हिंदी माध्यम नोट्स
अन्हिलवाड़ा की स्थापना किसने की थी , anhilwara was established by in hindi कहाँ है
anhilwara was established by in hindi , अन्हिलवाड़ा की स्थापना किसने की थी कहाँ है ?
अन्हिलवाड़ा (22°51‘ उत्तर, 72°07‘ पूर्व)
अन्हिलवाड़ा को वर्तमान में पाटन कहा जाता है जो उत्तरी गुजरात में स्थित है। कहा जाता है कि इसकी स्थापना 765 ई. में वनराज ने की थी। तत्पश्चात् यह चालुक्यों अथवा सोलंकियों के अधीन हो गया तथा इसको राजधानी बना दिया गया। चालुक्यों अथवा सोलंकियों ने गुजरात तथा काठियावाड़ पर लगभग साढ़े तीन शताब्दियों (950-1300 ई.) तक शासन किया। भीम प्रथम के शासनकाल (1022-64) में, महमूद गजनी ने गुजरात को बुरी तरह कुचलकर भीम प्रथम को कच्छ में शरण लेने पर विवश किया। महमूद गजनी के वापस चले जाने पर, भीम प्रथम ने चालुक्य शक्ति को पुनर्जीवित किया तथा परमारों के विरुद्ध लक्ष्मी-कर्ण कलचुरी के साथ मिलकर एक संघ बनाया। भीम द्वितीय के शासनकाल (1178-1241 ई.) में, मोहम्मद गौरी ने 1178 में गुजरात को जीतने का असफल प्रयास किया तथा कुतुबुद्दीन ऐबक ने भी अन्हिलवाड़ा पर दो बार चढ़ाई की। हालांकि, अलाउद्दीन खिलजी की सेनाएं अवश्य कुछ समय के लिए अन्हिलवाड़ा पर कब्जा करने तथा लूटने में सफल रही। सुल्तान अहमदशाह, जिसने गुजरात पर 1411-1442 ई. के बीच शासन किया, ने अन्हिलवाड़ा की जगह अहमदाबाद को अपनी राजधानी बनाया। बाद में, अन्हिलवाड़ा मुगलों के अधीन हो गया। पानीपत की तीसरी लड़ाई के बाद कुछ समय के लिए गायकवाड़ों ने अन्हिलवाड़ा को अपनी राजधानी बनाया था।
यहां के महेश्वर मंदिर एवं काली मंदिर 12वीं शताब्दी के सोलंकी स्थापत्य कला के सुंदर नमूने हैं। किंतु 11वीं शताब्दी में निर्मित कला रानी की वाव यहां की एक अत्यंत सुंदर स्थापत्य कृति है। इस कृति में सोलंकी स्थापत्य एवं प्रस्तर कारीगरी का सुंदर सम्मिश्रण परिलक्षित होता है। मध्यकालीन समय में अन्हिलवाड़ा शिक्षा एवं वाणिज्य का भी एक महत्वपूर्ण केन्द्र था। वर्तमान समय में यह एक छोटे नगर के रूप में विकसित किया गया है तथा पर्यटकों के आकर्षण का एक प्रमुख केंद्र है।
अनूप (22.11° उत्तर, 75.35° पूर्व)
अनूप एक प्राचीन नगर था, जो नर्मदा घाटी में नर्मदा एवं ताप्ती नदियों के मध्य स्थित था। यह सातवाहनों का एक प्रमुख प्रांत था किंतु बाद में इस पर शकों ने अधिकार कर लिया। यद्यपि गौतमीपुत्र शातकर्णी (72-95 ई.) के समय सातवाहनों ने इस पर पुनः अधिकार कर लिया। गौतमीपुत्र शातकर्णी की माता गौतमी बलसारी के नासिक अभिलेख (115 ई.) में भी अनूप का संदर्भ प्राप्त होता है। कालांतर में रुद्रदमन के साथ शकों ने अनूप पर पुनः अधिकार कर लिया।
अनुराधापुर (8°.21‘ उत्तर, 80°23‘ पूर्व)
अनुराधापुर श्रीलंका (सिलोन) के शासकों की राजधानी था। बाद में चोल आक्रमणों से बचने के लिए सिंहली शासकों ने अपनी राजधानी पोलोनारुवा में स्थानांतरित कर दी। 11वीं शताब्दी में अनुराधापुर ने चोल शासक राजराजा एवं उसके पुत्र राजेन्द्र प्रथम के भयंकर आक्रमणों का सामना किया।
प्राचीन काल के एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में अनुराधापुर में कई बौद्ध स्थल हैं। इस प्रकार यह बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। श्रीलंका में स्तूप को ‘दागोब‘ या ‘धातुगर्भ‘ के नाम से जाना जाता है। ‘थुपोरामो‘ एवं ‘रुवेनवेली‘ अनुराधापुर के महत्वपूर्ण प्राचीन दागोब हैं। श्रीलंका के दागोबों की एक महत्वपूर्ण विशेषता उनमें चार निरंतर टुकड़ों की उपस्थिति है। वर्तमान समय में अनुराधापुर श्रीलंका का एक महत्वपूर्ण नगर एवं पर्यटक स्थल है।
ओर्नस
ओर्नस या ओर्णस, पाणिनी द्वारा उल्लिखित प्राचीनकालीन वर्मा या वर्ण है। सिंधु एवं स्वात नदियों (अब पाकिस्तान) के मध्य स्थित ऊंची पहाड़ी ढाल पर बसा ओर्नस एक किलाबंद तथा पानी एवं खाद्यान्न में आत्मनिर्भर था। ओर्नस का पहाड़ी किला सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण था तथा यहां के निवासी कृषि की पैदावार को इस किले में सुरक्षित रख देते थे, जिससे किसी भी विपरीत परिस्थिति का सामना किया जा सके। सिकंदर ने अपने भारतीय अभियान में ओनस पर आक्रमण किया तथा इस पर कब्जा कर लिया। वर्तमान में यह स्थान पाकिस्तान में है। 326 ई.पू. में उसका यह अंतिम अभियान था।
अपराजितक/अपरांत
महाराष्ट्र प्रांत का उत्तरी कोंकण क्षेत्र इसके अंतर्गत था। अपरान्त प्रारंभ से ही शकों एवं सातवाहनों के मध्य संघर्ष का एक कारण रहा है। 115 ई. के नासिक अभिलेख में, जोकि गौतमीपुत्र शातकर्णी का है, यह उल्लेख प्राप्त होता है कि इस शासक ने इसे शकों से छीना था।
महावंश के अनुसार, तृतीय बौद्ध संगीति के उपरांत अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचारार्थ विभिन्न क्षेत्रों में जो प्रचारक भेजे थे उनमें धर्मरक्षित को अपरान्त क्षेत्र में भेजा गया था। अनुश्रुतियों के अनुसार, सिंहल के प्रथम राजा विजय इसी स्थान से सिंहल गया था।
साहित्यिक स्रोतों से यहां अभीरों की उपस्थिति के भी संकेत मिलते हैं। कालांतर में यह स्थान व्यापार एवं वाणिज्य की गतिविधियों का एक प्रमुख केंद्र बन गया। इसके वाणिज्यिक महत्व के कारण ही अपरान्त लंबे समय तक मराठों एवं अंग्रेजों के मध्य संघर्ष का एक कारण बना रहा। जब अंग्रेजों ने बंबई को एक प्रमुख बंदरगाह के रूप में विकसित किया तब पुनः इस स्थान का महत्व बढ़ गया।
अफसाद (24.75° उत्तर, 85.01° पूर्व)
यह बिहार के गया जिले में स्थित है। उत्तरकालीन गुप्त शासक आदित्यसेन (सातवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में) का एक तिथि रहित लेख यहां से पाया गया है। इस अभिलेख के अनुसार आदित्यसेन ने भगवान विष्णु के सम्मान में यहां एक मंदिर बनवाया, उसकी रानी ने एक तालाब खुदवाया तथा उसकी माता ने एक मठ बनवाया था। यद्यपि अब वहां मठ एवं तालाब के कोई अवशेष प्राप्त नहीं होते किंतु वहां विष्णु मंदिर के अवशेष, पट्टियों के साथ जिन पर रामायण के दृश्य अंकित हैं तथा यह सातवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध का माना गया है, अवश्य पाए गए हैं। अनुमानतः यह समय परवर्ती गुप्त शासकों के शासनकाल का ही था।
यह प्रमाणित नहीं होता कि बाद के गुप्त वंश का राजसी गुप्त वंश से कोई रक्त संबंध था। वस्तुतः ये राजसी गुप्त वंश के सामंत थे जो स्वतंत्र हो गए और अपना शक्तिशाली राज्य स्थापित किया, जो कि आठवीं शताब्दी के मध्य तक चला। आदित्यसेन श्रृंखला में आठवां राजा, ने अपने पूर्वजों के नाम शिलालेख में दिए हैं तथा पहले तीन शासकों के सैन्य अभियान की सफलताओं की भी सूची दी है। शिलालेख के अनुसार, कृष्ण गुप्त ने राजवंश स्थापित किया। शिलालेख बाद के गुप्त शासकों के समकालीनों, जैसे कि मौखरी तथा पुष्यभूतियों पर भी प्रकाश डालता है।
अभिलेख के अनुसार, कृष्णगुप्त नाम का एक व्यक्ति उत्तरकालीन गुप्त राजवंश का संस्थापक था। हर्षगुप्त ने हूणों से युद्ध किया, जबकि जीवगुप्त, लिच्छवियों से लड़ा। कुमारगुप्त ने मौखरियों को परास्त कर दिया। एक अन्य उत्तरकालीन गुप्त शासक महासेनगुप्त ने पुष्यभूतियों के साथ वैवाहिक संबंधों की स्थापना की तथा उसके उत्तराधिकारी माधवगुप्त ने हर्षवर्धन के साथ मित्रवत संबंध कायम किए। अभिलेख के अनुसार आदित्यसेन, इस वंश का सबसे प्रतापी शासक था। उसके साम्राज्य में अंग एवं बंगाल सम्मिलित थे।
अरम्मलई (12°38‘ उत्तर, 79°15‘ पूर्व)
तमिलनाडु के वेल्लोर जिले के मलियमपट्ट गांव के निकट स्थित अरम्मलई गुफा जैन चित्रकारी, शैलचित्रों, शैलकला तथा जैन संतों के अवशेषों के लिए प्रसिद्ध है। यह गुफा भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के संरक्षण में है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि आठवीं शताब्दी में जैन सम्प्रदाय के अनुयायियों द्वारा अरम्मलई में एक प्राकृतिक गुफा को जैन मंदिर में रूपांतरित किया गया। जैन धर्म की समृद्धि के काल में इस गुफा में जो जैन भिक्षु रहते थे उन्होंने गुफा की छतों तथा दीवारों को भित्ति चित्रों द्वारा अलंकृत कर दिया था। ये चित्र गारा मिट्टी की मोटी सतह पर चूने की पतली परत चढ़ाकर उसके ऊपर रंगों का उपयोग कर बनाए गए थे। अरम्मलई गुफा के चित्र सित्तानवसल गुफा तथा बाघ गुफा के जैसे ही हैं। इन चित्रों में दो विधियों-फ्रेस्को तथा टेम्पेरा, का उपयोग हुआ है। इनमें जैन धर्म की कथाओं का चित्रण किया गया है तथा यहां अष्टदिकपालकों अर्थात् आठ प्रधान दिशाओं के संरक्षकों का चित्र भी है। यहां पर दीवारों पर पौधों व हंसों के भी चित्र बने हैं। गफा की दीवारों पर तमिल ब्राह्मी लिपि में शिलालेख हैं। 1960 के दूसरे दशक में पुरातत्वविदों ने इस गुफा में शैल कलाओं को खोजा। इससे पहले जो विआऊ-दुबरेविल नामक एक शोधार्थी ने पल्लव नरेश वंदीवर्मन द्वितीय की उदयेनदिरम ताम्र पट्टियों में दी गई जानकारी के आधार पर इस गुफा की खोज का दावा किया था। उसने अपने शोध द्वारा मलयमपटु के पश्चिम में इस गुफा का पता लगाया।
Recent Posts
मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi
malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…
कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए
राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…
हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained
hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…
तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second
Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…
चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi
chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…
भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi
first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…