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अग्रस्थ कोशिका सिद्धान्त (apical cell theory in hindi) अग्रस्थ कोशिका सिद्धान्त किसने दिया
(apical cell theory in hindi) अग्रस्थ कोशिका सिद्धान्त क्या है ? अग्रस्थ कोशिका सिद्धान्त किसने दिया
प्ररोह शीर्ष विभाज्योतकों का संगठन (shoot apical meristem organization)
यह एक सुविदित तथ्य है कि शीर्षस्थ विभाज्योतक आवृतबीजी पौधों की जड़ों , तनों , शाखाओं और टहनियों के अग्र सिरों पर पाए जाते है। इन अग्रस्थ अथवा शीर्षस्थ सिरों को वृद्धि बिन्दु भी कहते है। इनकी सक्रियता से पादप शरीर की लम्बाई में वृद्धि होती है और यही नहीं , पादप अक्ष का प्राथमिक शरीर भी अग्रस्थ विभाज्योतक की सक्रियता से ही निर्मित होता है।
आमतौर पर प्ररोह का अग्रस्थ सिरा पर्ण आद्यकों के ठीक ऊपर अवस्थित माना जाता है। इस क्षेत्र में निरंतर कोशिका विभाजन से तने का प्रारंभिक संगठन निर्मित होता है। इसकी आकृति और परिमाप विभिन्न पादप प्रजातियों में अलग अलग होती है , जैसे घासों में इसका व्यास 90 माइक्रो , द्विबीजपत्रियों में 130 से 210 माइक्रो , केले में लगभग 280 माइक्रो और पान में यह लगभग 500 से 800 माइक्रो तक होता है। प्ररोह शीर्ष विभज्योतक प्राय: त्रिज्या सममित और मध्य अनुदैधर्य काट में लगभग उत्तल दिखाई देता है।
ड्राइमिस और हिबीस्कस आदि में यह अवतल होता है। इसके अतिरिक्त एक ही जाति में इसके आमाप में आवर्ती परिवर्तन भी पाए जाते है। सामान्यतया पर्ण समारंभन से पूर्व यह पर्याप्त चौड़ा हो जाता है और इसे उच्च्तम क्षेत्र प्रावस्था (maximal area phase) कहते है। पर्ण समारंभन के पश्चात् यह पुनः संकीर्णित हो जाता है और इसे अल्पतम क्षेत्र प्रावस्था (minimal area phase) कहते है।
अनेक वनस्पतिशास्त्रियों ने विभाज्योतक कोशिकाओं की कार्यप्रणाली की व्याख्या करने के लिए और इनकी सक्रियता को समझाने के लिए विभिन्न प्रकार की विचारधाराएँ प्रस्तुत की है। इनमें से कुछ प्रमुख मत और विचारधाराएँ निम्नलिखित प्रकार से है –
1. अग्रस्थ कोशिका सिद्धान्त (apical cell theory in hindi)
जिस प्रकार शैवालों और ब्रायोफाइट्स में और अन्य निम्नवर्गीय पौधों में केवल एक अग्रस्थ कोशिका की सक्रियता से सम्पूर्ण पादप शरीर का निर्माण और विभेदन होता है तो इसी तथ्य को ध्यान में रखकर हाफमिस्टर ने अग्रस्थ कोशिका सिद्धांत प्रस्तुत किया। इस सिद्धान्त की विस्तृत व्याख्या नजेली के द्वारा प्रस्तुत की गयी। उसके अनुसार पादप शरीर अथवा इसका शीर्ष सिरा केवल एक विभाज्योतक कोशिका के द्वारा ही निर्मित होता है और इस अग्रस्थ कोशिका से निर्मित अन्य कोशिकाएँ आगे चलकर विभिन्न पादपांगो का निर्माण और विभेदन करने का कार्य करती है। इस सिद्धांत के अनुसार उच्चवर्गीय पौधों जैसे अनावृतबीजी और आवृतबीजी के पादप शरीर में स्तम्भ शीर्ष केवल एक कोशीय होता है और यह एक अग्रस्थ अथवा शीर्षस्थ कोशिका पाशर्व सतहों पर 2 अथवा 3 तलों में विभाजित होकर विभिन्न प्रकार के स्थायी ऊतकों के निर्माण का कार्य करती है। हालाँकि इस सिद्धान्त के आधार पर शैवाल और ब्रायोफाइट्स में विभज्योतकों की सक्रियता को समझाया जा सकता है लेकिन उच्चवर्गीय पौधों में प्ररोह शीर्ष को समझाने के लिए यह सिद्धान्त उपयुक्त नहीं है।
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