्जा।
2. संकुल यौगिकों के रंगों की व्याख्या
यदि किसी पदार्थ के परमाणु , अणु अथवा आयन में अयुग्मित electron होता है तो वह प्रकाश के दृश्य क्षेत्र से उर्जा को अवशोषित करता है जिसके फलस्वरुप पदार्थ रंगीन होता है।
संक्रमण धातु संकुल यौगिक के रंगों की व्याख्या CFT के आधार पर निम्न दो प्रकार से की जा सकती है –
1. d-d संक्रमण : अष्टफलकीय संकुलों में धातु आयनों के d कक्षक निम्न उर्जा के t2g एवं उच्च उर्जा के eg कक्षकों में विभाजित हो जाते है।
t2g कक्षकों में अयुग्मित e होने पर यह △0 के बराबर उर्जा प्रकाश के दृश्य क्षेत्र से अवशोषित करके eg कक्षकों में चला जाता है , इस इलेक्ट्रॉनिक संक्रमण के कारण संकुल यौगिक रंगीन होते है।
नोट : संकुल यौगिक के रंग को प्रभावित करने वाले कारक :
संकुल यौगिक का रंग क्रिस्टल क्षेत्र विभाजन उर्जा (△0) की मात्रा पर निर्भर करता है अत: इसको निम्न कारक प्रभावित करते है।
- धातु आयन पर आवेश
- धातु आयन के d electron की संख्या
- लिगेंड की प्रकृति
- संकुल यौगिक की ज्यामिति
2. आवेश स्थानांतरण स्पेक्ट्रम (charge transfer spectra ) : इस प्रकार के स्थानान्तरण में electron लिगेंड़ो के आण्विक कक्षकों से धातु आयन के आण्विक कक्षकों में गमन करता है।
e के इस गमन हेतु आवश्यक उर्जा प्रकाश के दृश्य क्षेत्र से अवशोषित की जाती है। फलस्वरूप यौगिक रंगीन होता है।
संक्रमण स्थानान्तरण में संकुल यौगिक का रंग d-d संक्रमण की अपेक्षा अधिक गहरा होता है।
धातु आयन पर धनावेश की वृद्धि होने से संकुल यौगिक के रंग की तीव्रता बढ़ जाती है।
CFT और VBT में अंतर या तुलनात्मक अध्ययन
मुख्य बिन्दु | CFT | VBT |
M-L बंध | इसके अनुसार धातु आयन एवं लिगेंड के मध्य बना बंध आयनिक होता है। | इसके अनुसार बंध शुद्ध सहसंयोजक होता है। |
d कक्षकों का विभाजन | इसके अनुसार d कक्षकों का उच्च उर्जा के eg एवं निम्न उर्जा के t2g कक्षकों में विभाजन होता है। | इसके अनुसार d कक्षकों का विपाटन नहीं होता है। |
संकरण | इसमें संकरण की धारणा शामिल नहीं की गयी। | इसमें संकुल बनने से पूर्व धातु आयन के कक्षकों में संकरण की धारणा बताई गयी। |
रंग | यह संकुल यौगिकों के रंग की स्पष्ट व्याख्या करता है। | यह संकुल यौगिकों के 6 रंग की स्पष्ट व्याख्या नहीं करता। |
ज्यामिति | यह सिद्धांत संकुल यौगिक की नियमित ज्यामिति में विकृति की व्याख्या करता है। | यह सिद्धान्त नियमित ज्यामिति में विकृति की व्याख्या नहीं करता। |
CFSE | इसकी सहायता से CFSE का मान ज्ञात किया जा सकता है। | इसकी सहायता से CFSE का मान ज्ञात नही किया जा सकता है। |
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