हिंदी माध्यम नोट्स
anti non cooperation association in hindi एंटी नॉन-कोऑपरेशन एसोसिएशन की स्थापना किसने और कब की
जाने anti non cooperation association in hindi एंटी नॉन-कोऑपरेशन एसोसिएशन की स्थापना किसने और कब की ?
उद्योगपतियों का स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान
राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ने का दृष्टिकोण
1. स्वदेशी आन्दोलन के दौरान पूंजीपतियों ने स्वंय को पृथक रखा।
2. असहयोग आंदोलन के दौरान पूंजीपतियों के एक समूह ने एंटी नॉन-कॉऑपरेशन एशोसिएशन की स्थापना की। इसकी स्थापना में पुरूषोत्तमदास ठाकुरदास, जमनदास द्वारकादास जैसे पूंजीपतियों ने भूमिका निभायी।
3. घनश्याम दास बिड़ला एवं पुरूषोत्तमदास ठाकुरदास जैसे पूंजीपतियों के प्रयासों से 1927 में फिक्की (फेडरेशन ऑफ इण्डियन चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एण्ड इण्डस्ट्री) की स्थापना हुई, इसके (फिक्की) माध्यम से भी वे राष्ट्रीय आन्दोलन से जुड़े।
4. 1922 के पश्चात् मोतीलाल नेहरू (स्वराजवादी राजनीति के काल में) ने राजनीतिक कार्यों में बाम्बे व अहमदाबाद के पूंजीपतियों से आर्थिक सहायता भी प्राप्त की।
5. गांधी व मोतीलाल नेहरू जैसे नेताओं ने घनश्याम दास बिड़ला, पुरूषोत्तमदास ठाकुरदास जैसे पूंजीपतियों के साथ जटिल आर्थिक मुद्दों पर परामर्श भी किया।
6. कई महत्वपूर्ण पूंजीपतियों ने प्रथम गोलमेल सम्मेलन का बहिष्कार किया क्योंकि कांग्रेस ने इसमें भाग नहीं लिया था।
7. सविनय अवज्ञा आंदोलन के 1931 ई. में स्थगन में पूंजीपतियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी व कांग्रेस के साथ द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में हिस्सा लिया।
8. 1935 ई. के अधिनियम के आधार पर चुनाव के विभिन्न मुद्दों को घनश्याम दास बिड़ला जैसे पूंजीपतियों ने प्रभावित किया।
9. बिरला जैसे पूंजीपतियों ने 1937 में कांग्रेस मन्त्रिमण्डलों की स्थापना से संबंधित मुद्दों को भी प्रभावित किया। इस सन्दर्भ में कांग्रेस उम्मीदवारों के चयन के मुद्दे भी प्रभावित हुए।
10. 1930 के दशक में ट्रेड यूनियन आन्दोलन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से कांग्रेस के दक्षिणपंथी समूहों को वित्त भी प्रदान किया।
11. सोराब जी टाटा जैसे पूंजीपतियों की ओर से पूंजीपतियों के राष्ट्रीय दल की स्थापना का महत्वपूर्ण प्रयास हुआ लेकिन अधिकांश पूँजीपतियों ने अलग संगठन बनाने का विरोध किया। जैसे – घनश्याम दास बिड़ला, ठाकुरदास आदि ने विरोध किया, इस आधार पर कि कांग्रेस उनके हितों का प्रतिनिधित्व कर रही है और उन्हें बल प्रदान कर रही है।
प्रश्न: भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के उदय और विकास से महिलाओं के मुक्ति आंदोलन को अत्यधिक प्रेरणा किस प्रकार मिली ?
उत्तर: भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के उदय तथा विकास से महिलाओं के मुक्ति आन्दोलन को मुख्यतः दो कारणों से अत्यधिक प्रेरणा मिली-
1. 19वीं शताब्दी का सामाजिक-सांस्कृतिक आन्दोलन तथा
2. जन आन्दोलन की शुरूआत।
19वीं शताब्दी में पाश्चात्य शिक्षा और प्रजातांत्रिक विचारधाराओं के प्रभाव में आकर कई समाज सुधारकों ने महिलाओं के सामाजिक स्तर को ऊपर उठाने के लिए शक्तिशाली आन्दोलन छेड़ दिया। इन समाज सुधारकों में प्रमुख थे- राजा राममोहन राय, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर, एम.जी, रानाडे, डी. के कर्वे आदि। इन लोगों ने सती प्रथा, बहु-विवाह, बाल विवाह आदि का विरोध किया तथा महिलाओं के पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी, विधवा पुनर्विवाह, स्त्री शिक्षा आदि की जोरदार वकालत की। मुस्लिम समाज में महिलाओं की बदतर स्थिति के खिलाफ सर सैय्यद अहमद खान तथा अलीगढ़ स्कूल ने आवाज बुलंद की। उन्होंने पर्दा प्रथा, बहु विवाह तथा तलाक की आसान रीति का विरोध किया और महिलाओं में शिक्षा के प्रसार की वकालत की। वस्तुतः उस काल के जितने भी राष्ट्रीय नेता थे वे किसी न किसी प्रकार से सामाजिक- सांस्कृतिक आन्दोलन से जुड़े हुए थे और इन आन्दोलनों ने महिलाओं को जाग्रत करने का कार्य किया।
20वीं शताब्दी में राष्ट्रीय आन्दोलन खासकर आतंकवादी आन्दोलन के उदय के साथ ही नारी मुक्ति आन्दोलन को बल मिला। बंगाल विभाजन के विरोध में तथा होम रूल आन्दोलन के माध्यम से महिलाओं ने बहुत बड़ी संख्या में भागीदारी निभायी।
गांधीजी के नेतृत्व में अनेक आंदोलनों (जैसे- असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन) में महिलाओं ने काफी संख्या में भागीदारी की। 1920 के दशक के उपरान्त नारी आन्दोलनों की मूल प्रकृति में बदलाव परिलक्षित हुआ। अब तक बुद्धिजीवियों ने स्त्रियों की स्थिति में सुधार के प्रयास किए थे। परन्तु अब चिंतनशील एवं आत्मविश्वासी महिलाओं ने यह कार्य संभाला तथा इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कई संस्थाओं की स्थापना की। इनमें सबसे महत्वपूर्ण था ‘अखिल भारतीय महिला सम्मेलन‘ जिसकी स्थापना 1927 में की गयी। स्वतंत्रता के पश्चात् संविधान ने स्त्री-पुरूष समानता की गारंटी दी।
उपयुक्त विवेचन से स्पष्ट है कि महिलाओं ने स्वतंत्रता के लिए लड़े गये राष्ट्रीय आन्दोलनों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और भारत को स्वतंत्र कराने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। दूसरी ओर स्वतंत्रता आन्दोलन ने उन्हें सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक निर्योग्यताओं से मुक्ति दिलायी।
Recent Posts
मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi
malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…
कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए
राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…
हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained
hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…
तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second
Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…
चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi
chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…
भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi
first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…