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Categories: Biology

परागकोश या बीजाणुधानी क्या है , परिभाषा Anther or Spores in hindi परागकोष किसे कहते है ?

(Anther or Spores) definition in hindi परागकोश या बीजाणुधानी क्या है , परिभाषा , परागकोष किसे कहते है ? पुरागकुटि (Antiquity)  :-

परिभाषा : पुष्प में पुष्पासन नीचे से तीसरी पर्णसंधि पर पुभँग पाये जाते है इसके एक अवयव को पुकेंसर कहते है। यह एक वृत (डण्टल) द्वारा पुष्पांसन से जुडा रहता है जिसे पुतन्तु कहते है। इसका उपरी सिरा (अत्तिम सिरा) द्विपालीत संरचना में समाप्त होता है। जिसे परागकोश कहते है। परागकोश की प्रत्येक पाली में दो कोष्ठ होते है इस प्रकार चारो कोनो में चार कोष्ठ पाये जाते है। जिनमे ंपरागकण भरे होते है। इसलिए इन्हे पुरागकुटि या लघु बीजाणुधानी भी कहते है।

परागकोष की संरचना (structure of anther) : आवृतबीजी पुष्प में उपस्थित पुंकेसर नर जनन संरचना या लघुबीजाणुपर्ण को निरुपित करते है। प्रत्येक पुंकेसर के तीन भाग होते है –

(1) परागकोष (anther)

(2) पुतंतु (Filament)

(3) योजी (connective)

लघुबीजाणु अथवा परागकण परागकोष में बनते है। एक प्रारूपिक परागकोष में सामान्यतया दो पालियाँ होती है जो एक दूसरे से योजी द्वारा जुडी रहती है। योजी एक बंध्य ऊतक होता है।

परागकोष की प्रत्येक पालि दो प्रकोष्ठों में विभेदित होती है जिन्हें परागधानी अथवा लघुबीजाणुधानी भी कहते है।

इस प्रकार दो पालियुक्त परागकोष द्विकोष्ठी कहलाते है और कुल मिलाकर इनमें चार लघुबीजाणुधानियाँ होती है। ऐसे परागकोष को चतुष्बीजाणुधानिक परागकोष कहते है। इसके विपरीत कुछ पौधों , जैसे मालवेसी कुल के सदस्यों और मोरिन्गा के परागकोष में केवल एक ही पालि पाई जाती है। ऐसे परागकोषों को एककोष्ठीय कहते है और इन परागकोषों में केवल दो लघुबीजाणुधानियाँ होती है। अत: इनको द्विबीजाणुधानिक पराग प्रकोष्ठ कहते है।

लेकिन एक परजीवी आवृतबीजी पौधे आरसीथोबियम में परागकोष में केवल एक पालि पायी जाती है अपितु उस एक पालि में भी केवल एक लघुबीजाणुधानी होती है। ऐसे परागकोष को एक बीजाणुधानिक कहते है।

द्विकोष्ठी चतुष्बीजाणुधानिक परागकोष की दो पालियों में से एक छोटी और दूसरी बड़ी होती है। परिपक्व होने पर इन दोनों बीजाणुधानियों के मध्य की भित्ति टूट जाती है , जिससे एक बड़ा कोष्ठक बन जाता है।

लघुबीजाणुधानी का परिवर्धन (development of microsporangium)

एक प्रारूपिक पुंकेसर का परिवर्धन पुष्पासन के ऊपर कुछ विभाज्योतकी कोशिकाओं के सक्रीय हो जाने के कारण होता है। ये विभाज्योतकी कोशिकाएँ बारम्बार विभाजित होकर असंख्य कोशिकाओं का एक समूह बनाती है। ये कोशिकाएँ वृद्धि कर दो पालियों में विभेदित होती है और प्रत्येक पाली से दो प्रकोष्ठ परिवर्धित होते है। इसके बाद धीरे धीरे कोशिकाओं के नीचे की तरफ पुतंतु का विभेदन होता है। इस प्रकार एक प्रारूपिक पुंकेसर का विकास पूरा होता है। परागकोष का परिवर्धन यूस्पोरेंजिएट प्रकार का होता है। इस प्रकार के परिवर्धन में एक से अधिक बीजाणुजन कोशिकाएँ एक बीजाणुधानी का विकास करती है।
शिशु अवस्था में परागकोष एक जैसी समांगी कोशिकाओं का एक समूह होता है जो बाह्यत्वचा परत के आवरण द्वारा ढका रहता है। परिवर्धन के साथ साथ यह संरचना पहले दो और बाद में चार परागधानियों में विभेदित हो जाती है।
प्रत्येक परागधानी में बाह्यत्वचा के नीचे अधोत्वचा परत की कुछ कोशिकाएँ आसपास की अन्य कोशिकाओं की तुलना में बड़ी हो जाती है। इनका जीवद्रव्य गाढ़ा और केन्द्रक भी बड़े और सुस्पष्ट दिखाई देते है। इन कोशिकाओं को प्रपसु कोशिकाएँ कहते है। पौधों की विभिन्न जातियों में प्रपसु कोशिकाओं की संख्या अलग अलग हो सकती है।
प्रपसु कोशिकाओं के परिनतिक विभाजन से सन्तति कोशिकाओं की दो परतें बनती है। बाहरी परत की कोशिकाओं को प्राथमिक भित्ति कोशिकाएँ कहते है और आंतरिक परत की कोशिकाओं को प्राथमिक बीजाणुजन कोशिकाएं कहते है। प्राथमिक भित्तीय कोशिकाएँ फिर से परिनतिक रूप से विभाजित होकर बाहर की तरफ अन्त: स्थीसियम और भीतर की तरफ भित्तीय कोशिकाएं बनाती है। भित्तिय कोशिकायें परिनतिक विभाजनों द्वारा अंतस्थीसियस के नीचे 2-3 कोशिका मोटाई की परत बनाती है। इसे मध्य स्तर कहते है। इसके भीतर एक तथा स्तर का निर्माण होता है जिसे पोषोतक कहते है। इस प्रकार प्राथमिक भित्तीय कोशिका परत से लघुबीजाणुधानी को बहुपरतीय भित्ति का निर्माण होता है।
प्राथमिक बीजाणुजन कोशिका या तो सीधे ही या समसूत्री विभाजनों के बाद लघुबीजाणु मातृ कोशिकाओं में विभेदित होती है जो कि आगे चलकर अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा लघुबीजाणुओं का निर्माण करती है।
कुछ पौधों जैसे डोर्यीन्थिस और होलोप्टेलिया में परागकोष की अधोत्वचा से प्रपसूतक विभेदित नहीं होता। अत: कुछ भीतरी अधोत्वचा कोशिकाएँ सीधे ही प्राथमिक बीजाणुजन कोशिका के रूप में कार्य करती है।
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